सहकारी समितियां थोक दरों पर बीज, उर्वरक और उपकरण खरीदने में सक्षम होती हैं, जिससे किसानों की लागत कम होती है।
सामूहिक खेती से नई तकनीकों का उपयोग और बेहतर प्रबंधन संभव होता है, जिससे प्रति एकड़ उत्पादन बढ़ता है।
छोटे किसानों को भी बड़े पैमाने पर उत्पादन और बाजार तक पहुंच मिलती है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
किसान महंगे उपकरण और तकनीक को साझा कर सकते हैं, जिससे उनकी प्रति उपयोग लागत घट जाती है।
यह प्रणाली जोतों के विखंडन और सिंचाई, उर्वरता आदि समस्याओं का समाधान करती है।
किसान अपनी भूमि पर स्वामित्व बनाए रखते हैं।
सहकारी समितियों के सदस्य प्रबंधन के फैसले सामूहिक रूप से लेते हैं।
लाभ का वितरण योगदान के आधार पर होता है।