भारत कुसुम का सबसे बड़ा उत्पादक है, प्रमुख राज्य हैं महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, और बिहार।
कुसुम का तेल, बीज, पत्तियां, और फूलों का उपयोग औषधि के रूप में होता है। यह डायबिटीज, गंजापन, कान दर्द, अल्सर, और कैंसर में फायदेमंद है।
15-25 डिग्री तापमान कुसुम की खेती के लिए अनुकूल है। पीएच मान 5-7 के बीच वाली काली मिट्टी इस खेती के लिए उत्तम होती है।
सितंबर के अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त है। कतार से कतार की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें।
सिंचाई की सुविधा न होने पर नाइट्रोजन 40 किग्रा, फॉस्फोरस 40 किग्रा, और पोटाश 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। गोबर की खाद का प्रयोग तेल की मात्रा में इजाफा करता है।
कुसुम की खेती में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई 50-55 दिनों बाद और दूसरी 80-85 दिनों पर करें। फूल आने पर सिंचाई न करें।
अंकुरण के 15-20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। कटाई में सावधानी बरतें, क्योंकि पौधे में कांटे होते हैं। दस्ताने पहनकर कटाई करें।
एक हेक्टेयर से 5-15 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो सकती है। उन्नत किस्मों का चयन करके किसान कुसुम की खेती से अच्छी आय कर सकते हैं।