मूंगफली के प्रमुख रोग और इनको नियंत्रित करने के उपाय

By: tractorchoice Published on: 17-Aug-2023
मूंगफली के प्रमुख रोग और इनको नियंत्रित करने के उपाय

मूंगफली तिलहनी फसलों के रुप में उगाये जाने वाली प्रमुख फसल है। मूंगफली की खेती मुख्य रुप से रेतीली एवं दोमट भूमियों में सफलता पूर्वक की जाती है। 

मूंगफली के दानों से 40-45% तेल प्राप्त होता है जो कि प्रोटिन का मुख्य स्त्रोत है। मूंगफली की फलियों का प्रयोग वनस्पति तेल एवं खलियों आदि के रुप में भी किया जाता है। 

मूंगफली की फसल में रोग नियंत्रण का भी बहुत महत्त्व है इसलिए फसल में रोग नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है। हमारे इस लेख में हम आपको मूंगफली के प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण करने के उपाय के बारे में बताने वाले हैं। 

मूंगफली के प्रमुख रोग एवं उनके उपाय 

1. अगेती पर्ण चित्ती अथवा टिक्का रोग 

इस रोग के लक्षण पौधे उगने के 10 से 18 दिनों बाद पत्तियों की सतह पर धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। इस रोग के धब्बे 1 से 10 mm के गोलाकार या अनिमियत आकर के हलके पीले रंग के होते हैं। बाद में ये धब्बे लाल भूरे या काळा रंग के हो जाते हैं। इन धब्बों की निचली सतह नारंगी रंग की दिखाई देती है।

2. पछेती चित्ती 

रोग के लक्षण पौधे उगने के 28 से 35 दिनों बाद पत्तियों की सतह पर धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। इस रोग के लक्षण भी पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं। 

रोग के धब्बे 1.5 से 5 mm के होते हैं। इस रोग के धब्बों का रंग पहले पीला होता है, बाद में ये धब्बे पत्तियों की दोनों सतह पर काले रंग के हो जाते हैं। निचली सतह पर ये धब्बे कॉर्बन की तरह काले नजर आते हैं। 

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अगेती पर्ण चित्ती और पछेती पर्ण चित्ती रोग को नियंत्रित करने के उपाय 

  • अगेती पर्ण चित्ती और पछेती पर्ण चित्ती रोग के संक्रमण होने पर आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम 005 % + मैंकोजेब 02 % का छिड़काव करें ( इसके लिए आधा ग्राम कार्बेन्डाजिम व 2 ग्राम मैंकोजेब को प्रति एक लीटर पानी में मिलाकर दवा का घोल बनायें ) एवं फसल बोने के 45 दिन एवं 60 दिन बाद छिड़काव करें। 
  • मूंगफली की खुदाई के तुरंत बाद फसल अवषेशों को एकत्र करके जला देना चाहिये।
  • मूंगफली की फसल के साथ ज्वार या बाजरा की अंतवर्ती फसलें उगाएं ताकि रोग के प्रकोप को कम किया जा सके।
  • खेत में निरंतर रोग का निरक्षण करना आवश्यक है,जिससे की समय रहते रोग का पता लगा कर रोग का नियंत्रण किया जा सके।

3. गेरुआ रोग

सर्व प्रथम रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर उतकक्षयी स्फोट के रुप में दिखाइ पड़ते हैं। पत्तियों के प्रभावित भाग की बाह्य त्वचा फट जाती है। ये स्फोट पर्णवृन्त एवं वायवीय भाग पर भी देखे जा सकते हैं। 

रोग उग्र होने पर पत्तीयां झुलसकर गिर जाती हैं। फलियों के दाने चपटे व विकृत हो जाते हैं। इस रोग के कारण मूंगफली की पैदावार में कमी हो जाती है, बीजों में तेल की मात्रा भी घट जाती है।

रोग को नियंत्रित करने के उपाय 

  • फसल की शीघ्र बोआई जून के मध्य पखवाडे में करें ताकि रोग का प्रकोप कम हो।
  • फसल की कटाई के बाद खेत में पडे रोगी पौधों के अवषेशों को एकत्र करके जला देना चाहिये।
  • बीज को 0.1% की दर से वीटावेक्स या प्लांटवेक्स दवा से बीजोपचार करके बोये।
  • खडी फसल में घुलनशील गंघक 0.15% की दर से छिड़काव या गंधक चूर्ण 15 कि.ग्रा. की दर से भुरकाव या कार्बेन्डाजिम या बाविस्टीन 0.1 प्रतिशत की दर से छिडके।

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4. जड़ सड़न रोग 

इस रोग के कारण संक्रमण होने पर पौधे पीले पड़ने लगते हैं मिट्टी की सतह से लगे पौधे के तने का भाग सूखने लगता है। जड़ों के पास मकड़ी के जाले जैसी सफेद रचना दिखाई पड़ती है। प्रभावित फलियों में दाने सिकुडे हुये या पूरी तरह से सड़ जाते हैं, फलियों के छिलके भी सड़ जाते हैं।।

रोग को नियंत्रित करने के उपाय 

  • रोग मुख्त बीज का उपयोग बहुत आवश्यक है। 
  • रोग को मिटटी से ख़त्म करने के लिए ग्रीष्म कालीन गहरी जुताइ करें।
  • लम्बी अवधि वाले फसल चक्र अपनायें।
  • बीज की फफूंदनाशक दवा जैसे थायरम या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।

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