IARI पूसा द्वारा विकसित सरसों की प्रमुख उन्नत किस्मों की जानकारी

By: Admin Published on: 08-Oct-2024
IARI पूसा द्वारा विकसित सरसों की प्रमुख उन्नत किस्मों की जानकारी

सरसों भारत की प्रमुख रबी फसल है, जिसे मुख्य रूप से खाद्य तेल निकालने के लिए उगाया जाता है। सरसों की उन्नत किस्मों से किसान बेहतर उपज और उच्च गुणवत्ता वाला तेल प्राप्त कर सकते हैं। 

इन किस्मों का सही इस्तेमाल करके खेती को अधिक फायदेमंद बनाया जा सकता है। इस लेख में हम आज आपको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित सरसों की चार प्रमुख उन्नत किस्मों – पूसा डबल जीरो सरसों 31, पूसा सरसों 32 (LES-54), पूसा डबल जीरो सरसों 33 और पूसा डबल जीरो सरसों 34 (PM-34) के विषय में विस्तार से जानेंगे, जो कि कृषकों के लिए फायदेमंद सिद्ध हो रही हैं। 

पूसा डबल जीरो सरसों 31

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित यह भारत की पहली कैनोला गुणवत्ता वाली सरसों की किस्म है, 

जिसमें इरूसिक अम्ल (Erucic Acid) की मात्रा 2% से कम और ग्लुकोसिनोलेट्स की मात्रा 230 PPM से कम होती है। इस किस्म से किसानों को बेहतर गुणवत्ता का तेल प्राप्त होता है।  

इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू और उत्तरी राजस्थान में की जाती है। इसकी औसत उपज 23.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 

जबकि 27.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक संभावित उपज हो सकती है। सरसों की इस किस्म में तेल की मात्रा 41% होती है। इसके बीज छोटे और पीले होते हैं। 

पौधे की लंबाई लगभग 198 सेमी होती है और यह अधिक फलियों वाली शाखाओं के साथ आता है, जिससे अधिक उपज मिलती है। 

पूसा सरसों 32 (LES-54)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित यह एकल शून्य (Single Zero) किस्म है, जिसमें इरूसिक अम्ल की मात्रा 2% से कम होती है. 

यह सूखे या कम पानी की स्थिति में भी अच्छा उत्पादन देती है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसका उत्पादन किया जाता है। 

जो औसत उपज 27.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 33.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर संभावित उपज प्रदान करती है। सरसों की इस किस्म में तेल की मात्रा 38% होती है। 

यह कम पानी वाली स्थिति में भी अच्छी पैदावार देती है। इसका पौधा कॉम्पैक्ट और मजबूत होता है, जिससे यह अधिक फलियां देती है।

पूसा डबल जीरो सरसों 33

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित इस किस्म में इरूसिक अम्ल की मात्रा केवल 1.13% और ग्लुकोसिनोलेट्स की मात्रा 15.2 PPM होती है। 

यह किस्म भी उच्च गुणवत्ता वाला तेल प्रदान करती है और सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है। इसकी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में पैदावार की जाती है। 

इस किस्म की औसत उपज 26.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संभावित उपज 31.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। सरसों की इस किस्म में इरूसिक अम्ल की मात्रा कम होती है, 

जिससे स्वास्थ्य के लिए यह लाभदायक है। तेल की मात्रा 38% तक होती है और यह सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है। कम पानी की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है। 

पूसा डबल जीरो सरसों 34 (PM-34)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा तैयार की गई यह एकल शून्य श्रेणी की किस्म है, जिसमें इरूसिक अम्ल की मात्रा केवल 0.79% होती है। 

यह किस्म भी सूखे के प्रति सहनशील होती है और बेहतरीन उपज देती है। इसकी खेती राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में की जाती है। 

अगर हम बात करें इसकी औसत उपज की तो वह 26.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संभावित उपज 30.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 

पूसा डबल जीरो सरसों 34 (PM-34) में इरूसिक अम्ल की मात्रा बहुत कम होती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 36% होती है, जो आर्थिक रूप से फायदेमंद है। इसका पौधा लंबा और मजबूत होता है, जो अधिक फलियां देता है। 

सरसों की खेती के लिए विशेष जरूरी सुझाव

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा द्वारा विकसित सरसों की इन उन्नत किस्मों से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही समय पर बुवाई, उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग, और सिंचाई का उचित प्रबंधन बेहद जरूरी है। 

सरसों की बुवाई के दौरान एक हेक्टेयर में 3-4 किलो बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। बीजों की बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति 30-45 सेमी, पौधे से पौधा 10-15 सेमी की दूरी अवश्य रखें। बीजों को मिट्टी में कम से कम 2.5-3.0 सेमी गहराई में बोएं।

सरसों की इन उन्नत किस्मों की बुवाई 15-20 अक्टूबर (समय पर बुवाई), 1-20 नवंबर (देर से बुवाई) होती है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और गंधक का सही मात्रा में उपयोग करें। 

सिंचाई की संख्या फसल की जरूरत और जल उपलब्धता के अनुसार तय करें। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 1 से 3 सिंचाई उपयुक्त होती हैं। 

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