सरसों को माहू कीट के प्रकोप से बचाएगी यह खास तकनीक

By: tractorchoice
Published on: 30-Dec-2025
mustard crop

सरसों की फसल में माहू कीट का खतरा

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ विभिन्न प्रकार की फसलों का काफी बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। सरसों भी भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। वर्तमान में भारत के बड़े रकबे में सरसों की फसल लहलहा रही है। भारत में इस वर्ष सरसों और रेपसीड की खेती का रकबा बढ़कर लगभग 87 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। रकबे में बढ़ोतरी के साथ ही सरसों की फसल पर माहू (एफिड) कीट का खतरा भी तेजी से बढ़ा है।

दिसंबर के अंतिम सप्ताह से जनवरी के दौरान जब मौसम में नमी अधिक होती है और बादल छाए रहते हैं, तब ये छोटे हरे रंग के कीट सरसों के फूलों और नई फलियों का रस चूसकर फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इससे उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।

रासायनिक कीटनाशकों से बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं

माहू से बचाव के लिए अधिकतर किसान रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, लेकिन इससे खेती की लागत बढ़ जाती है और स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। इन जहरीले रसायनों के अवशेष खाद्य पदार्थों के जरिए मानव शरीर में पहुंचकर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। साथ ही लगातार रसायनों के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण भी प्रभावित होता है। ऐसे में किसानों के लिए सुरक्षित, सस्ते और पर्यावरण अनुकूल विकल्प अपनाना बेहद जरूरी हो गया है।

स्टिकी ट्रैप बिना रासायनिक तकनीक

किसानों की इसी जटिल समस्या का समाधान स्टिकी ट्रैप जैसी बिना केमिकल वाली तकनीक है। स्टिकी ट्रैप पीले रंग की प्लास्टिक या कार्डबोर्ड शीट होती है, जिस पर चिपचिपा पदार्थ लगाया जाता है। माहू कीट पीले रंग की ओर आकर्षित होता है और उस पर चिपककर नष्ट हो जाता है। किसान इन ट्रैप को फसल से 1–2 फीट की ऊंचाई पर खेत में लगाते हैं। यह तरीका न केवल प्रभावी है, बल्कि पूरी तरह सुरक्षित भी है और इससे कीटों पर नियंत्रण बिना किसी रसायन के किया जा सकता है।

स्टिकी ट्रैप बनाने की आसान विधि

स्टिकी ट्रैप बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन किसान इन्हें घर पर भी कम खर्च में तैयार कर सकते हैं। पीली पॉलीथीन या टिन की शीट पर अरंडी का तेल या पुराना मोबिल ऑयल लगाकर ट्रैप बनाया जा सकता है। एक ट्रैप की लागत मात्र 15–20 रुपये आती है और एक एकड़ के लिए 10–15 ट्रैप पर्याप्त होते हैं। सही तरीके से इस्तेमाल करने पर हर 20–25 दिन में ट्रैप बदलना चाहिए। इस तकनीक से किसान कीटनाशकों पर होने वाला खर्च कम कर सकते हैं, फसल की पैदावार सुरक्षित रख सकते हैं और उपभोक्ताओं को भी जहरमुक्त व सुरक्षित भोजन उपलब्ध करा सकते हैं।

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