Agriculture

तारामीरा की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
तारामीरा की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

किसान साथियों, जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत एक कृषि समृद्ध देश है। यहां काफी बड़े पैमाने पर किसान अलग-अलग किस्मों की खेती करते हैं। 

आज हम तारामीरा की खेती के बारे में बात करने वाले हैं। ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में हम जानेंगे तारामीरा की खेती से जुड़ी हर छोटी से बड़ी बात के बारे में। 

तारामीरा की खेती सबसे ज्यादा बारानी इलाकों जैसे राजस्थान के नागौर, पाली, बीकानेर, बाड़मेर और जयपुर जैसे जनपदों में की जाती है। 

समय 

नमी की उपलब्धता के आधार पर इसकी बुवाई 15 सितंबर से 15 अक्टूबर के दौरान की जाती है।

मिट्टी 

तारामीरा की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा अनुकूल होती है। 

खेत की तैयारी  

तारामीरा की खेती के लिए खेत की 2 बार गहरी जुताई करनी चाहिए।   

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उन्नत किस्में व उपज 

  • टी – 27 (1976)  

यह किस्म बारानी क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त हैं। इसकी औसत उपज 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पकाव अवधि 150 दिन है। इसमें 35-36 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है व सूखे के प्रति सहनशील है।

  • टार.एम. टी – 314  

यह किस्म बारानी क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त हैं। इसकी औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पकाव अवधि 130-140 दिन है। इसमें 36.9 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। इसके हजार दानों का वजन 3-5 ग्राम व इसकी शाखाएं फैली हुई होती है।

बीज उपचार  

एक हैक्टेयर खेत के लिए 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बिजाई से पहले 2.5 ग्राम मैंकोजेब प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचारित करें।

बिजाई

बारानी क्षेत्र में तारामीरा की बुवाई का समय मिट्टी की नमी व तापमान के आधार पर किया जाता है। नमी के अनुसार तारामीरा की बुवाई 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक करनी चाहिए। तारामीरा के बीजों की बिजाई कतारों में करें और कतार से कतार का फासला 40-45 सेंटीमीटर तक रखें।

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सिंचाई 

अगर किसान के पास सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं तो 40 से 50 दिन में पहली सिंचाई करनी चाहिए। तारामीरा में जरूरत पडने पर दूसरी सिंचाई दाना बनने के समय करनी चाहिए।

निराई – गुड़ाई 

तारामीरा की फसल में खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। यदि पौधों की तादात ज्यादा हो तो बुवाई 20 से 25 दिन बाद अनावश्यक पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेन्टीमीटर कर दें।

निष्कर्ष -

तारामीरा की खेती किसानों के लिए अच्छी आमदनी करने का एक बेहतरीन विकल्प है। किसान अपनी जमीन और जलवायु के आधार पर तारामीरा की किस्म का चयन कर अच्छी उपज और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं। 

मेथी की खेती कैसे की जाती हैं ?
मेथी की खेती कैसे की जाती हैं ?

भारत में मेथी एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक मसाला फसल है, जिसे इसके बीज, कोमल अंकुर और ताजी पत्तियों के लिए बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। 

इसकी खेती पूरे देश में होती है, लेकिन मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश में अधिक होती है। मेथी पोषण से भरपूर होती है और इसमें प्रोटीन, विटामिन ए और विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है।

मेथी की उन्नत किस्में

मेथी की कुछ उन्नतशील किस्मों में पूसा अर्ली बंचिंग, कसूरी मेंथी, लेम सेलेक्शन-1, राजेंद्र क्रांति, हिसार सोनाली, पंत रागनी, एमएच-103, सीओ-1, आरएमटी-1 और आरएमटी-143 शामिल हैं।

खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, इसके बाद दो-तीन बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा व समतल बना लेना चाहिए। अंतिम जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर 100-150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए।

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बीज और बुवाई

मेथी की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, जबकि कसूरी मेथी के लिए 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। 

बीज को थीरम (3 ग्राम/किग्रा), बेविस्टीन (2 ग्राम/किग्रा), सेरोसेन या केप्टान (2 ग्राम/किग्रा) से शोधित कर बुवाई करनी चाहिए।

बुवाई का समय सितंबर से अक्टूबर के बीच उपयुक्त होता है, हालांकि विलंब होने पर नवंबर के दूसरे सप्ताह तक बुवाई की जा सकती है। 

लाइन में बुवाई अधिक फायदेमंद होती है, जिसमें लाइनों के बीच 25-30 सेमी और पौधों के बीच 5-10 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।

पोषण प्रबंधन

खेत की तैयारी के समय 100-150 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए। इसके अलावा, प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। 

फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय डालनी चाहिए, जबकि शेष नत्रजन को दो बार टॉप ड्रेसिंग के रूप में 25-30 और 40-45 दिन के अंतराल पर देना चाहिए।

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 रोग प्रबंधन

मेथी की फसल को उकठा, डैम्पिंग ऑफ, पाउडरी मिल्ड्यू, लीफ स्पॉट, डाउनी मिल्ड्यू और ब्लाइट जैसी बीमारियां प्रभावित कर सकती हैं। 

इनसे बचाव के लिए बीज शोधन आवश्यक है। पाउडरी मिल्ड्यू के लिए 5% सल्फर पाउडर का 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, जबकि डाउनी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए 1% बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें।

कीट प्रबंधन

मेथी में पत्ती का गिडार, पॉड बोरर और माहू कीट लग सकते हैं। इनकी रोकथाम के लिए 0.2% कार्बेरिल, 0.05% इकोलेक्स या 1 मिलीलीटर मैलाथियान प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

कटाई और उपज

यदि फसल केवल हरी पत्तियों के लिए उगाई जाती है, तो प्रति हेक्टेयर 90-100 क्विंटल उत्पादन होता है। यदि फसल पत्तियों और बीज दोनों के लिए उगाई जाती है, तो 15-20 क्विंटल पत्तियां और 8-10 क्विंटल बीज प्राप्त होता है। 

केवल बीज उत्पादन के लिए उगाई गई फसल से 12-15 क्विंटल बीज की पैदावार होती है।

कटाई का सही समय तब होता है जब बीज पककर सूखने लगते हैं। कटाई के बाद मड़ाई कर बीजों को अलग कर लिया जाता है।

दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की अद्भुत विशेषताएं, फीचर्स और कीमत
दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की अद्भुत विशेषताएं, फीचर्स और कीमत

आजकल हर क्षेत्र की तरह भारतीय कृषि क्षेत्र में भी आधुनिक तकनीक और उपकरणों का इस्तेमाल दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। 

किसान अपने समय की बचत करने और खर्च को कम करने के लिए इन उपकरणों में सबसे अहम यंत्रों में से एक हार्वेस्टर है, जो किसानों के लिए फसल की कटाई और बुवाई को आसान और तेज बनाता है। 

वर्तमान में यदि आप भी अपने खेतों के लिए एक दमदार और सुविधाजनक हार्वेस्टर खरीदने की योजना बना रहे हैं, तो दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।

दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की विशेषताएं

  • किसान साथियों अब हम जानेंगे दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की आकर्षक खूबियों के बारे में। दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।  
  • यह एक शक्तिशाली 4 सिलेंडर वाला Ashok Leyland ALU W04d Water Cooled इंजन है, जो 101 हॉर्सपावर (HP) पावर जनरेट करता है। 
  • यह इंजन 2200 आरपीएम की गति से कार्य करता है, जिससे तेज और प्रभावी कटाई संभव होती है। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर का कटर बार 10 फीट (3048 मिमी) चौड़ा है, जिससे ज्यादा मात्रा में फसल को एक साथ आसानी से काटा जा सकता है। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर में 30 से 1290 मिमी तक काटने की ऊंचाई निर्धारित की गई है, जो कि हर तरह की फसलों के लिए अच्छी होती है। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर का कुल वजन 5400 से 5968 किलोग्राम के बीच होता है, जो इसको ज्यादा मजबूत और टिकाऊ बनाता है। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की लंबाई 6960 मिमी, चौड़ाई 3400 मिमी और ऊंचाई 3170 मिमी है, इससे यह हर तरह के कार्य करने में सक्षम होता है।  

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दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर के आकर्षक फीचर्स

  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर में उच्च गुणवत्ता वाली स्टीयरिंग प्रदान की गई है, जो ड्राइविंग को न केवल आसान, बल्कि आरामदायक भी बनाती है। 
  • इस हार्वेस्टर में 3 फॉरवर्ड और 1 रिवर्स गियर के साथ डबल लीवर गियरबॉक्स दिया गया है। जिससे खेतों में सटीक नियंत्रण और संचालन सरल हो जाता है। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर के थ्रेशर की चौड़ाई 887 मिमी है, जो फसलों के ताजे बीज को निकालने में सहयोग करती है। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर में 200 लीटर क्षमता वाला डीजल टैंक और 1100 किलोग्राम गेहूं के लिए और 1000 किलोग्राम धान के लिए क्षमता वाले टैंक दिए गए हैं। 
  • दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर में 14.9x28.12PR फ्रंट टायर और 7.50x16.8PR रियर टायर लगाए गए हैं, जो इसकी स्थिरता और ताकत को बढ़ाते हैं। 

दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की कीमत 

भारत में दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर की एक्स शोरूम कीमत 14.50 लाख से 16.00 लाख रुपए के बीच तय की गई है। 

हालांकि, इस हार्वेस्टर का ऑन-रोड प्राइस विभिन्न राज्यों में आरटीओ रजिस्ट्रेशन और रोड टैक्स के अनुसार अलग हो सकता है। 

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निष्कर्ष -

दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर छोटे और मध्यम किसानों के लिए कम लागत में अधिक कार्यक्षमता प्रदान करने वाला यंत्र है। 

दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर में लगे विभिन्न फीचर्स जैसे शक्तिशाली इंजन, बेहतर स्टीयरिंग, बड़ा कटर बार और उच्च क्षमता वाले टैंक इसे भारतीय कृषि के लिए एक शानदार निवेश बनाते हैं। 

दशमेश 3100 मिनी कंबाइन हार्वेस्टर से किसानों की न केवल समय की बचत होती है, बल्कि कार्य की दक्षता भी काफी बढ़ती है। 

अब किसानों को फसल कटाई के लिए अधिक मेहनत और समय खर्च नहीं करना पड़ेगा, जिससे उन्हें ज्यादा फसल उपज और मुनाफा दोनों मिलेगा। 

ई-रीपर किसानों के लिए किराए पर उपलब्ध किया जा रहा है
ई-रीपर किसानों के लिए किराए पर उपलब्ध किया जा रहा है

हर क्षेत्र की तरह कृषि में भी आधुनिकता और तकनीकी का काफी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है। 

ट्रैक्टर रीपर (Tractor Reaper), रीपर कम बाइंडर (Reaper cum Binder), कंबाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) जैसी मशीनों का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। 

इन सब मशीनों से अलग अब एक मशीन c (E-Reaper) आई है, जो बैटरी से चलती है और कम खर्च में ज्यादा क्षेत्रफल में खड़ी फसलों की कटाई कर सकती है। 

बतादें, कि किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए इसको किफायती दर पर किराये पर उपलब्ध कराया जा रहा है।  

ई– रीपर क्या होता है ?

ई–रीपर एक ऐसी फसल कटाई की मशीन है, जिसको भोपाल स्थित कृषि यंत्र निर्माता कंपनी किसान मित्र ने लॉन्च करते हुए लघु व मध्यम किसानों के लिए तैयार किया है। यह ई–रीपर इलेक्ट्रिक बैटरी के माध्यम से चलता है। 

यह कृषि यंत्र हर मौसम और हर फसल के लिए काफी अच्छा बताया जा रहा है। किसानों को अभी यह यंत्र किराये पर उपलब्ध कराया जा रहा है। यह यंत्र पर्यावरण रक्षक होने के साथ ही किसानों के लिए बड़े काम का सिद्ध हो सकता है। 

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ई–रीपर की क्या विशेषताएं हैं ?

ई-रीपर की विशेषताएं निम्नलिखित हैं 

  • यह ई–रीपर एक बार चार्ज करने पर 8 घंटे तक चलाया जा सकता है। यानी इससे आप लगातार आठ घंटे तक फसल की कटाई का काम कर सकते हैं। 
  • इस ई–रीपर की बैटरी को आसानी से बदला जा सकता है। 
  • इस ई–रीपर की सहायता से एक घंटे के अंदर एक एकड़ फसल की कटाई की जा सकती है। 
  • यह ई–रीपर गेहूं, चना, धान जैसी अन्य फसलों के लिए उपयोगी है। यह यंत्र फसल की बहुत अच्छी तरह से कटाई करता है।
  • इस रीपर में शून्य प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन होने की वजह से इससे वायु प्रदूषण भी नियंत्रित होता है। 
  • पर्यावरण रक्षक यह कृषि यंत्र किसानों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाने वाला सुविधाजनक यंत्र है।
  • इस ई–रीपर को उबड़–खाबड़ मार्गों पर भी बड़ी आसानी से चलाया जा सकता है।

किसानों को किराये पर ई– रीपर उपलब्ध कराया जा रहा 

खबरों के अनुसार, भोपाल स्थित कृषि यंत्र निर्माता कंपनी किसान मित्र द्वारा निर्मित ई–रीपर कंपनी की तरफ से किसानों को एक हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से किराए पर उपलब्ध कराया जा रहा है। 

कंपनी जल्द ही इसका प्रोडक्शन बढ़ाकर इसको बड़े पैमाने पर किसानों तक उपलब्ध कराएगी। कंपनी के संस्थापक आशीष गुप्ता के अनुसार फीड बैक में किसानों की ओर से रीपर के साथ बाइंडर की भी मांग की गई है, ताकि उनका काम और आसान हो जाए। 

इस काम के लिए अनुसंधान किया जाएगा। इसके अलावा भविष्य में इलेक्ट्रिक थ्रेशर, सोलर पंप ओर मिनी ट्रैक्टर के निर्माण का भी विचार है, ताकि किसानों को और सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा सकें। 

अग्रणी कृषि संस्थानों भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल का प्रमाणन किसान मित्र की कृषि दक्षता, विश्वसनीयता, नवप्रवर्तनशील और प्रभावी कृषि समाधानों के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

निष्कर्ष -

ई-रीपर फसल कटाई की मशीन से किसानों को अच्छा मुनाफा होने के साथ-साथ पर्यावरण भी कम दूषित होगा।  

बबूल: औषधीय गुण, फायदे और खेती की जानकारी
बबूल: औषधीय गुण, फायदे और खेती की जानकारी

भारत एक कृषि समृद्ध देश होने की वजह से यहां कई तरह की फसलें और पेड़ उगाए जाते हैं और प्राकृतिक रूप से पाए भी जाते हैं। 

देश के अंदर विभिन्न इलाकों में औषधीय पेड़ पौधों की भी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। इन्हीं में से एक बबूल एक बेहद उपयोगी पेड़ है। बबूल को साधारण भाषा में लोग कीकर, बबूर, कारूबेल आदि नामों से पुकारते हैं। 

बबूल के कई सारे औषधीय लाभ दस्त का इलाज, घावों को ठीक करना, बाल गिरना, दांत विकार और एक्जिमा जैसे रोगों को दूर करते हैं। 

बबूल का व्यावसायिक रूप से भी काफी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि फर्नीचर, सौंदर्य उत्पादों और ईंधन के लिए भी यह पेड़ अत्यंत उपयोगी है। साथ ही, किसान इसकी खेती करके काफी अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

बबूल की खेती के अनुकूल मिट्टी

बबूल के पेड़ों का बेहतरीन विकास करने के लिए जलोढ़ दोमट और काली कपास मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है। इसके साथ ही भूमि का पीएच मान 7.9 से कम होना चाहिए।

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बबूल की खेती के लिए अनुकूल जलवायु

  1. बबूल की खेती के लिए अर्ध शुष्क, गर्म शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे अनुकूल होती है।
  2. बबूल के पेड़ों की अच्छी बढ़वार के लिए सामान्य तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से 45 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।
  3. बबूल की खेती के लिए ज्यादा बारिश और ज्यादा ठंड वाले इलाके भी अच्छे नहीं होते।

बबूल की बिजाई 

  1. बबूल की बिजाई के लिए फरवरी से मार्च का महीना सबसे अच्छा होता है।
  2. बबूल की बिजाई के लिए बीजों को प्रसारण या डिबलिंग विधि से बोना चाहिए।
  3. बबूल की बिजाई के 5 महीने बाद पौधे रोपाई करने योग्य हो जाते हैं।
  4. बबूल का पौधरोपण जुलाई से सितंबर महीने के बीच में करीब पूरा हो जाता है।

बबूल की रोपाई

बबूल के पौधरोपण के लिए 30 सेंटीमीटर ऊँचे, लम्बे और गहरे गड्ढे तैयार किए जाते हैं। 

इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 4 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 4 मीटर होनी चाहिए। बबूल की खेती के लिए प्रति एकड़ में पौधों की रोपाई के लिए 240 से 250 पौधे पर्याप्त होते हैं।

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बबूल गोंद में मौजूद पोषक तत्त्व

बबूल की गोंद में कई सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं, इनमें एंटीबैक्टीरियल, मैग्‍नीशियम, कैल्शियम, प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, फाइबर और एंटीकार्सिनोजेनिक शामिल हैं। 

बबूल गोंद के क्या-क्या फायदे हैं ?

जोड़ों के दर्द को दूर करे 

आयुर्वेद विशेषज्ञों का कहना है, कि बबूल गोंद एसिडिक फ्री होता है। यह दर्द को समाप्त कर हड्डियों को मजबूत बनाता है। 

हड्डियों में काफी दर्द रहता है और जोड़ों के दर्द की समस्या रहती है, उनको बबूल गोंद और अखरोट एक साथ लेना चाहिए। 

इसके लिए अखरोट को रात में भिगो कर रख दें। सुबह छिलका उतार दें। अखरोट का एक दाना, दो ग्राम गोंद और दो ग्राम मिश्री खाली पेट दूध के साथ लेने से जोड़ों के दर्द से निजात मिलती है। 

गर्मियों में शरीर को ठंडा और शांत रखे 

गोंद का उपयोग करने से गर्मी के समय में शीतलता मिलती है। गर्मी से लोगों की डिहाइड्रेशन जैसी बुरी स्थिति हो जाती है। 

ऐसे में गर्मी को शांत करने और शरीर को ठंडा रखने के लिए 2 ग्राम गोंद और मिश्री साथ में सुबह-शाम खाना लाभदायक होता है। 

पुरुषों में धातु रोग से निजात दिलाए 

पुरुषों को दो ग्राम मिश्री और दो ग्राम बबूल गोंद को साथ में लेने से धातु रोगों से बचने की शक्ति मिलती है।

बालों से जुड़ी समस्या को दूर करे 

बबूल गोंद का सेवन करने से बालों के झड़ने, बालों के पतले होने और सिर में डैड्रफ होने जैसी परेशानियों से निजात मिलती है। 

सिर्फ यही नहीं बबूल की पत्तियां और रीठा कंसंट्रेट को एक साथ लगाने से भी बालों की दिक्कत दूर और बढ़वार ज्यादा हो जाती है। 

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इम्यून सिस्टम को मजबूत करे

बबूल गोंद का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है। बबूल गोंद के लड्डू दूध के साथ खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। शारीरिक इम्यून सिस्टम को बढ़ाने के लिए बबूल काफी लाभदायक है। 

पेट संबंधी रोगों से निजात 

बबूल गोंद के अंदर भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जो कि कब्ज को दूर करने का कार्य करता है। 

यदि आप गोंद और दही का सेवन एक साथ करते हैं, तो आपको इससे गर्मी के मौसम में पेट में दर्द, जलन, अफरा, कब्ज जैसी दिक्कतों से काफी लाभ मिलता है।  

बबूल गोंद से क्या हानि होती है ?

  1. बबूल के गोंद का अधिक सेवन करने से जी मिचलाने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। 
  2. बबूल के गोंद का अधिक मात्रा में सेवन करने से गैस और दस्त की समस्या हो सकती है। 
  3. गोंद का अधिक मात्रा में सेवन करने से अपच और अफरा भी लग सकता है। 
  4. गर्भवती महिलाएं इसका सेवन करने से बचें या सावधानी से करें। 

निष्कर्ष -

बबूल के गोंद का सेवन करने से कई सारे स्वास्थ्य लाभ होते हैं। बबूल के बहुत ही कम साइड इफैक्ट देखने को मिलते हैं। बबूल एक औषधीय गुणों से युक्त पेड़ है। इसके फल से लेकर छाल में कई लाभकारी गुण पाए जाते हैं।

पूसा मेले में बीज ना खरीद पाने वाले किसान अब ऑनलाइन भी खरीद कर सकते हैं
पूसा मेले में बीज ना खरीद पाने वाले किसान अब ऑनलाइन भी खरीद कर सकते हैं

पूसा के बीजों की बढ़ती मांग इस बात का संकेत है, कि किसान अब उन्नत कृषि तकनीकों को अपना रहे हैं। बासमती और नॉन-बासमती दोनों ही तरह की किस्मों को लेकर कृषकों में उत्साह देखने को मिलता है। 

यदि आप भी धान की खेती करने जा रहे हैं, तो अच्छी गुणवत्ता के बीज वक्त रहते ऑनलाइन बुक करें और अपनी फसल को ज्यादा उत्पादक बनाएं। 

रबी सीजन की कटाई के बाद धान की तैयारी शुरू 

किसानों ने धान की खेती की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। ऐसी स्थिति में उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों की मांग काफी बढ़ गई है। साथ ही, किसान कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केंद्रों से बेहतरीन गुणवत्ता के बीजों के लिए संपर्क कर रहे हैं।

विशेष रूप से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा के बीज केंद्रों पर जबरदस्त भीड़ देखी जा रही है। बीते दिनों किसान मेले के दौरान 1.82 करोड़ रुपये के धान बीजों की बिक्री दर्ज की गई। 

इसके अतिरिक्त ऑनलाइन माध्यम से भी बड़ी तादात में किसानों ने बीजों की खरीदारी की है। 

बासमती धान की सर्वाधिक मांग वाली किस्में 

IARI पूसा में बासमती धान की कुछ प्रमुख किस्मों की शानदार मांग देखी गई है। डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह के मुताबिक, किसान मेले के दौरान निम्नलिखित बासमती किस्मों को किसानों ने सबसे ज्यादा पसंद किया है। 

  • पूसा बासमती 1509/ Pusa Basmati 1509
  • पूसा बासमती 1121/ Pusa Basmati 1121
  • पूसा बासमती 1718/ Pusa Basmati 1718
  • पूसा बासमती 1847/ Pusa Basmati 1847
  • पूसा बासमती 1985/ Pusa Basmati 1985
  • पूसा बासमती 1979/ Pusa Basmati 1979

हरियाणा के सिरसा और फतेहाबाद जिलों के किसानों ने पूसा बासमती 1401/ Pusa Basmati 1401 की अधिक खरीदारी की है। 

नॉन-बासमती धान की इन किस्मों की रिकॉर्ड बिक्री 

बासमती के अलावा नॉन-बासमती धान की कुछ किस्में भी काफी लोकप्रिय रही हैं। बासमती की इन किस्मों की सबसे ज्यादा बिक्री दर्ज की गई है। 

  • पूसा 2090 (Pusa 2090)
  • पूसा 1824 (Pusa 1824)

किसान खासतौर पर अगेती यानी जल्दी पकने वाली किस्मों की तलाश में थे, जिससे उनको कम समय में ज्यादा उपज हांसिल हो सके। 

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किसानों को पूसा के बीज क्यों पसंद हैं ?

पूसा द्वारा विकसित धान की किस्में ज्यादा पैदावार, कम पानी की जरूरत और कीट प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती हैं। 

यही वजह है, कि हर वर्ष देशभर के किसान इन बीजों को प्राथमिकता प्रदान करते हैं। इस वर्ष भी किसानों ने बेहतर उत्पादन और उच्च गुणवत्ता वाले चावल के लिए पूसा की उन्नत किस्मों का चयन किया है। 

आप ऑनलाइन माध्यम से भी बीज खरीद सकते हैं 

अगर कोई किसान मेले में नहीं पहुंच पाया, तो वह अब भी पूसा की आधिकारिक वेबसाइट pusabeej.iari.res.in पर जाकर बीजों की ऑनलाइन बुकिंग कर सकता है। 

किसानों के लिए बीजों की होम डिलीवरी का विकल्प भी उपलब्ध है। लेकिन, इसके लिए किसानों को अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना होगा। ऑनलाइन खरीदारी से किसान सीधे प्रामाणिक और उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्राप्त कर सकते हैं। 

निष्कर्ष -

बीजों की ऑनलाइन बुकिंग कर किसानों को समुचित कीमतों पर पूसा से मिलेंगे उन्नत किस्मों के बीज। 

इस जायद सीजन में ककड़ी की खेती से मिलेगा मोटा मुनाफा
इस जायद सीजन में ककड़ी की खेती से मिलेगा मोटा मुनाफा

किसान साथियों, जैसा कि हम सब जानते हैं, कि किसान रबी सीजन की ककड़ी की खेती नकदी फसल के रूप में करते हैं। ककड़ी एक कद्दूवर्गीय फसल है, जो खीरे के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है। 

ककड़ी की खेती से कम लागत में काफी अच्छा मुनाफा हांसिल किया जा सकता है। ककड़ी की खेती भारत के करीब सभी हिस्सों में की जाती है। 

यह भारतीय मूल की फसल है, जिसे जायद की फसल के साथ उगाया जाता है। ककड़ी के फल की एक फीट तक लंबाई होती है। 

ककड़ी का कैसे और कितनी मात्रा में इस्तेमाल करें 

ककड़ी को प्रमुख रूप से सलाद और सब्जी के लिए समुचित मात्रा में उपयोग किया जाता है। अभी गर्मियों का मौसम शुरू होने में समय है और इसकी बुवाई का समय भी अभी अनुकूल है। 

किसान साथियों आप ककड़ी की खेती कर काफी शानदार आय अर्जित कर सकते हैं। क्योंकि, जैसे ही गर्मियों का मौसम अपने चरम स्तर पर पहुंचेगा। वैसे-वैसे इसकी बाजारों में मांग बढ़ने लग जाएगी।

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ककड़ी की किस्म कितने प्रकार की होती है ? 

ककड़ी में दो मुख्य प्रजातियां होती हैं- पहली हलके हरे रंग के फल वाली और दूसरी में गहरे हरे रंग के फल वाली। अधिकांश लोग इनमें पहली प्रजाति को ही ज्यादा पसंद करते हैं। 

ककड़ी के फलों की तुड़ाई कच्ची अवस्था में ही की जाती है। ककड़ी की इन उन्नत किस्मों से करीब 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है। 

ककड़ी की लखनऊ अर्ली किस्म 

ककड़ी की यह लखनऊ अर्ली किस्म काफी स्वादिष्ट और मुलायम होती है। उत्तर भारत के राज्यों में काफी बड़े पैमाने पर ककड़ी की खेती की जाती है। आइए जानते हैं, लखनऊ अर्ली किस्म की ककड़ी के बारे में।  

  1. लखनऊ अर्ली किस्म मध्य अवधि में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। 
  2. ककड़ी के बीजों की बुवाई के लगभग 75 से 80 दिन के बाद में फसल पककर तैयार हो जाती है। 
  3. किसान इसके फलों की तुड़ाई कर सकते हैं। 
  4. लखनऊ अर्ली ककड़ी किस्म से प्रति हैक्टेयर 150 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।

दुर्गापुरी ककड़ी किस्म 

दुर्गापुरी ककड़ी किस्म के फल हल्के पीले रंग के होते हैं, जिन पर नालीनुमा धारियां बनी होती हैं। आइए जानते हैं, दुर्गापुरी ककड़ी किस्म से जुड़ी खास बातें। 

  1. ककड़ी की इस किस्म का उत्पादन हर जगह काफी आसानी से किया जा सकता है। 
  2. ककड़ी की दुर्गापुरी किस्म बुवाई करने के लगभग 80-90 दिनों के बाद तैयार हो जाती है। 
  3. दुर्गापुरी ककड़ी किस्म से प्रति हेक्टेयर 190 से 200 क्विंटल से भी अधिक उपज ली जा सकती है। 
  4. ककड़ी की दुर्गापुरी किस्म में रोगों के आक्रमण का खतरा काफी ज्यादा कम रहता है।  

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पंजाब स्पेशल किस्म 

पंजाब स्पेशल किस्म ककड़ी संकर किस्मों में सबसे लोकप्रिय किस्म है। इस किस्म को उत्तरी भारत के राज्यों के लिए काफी अच्छा माना जाता है। ककड़ी की पंजाब स्पेशल किस्म से जुड़ी कुछ खास बातें। 

  1. पंजाब स्पेशल किस्म का फल हल्का पीला होता है। 
  2. पंजाब स्पेशल किस्म के फल की लंबाई 1 फीट से भी ज्यादा होती है। 
  3. पंजाब स्पेशल किस्म बेहद ही शीघ्रता से पकने वाली किस्म होती है। 
  4. पंजाब किस्म को लगाकर किसान प्रति हैक्टेयर 200 क्विंटल से ज्यादा उपज प्राप्त कर सकते हैं। 

ककड़ी की अन्य किस्में 

ककड़ी की अन्य उन्नत किस्मों के अंतर्गत निम्नलिखित किस्में हैं - 

  1. प्रिया हाइब्रिड- 1, 
  2. पंत संकर खीरा- 1 और हाइब्रिड- 2, 
  3. जैनपुरी ककड़ी, 
  4. अर्का शीतल आदि 

निष्कर्ष -

इस जायद सीजन में किसान ककड़ी की खेती कर काफी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं। ककड़ी की गर्मियों में मांग और दाम अच्छा होने की वजह से किसानों के लिए यह बड़े लाभ का सौदा साबित हो सकता है।

जायद सीजन की फसलें: सूरजमुखी, गेंदा और मूंग की खेती से पाएं ज्यादा मुनाफा
जायद सीजन की फसलें: सूरजमुखी, गेंदा और मूंग की खेती से पाएं ज्यादा मुनाफा

रबी सीजन की फसलों की कटाई के लिए किसानों ने तैयारियाँ शुरू करदी हैं। आज हम आपको ऐसी कुछ फसलों के बारे में बताएंगे, जिनको जायद सीजन में उगाकर किसान काफी अच्छी उपज और मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

जायद सीजन में उगाई जाने वाली फसलें 

सूरजमुखी 

सूरजमुखी की खेती करना किसानों के लिए काफी फायदे का सौदा साबित होगा। क्योंकि, इसकी खेती करने से किसानों को सूरजमुखी का मन मोहक फूल मिलता है। 

सूरजमुखी आकर्षक दिखने के साथ सेहत के लिए भी लाभकारी होता है। दुनियाभर के अलग अलग हिस्सों में उगाए जाने वाले इस सूरजमुखी का मुख सूर्य की तरफ होता है। 

इसलिए इस फूल को सूर्यमुखी के नाम से भी कहा जाता है। सूरजमुखी का वानस्पतिक नाम हेलियनथस एनस है। सूरजमुखी की सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप ट्रैक्टरचॉइस के इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं। 

गेंदा 

भारत के अंदर गेंदा की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। गेंदा काफी ज्यादा मांग में रहता है। इसका उपयोग डेकोरेशन के तौर पर काफी ज्यादा किया जाता है। 

गेंदा काफी आकर्षक और बेहद सुंदर फूल है। अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से बाजार में इसकी निरंतर मांग बनी रहती है। गेंदा की खेती से जुडी सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप ट्रैक्टर चॉइस के इस लेख पर जा सकते हैं। 

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मूंग 

भारत के अंदर कई तरह की दलहन फसलें उगाई जाती हैं, इन्हीं में से एक मूंग की फसल है। भारत के कई हिस्सों में मूंग की फसल को काफी बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। 

मूंग की खेती करना काफी लाभप्रद साबित होता है। मूंग की खेती करना किसानों के लिए जायद सीजन में उगाई जाने वाली फसलों में अच्छा विकल्प है। मूंग की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख पर जा सकते हैं।   

निष्कर्ष -

उपरोक्त में बताई गई फसलों की जायद के सीजन में खेती करने से किसानों को काफी ज्यादा लाभ मिलेगा। किसान भाई अपने क्षेत्र की जलवायु और मृदा को ध्यान में रखकर किसी एक फसल का चयन कर सकते हैं।   

बिहार में सेब से लेकर ड्रैगन फ्रूट की सफल खेती करने वाला सफल किसान
बिहार में सेब से लेकर ड्रैगन फ्रूट की सफल खेती करने वाला सफल किसान

भारत में खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है। भारतीय किसान बेहद मेहनती और साहसी हैं। खेती-किसानी के क्षेत्र में भी बहुत सारे किसान अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। 

ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में हम ऐसे ही एक किसान अजीत कुमार मंडल के बारे में आपको बताएंगे जो कि कृषि के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान और नाम बना रहा है। 

दरअसल, किसान अजीत ने लीक से हटकर मिश्रित खेती में सेब, अंजीर, ड्रैगन फ्रूट, नाशपाती, बेर, परसीमन या जापानी फल, आंवला, टमाटर आदि। 

किसान कृषि क्षेत्र में नए-नए बीजों और तरीको का इस्तेमाल कर अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। 

बिहार में सेब की खेती

अब कश्मीर व हिमाचल की तरह बिहार के कटिहार जिले के कोढ़ा में सेब की खेती होने लगी है। अजीत यहां के किसानों के लिए एक उदाहरण बने हुए हैं। 

उसने हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से सेब के 230 पौधे लाकर एक एकड़ जमीन में लगाए हैं। पहले सेब के कुछ पौधों को लगाकर ट्रायल किया था। नालेज अच्छा मिलने पर साल 2021 में उसने इसकी खेती करने का निर्णय लिया। 

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किसान अजीत की वार्षिक आय कितनी है ?

किसान अजीत अपने सेब के बागान में ही मिश्रित खेती कर रहे हैं। इसमें टेलिस मीटर के माध्यम से एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट व सेब की खेती कर रहे हैं। 

खेत की मेड़ पर तरबूज के अलावा प्लांट इंटर क्रॉप के तहत स्ट्रॉबेरी, जापानी फल, अंजीर, नाशपाती, बेर, टमाटर की खेती भी कर रहे हैं। 

ड्रैगन फ्रूट 300 रुपये से लेकर 400 रुपये तक प्रति किलो बिक जाता है। मिश्रित खेती के जरिए ये लगभग 5 लाख रुपये वार्षिक तौर पर कमा रहे हैं। 

सेब और ड्रैगन फ्रूट से आय 

किसान साथियों,  पिछले चार सालों के अंदर सेब की खेती और ड्रैगन फ्रूट की खेती कर अजीत अब तक लाखों रुपये का मुनाफा कमा चुके हैं। 

अजीत करीब 25 एकड़ में मक्का, गेहूं, सरसों, दलहन व तिलहन, आलू की खेती भी किया करते हैं। इस प्रकार की खेती में मेहनत के मुकाबले मुनाफा काफी ज्यादा नहीं है। 

परंतु, सेब व ड्रैगन फ्रूट की खेती में कम परिश्रम और अधिक मुनाफा है। इसलिए और लोगों को भी परंपरागत खेती को छोड़कर सेब, ड्रैगन फ्रूट, स्ट्रॉबेरी, ओल, तरबूज, अंजीर, नाशपाती, बेर, आंवला, टमाटर व जापानी फल परसीमन की खेती करनी चाहिए। 

फलन की जानकारी 

किसान अजीत का कहना है, कि ड्रैगन फ्रूट के पौधे की कीमत 180 से 200 रुपये प्रति पौधा है। टेलिस मीटर के माध्यम से खेती की जाती है। 

हालांकि, इनमें सीमेंट के खंभे का भी इस्तेमाल किया जाता है। उनके प्लांट में 4 हजार पौधे ड्रैगन फ्रूट के रोपित किए गए हैं। 

150 से भी ज्यादा सेब के पौधे, मेड़ पर तरबूज व सेब व ड्रैगन फ्रूट के बीच जगह में अंजीर, बेर, स्ट्रॉबेरी, ओल, टमाटर, नाशपाती, आंवला और जापानी फल परसीमन की खेती कर रहे हैं। 

ड्रैगन फ्रूट के पौधे में फूल आने के बाद सवा से डेढ़ महीना में फल तैयार हो जाता है। एक फल का मिनिमम वजन 300 ग्राम से लेकर 500 ग्राम तक होता है। फल टूटने के बाद फिर फल आने शुरू हो जाते हैं। एक साल के अंदर तीन बार फलन होता है। 

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सोशल मीडिया से मिली सीख 

बिहार कृषि विभाग के मुताबिक, "अजीत ने यूट्यूब से वीडियो देखकर सेब की खेती करना प्रारंभ किया था। 

सेब की खेती में मुनाफा होने के पश्चात उसी खेत में अब वह मिश्रित खेती करने लगे हैं। वर्तमान में वह मिश्रित खेती के तौर पर ड्रैगन फ्रूट की खेती करने लग गए हैं। 

हालांकि, उन्होंने अभी एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत की है। इससे उन्हें अंदाजा लगा कि ड्रैगन फ्रूट की खेती कर आर्थिक समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है।" 

निष्कर्ष -

अगर किसान को अधिक मुनाफा कमाना है, तो उनको सफल किसान अजीत की तरह लीक से हटकर खेती करनी चाहिए। किसान इससे काफी अच्छी उपज और पारंपरिक फसलों की अपेक्षा बहुत शानदार मुनाफा कमा सकते हैं।   

रबी फसलों की कटाई के लिए 2 दमदार मल्टीक्रॉप थ्रेसर की जानकारी
रबी फसलों की कटाई के लिए 2 दमदार मल्टीक्रॉप थ्रेसर की जानकारी

रबी सीजन की फसलों की कटाई का समय आ चुका है। किसान खेत में खड़ी फसल की कटाई करने के लिए तैयारियों में लगे हुए हैं। 

फसल कटाई के समय सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कृषि उपकरण थ्रेशर ही होता है। यह बहुत सारे कृषि यंत्रों में से एक फसल कटाई करने वाला कृषि उपकरण है। 

आइए जानते हैं, स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेसर और जगतजीत मल्टीक्रॉप थ्रेशर के बारे में। 

स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेसर

भारतीय किसान कई कंपनियों के थ्रेशर का इस्तेमाल करते हैं। इनमें सबसे पहले स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेशर का नाम आता है। 

आइए जानते हैं इसकी उन खूबियों के बारे में जिनकी वजह से काफी बड़े पैमाने पर किसान स्वराज के इस मल्टीक्रॉप थ्रेशर को काफी पसंद करते हैं। 

स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेसर 40 HP का थ्रेसर है, जो कि कम ईंधन खपत में शानदार कटाई करता है। 

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स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेसर की कटाई क्षमता 

  • गेहूं की कटाई क्षमता 1.2 टन है। 
  • चने की कटाई क्षमता 1.5 टन है। 
  • सोयाबीन की कटाई क्षमता 1.2 टन है। 
  • दलहन की कटाई क्षमता 1.2 टन है। 
  • स्वराज कंपनी के इस मल्टीक्रॉप थ्रेसर का सिलेंडर रास्प बार टाइप है। 
  • स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेसर के ड्रम की लंबाई 805mm, व्यास 650 mm है। 
  • स्वराज P-550 मल्टीक्रॉप थ्रेसर की कीमत 4,50,000 रुपये के बीच तय की गई है। 

जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर

भारतीय कृषि उपकरण बाजार में जगतजीत एक प्रतिष्ठित ब्रांड है। जगतजीत कंपनी किसानों के लिए किफायती कीमत पर मल्टी क्रॉप थ्रेसर तैयार करने वाली शानदार कंपनी है। आइए जानते हैं,  40 HP में आने वाले जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर के बारे में। 

  • जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर में आपको 190 कटिंग ब्लेड दिए गए हैं, जो इसकी कार्यकुशलता को अच्छा बनाते हैं। 
  • जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर कटाई के दौरान अनाज का कम से कम नुकसान करता है। 
  • जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर में दमदार स्टेनलेस स्टील डिस्क लगी हुई हैं, जो ज्यादा समय तक बिना रुके कटाई करने में सहयोग करती हैं। 
  • जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर की ब्लेड काफी आसानी से एडजस्ट की जा सकती हैं। 
  • जगतजीत मल्टी क्रॉप थ्रेसर की भारतीय बाजार में कीमत 1,50,000 रुपये से शुरू होती है, जो कि किसानों के बजट के हिसाब से तय की गई है।  
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निष्कर्ष -

उपरोक्त में बताए गए 2 प्रमुख मल्टीक्रॉप थ्रेसर काफी किफायती कीमत पर बाजर में उपलब्ध हैं। किसान इनका निजी कृषि कार्य या व्यापारिक कृषि कार्यों के लिए उपयोग कर सकते हैं।  

फील्डकिंग हाइड्रोलिक हैरो हैवी सीरीज (ऑयल बाथ हब के साथ) की जानकारी
फील्डकिंग हाइड्रोलिक हैरो हैवी सीरीज (ऑयल बाथ हब के साथ) की जानकारी

हैवी ड्यूटी हाइड्रोलिक हैरो एक शानदार कृषि यंत्र है, जिसका इस्तेमाल जुताई से पहले मिट्टी तैयार करने के लिए किया जाता है। 

इसका इस्तेमाल भारी मिट्टी को समतल करने, खरपतवारों को खत्म करने, और पौधों के लिए सही बीज तैयार करने के लिए किया जाता है। 

ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम बात करेंगे फील्डकिंग हाइड्रोलिक हैरो हैवी सीरीज (ऑयल बाथ हब के साथ) के बारे में। 

फील्डकिंग हाइड्रोलिक हैरो हैवी सीरीज (ऑयल बाथ हब के साथ) खेती के लिए लाभकारी उपकरण है। 

फील्डकिंग हाइड्रोलिक हैरो हैवी सीरीज कृषि संबंधी बहुत सारे कार्यों को बड़ी आसानी से पूरा कर सकता है। यह खेती को काफी उपजाऊ भी बनाता है। 

यह हैरो श्रेणी के अंतर्गत आता है। इसकी 70-80 HP इम्प्लीमेंट पावर होने की वजह से कम ईंधन खपत में ज्यादा कार्य पूरा किया जा सकता है।

फील्डकिंग हाइड्रोलिक हैरो हैवी सीरीज (ऑयल बाथ हब के साथ) की विशेषताएं 

DESCRIPTION

FKHDHHOBH-26-18

Frame (mm/ inch)

132/1.3" x 132/1.3" x 7 mm (Sq. Tubular Frame)

Gang Bolt / Axle (mm/ inch)

40/1.6" (Solid Sq. Rod)

No. of disc

18

Type of Disc

Notched  Disc in Front Gang & Plain Disc in Rear Gang

Disc Diameter (mm/ inch)

610/24" x 4.5 mm (T) or 660/26" x 6 mm (T)

Tillage Width (mm/ inch Approx.)

2396/94"

Distance between Disc (mm/ inch)

228/9"

Tyre Size

10.0/75-15.3(8-16 PR),13.0/55-16(14PR),400/60-15.5(18PR),7.5/16(8PR)

Bearing Hub

8

Weight ( kg.Lbs.Approx)

1608/3545

Tractor Power (HP)

70-80


फील्डकिंग हैवी ड्यूटी हाइड्रोलिक हैरो की कीमत

भारतीय वाणिज्यिक वाहन बाजार में फील्डकिंग हैवी ड्यूटी हाइड्रोलिक हैरो की कीमत 8,17,000 रुपये से 13,00,000 रुपये के बीच तय की गई है। 

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निष्कर्ष- 

फील्डकिंग हैवी ड्यूटी हाइड्रोलिक हैरो बहुत ही शानदार और ताकतवर कृषि उपकरण है। किसान इसको किफायती कीमत पर खरीद कर अपनी खेती को आसान और उपजाऊ बना सकते हैं। 

शक्तिमान कंपनी का यह रोटावेटर है जुताई का बादशाह
शक्तिमान कंपनी का यह रोटावेटर है जुताई का बादशाह

किसान साथियों, आज के समय में हर काम आधुनिक मशीनों के जरिए किया जा रहा है। 

मशीनीकरण के बढ़ते खेती किसानी में भी ट्रैक्टर और इसके द्वारा संचालित कई सारे कृषि उपकरणों पर निर्भरता बढ़ी है। 

खेतीबाड़ी से संबंधित छोटे से लेकर बड़े कार्यों में कृषि उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं में से एक है रोटावेटर। 

ट्रैक्टर चॉइस के इस लेख में आज हम आपको शक्तिमान कंपनी के शक्तिमान टस्कर रोटावेटर के बारे में। 

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर से क्या लाभ है ?

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर खेत पर अच्छा कार्य कर जमीन को उपजाऊ बनाने में मदद करता है। शक्तिमान टस्कर रोटावेटर की इम्प्लीमेंट पावर 50-60 HP है। 

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर ईंधन कुशल प्रदर्शन देने वाला उपकरण है। शक्तिमान टस्कर रोटावेटर अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से यह किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है। 

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शक्तिमान टस्कर रोटावेटर की आकर्षक विशेषताएं

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर खेती में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख यंत्रों में से एक है। यह एक केले के तने को कुचलने के लिए तैयार किया गया है। 

इसको एक ही झटके में मृदा में मिला दिया जाता है। शक्तिमान टस्कर फसलों के गाढ़े और रेशेदार अवशेषों जैसे कि केला, पपीता, गन्ना आदि को आसानी से नष्ट करने वाला कृषि यंत्र है। इसकी वजह से मिट्टी की उत्पादक क्षमता बढ़ती है। 

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर रेतीले और रेतीली दोमट मृदा के लिए सबसे उपयुक्त उपकरण है। किसान शक्तिमान टस्कर रोटावेटर की ऑनलाइन माध्यम से खरीद कर सकते हैं। 

आप शक्तिमान रोटावेटर वाहन संख्या और शक्तिमान रोटावेटर के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। शक्तिमान टस्कर रोटावेटर ऐसी कई महत्वपूर्ण खूबियों व गुणों के साथ आता है, जो आपकी फसलीय उत्पादकता को बढ़ाता है।

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर की सूक्ष्म जानकारी 

  • 6 मिमी मोटी सिंगल शीट हल प्लेट
  • 11 मिमी मोटी पाइप और 15 मिमी मोटी रोटर फ्लेंग्स
  • तेल के साथ स्टब एक्सल बेयरिंग कवर
  • 16 मिमी मोटाई के साथ भारी शीर्ष मस्तूल स्ट्रिप्स

हैवी ड्यूटी स्पंज स्प्रिंग रॉड

  • 12 मिमी आरडी प्लेट और 10 मिमी एसडी प्लेट
  • 4 मिमी मोटाई वाला अनुगामी बोर्ड
  • अधिक तेल मात्रा के साथ भारी साइड गियर

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कीमत 

शक्तिमान टस्कर सभी आधुनिक कृषि यंत्रों में से एक बेहद उपयोगी कृषि उपकरण है। भारतीय वाणिज्यिक वाहन बाजार में इसकी कीमत 150 लाख से 160 लाख के बीच निर्धारित की गई है। यह किसानों के लिए बजट फ्रेंडली और किफायती है। 

निष्कर्ष -

शक्तिमान टस्कर रोटावेटर किसानों के बीच काफी लोकप्रिय और लाभकारी कृषि उपकरण है। किसान इसको बाजार से किफायती कीमत पर खरीदकर अपनी खेती की उत्पादकता को बढ़ाकर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।