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श्रीराम सुपर 303: गेहूं की वो किस्म जिसे रोग छू भी नहीं सकते
श्रीराम सुपर 303: गेहूं की वो किस्म जिसे रोग छू भी नहीं सकते

भारत में गेहूं किसानों की सबसे अहम फसल है। हर किसान चाहता है कि उसकी फसल न सिर्फ अच्छी उपज दे, बल्कि रोगों और मौसम की मार से भी सुरक्षित रहे। ऐसे में ‘श्रीराम सुपर 303’ गेहूं की उन्नत किस्म किसानों के लिए एक बेहतरीन समाधान बनकर उभरी है।

श्रीराम सुपर 303 किस्म के मुख्य फायदे एवं विशेषताएं

श्रीराम सुपर 303 किस्म के मुख्य फायदे एवं विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-

1. उच्च उत्पादन क्षमता

‘श्रीराम सुपर 303’ एक रिसर्च-आधारित आधुनिक गेहूं किस्म है, जो अपनी बेहतरीन उपज के लिए जानी जाती है। प्रति हेक्टेयर 75–80 क्विंटल तक उत्पादन क्षमता, प्रति एकड़ लगभग 25–30 क्विंटल उपज संभव सही खेती तकनीक अपनाने पर यह किस्म किसानों को अधिक पैदावार और बेहतर आमदनी दोनों देती है।

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2. रोगों के प्रति मजबूत सुरक्षा

श्रीराम सुपर 303 किस्म की सबसे बड़ी खासियत है इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता। यह ब्राउन रस्ट, पत्ती के धब्बे और झुलसा जैसे प्रमुख रोगों से फसल को बचाती है। इससे किसानों को बार-बार दवाइयों का छिड़काव नहीं करना पड़ता, जिससे लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है।

3. हर मौसम और बुवाई के लिए उपयुक्त

‘श्रीराम सुपर 303’ को अगेती और पछेती दोनों तरह की बुवाई में लगाया जा सकता है। यह मध्यम अवधि की किस्म है, जो बुवाई के 125–130 दिनों में कटाई योग्य हो जाती है। इसके बालें 99 दिनों में निकल आती हैं, जिससे फसल का विकास संतुलित रहता है।

4. सुनहरे, ठोस और आकर्षक दाने

इस किस्म के दाने सुनहरे, चमकदार और ठोस होते हैं, जिनका वजन अच्छा होता है। इसलिए बाजार में इसका दाम भी बेहतर मिलता है। यह गेहूं आटा और मुलायम रोटियों के लिए बेहद उपयुक्त है, जिसकी वजह से उपभोक्ताओं में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।

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5. तेज हवा और आंधी से सुरक्षित फसल

‘श्रीराम सुपर 303’ के पौधे लगभग 90–100 सेंटीमीटर ऊँचे और तनों में बेहद मजबूत होते हैं। इससे आंधी या तेज हवा चलने पर फसल के गिरने का खतरा बहुत कम रहता है। एक पौधे में 15–20 मजबूत कल्ले निकलते हैं, जो पैदावार को बढ़ाते हैं।

6. देशभर के किसानों के लिए उपयुक्त

यह किस्म भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश में बड़ी सफलता से उगाई जा रही है।

इसकी सहनशीलता और मजबूत संरचना इसे अलग-अलग जलवायु में भी स्थिर उत्पादन देती है।

7. किसानों के लिए फायदेमंद निवेश

अगर आप ऐसी गेहूं की किस्म चाहते हैं, जो ज्यादा उपज, कम रोग, बेहतर दाना गुणवत्ता और आंधी-तूफान से सुरक्षा पाए तो ‘श्रीराम सुपर 303’ आपके लिए सबसे समझदारी भरा विकल्प साबित हो सकता है। सही समय पर बुवाई और उचित देखभाल के साथ यह किस्म किसानों को बेहतरीन उत्पादन और शानदार मुनाफा दिला सकती है।



प्रश्न: ‘श्रीराम सुपर 303’ गेहूं की किस्म किसके लिए प्रसिद्ध है ?

उत्तर: अधिक पैदावार के लिए

प्रश्न: ‘श्रीराम सुपर 303’ गेहूं की प्रति हेक्टेयर औसत उपज कितनी होती है ?

उत्तर: 75–80 क्विंटल

प्रश्न: यह किस्म किन प्रमुख रोगों से फसल की रक्षा करती है ?

उत्तर: ब्राउन रस्ट, पत्ती के धब्बे और झुलसा रोग

प्रश्न: ‘श्रीराम सुपर 303’ गेहूं की फसल बुवाई के कितने दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है ?

उत्तर: 125–130 दिन

प्रश्न: इस किस्म की बालें बुवाई के कितने दिनों में निकलती हैं ?

उत्तर: 99 दिन

गेहूं की खेती में क्रांति: एक ही मशीन करेगी जुताई से बुवाई तक का सारा काम
गेहूं की खेती में क्रांति: एक ही मशीन करेगी जुताई से बुवाई तक का सारा काम

क्या है इस आधुनिक मशीन की खासियत व कीमत

रबी फसलों की बुवाई का सीजन आ गया है। धान की कटाई शुरू होते ही किसान रबी फसलों की खेती की तैयारी में जुट गए हैं। ऐसे में रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई का काम भी शुरू हो गया है। 

देश के कई राज्यों में गेहूं की बुवाई शुरू हो गई है। ऐसे में किसानों के लिए कम खर्च में बुवाई का काम आसान बनाने वाली एक शानदार आधुनिक कृषि मशीन उपलब्ध है, जिसके उपयोग से किसान कम लागत और मेहनत में गेहूं की बुवाई का कार्य पूरा कर सकते हैं।

खास बात यह है कि यह कृषि मशीन खेत की जुताई से लेकर बीजों की बुवाई काम आसानी से पूरा कर सकती है। इस तरह किसान एक ही मशीन से जुताई, बुवाई, खाद डालना जैसे काम कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं, कौनसी है यह मशीन और इसके इस्तेमाल से किसान कैसे अपनी खेती की लागत को कम कर सकते हैं।

एक मशीन से तीन काम

यह मशीन सुपर सीडर है, जो धान की पराली का प्रबंधन करने के काम के साथ ही रबी की प्रमुख फसल गेहूं की खेती के काम को भी आसानी से पूरा कर सकती है। 

यह मशीन न केवल गेहूं की बुवाई कर सकती है बल्कि खाद को खेत में फैलाने का काम भी करती है। इस मशीन से जुताई, बुवाई, मल्चिंग और खाद फैलाने का काम एक साथ किया जा सकता है। 

सुपर सीडर खेत को तैयार करने में लगने वाले समय को बहुत कम कर देती है और खेती की लागत भी कम करती है, जिससे अधिक मुनाफे की उम्मीद बढ़ जाती है। यह मशीन पराली को बिना जलाए इसका निस्तारण कर सकती है, जिससे पराली प्रबंधन का काम आसानी से पूरा होता है।

सुपर सीडर से पराली प्रबंधन

सुपर सीडर मशीन एक ऐसी मशीन है जो पराली प्रबंधन के काम को बहुत ही आसान तरीके से करती है। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही मिट्‌टी की उर्वराशक्ति को भी बनाए रखती है। यही कारण है कि सरकार भी पराली प्रबंधन के लिए सुपर सीडर मशीन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार की ओर से इस मशीन पर किसानों को सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है।

सुपर सीडर मशीन से गेहूं की बुवाई कैसे होती है ?

सुपर सीडर मशीन धान की पराली यानी अवशेष को खेत में मिलाते हुए गेहूं की बुवाई भी करती है। इस तरह यह एक साथ दो काम करती है। इससे पराली जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

वहीं, यह मशीन बिना खेत की मिट्टी को पलटे बीज की बुवाई भी कर देती है, जिससे मिट्‌टी की नमी बनी रहती है और सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। यह नमी फसल के लिए फायदेमंद होती है। यह मशीन धान के बाद बोई जाने वाली फसलों के लिए काफी उपयोगी है।

सुपर सीडर मशीन से गेहूं बुवाई के क्या लाभ हैं ?

सुपर सीडर मशीन बिना अवशेष हटाए गेहूं की बुवाई कर देती है। इससे पराली जलाने की कोई समस्या नहीं होती है। यह बिना खेत की मिट्‌टी पलटे बीज बो देती है, जिससे मिट्‌टी की नमी बनी रहती है। 

इस मशीन के उपयोग से 30-40 प्रतिशत तक डीजल की बचत होती है। यह मशीन बीज और खाद दोनों की समान गहराई और दूरी पर बुवाई करती है, जिससे बेहतर अंकुरण होता है। यह मशीन एक घंटे में एक एकड़ जमीन में फैली पराली को नष्ट कर देती है। इसके बाद गेहूं की बुवाई करती है।

सुपरसीडर मशीन की क्या कीमत है ?

बाजार में कई ब्रांड की सुपर सीडर मशीनें उपलब्ध हैं जिनमें मास्कीओ गास्पार्दो, केएस ग्रुप, शक्तिमान आदि शामिल हैं। भारत में सुपर सीडर की प्राइस रेंज 80000 से 2.99 लाख* रुपए तक है। आप ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से ऑनलाइन सुपर सीडर की खरीद आसानी से कर सकते हैं।

शक्तिमान सुपर सीडर, ₹ 2,50,004 – ₹ 2,68,874, केएस एग्रोटेक सुपर सीडर ₹ 2,53,000, मास्कीओ गास्पार्दो सुपरसीडर 205 ₹ 2,60,000, जगतजीत सुपर सीडर मल्टी क्रॉप, ₹ 2,78,000 – ₹ 3,16,500, जगतजीत सुपर सीडर जगलर ईएक्स ₹ 2,82,000 – ₹ 3,24,000, गरुड़ सुपर सीडर ₹ 2,99,000, सॉइलटेक सुपर सीडर ₹ 80,000 है। 

सुपर सीडर मशीन हेतु कितने एचपी का ट्रैक्टर अनुकूल रहता है ?

अधिकांश सुपर सीडर मशीनों के संचालन के लिए 55 एचपी या उससे अधिक पावर वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है। हालांकि, कुछ कंपनियाँ ऐसे "लोड-फ्री" सुपर सीडर मॉडल भी बनाती हैं जो 45 एचपी ट्रैक्टर के साथ भी प्रभावी ढंग से काम कर सकते हैं। सही एचपी का चयन आपके सुपर सीडर के मॉडल और स्पेसिफिकेशन पर निर्भर करता है।

यदि आप 50 एचपी श्रेणी में ट्रैक्टर खोज रहे हैं, तो जॉन डियर, महिंद्रा, स्वराज और सोनालिका जैसे ब्रांडों के ट्रैक्टर बेहतरीन विकल्प साबित होते हैं। इन कंपनियों के कई मॉडल विशेष रूप से सुपर सीडर जैसी मशीनों के साथ कुशल और संतुलित प्रदर्शन के लिए डिजाइन किए गए हैं।



प्रश्न: सुपर सीडर मशीन क्या है ?

उत्तर: सुपर सीडर एक आधुनिक कृषि यंत्र है जो खेत की जुताई, बुवाई और पराली प्रबंधन का काम एक साथ करता है। इससे किसान समय, श्रम और लागत तीनों में बचत कर सकते हैं।

प्रश्न: सुपर सीडर मशीन से गेहूं की बुवाई कैसे होती है ?

उत्तर: सुपर सीडर मशीन धान की पराली को खेत में मिलाते हुए उसी के साथ गेहूं की बुवाई करती है। इससे पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ती और मिट्टी की नमी भी बनी रहती है।

प्रश्न: सुपर सीडर मशीन का उपयोग करने के क्या फायदे हैं ?

उत्तर: सुपर सीडर से जुताई, बुवाई और खाद डालने का काम एक साथ कर सकते हैं। इससे 30–40% तक डीजल की बचत, मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है, पराली जलाने की आवश्यकता नहीं पडती है और बेहतर अंकुरण और अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न: सुपर सीडर मशीन की कीमत कितनी है?

उत्तर: भारत में सुपर सीडर मशीन की कीमत ₹80,000 से ₹2.99 लाख* रुपये तक होती है। कीमत ब्रांड और मॉडल के अनुसार बदलती है।

प्रश्न: सुपर सीडर मशीन के लिए कितने एचपी का ट्रैक्टर चाहिए ?

उत्तर: सुपर सीडर मशीन के लिए सामान्यतः 55 एचपी या उससे अधिक पावर वाला ट्रैक्टर उपयुक्त माना जाता है।

अक्टूबर में लगाएं ये 5 फलदार पौधे, पाएं भरपूर फल
अक्टूबर में लगाएं ये 5 फलदार पौधे, पाएं भरपूर फल

ताजे फलों की होगी भरमार! अक्टूबर में ज़रूर लगाएं ये 5 फलदार पौधे

अक्टूबर माह बगीचे में फलदार पौधे लगाने के लिए उपयुक्त समय है। इस महीने में आप पपीता, अमरूद, नींबू, संतरा और अंजीर जैसे पौधे अपने गार्डन या छत पर लगा सकते हैं, बशर्ते तापमान बहुत ठंडा न हो और जगह अच्छी धूप वाली हो. इस महीने में पौधा लगाना विशेष रूप से लाभकारी होता है, क्योंकि इन फलों को अक्टूबर में लगाकर कुछ ही महीनों में आप ताजे फल प्राप्त कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं किन बातों का ध्यान रखकर आप अपने बगीचे में फलों के पौधे लगाएं.

अक्टूबर में कौन-से 5 फल की खेती करनी चाहिए

1. पपीता: अक्टूबर में पपीता का पौधा लगाना एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि इससे आपको सर्दियों और अगले गर्मी तक भरपूर फल मिल सकता है। वहीं, उगाने के लिए एक पका हुआ पपीता लें, उसे काटें और उसके बीज निकाल लें और बीजों को छांव में 1-2 दिन तक सुखा लें।

फिर इन बीजों को मिट्टी, खाद और रेत के मिश्रण में बोकर अंकुरित होने दें। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं, तो उन्हें सावधानी से बड़े गमलों या ज़मीन में लगा दें और उचित देखभाल करें।

2. अमरूद: घर पर अमरूद लगाने के लिए, धूप वाली जगह पर एक बड़ा गड्ढा जो लगभग 2 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा खोदें। मिट्टी में गोबर की खाद, कंपोस्ट और रेत मिलाकर तैयार करें और फिर नर्सरी से लाए गए स्वस्थ पौधे या कटिंग को सावधानी से लगाएं। पौधा लगाने के तुरंत बाद हल्का पानी दें और शुरू में कुछ दिनों तक छाया में रखें, फिर उसे पूरी धूप में रख दें।

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3. नींबू: घर पर नींबू का पौधा लगाने के लिए एक 15 से 20 इंच का गमला लें और उसमें हल्की, जल निकासी वाली मिट्टी भरें, जिसमें गोबर की खाद और रेत मिला हो। फिर एक ग्राफ्टेड या एयर लेयरिंग वाला नींबू का पौधा लगाएं, उसे पर्याप्त धूप में रखें और मिट्टी को नम बनाए रखें।

4. संतरा: संतरा लगाने के लिए एक बड़ा गमला लें, उसमें अच्छी जल निकासी वाली, खाद मिली हुई मिट्टी भरें और ग्राफ्टेड (कलमी) पौधा लगाएं। पौधे को ऐसी जगह रखें जहां दिन में कम से कम 5-6 घंटे सीधी धूप आती हो। ज़्यादा नमी के लिए, मिट्टी में कोकोपिट और रेत मिला सकते हैं और पौधे की पत्तियों पर पानी का छिड़काव कर सकते हैं।

5. अंजीर: आप अक्टूबर में अंजीर के पेड़ भी लगा सकते हैं, इसके लिए आप कलम (कटिंग) या नर्सरी से तैयार पौधे ले सकते हैं। गमले में अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी भरें, जिसमें खाद और कम्पोस्ट मिला हो। पौधे को गमले के बीच में रखें और आसपास मिट्टी भरें, फिर अच्छी तरह पानी दें और धूप वाली जगह पर रखें।

किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

फलदार पौधे लगाने के लिए अक्टूबर का महीना सबसे उपयुक्त होता है। बशर्ते तापमान बहुत अधिक ठंडा न हो और पौधों को पर्याप्त धूप मिल रही हो। इसके अवाला पौधों को ऐसी जगह पर लगाएं जहां अच्छी धूप आती हो और मिट्टी की जल निकासी अच्छी हो।

वहीं, अमरूद, नींबू और संतरा जैसे फलदार पौधों के लिए बड़े गमलों का प्रयोग करें ताकि उनमें अच्छी तरह से फल लग सकें। इसके अलावा फलदार पौधों को हर 2-4 महीनों में गोबर खाद, वर्मीकम्पोस्ट या अन्य ऑर्गेनिक खाद देने से फल तेजी से और अच्छी संख्या में लगते हैं। 



प्रश्न: अक्टूबर का महीना फलदार पौधों के लिए क्यों उपयुक्त माना जाता है ?

उत्तर: पौधे इस समय अच्छे से विकसित होते हैं और समय पर फल देते हैं

प्रश्न: अक्टूबर में लगाए गए पपीते का पौधा कब तक फल देना शुरू कर सकता है ?

उत्तर: 6 महीने से 1 साल में

प्रश्न: नींबू का पौधा लगाने के लिए कौन-सी विधि सबसे बेहतर मानी जाती है ?

उत्तर: ग्राफ्टेड या एयर लेयरिंग पौधा लगाना

प्रश्न 4: संतरे के पौधे को लगाने के लिए दिन में कम से कम कितने घंटे धूप मिलनी चाहिए ?

उत्तर: 5–6 घंटे

प्रश्न: पपीते के बीज बोने से पहले उन्हें कितने दिन तक सुखाना चाहिए ?

उत्तर: 1–2 दिन

ब्रह्म कमल क्या है? इसके औषधीय और धार्मिक गुण जानें
ब्रह्म कमल क्या है? इसके औषधीय और धार्मिक गुण जानें

किसानों को खेती से अच्छा खासा मुनाफा कमाने के लिए लीक से हटकर लाभकारी फसलों की खेती करनी चाहिए। ऐसे में बहुत सारे किसान आज की तारीख में कम लागत और अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं।

अगर आप भी किसी 'खजाना' जैसी फसल का विकल्प ढूंढ रहे हैं, जो आपको रातों-रात मालामाल कर दे, तो आपकी तलाश समाप्त हो सकती है। 

वास्तविकता में आज हम आपको एक ऐसे फूल के बारे में जानकारी देंगे जिसे 'देवताओं का फूल' और पहाड़ों का 'सफेद सोना' तक कहा जाता है। 

जी हां, हम बात कर रहे हैं, ब्रह्म कमल फूल के बारे में। यह केवल एक फूल नहीं, बल्कि एक बेशकीमती औषधी भी मानी जाती है, जिसकी कीमत बाजार में सोने जैसी है। 

ब्रह्म कमल क्या होता है ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि असल में ब्रह्म कमल कोई साधारण फूल नहीं होता है। यह हिमालय की ऊंचाइयों (3000-4800 मीटर) पर खिलने वाला एक दुर्लभ और पवित्र फूल माना जाता है। 

इस फूल का नाम भगवान ब्रह्मा के नाम पर पड़ा है। यह साल में केवल एक बार, जुलाई से सितंबर के बीच और वो भी केवल रात में कुछ घंटों के लिए ही खिलता है।

ब्रह्म कमल सोने' के भाव क्यों बिकता है ?

ब्रह्म कमल की कीमत आसमान छूने की वजह से इसकी भारी डिमांड और बहुत कम सप्लाई होती है।

औषधीय और धार्मिक गुण

ब्रह्म कमल फूल में कई रोगों को दूर करने के गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा पूजा पाठ में इस फूल का खास महत्व होता है। 

दुर्लभता

यह प्राकृतिक रूप से बेहद ही कम उगता है, जिसकी वजह से इसकी कीमत में और भी बढ़ोतरी हो जाती है। 

ब्रह्म कमल की खेती कैसे करें ? 

ब्रह्म कमल की खेती हर जगह नहीं की जा सकती है, इसके लिए एक खास वातावरण, मृदा एवं जलवायु आदि की जरूरत होती है। 

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जलवायु

ब्रह्म कमल की खेती के लिए ठंडा मौसम (10-15 डिग्री सेल्सियस) अनुकूल होता है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के ऊंचे पहाड़ी इलाकों में ब्रह्म कमल की खेती को काफी अच्छा माना जाता है। 

मिट्टी

ब्रह्म कमल की खेती के लिए पथरीली और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। 

ब्रह्म कमल लगाने का तरीका

किसान ब्रह्म कमल को बीज या कलम (cutting) दोनों विधि से लगाया जा सकता है। इसको अक्सर पॉलीहाउस में नियंत्रित वातावरण में उगाना सबसे अच्छा होता है, ताकि इसको बाहर के मौसम की मार से बचाया जा सके।

ब्रह्म कमल की खेती में कितनी लागत आती है ? 

ब्रह्म कमल की खेती में शुरुआती निवेश थोड़ा ज्यादा हो सकता है, लेकिन मुनाफा निवेश के मुकाबले कई गुना अधिक हो सकता है। 

पॉलीहाउस का खर्च 

एक छोटे पॉलीहाउस को बनाने में लगभग ₹1 लाख से ₹2 लाख का खर्च आ सकता है। हालांकि ये खर्च जगह के हिसाब से ऊपर नीचे हो सकता है। 

बीज/पौधों का खर्च 

वैसे इसके बीज या पौधे काफी महंगे होते हैं। एक एकड़ के लिए शुरुआती पौधों का खर्च ₹50,000 से ₹1 लाख तक हो सकता है। सबकुछ मिलाकर इसको उगाने में खर्च 2 से 3 लाख तक का हो सकता है। 

ब्रह्म कमल की खेती से आमदनी 

मार्केट में ब्रह्म कमल के एक फूल की कीमत ₹500 से ₹1000 या उससे भी अधिक हो सकती है। 

ब्रह्म कमल की पैदावार

ब्रह्म कमल के एक अच्छी तरह से विकसित पौधे से एक सीजन में करीब 2 से 5 फूल मिल सकते हैं। ब्रह्म कमल की एक एकड़ में खेती से आमदनी (अनुमानित) की बात करें तो मान लीजिए एक एकड़ में आपने करीब 2000 पौधे लगाए और एक पौधे से औसतन 3 फूल भी मिले और एक फूल की कीमत सिर्फ ₹500 भी मान सकते हैं। 

कुल फूल: 2000 पौधे x 3 फूल = करीब 6000 फूल कुल कमाई: 6000 फूल x ₹500 = करीब ₹30,00,000 (तीस लाख रुपये!) के आसपास होगी। 

ब्रह्म कमल की खेती से शुद्ध मुनाफा

ब्रह्म कमल की खेती में ₹30 लाख (कमाई) - ₹4 लाख (लागत) = करीब ₹26 लाख का शुद्ध मुनाफा होता है। वैसे तो यह मुनाफा हर साल बढ़ता जा सकता है। 

वैसे ब्रह्म कमल की खेती हर किसान के लिए नहीं होती है, क्योंकि इसको उगाने की लागत हर किसी के बस में नहीं होती है। इसके अलावा इस खेती को खास वातावरण की भी जरूरत होती है। हालांकि, यह आपको आर्थिक रूप से मालामाल कर सकती है। 


प्रश्न : ब्रह्म कमल किसे कहा जाता है ?

उत्तर : ब्रह्म कमल एक दुर्लभ और पवित्र फूल है जिसे देवताओं का फूल और सफेद सोना कहा जाता है। 

प्रश्न : ब्रह्म कमल कहाँ पाया जाता है ?

उत्तर : ब्रह्म कमल मुख्य रूप से उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों की ऊँचाई पर उगता है। 

प्रश्न : ब्रह्म कमल की कीमत कितनी होती है ?

उत्तर : बाजार में ब्रह्म कमल की कीमत सोने जैसी मानी जाती है और यह लाखों रुपये तक पहुँच सकती है। 

प्रश्न : ब्रह्म कमल का उपयोग कहाँ होता है ?

उत्तर : ब्रह्म कमल का उपयोग औषधीय गुणों, धार्मिक अनुष्ठानों और आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। 

प्रश्न : क्या ब्रह्म कमल की खेती कहीं भी की जा सकती है ?

उत्तर : हां, पॉलीहॉउस जैसे सिस्टम में नियंत्रित वातावरण के अंदर ब्रह्म कमल की खेती की जा सकती है। लेकिन, ब्रह्म कमल की खेती काफी कठिन और दुर्लभ मानी जाती है। 

मूंगफली की खेती से प्रति एकड़ कितनी आय होती है ?
मूंगफली की खेती से प्रति एकड़ कितनी आय होती है ?

किसान पारंपरिक फसलों से तो सालों साल से मुनाफा कमा कर रहे हैं, लेकिन अब कुछ ऐसी फसलें किसान उगा रहे हैं जो मार्केट में डिमांड में रहती हैं। जी हां, मार्केट में डिमांड में रहने वाली एक फसल मूंगफली की है। 

आज के समय में पारंपरिक फसलों की तुलना में मूंगफली की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक ऑप्शन बनती जा रही है। 

कम लागत और अच्छी बाजार मांग के कारण किसान इस तिलहनी फसल से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आज हम जानेंगे मूंगफली की खेती कैसे करें और कैसे इस फसल का उत्पादन कर किसान मालामाल बन सकते हैं। 

मूंगफली की खेती के लिए अनुकूल मृदा एवं जलवायु

मूंगफली की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु को सबसे अच्छा और खास माना जाता है। मूंगफली की फसल के लिए 20°C से 30°C का तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। 

खेती के लिए मिट्टी का सवाल है, तो बलुई दोमट या हल्की दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकासी की शानदार व्यवस्था हो वह सबसे अच्छी होती है। 

मूंगफली की फसल के लिए भूमि तैयारी

खेत की अच्छी तैयारी मूंगफली की अच्छी फसल के लिए बहुत जरूरी होती है। इसके लिए, खेत की गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाएं फिर जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें ताकि सिंचाई का पानी समान रूप से फैल सके। साथ ही  बुवाई से पहले प्रति एकड़ 4-5 टन गोबर की खाद डालना अच्छा होगा। 

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मूंगफली की उन्नत किस्में और बीजोपचार

मूंगफली की कम समयावधि में पकने वाली और गुच्छेदार किस्में गर्मी में खेती के लिए सबसे अनुकूल मानी जाती हैं। हमेशा इसकी बुवाई से पहले बीजों का उपचार करें, ताकि फसल को रोगों और कीटों से बचाया जा सके। 

सिंचाई और खाद प्रबंधन

मूंगफली की फसल की सबसे बड़ी खासियत यह होती है, कि इसकी खेती के लिए काफी ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

लेकिन, खूंटियां बनते समय (जब फलियां बनने लगती हैं) और फलियां भरते समय सिंचाई करना जरूरी होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल की बुवाई के 15-20 दिन बाद हाथ से निराई करें। 

खाद के लिए प्रति एकड़ 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फॉस्फोरस और 30-40 किलोग्राम पोटाश का यूज कर सकते हैं। 

मूंगफली के उत्पादन से मुनाफे की गणना कैसे करें ? 

यह कैलकुलेशन हम एक आंकलन के रूप में समझा रहे हैं, क्योंकि मुनाफा फसल का हमेशा कम ज्यादा हो सकता है। 

1. खेती की लागत (प्रति एकड़)

  • बीज: 40-45 किलोग्राम प्रति एकड़ (लगभग ₹4,000 - ₹5,000)
  • उर्वरक (खाद): नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और जिप्सम (लगभग ₹3,000 - ₹4,000)
  • खेत की तैयारी और जुताई: (लगभग ₹2,000 - ₹3,000)
  • सिंचाई: (लगभग ₹1,500 - ₹2,000)
  • कीटनाशक/खरपतवारनाशक: (लगभग ₹1,500 - ₹2,000)
  • कटाई और मजदूरी: (लगभग ₹3,000 - ₹4,000)
  • कुल अनुमानित लागत: ₹15,000 से ₹20,000

2. अनुमानित पैदावार और आय (प्रति एकड़)

  • पैदावार: विभिन्न उन्नत तरीकों से खेती करने पर प्रति एकड़ 10-15 क्विंटल (1,000-1,500 किलोग्राम) तक पैदावार हो सकती है। 
  • मार्केट रेट: मूंगफली का बाजार मूल्य आमतौर पर ₹5,000 से ₹8,000 प्रति क्विंटल तक रहता है। 

3. मुनाफे का आंकलन 

मान लीजिए कि किसान को प्रति एकड़ 12 क्विंटल की औसत पैदावार मिलती है और वह उसे ₹6,000 प्रति क्विंटल के औसत भाव पर बेचता है। 

  • कुल आय: 12 क्विंटल × ₹6,000 = ₹72,000
  • कुल लागत: ₹15,000
  • शुद्ध मुनाफा: कुल आय - कुल लागत = ₹72,000 - ₹15,000 = ₹57,000

कैलकुलेशन के अनुसार, एक किसान एक एकड़ में मूंगफली की खेती करके एक सीजन में लगभग ₹57,000 तक का शुद्ध मुनाफा कमा सकता है। अगर कोई किसान दो फसलें (खरीफ और जायद) मूंगफली की कर लेता है, तो फिर यह मुनाफा दोगुना भी हो सकता है। कुछ किसान तो प्रति एकड़ ₹30,000 से लेकर ₹50,000 तक की कमाई कर रहे हैं। 

नोट-खबर केवल जानकारी के लिए है, खेती कैसे करनी है और करनी है कि नहीं ये किसान के ऊपर निर्भर करती है। 




प्रश्न : मूंगफली की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मौसम कौन सा है ?

उत्तर : मूंगफली की खेती खरीफ सीजन में, जून से जुलाई के बीच, मानसून की शुरुआत के साथ की जाती है। 

प्रश्न : मूंगफली की औसत उपज प्रति हेक्टेयर कितनी होती है ?

उत्तर : औसतन 1,500 से 2,500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज मिल सकती है, जो खेती के तरीके और देखभाल पर निर्भर करती है। 

प्रश्न : मूंगफली की खेती में अनुमानित लागत कितनी आती है ?

उत्तर : 1 हेक्टेयर खेती में लगभग ₹40,000 से ₹70,000 तक की लागत आती है। 

प्रश्न : मूंगफली का थोक भाव मार्केट में कितना मिलता है ?

उत्तर : भाव गुणवत्ता और मांग पर निर्भर करते हुए ₹90 से ₹120 प्रति किलोग्राम तक मिल सकता है। 

प्रश्न : मूंगफली की खेती से किसान कितना मुनाफा कमा सकते हैं ?

उत्तर : मूंगफली की खेती से औसतन किसान ₹95,000 से ₹2.3 लाख प्रति हेक्टेयर तक शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं। 

इस फूल की खेती से कमाएं कम लागत में अधिक मुनाफा
इस फूल की खेती से कमाएं कम लागत में अधिक मुनाफा

खेती-किसानी के बदलते दौर में अब किसान परंपरागत फसलों के साथ-साथ ऐसी खेती की ओर भी रुख कर रहे हैं, जिससे उन्हें न सिर्फ आर्थिक फायदा हो, बल्कि खेत और बगीचों की खूबसूरती भी बढ़े। 

इसी कड़ी में सफेद गुड़हल की खेती किसानों के लिए नई उम्मीद बनकर सामने आ रही है। विंध्य क्षेत्र में यह पौधा बहुत कम देखने को मिलता है, लेकिन इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। 

इसकी खासियत यह है कि यह सुंदरता बढ़ाने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर है और आयुर्वेदिक दवाओं से लेकर घरेलू नुस्खों तक में इसका इस्तेमाल होता है। 

विंध्य में कम, लेकिन मांग में ज्यादा

मीडिया से बातचीत में जैव विविधता विशेषज्ञ चंदन सिंह ने बताया कि उनके बगीचे में गुड़हल की करीब 25 प्रजातियां हैं, जिनमें सफेद, पीला, लाल और गुलाबी रंग आदि के गुड़हल शामिल हैं। 

इनमें सफेद गुड़हल सबसे खास है, क्योंकि विंध्य क्षेत्र में इसकी उपलब्धता बेहद कम है। उन्होंने कहा की इसकी कलम उत्तराखंड से मंगाई थी और अब धीरे-धीरे कई किसान इसे अपनाने लगे हैं। 

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पूजा-पाठ और औषधीय महत्व

भारतीय परंपरा में सफेद गुड़हल का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। शिव पूजा और दुर्गा पूजा जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में इसे शुभ माना जाता है। वहीं औषधीय गुणों की वजह से यह आयुर्वेद में भी खूब उपयोगी है। 

पुराने समय में बघेलखंड के लोग बालों को काला और मजबूत करने, त्वचा संबंधी बीमारियों को दूर करने और घाव भरने के लिए सफेद गुड़हल का काढ़ा या पेस्ट बनाकर इस्तेमाल करते थे। वहीं आज भी कई ग्रामीण इलाकों में ये परंपरा देखने को मिल जाती है। 

खेती और बाजार की संभावना

बरसात के मौसम में सफेद गुड़हल की कलम लगाई जाती है और महज 6 महीने में यह पौधा तैयार हो जाता है। आसान देखभाल और तेज़ी से बढ़ने की क्षमता के कारण यह किसानों के लिए कम समय में बेहतर आय का जरिया बन सकता है।

वहीं इसकी मांग दवा उद्योग, पूजा-पाठ और घरेलू उपयोग में बनी रहने से बाजार में इसका दाम स्थिर रहता है। सफेद गुड़हल खेती से किसानों को दोहरा फायदा मिलता है। 

एक ओर खेत और बगीचों की खूबसूरती बढ़ती है तो दूसरी ओर आयुर्वेद और मार्केट डिमांड से अतिरिक्त कमाई भी सुनिश्चित होती है। 


प्रश्न : सफेद गुड़हल की लोकप्रियता किस क्षेत्र में बढ़ रही है ?

उत्तर : विंध्य क्षेत्र में सफेद गुड़हल की खेती की लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ रही है। 

प्रश्न : भारत में सफेद गुड़हल की मांग किन वजहों से बढ़ी है ?

उत्तर : भारत में सफेद गुड़हल को धार्मिक और औषधीय कारणों से जाना जाता है। 

प्रश्न : सफेद गुड़हल का पौधा कितने दिनों में तैयार हो जाता है ?

उत्तर : सफेद गुड़हल का पौधा 6 महीने में पककर तैयार हो जाता है। 

टमाटर की कीमतों में 51% फीसद से ज्यादा बढ़ोतरी
टमाटर की कीमतों में 51% फीसद से ज्यादा बढ़ोतरी

आम जनता पर फिर से महंगाई की मार देखने को मिल रही है। टमाटर की कीमतों में एक बार फिर से जबरदस्त बढ़ोतरी से लोगों की रसोई का बजट खराब होता दिख रहा है। 

अब ऐसे में टमाटर की खेती करने वाले कृषकों के लिए यह एक बेहद सुनहरा अवसर बनकर सामने आया है। पिछले महीने तक जो टमाटर 20 से 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा था। वह अब दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के बहुत सारे शहरों में 60 से 70 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुका है।

टमाटर की थोक बाजार में बढ़ती कीमतें क्या हैं ?

दिल्ली की आजादपुर मंडी के टमाटर व्यापारियों के अनुसार, पिछले एक हफ्ते में थोक में टमाटर की कीमत 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। वहीं बेंगलुरु से आने वाली टमाटर की खेप की कीमत भी करीब 40 रुपये प्रति किलो रहने की संभावना है। 

कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट क्या कहती है ?

केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सप्ताह टमाटर की औसत कीमत 32 रुपये प्रति किलो दर्ज की गई है। 

बीते महीने यह कीमत 22 रुपये प्रति किलो थी, जबकि पिछले साल इसी समय 21 रुपये प्रति किलो थी। इस हिसाब से टमाटर की कीमत में पिछले एक साल में करीब 51.55% की बढ़ोतरी देखी गई है।

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टमाटर उत्पादकों को हो रहा फायदा

जानकारी के लिए बतादें, कि बीते दो सालों में प्याज और आलू की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। वहीं, टमाटर उगाने वाले किसानों को काफी अच्छा और शानदार मुनाफा हांसिल हो रहा है। टमाटर की बढ़ती कीमतों से किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य प्राप्त हो रहा है। 

टमाटर की बढ़ती कीमतों की क्या वजह है ?

कृषि विशेषज्ञों का मानना है, कि टमाटर की आपूर्ति में कमी आने से इसकी कीमत बढ़ी हैं। पहले राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों से बड़ी मात्रा में टमाटर आ रहा था, लेकिन कीमतें कम होने के कारण कई किसानों ने टमाटर बेचना बंद कर दिया। 

अब टमाटर की सप्लाई सिर्फ हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के करनाल, उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों और कर्नाटक से हो रही है। इसके अलावा, जून की गर्मी और उमस के कारण टमाटर जल्दी खराब हो रहे हैं, जिससे उनकी उपलब्धता और भी कम हो गई है।

आगामी समय में क्या टमाटर सस्ते होंगे ?

जैसा कि हमने उपरोक्त में जाना उसके अनुरूप वर्तमान में टमाटर की कीमतों में कोई राहत मिलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। 

गर्मी और बारिश के चलते टमाटर काफी शीघ्रता से खराब हो रहे हैं। जानकारों का कहना है, कि अगले एक-दो महीने तक टमाटर की कीमतें काफी ऊंची रहने वाली हैं। जब नई फसल बाजार में आएगी, तब जाकर कीमतों में कुछ राहत देखने को मिल सकती है।

अगर आप टमाटर खरीदने जा रहे हैं, तो ऐसे में आपको थोड़ा ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। लेकिन, अगर आप किसान हैं और टमाटर की खेती करते हैं, तो यह समय आपके लिए काफी लाभदायक साबित हो सकता है। आगामी समय में कीमतें और भी ज्यादा बढ़ सकती हैं, इसलिए सभी को सजग रहने की आवश्यकता है।


प्रश्न : टमाटर की कीमतों में कितने प्रतिशत इजाफा हुआ है ?

उत्तर : टमाटर की कीमतों में लगभग 51% फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 

प्रश्न : टमाटर की कीमतों में इजाफे से किसानों को लाभ या हानि। 

उत्तर : टमाटर की बढ़ती कीमतों की वजह से किसानों को अधिक मुनाफा हांसिल हो रहा है। 

प्रश्न : टमाटर की खेती करने को लेकर कृषि विशेषज्ञों का क्या कहना है ?

उत्तर : कृषि विशेषज्ञों के अनुसार टमाटर की खेती करना काफी फायदे का सौदा है।

गौरजीत आम की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी
गौरजीत आम की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

गर्मियों की दस्तक के साथ ही बाजारों में फलों का राजा आम दिखाई देने लगता है। भारत में आम की सैकड़ों किस्में पाई जाती हैं, लेकिन कुछ प्रजातियां अपने खास स्वाद, खुशबू और रंग-रूप की वजह से लोगों के दिलों में अलग ही स्थान बना लेती हैं। 

"गौरजीत आम",ऐसी ही एक अनमोल किस्म है जो पूर्वांचल के कुशीनगर के अलावा, शायद अन्य जिलों में भी पाया जाता है। 

ह आम न केवल स्वाद में लाजवाब होता है, बल्कि पूरी तरह प्राकृतिक तरीके से पकने वाला फल है, जिसे खाने के बाद भी उसकी मिठास देर तक जबान और मन में बनी रहती है। 

गौरजीत आम कुशीनगर की एक अनोखी और स्वादिष्ट किस्म है, जो प्राकृतिक रूप से पकती है और बाजार में जल्दी उपलब्ध होती है। 

इसकी स्थानीय मांग बहुत अधिक है, परंतु पौधों की कमी, भ्रम और जागरूकता की कमी के कारण यह संकट में है। इसे बचाने के लिए वैज्ञानिक प्रयास जरूरी हैं। 

गौरजीत आम की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि यह पूरब का सबसे पहले तैयार होने वाला आम है, जो मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जून के पहले सप्ताह तक पक कर तैयार हो जाता है। इसकी जबरदस्त डिमांड स्थानीय बाजार में होती है और इसकी बाग से ही बिक्री हो जाती है। 

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भूमि एवं जलवायु

गौरजीत आम कुशीनगर के अलावा भी यूपी के शायद कई अन्य जिलों में भी उगाया जाता है। हालांकि, अगर कुशीनगर की जलवायु और भौगोलिक स्थिति की बात करें, तो यहां गर्मियों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है और मौसम गर्म व आर्द्र रहता है। 

वहीं, लगभग जून से सितंबर तक मानसून का प्रभाव रहता है, जिसमें अच्छी बारिश होती है। जबकि अक्टूबर से फरवरी तक सर्दियों का मौसम होता है, तब लगभग तापमान 10 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। 

गौरजीत आम की खूबियां 

गौरजीत आम का स्वाद जितना अनोखा है, उतनी ही इसकी विशेषताएं भी अद्वितीय हैं। यह आम हरे और हल्के लाल रंग का होता है और देखने में आकर्षक लगता है। इसका स्वाद मीठा और रसीला होता है। 

इसके फल आंधी-तूफान की स्थिति में भी अन्य किस्मों की तुलना में टहनियों से बेहद कम टूटकर नीचे गिरते हैं। इस किस्म का फल जब कच्चा होता है तब भी अन्य किस्मों की तुलना बहुत कम खट्टा होता है। 

गौरजीत आम को पकाने के लिए किसी रसायन की आवश्यकता नहीं होती, जो इसे पूरी तरह से प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक बनाता है। इसके अलावा इसकी स्टोरेज क्षमता भी शानदार है। यह आम पकने के बाद भी फ्रिज में 10 से 15 दिनों तक खराब नहीं होता है। 

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गौरजीत आम की बाजार मांग व कीमत

गौरजीत आम की सबसे बड़ी खूबी यह है कि जब अन्य किस्मों के आम तैयार नहीं होते, तब गौरजीत बाजार में छा जाता है। यही वजह है कि इसकी कीमत भी बेहतर मिलती है। 

एक किलो गौरजीत आम की कीमत 150 रुपये से लेकर 250 रुपये तक होती है, जो इसे किसानों के लिए भी फायदेमंद बनाता है। आमतौर पर इसकी बिक्री बाग से हो जाती है, जिससे बागवानों को बाजार तक जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। 

 

प्रश्न : गौरजीत आम की खेती के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की क्या भूमिका होनी चाहिए ?

 उत्तर : कृषि वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे सीधे किसानों के बागों तक पहुंचकर उनको सही जानकारी दें और इस किस्म की कलमी पौधों की जिले में उपलब्धता सुनिश्चित करें।  

प्रश्न : गौरजीत आम की खेती के लिए स्थानीय प्रशासन और मीडिया की क्या भूमिका होनी चाहिए ?

उत्तर : गौरजीत किस्म के प्रचार-प्रसार के लिए स्थानीय प्रशासन और मीडिया को भी जागरूकता अभियान चलाना चाहिए, ताकि लोग इसकी खासियत को जानें और इसकी खेती को बढ़ावा मिले। 

प्रश्न : गौरजीत आम की खेती के लिए सबसे जरूरी चीज क्या है ?

उत्तर : गौरजीत आम की खेती के लिए सबसे जरूरी चीज़ों में से एक सही जलवायु और मृदा का चयन है। इसके अलावा, अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे, उचित सिंचाई, खाद और उर्वरकों का प्रबंधन और रोगों और कीटों से बचाव भी आवश्यक है।

अगस्त माह के कृषि कार्यों की महत्वपूर्ण जानकारी
अगस्त माह के कृषि कार्यों की महत्वपूर्ण जानकारी

फसल चक्र यानि की क्राप रोटेशन अलग-अलग तरह की फसलों को तय समय में तय क्रम के आधार पर बोने की विधि को ही फसल चक्र कहा जाता है। चारे की फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, नेपियर, बरबटी आदि की कटाई की जाती है।

सूरजमुखी की फसल खाली खेतों में लगाते हैं। अगस्त महीने के आखरी दिनों में रामतिल की फसल लगाते हैं। गन्ने एवं मूंगफली की निदाई करते हैं और गुड़ाई करते हैं। उसके बाद उस पर मिट्टी चढ़ायी जाती है। 

धान की फसल में उर्वरक की काफी ज्यादा मात्रा पाई जाती है। धान, ज्वार, अरहर, मूंग, उड़द, मक्का, सोयाबीन इत्यादि फसलों के खरपतवार निकाली जाती हैं, गुड़ाई की जाती है।

मूंगफली में फूल लगने शुरु हो जाने के बाद मिट्टी चढ़ाते हैं। इस महीने में अगर मक्के की फसल तैयार हो गई है तो भुट्टे तोड़ लेते हैं। और फिर खेत को रबी की फसल के लिये तैयार करते हैं। 

आम के नये बगीचे लगता हैं। अमरुद के नये बगीचे इस समय लगाते हैं। पपीता में खाद देते हैं। भिण्डी और बरबटी की तुड़ाई करते हैं। सभी फसलों को कीटनाशक, फंफूदीनाशक दवाईयों द्वारा कीड़ो, बीमारियों से बचाते हैं। 

अगस्त माह जिसे आप श्रावण-भाद्रपद भी कहते है, बरसात की झडी लगा देता है तथा चारों तरफ हरियाली से भर देता है। खुशी के साथ-साथ मच्छरों से मलेरिया व डेंगू का प्रकोप तथा पशुओं में खुरपका-मुहपका रोग भी फैलने लगता है। फसलों में भी कीटों तथा बिमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है।

अगस्त माह के कृषि कार्य 

अगस्त माह के कृषि कार्य निम्नलिखित हैं :-

गन्ना

अगस्त में गन्ने को बांधे तांकि फसल गिरने से बचे तथा पौध संरक्षण पर पूरा ध्यान दें। क्योंकि इस माह काफी कीट व बीमारियां लगने का भय रहता है। 

अगोला बेधक, पायरिल्ला, गुरदासपुर बोरर तथा जडबेधक कीटों का पिछले महीनों में बताये तरीकों से रोकथाम करें । रत्ता रोग फफूंद के कारण लगता है। 

पत्ते पीले पड़ जाते हैं, गन्ना पिचक जाता हैं तथा उस पर काले दाग पड जाते हैं तथा गन्ना बीच से लाल हो जाता है जिससे सफेद आडी पट्टियां दिखाई देती हैं तथा गन्ने से शराब की सी बू आती है। 

रोकथाम के लिए रोगी पौधों को निकाल कर जला दें । बीमारी वाली फसल जल्दी काट लें । बीमारी वाले खेत से मोठी फसला न लें तथा 1 साल तक गळ्यान न बोर्ये । 

रोगरोधी किस्म सी। ओ। एस-७६७ लगायें। सोका रोग भी फफूंद के कारण होता है तथा इसमें पत्ते सूख जाते हैं , गन्ने हल्के व खोखले हो जाते हैं। रोकथाम के लिए बिजाई स्वस्थ्य पोरियों से करें तथा रोगी खेत में कम से कम तीन साल तक अलग फसल चक्र अपनाऍ ।

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मक्का

वर्षां का पानी मक्का के खेत में खडा नहीं रहना चाहिए। इसका निकास लगातार होते रहना चाहिए । खरपतवार खेत से बराबर निकालते रहें। 

देर से बुआई वाली फसल में पौधे घुटनों की ऊंचाई पर आ गये होंगे वहां नत्रजन की दूसरी किस्त एक बोरा यूरिया लगाएँ। जहां अगस्त में मक्का की फसल में झंडे आने लग गये है वहां नत्रजन की तीसरी किस्त एक बोरा यूरिया पौधों के आसपास डालें। 

मक्का में लगने वाले कीटों का उपचार पिछले माह में बताया जा चुका है। बीमारियों में बीज गलन, पीथियम तना गलन, जीवाणु तना गलन, पत्ता अंगमारी तथा डाऊनी मिल्डयु है। इन रोगों के सामूहिक रोकथाम के लिए जून माह में बताया जा चुका है । रोगी पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।

दलहनी फसल

मूंग, उडद, लोबिया, अरहर, सोयाबीन - इस प्रकार की दलहनी फसलों में फूल आने पर मिट्टी में हल्की नमी बनाये रखें इससे फूल झडेगें नही तथा अधिक फलियां लगेगी व दाने भी मोटे तथा स्वस्थ्य होंगे परंतु खेतों में वर्षा का पानी खडा नहीं होना चाहिए तथा जलनिकास अच्छा होना चाहिए। 

इन दलहनी फसलों में फलीछेदक कीड़े का प्रकोप भी इसी महीने आता है। इसके लिए जब ७०% प्रतिशत फलियां आ जाएं तो ६०० मि.ली. एण्डोसल्फान ३५ ईसी या ३०० मि.ली.। मोनोक्रटोफास ३६ एस एल को ३०० लीटर पानी में घोलकर छिडके। जरूरत पडने पर १७ दिन बाद फिर छिडकाव कर सकते हैं ।

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मूंगफली

यदि मूंगफली में फूल आने की अवस्था है तो सिंचाई अवश्य करें तथा दूसरी सिंचाई फल लगने पर जरूरी है इससे मूंगफली की सूइयां जमीन में आसानी से घुस जाती है। 

मूंगफली फसल बोने के ४० दिन बाद इनडोल ऐसिटिक एसिड ०.७ ग्राम को एल्कोहल (७ मि. ली. ) में घोलें तथा १०० लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिडकें फिर 1 सप्ताह बाद ६ मि. ली. इथरल (४० प्रतिशत) १०० लीटर पानी में घोलकर छिडकने से मूगफली की पैदावार १७ से २७ प्रतिशत तक बढ़ जाती है। मूंगफली तथा तिल में कीडों तथा बीमारियों की रोकथाम जुलाई माह में बता चुके हैं।

चारा

किसान भाई जून-जुलाई में लगाई फसलों से कुछ चारा पशुओं के लिए प्राप्त कर सकते हैं ।

सब्जियां

फूल आने के एक सप्ताह बाद फल उतार लें नहीं तो फल रेशेदार होने से कम कीमत मिलती है । खेत में नमी बनाये रखें तथा २० कि.ग्रा. यूरिया छिडके। 

कीडों में फलीछेदक को फूल आने से पहले ५०० मि.ली. मैलाथियान ७० ई सी का छिडकाव करें । इसके बाद ७ दिन तक फल न उतारें। रोगों की रोकथाम स्वथ्य बीजोपचार से ही संभव है।

बैंगन व टमाटर

बैंगन व टमाटर की पौध जुलाई अन्त में अगर नहीं लगाई तो अगस्त में रोपाई कर दें । विधि जुलाई माह में बता चुके है । अगस्त माह में खरपतवार नियंत्रण तथा खेत में उचित नमी बनाये रखें तथा अतिरिक्त पानी का निकास करते रहें । १/२ बोरा यूरिया रोपाई के ३ सप्ताह बाद दें ।

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खीरा

खीरा तथा अन्य सब्जियों में फल छेदक कीडों का हमला होने का खतरा बना रहता है। किसान भाइयों को दवाईयों का छिडकाव समय-समय पर करते रहना चाहिए। परंतु दवाई छिडकने के एक सप्ताह बाद ही फल तोड़े तथा पानी से सब्जी अच्छी तरह धोये। इस फसल में १/२ बोरा यूरिया छिटकें इससे फल अच्छे लगेगें।

पत्तागोभी व फूलगोभी

पत्तागोभी व फूलगोभी की अगेती फसल के लिए अगस्त में नर्सरी लगाएं। पत्तागोभी की गोल्डन एकड तथा पूसा मुक्ता व फूलगोभी की पूसा सिंथेटिक, पूसा सुभद्रा तथा पूसा हिमज्योति किस्में चुनें। २७० ग्राम बीज को 1 ग्राम केप्टान से उपचारित कर 1 फुट चौडे व सुविधानुसार लम्बे व ऊचीं नर्सरी शैया में लगाएं। 

बीच में अच्छी चौडी नालियां रखें। नर्सरी में सड़ी-गली खाद अच्छी मात्रा में मिला दें। नर्सरी में बीज लगाने के बाद उचित नमी बनाये रखें तथा धूप से भी बचाएं। पौध की रोपाई सितम्बर में करें।

गाजर - मूली

गाजर - मूली की अगेती फसल के लिए अगस्त में बोवाई करें। गाजर की पूसा केसर तथा पूसा मेघाली किस्मों को २-२.७ कि. ग्रा. बीज को १-१.७ फुट दूर लाइनों में आधा इंच गहरा लगाएं। 

मूली की पूसा देशी किस्म का ३-४ कि. ग्रा. बीज 1 फुट लाइनों में तथा ६ इंच दूरी पौधों में रखकर लगायें। बोने से पहले खेतों में आधा बोरा यूरिया 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट तथा आधा बोरा मयूरेट आफ पोटाश डालें। मूली व गाजर में बहुत पानी की जरूरत पडती है तथा हर ४-५ दिन में फसलों को पानी चाहिए।

बागवानी

नींबू व लीची में गुट्टी बाधने के लिए अगस्त उचित समय है। बरसात में बागों में जल निकास तथा खरपतवार नियंत्रण पर ज्यादा ध्यान दें तथा बीमारी फैलने की स्थिति में तुरंत उपचार करें। 

अगस्त माह के अंत तक पपीते की पौध भी गड़ढ़ों में लगाई जा सकती है। इसके लिए गड्ढ़े, अच्छी मिट्टी व देशी खाद से उपर तक भर लें तथा दीमक से बचाब के लिए २० मि.ली. क्लोरपाइरीफास डालें।

फूल

ग्रीष्म ऋतु के फलों का समय पूरा हो गया है। इन्हें घीरे-धीरे निकाल दें तथा क्यारियों को खुदाई कर दें। मिट्टी को रोगरहित बनाने के लिए दवाईयां डालें। सर्दियों के फूलों की बीजाई की तैयारी शुरू कर दें।


प्रश्न : अगस्त माह में क्या-क्या कृषि कार्य किये जाते हैं ? 

उत्तर : अगस्त का महीना खरीफ फसलों (जैसे धान, मक्का, बाजरा, सोयाबीन, मूंगफली, आदि) की देखभाल और रबी फसलों की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण होता है। 

प्रश्न : अगस्त माह में कीटों का कितना खतरा होता है ?

उत्तर : अगस्त माह में खासकर खरीफ की फसलों में कीटों का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि बारिश और नमी के कारण कीटों और बीमारियों को पनपने का अनुकूल माहौल मिल जाता है। 

प्रश्न : अगस्त माह में कीटों से बचाव के क्या उपाय हैं ?

उत्तर : अगस्त महीने में फसलों को कीटों से बचाने के लिए, किसानों को समय पर फसल चक्रण, रोगरोधी किस्मों का उपयोग, बीजोपचार और उचित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए।

धान की खेती को प्रभावित करने वाले कीट व रोग और इनकी रोकथाम
धान की खेती को प्रभावित करने वाले कीट व रोग और इनकी रोकथाम

भारत में धान की खेती या चावल की खेती एक प्रमुख फसल है। यह खरीफ (मानसून) के मौसम में उगाई जाती है और इसके लिए बेहतरीन जलधारण क्षमता वाली मिट्टी, जैसे कि चिकनी या मटियार दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।

सिंचाई की शानदार व्यवस्था और प्रबंधन के साथ ज्यादातर मिट्टी में धान की खेती कर अच्छी-खासी उपज प्राप्त की जा सकती है।

भारत के अंदर धान एक प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है। धान में कई कीटों से हानि का खतरा होता है। कुछ सामान्य कीट जो धान की फसलों को हानि पहुंचा सकते हैं, उनमें स्टेम बोरर, लीफ फोल्डर, ब्राउन प्लांट हॉपर और चावल के कीड़े शम्मिलित हैं। 

इन कीटों से फसलीय सुरक्षा के लिए किसान सांस्कृतिक प्रथाओं, जैविक नियंत्रण और रासायनिक नियंत्रण जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग कर सकते हैं।

धान में लगने वाले प्रमुख कीट ?

धान को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख कीट निम्नलिखित हैं :-

भूरा फुदका कीट / ब्राउन प्लांट हॉपर (बी.पी.एच)

  • भूरा फुदका कीट हल्के भूरे रंग का होता है, जो पौधों के निचले भाग या मिट्टी के आस-पास पाए जाते हैं। भूरा फुदका कीट / ब्राउन प्लांट हॉपर कीट निम्नलिखित तरीके से फसल को नुकसान पहुँचाता है:- 
  • भूरा फुदका कीट पौधों के तने एवं पत्तियों का रस चूसते हैं।
  • भूरा फुदका कीट प्रभावित पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह पर काले रंग के फफूंद दिखाई देते हैं। 
  • काले रंग के फफूंद से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में काफी बाधा आती है और पौधे सूखने लगते हैं।
  • भूरा फुदका कीट का प्रकोप रोपाई के 80 से 90 दिनों बाद बालियों में दाने भरने के समय दिखाई पड़ता है।
  • भूरा फुदका कीट से प्रभावित पौधे काफी तीव्रता से सूखने लगते हैं, फलस्वरूप पैदावार में काफी कमी आती है।

रोकथाम 

  • नियमित अंतराल पर फसल का निरीक्षण करें और कीट की उपस्थिति को मापें।
  • खेत को खरपतवारों से मुक्त रखने से कीट का प्रकोप कम होता है।
  • अधिक मात्रा में यूरिया का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे कीट की वृद्धि हो सकती है।
  • कीटनाशक दवाओं को पौधों के निचले भाग में ही छिड़काव करें।
  • इसके लिए एसिटामिप्रिड 20% SP: 20 से 40 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL: 40 से 50 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • बुप्रोफेजीन 23.10% + फिप्रोनिल 3.85 SC: 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

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पत्ती लपेटक कीट / लीफ फोल्डर

  • यह कीट पीले से हरे रंग का होता है। समूह में धान की पत्तियों पर अंडे देते हैं, जिससे सुंडियां निकलती हैं।
  • पत्तियों के मुलायम हिस्सों को खाकर पत्तियों को किनारे से मुड़ने लगती है।
  • पत्तियों को अंदर से खुरच कर खाते हैं और उनका रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां सफेद हो जाती हैं।
  • पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है।
  • पौधे का विकास रुक जाता है और अंत में पौधा कमजोर होकर नष्ट हो जाता है।

रोकथाम 

  • अगर संभव हो तो कीट के अंडों के समूह को नष्ट कर दें।
  • खेत में खरपतवारों का नियंत्रण रखें, जिससे कीटों का आक्रमण कम हो सके।
  • थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसीयर): 40-80 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% E.C (देहात सी स्क्वायर): 250-400 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • लम्ब्डासाइलोथ्रिन 5% E.C (सिंजेंटा कराटे): 100 मिलीलीटर प्रति 200-250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

तना छेदक (राइस स्टेम बोरर)

  • तना छेदक पत्तियों और तनों को खा कर उनको अंदर से खोखला बना देते हैं, जिससे पौधे पीले पड़ जाते हैं।
  • तना छेदक कीट के संक्रमण से पौधों में बालियां नहीं निकलती हैं।
  • तना छेदक की लार्वा धान के टिलर्स को खाते हैं, जिससे फसल में 'डेड हर्ट' या 'सूखने' जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
  • धान में ज्यादा नाइट्रोजन उर्वरक और बुवाई में देरी की वजह तना छेदक कीट की संख्या बढ़ सकती है।

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रोकथाम 

देहात मैक्सियन (थियामेथोक्सम 1% + क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.5% जीआर) दवा को प्रति एकड़ खेत में 2400 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें। इसको पानी में मिलाकर धान की फसल पर एक समान रूप से छिड़काव करें। 

देहात कारटैप एस.पी (कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP) दवा को प्रति एकड़ धान के खेत में 7.5 से 10 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें। 

क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% E.C (देहात सी स्क्वायर): 250-400 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें। अलांटो (थियाक्लोप्रिड 21.7% SC ) दवा प्रति एकड़ धान के खेत में 200 मिली प्रति एकड़ घोलकर बराबर रूप से स्प्रे करें।

गंधी बग

गंधी बग खेत में दुर्गंध पैदा करता है। शिशु एवं वयस्क कीट दानों में दूधिया अवस्था में दूध चूसते हैं। बालियों में दाने नहीं बन पाते और वे पोचे रह जाते हैं।

दानों पर किए गए छेदों के चारों ओर काले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। गंधी बग कीट से प्रभावित अनाज भुरभुरा हो जाता है। प्रभावित दानों में छेद के साथ काले रंग के धब्बे हो जाते हैं। 

गंधी बग के प्रकोप के लिए खरपतवार, गर्म मौसम, और लगातार बारिश अनुकूल रहते हैं। यह कीट आमतौर पर वर्षा आधारित और ऊपरी भूमि वाले धान में ज्यादा पाए जाते हैं।

नियंत्रण

एसीफेट 75 एस.पी दवा को 266 से 400 ग्राम प्रति एकड़ पानी में मिलाकर छिड़काव करें। नीम का तेल 10,000 पी.पी.एम 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें। थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसीयर): 40-80 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें। 

वोलियाम फ्लेक्सी (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 8.8% + थियामेथोक्सम 17.5% w/w एससी) दवा को 240 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में अच्छी तरह मिला कर छिड़काव करें।

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रस चूसक कीट

पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं। पत्तियां ऊपर या नीचे की तरफ मुड़ने लगती है। पौधों के विकास में बाधा आती है।

नियंत्रण

थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसियर): 200 लीटर पानी में 100 ग्राम दवा को मिलाकर छिड़काव करें। एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा माणिक): प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम दवा को मिलाकर छिड़काव करें।

थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल): 80 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें। 

क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% EC (देहात सी-स्क्वायर): 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

धान हिप्सा कीट

पौधों की पत्तियों को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां बन जाती हैं और पत्तियां सूखने लगती हैं।

रोकथाम 

प्रभावित पत्तियों और तनों को नष्ट कर दें। मेढ़ों से खरपतवार निकाल कर नष्ट कर दें। नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का अधिक प्रयोग न करें। तफाबान (क्लोरोपाइरीफॉस 20% ईसी) दवा को धान में 600 से 750 मि.ली प्रति एकड़ छिड़काव करें।

कैल्डन 50 SP (कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP) दवा को प्रति एकड़ धान के खेत में 7.5 से 10 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें।



प्रश्न : धान को हानि पहुँचाने वाले प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं ?

उत्तर : धान की फसल में स्टेम बोरर, पत्ती फोल्डर, ब्राउन प्लांट हॉपर, जो पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

प्रश्न : धान का मुख्य रोग क्या है ?

उत्तर : धान का मुख्य रोग ब्लास्ट रोग है। 

प्रश्न : धान की प्रमुख किस्में कौन कौन सी है ?

उत्तर : धान की कुछ प्रमुख किस्मों में बासमती, पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1509, जया, रत्ना, आई.आर. 36, पंकज, जगन्नाथ और स्वर्ण शामिल हैं।  

काली मिर्च के औषधीय लाभ क्या हैं ?
काली मिर्च के औषधीय लाभ क्या हैं ?

भारत के अंदर हर घर में काली मिर्च का प्रयोग जरूर होता है। काली मिर्च को मसालों की रानी माना जाता है। भारतीय रसोई में सब्जी सूखी हो या रसेदार या फिर नमकीन से लेकर सूप आदि तक ज्यादातर व्यंजन में काली मिर्च का प्रयोग किया जाता है। 

भोजन में काली मिर्च का इस्तेमाल केवल स्वाद के लिए नहीं किया जाता है। यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभदायक है। काली मिर्च एक अच्छी औषधि भी है। 

काफी लंबे समय से आयुर्वेद में इसका औषधीय प्रयोग होता रहा है। वास्तव में काली मिर्च के औषधीय गुणों के कारण ही इसे भोजन में शामिल किया जाता है। काली मिर्च का प्रयोग रोगों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।

काली मिर्च क्या है ?

काली मिर्च एक औषधीय मसाला है। लेकिन इसको काली मिर्च भी कहते हैं। यह दिखने में थोड़ी छोटी, गोल और काले रंग की होती है। काली मिर्च का स्वाद काफी तीखा होता है। 

इसकी लता बहुत समय तक जीवित रहने वाली होती है। यह पान के जैसे पत्तों वाली, बहुत तेजी से फैलने वाली और कोमल लता होती है। इसकी लता मजबूत सहारे से लिपट कर ऊपर बढ़ती है। काली मिर्च को प्रमाथी द्रव्यों में प्रधान माना गया है। 

काली मिर्च के क्या लाभ है ?

  • काली मिर्च के काफी अधिक औषधीय लाभ हैं, जो कि निम्नलिखित हैं :- 
  • यह वात और कफ को नष्ट करती है और कफ तथा वायु को निकालती है। 
  • यह भूख बढ़ाती है, भोजन को पचाती है, लीवर को स्वस्थ बनाती है और दर्द तथा पेट के कीड़ों को खत्म करती है। 
  • यह पेशाब बढ़ाती है और दमे को नष्ट करती है। 
  • तीखा और गरम होने के कारण यह मुँह में लार पैदा करती है और शरीर के समस्त स्रोतों से मलों को बाहर निकाल कर स्रोतों को शुद्ध करती है। 

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भोजन में इस्तेमाल करने से होने वाले लाभ 

काली मिर्च का भोजन में प्रयोग करने से भी बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। उदाहरण के लिए ठंड के दिनों में बनाए जाने वाले सभी पकवानों में काली मिर्च का उपयोग किया जाता है, ताकि ठंड और गले की बीमारियों से रक्षा हो सके। 

काली मिर्च नपुंसकता, रजोरोध यानी मासिक धर्म के न आने, चर्म रोग, बुखार तथा कुष्ठ रोग आदि में लाभकारी है। आँखों के लिए यह विशेष हितकारी होती है। जोड़ों का दर्द, गठिया, लकवा एवं खुजली आदि में काली मिर्च में पकाए तेल की मालिश करने से बहुत लाभ होता है।

 

प्रश्न : काली मिर्च से वर्ष में कितनी बार उपज हांसिल कर सकते हैं ?

उत्तर : एक वर्ष में इसकी लगभग दो उपज प्राप्त होती हैं। पहली उपज अगस्त-सितम्बर में और दूसरी मार्च-अप्रैल में। 

प्रश्न : काली मिर्च प्रमुख रूप से कितने प्रकार की होती है ?

उत्तर : बाजारों में दो प्रकार की मिर्च बिकती है पहली सफेद मिर्च और दूसरी काली मरिच। 

प्रश्न : काली मिर्च से प्रमुख फायदे क्या होते हैं ? 

उत्तर : काली मिर्च से पाचन में सुधार, वजन घटाने में मदद, सर्दी-जुकाम से राहत और मस्तिष्क स्वास्थ्य को बढ़ावा देने जैसे लाभ प्रदान करती है।

ट्रैक्टर के इतिहास से जुड़ी बेहद रोचक जानकारी
ट्रैक्टर के इतिहास से जुड़ी बेहद रोचक जानकारी

ट्रैक्टर कृषि क्षेत्र में उपयोग होने वाला महत्वपूर्ण कृषि यंत्र है। यह एक कम गति वाला वाहन है। किसान आमतौर पर भारी भार ढोने और खेतों में हल जैसी मशीनों को खींचने के लिए ट्रैक्टर का उपयोग करते हैं। भारी भार क्षमता के कारण इनका उपयोग अक्सर खनन कार्यों और निर्माण में किया जाता है।

किसान साथियों ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम जानेंगे दुनिया के पहले ट्रैक्टर और भारत के पहले ट्रैक्टर के बारे में आपको जानकारी प्रदान करेंगे। 

हालांकि, आजकल ट्रैक्टर का इस्तेमाल आधुनिक कृषि में प्रमुख उपकरण के तौर पर किया जाता है। इसकी मदद से कठिन काम भी काफी आसानी से किया जा सकता है। 

इसके अलावा ट्रैक्टर कृषि उपकरण खींचने का काम भी करता है, जिसमें सामान लदी ट्राली आदि शामिल है। 

ट्रैक्टर कितने प्रकार का होता है ?

सभी ट्रैक्टर की बनावट में तीन भाग होते हैं एक इंजन और उसके साधन, पावर ट्रांसमिटिंग सिस्टम, चेजिस। ट्रैक्टर दो प्रकार के होते हैं। इसमें से एक चक्र ट्रैक्टर और दूसरा ट्रैक ट्रैक्टर है। 

चक्र टैक्टर का इस्तेमाल कृषि से जुड़े कार्यों में किया जाता है। ये ट्रैक्टर तीन या चार पहिए वाला होता। ट्रैक टैक्टर भारी कामों के लिए उपयोग किया जाता है, जिसमें बांध और औद्योगिक के कार्य शामिल हैं। कृषि क्षेत्र में इसका कम उपयोग किया जाता है। 

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सबसे पहला ट्रैक्टर कब बना था ?

सबसे पहले शक्ति-चालित कृषि उपकरण 19वीं शताब्दी के आरम्भ में आए थे। इनके पहिओं पर एक भाप का इंजन हुआ करता था। यह बेल्ट की मदद से कृषि उपकरण को चलाता था। 

पहले भाप इंजन का आविष्कार 1812 में रिचर्ड ट्रेविथिक ने किया था, जिसे बार्न इंजन के तौर पर जाना जाता था। इसका इस्तेमाल मकई निकालने के लिए किया जाता था। 

1903 में दो अमरीकी चार्ल्स डब्ल्यू. हार्ट और चार्ल्स एच. पार्र ने दो-सिलेंडर वाले ईंधन से चलने वाले इंजन का उपयोग करते हुए सफलतापूर्वक पहला ट्रैक्टर बनाया था, जिसका इस्तेमाल भी काफी हुआ। इसके बाद 1916-1922 के बीच लगभग 100 से अधिक कंपनियां कृषि ट्रैक्टर का उत्पादन कर रही थी। 

जॉन डीयर

जॉन डीयर ने पहला स्टील हल 1837 में बनाया और 1927 तक पहले ट्रैक्टर और स्टील के हल का तालमेल तैयार किया। इसका इस्तेमाल उत्पादकता को बढ़ाने और खेतों को तीन पंक्तियों में जोतने के लिए किया गया। 1930 ट्रैक्टरों में स्टील के पहिये होते थे। 

लेकिन, बाद में रबर के पहिये लगाये गए और इसके बाद जॉन डीयर ट्रैक्टर के मॉडल ‘आर’ को पेश किया गया था। इसकी शक्ति 40 हॉर्सपावर से भी ज्यादा थी। ये पहला डीजल ट्रैक्टर भी था। इसी के साथ जॉन डीयर किसानों को ट्रैक्टर की पेशकश करने वाले पहले निर्माता बन गए।

भारत में पहला ट्रैक्टर

विश्वभर में भारत को कृषि प्रधान देश के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भारत में ट्रैक्टर की शुरुआत स्वतंत्रता के बाद ‘हरित क्रांति’ से हुई थी। 

जहां ट्रैक्टर का इस्तेमाल काफी तेजी से हुआ था। भारत ने ट्रैक्टरों का निर्माण 1950 और 1960 के दशक में शूरू किया था।



प्रश्न : दुनिया का सबसे पहला ट्रैक्टर कब और कहाँ बना था ?

उत्तर : 1892 में जॉन फ्रोलिक ने एक ऐसा ट्रैक्टर बनाया जो भाप इंजन से चलता था और उसे "फ्रोलिक का ट्रैक्टर" कहा जाता था। 

प्रश्न : ट्रैक्टर के कितने भाग होते हैं ?

उत्तर : सभी ट्रैक्टर की बनावट में एक इंजन और उसके साधन, पावर ट्रांसमिटिंग सिस्टम और चेजिस तीन भाग होते हैं।

प्रश्न : भारत के अंदर सबसे पहला ट्रैक्टर कब बना था ? 

उत्तर : भारत ने ट्रैक्टरों का निर्माण 1950 और 1960 के दशक में शूरू किया था।