अत्यधिक तापमान के कारण इस समय सरसों की फसल में पहली सिंचाई जल्द करने पर कालर रॉट नामक बीमारी का खतरा बढ़ गया है, जिससे फसल झुलसने की संभावना बन रही है।
इस समस्या पर बात करते हुए भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. पी. के. राय ने किसानों को सलाह दी कि वे सरसों की फसल में पहली सिंचाई करते समय भूमि में नमी की स्थिति को ध्यान में रखें और केवल आवश्यकता अनुसार ही सिंचाई करें।
स्ट्रेप्टोमाइसिन 200 पीपीएम (200 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी) का एवं कार्बेन्डाजिम का 2 प्रतिशत घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि छिड़काव संक्रमित भाग पर अवश्य पहुँचे।
सभी किसान भाई अपनी फसल की सुरक्षा के लिए इन निर्देशों का पालन करें और उचित सावधानी बरतें।
किसी भी जानकारी या सहायता के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क करें।
जारीकर्ता: भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान, सेवर, भरतपुर
धान भारत की प्रमुख खरीफ फसलों में से एक है, जो मानसून के मौसम में जून से सितंबर के बीच उगाई जाती है।
भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में धान की महत्वपूर्ण भूमिका है और यह लाखों किसानों के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है।
किसान मशीनों की मदद से अपनी फसल कटाई को कम लागत और वक्त में अच्छे तरीके से कर रहे हैं।
इससे उत्पादकता काफी बढ़ती है, श्रम लागत में कमी आती है और किसान की आय में बढ़ोतरी होती है।
इस प्रकार के समस्त सकारात्मक परिणामों की वजह से धान की मशीनीकृत कटाई किसानों के लिए एक वरदान सिद्ध हो रही है।
धान की फसल की कटाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज का सीधा संबंध होता है।
धान की कटाई के लिए कृषि उपकरणों और मशीनों का उपयोग किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो रहा है।
पारंपरिक तरीकों की तुलना में, मशीनीकृत कटाई प्रक्रिया सुविधाजनक, तेज और कुशल है।
आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में कंबाइन हार्वेस्टर और मैकेनाइज्ड धान काटने वाली मशीनों का उपयोग काफी बढ़ गया है,
जो इस बात का सुबूत है कि किसान इन उपकरणों की मदद से अपनी फसल कटाई को बेहतर ढंग से कर रहे हैं।
इससे उत्पादकता बढ़ती है, श्रम लागत में कमी आती है और अंतत: किसानों की आय में वृद्धि होती है।
इन सकारात्मक परिणामों के कारण, धान की मशीनीकृत कटाई किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है।
सबसे पहले हम जानेंगे रीपर होता क्या है। दरअसल, रीपर का उपयोग धान की फसल को काटने के लिए किया जाता है।
खरीफ के मौसम में जब धान की फसल पूर्णतय पक जाती है, तब रीपर का उपयोग छोटे और मध्यम आकार के खेतों में किया जा सकता है।
ये मशीनें अधिक किफायती होती हैं और उन क्षेत्रों में उपयोगी होती हैं जहां बड़े कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग नहीं किया जा सकता।
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ट्रैक्टर माउंटेड वर्टिकल कन्वेयर रीपर मशीन में 76 मिमी पिच की रेसिप्रोकेटिंग कटर बार असेंबली, सात फसल रो डिवाइडर्स, और दो वर्टिकल कन्वेयर बेल्ट्स शामिल होते हैं,
जिनमें लुग्स, प्रेशर स्प्रिंग्स, पुली और गियरबॉक्स पावर ट्रांसमिशन सिस्टम के लिए लगे होते हैं।
फसल रो डिवाइडर्स कटर बार असेंबली के सामने फिट किए जाते हैं और स्टार व्हील्स इन्हें ऊपर माउंट किया जाता है।
मशीन को ट्रैक्टर के सामने माउंट किया जाता है और इसकी शक्ति ट्रैक्टर के PTO से इंटरमीडियेट शाफ्ट और कनेक्टिंग शाफ्ट के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
मशीन की ऊंचाई ट्रैक्टर की हाइड्रोलिक्स द्वारा पुली और स्टील रस्सियों की सहायता से नियंत्रित की जाती है।
कटर बार द्वारा फसल काटने के बाद, इसे वर्टिकल स्थिति में रखा जाता है और लुग्ड बेल्ट कन्वेयर द्वारा मशीन के एक तरफ पहुंचाया जाता है,
जहां यह मशीन की दिशा के विपरीत एक विंडरो में गिरती है। इसकी विशेषताओं में सात स्टार व्हील्स, 197-350 किग्रा वजन और 35/26.5 hp/kW पावरवाला ट्रैक्टर शामिल हैं।
यह मशीन चावल, गेहूं और धान की फसलों की कटाई और विंडरोइंग के लिए उपयोग की जाती है।
भारतीय बाजार में ट्रैक्टर माउंटेड वर्टिकल कन्वेयर रीपर मशीन की कीमत तकरीबन 45,000 रुपये हो सकती है।
गेहूं की बुवाई का समय चल रहा है। गेहूं की बुवाई में संरक्षण मशीनों की अहम भूमिका होती है।
यह मशीनें मिट्टी, पानी और अन्य संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने में मदद करती हैं, जिससे पर्यावरण पर काफी कम प्रभाव पड़ता है।
साथ ही, किसानों की लागत में भी कम होती है। संरक्षण कृषि का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना और बुवाई की प्रक्रिया को अधिक टिकाऊ बनाना है।
प्रमुख संरक्षण मशीनों की जानकारी दी जा रही है, जो गेहूं की बुवाई में काफी बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती हैं।
जीरो टिल सीड ड्रिल एक बेहद शानदार कृषि उपकरण है, जिसका उपयोग बिना जुताई किए सीधे बिजाई के लिए किया जाता है।
यह मशीन विशेष रूप से धान की कटाई के बाद खेत तैयार किए बिना गेहूं और अन्य फसलों की बुवाई में उपयोगी होती है।
इससे मृदा की संरचना बरकरार रहती है। साथ ही, समय की बचत होती है और फसल चक्र तेजी से पूरा होता है।
इसके लिए 40-55 एचपी ट्रैक्टर उत्तम होता है। यह यंत्र बेहतर अंकुरण के लिए सटीक गहराई और दूरी पर बीज बोने का कार्य करता है।
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यह कृषि यंत्र जुताई की आवश्यकता को समाप्त कर श्रम और समय की बचत करता है। पराली जलाने की समस्या का समाधान, जिससे वायु प्रदूषण में कमी होती है।
साथ ही, यह मिट्टी की नमी और उर्वरता को संरक्षित रखता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में भी कमी आती है।
सुपर सीडर एक आधुनिक कृषि मशीन है, जिसका इस्तेमाल गेहूं की बुवाई के दौरान फसल अवशेषों को मृदा में मिलाने के साथ-साथ बीज बोने के लिए किया जाता है।
यह मशीन विशेष रूप से धान की फसल के बाद खेतों में बचे हुए अवशेषों (पराली) को जलाने की समस्या का समाधान करती है। इसके लिए 45-60 एचपी ट्रैक्टर की आवश्यकता पड़ती है।
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सुपर सीडर धान की पराली को खेत में ही काटकर मिट्टी में मिलाता है। यह फसल अवशेषों को हटाए बिना गेहूं के बीजों की बुवाई करता है।
बीज की गहराई और दूरी सही बनाए रखता है, जिससे फसल की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
साथ ही, श्रम और समय की बचत, बेहतर फसल उत्पादन, पराली जलाने की आवश्यकता समाप्त करना, जिससे प्रदूषण में कमी, पर्यावरण के अनुकूल टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन, मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार भी शामिल हैं।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 70% प्रतिशत जनसँख्या की आजीविका का प्रमुख साधन कृषि है।
कृषि उत्पादन में बीज का काफी महत्वपूर्ण योगदान है। बीज साफ, स्वस्थ और खरपतवारों से रहित होना चाहिए।
उत्तम गुणवत्ता वाला बीज सामान्य बीज की अपेक्षाकृत करीब 15 से 20% अधिक उत्पादन देता है।
इसलिए शुद्ध और स्वस्थ प्रमाणित बीज अच्छी पैदावार का आधार होता है। इससे समय व पैसे की बचत होती है।
उन्होंने कहा कि गेहूं के बीज को फफूंदनाशक, कीटनाशक, जैविक खाद से उपचारित करके ही बोएं।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, बीज जनित व मिट्टी जनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम वीटावैक्स या 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम थीरम या 2.5 ग्राम मैन्कोजैब नामक दवा से बोने से पहले प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। उसके बाद ही खेत के अंदर उसकी बिजाई करें।
बीज की माभा जमीन की दशा, बोने का समय व विधि पर निर्भर करती है। गेहूं की बिजाई के लिए 40 किलो बीज प्रति एकड़ काफी है।
छिड़काव विधि में 50 किलो, पछेती बिजाई के लिए 60 किलो प्रति एकड़ होनी चाहिए।
बिजाई 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक का समय सबसे अच्छा होता है। बिजाई के समय औसत तापमान 22 डिग्री सेल्सिय होना चाहिए।
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कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, किसानों को सदैव हैप्पी सीडर या सीड ड्रिल के द्वारा ही बिजाई करनी चाहिए।
लंबी बढ़वार वाली किस्मों की बिजाई 6 से 7 सेमी गहरी करें। अन्य किस्मों को 5 से 6 सेमी गहरी बिजाई करें।
समय पर बिजाई के लिए 2 खूड़ों का फसला 20 सेमी रखें, जबकि पछेती बिजाई के लिए दो खूड़ों का फासला 18 सेमी तक रखें।
गेंहू की बिजाई के लिए डब्ल्यू एच-1105, एचडी- 2967, एचडी-3086, एचडी-3326, डोबी डब्ल्यू-187 (करण वंदना), डीबी डब्ल्यू-222 (करण नरेंद्र), डब्ल्यू एच-1184, पीबी डब्ल्यू-826 आदि किस्में शानदार हैं।
अगेती बिजाई के लिए किस्में- डीबी- 303 (करण वैष्णवी, डब्ल्यू एच-1270, डब्ल्यू एच-1080, डब्ल्यूएच- 11422 किस्मे हैं।
वहीं, पछेती बिजाई के लिए किस्में- एचडी-3059 (पूषा पछेती), एचडी-3117, एचडी-3167, एचडी-3018, राज-3765, राज-3077, एचडी-2864, डब्ल्यू एच-1124, डब्ल्यू एच-1021, डीबी डब्ल्यू-173 किस्म हैं।
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केआरएल-213, केआरएल-210, डीबी डब्ल्यू-187 (करण वंदना), डीबी डल्ब्यू-222 (करण नरेंद्र) व डीबी डब्ल्यू-333 गेहूं की बहुत ही बढ़िया किस्म है।
इन किस्मों की बिजाई करके किसान काफी शानदार उपज प्राप्त कर सकते हैं। ये तीनों किस्में गेंहू व जौ अनुसंधान करनाल द्वारा विकसित की गई हैं।
किसान भाइयों ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आगे हम आपको बताएंगे भारतीय कृषि में प्रमुखता से उपयोग किए जाने वाले कुछ कृषि यंत्रों के बारे में।
चलिए जानते हैं, ऐसे कौन-से कृषि यंत्र हैं, जिनका भारतीय किसान विशेष तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
क्या आपको अपनी मिट्टी में ताज़ी हवा भरने की ज़रूरत है? GreenSystem का सबसॉइलर बस यही करता है।
यह मिट्टी को हवादार बनाता है और जड़ों के विकास को बढ़ावा देता है, जो मजबूत फसल वृद्धि और भरपूर फसल के लिए आवश्यक है।
अपनी पंक्ति की फसलों के लिए बिना किसी परेशानी के सहजता से साफ-सुथरी मेड़ें बनाने के बारे सोचिए।
यहीं पर रिजर काम आता है, जो गन्ना, आलू, मिर्च और केले को उनकी विशेष रूप से डिजाइन की गई पंक्तियों में सही महसूस कराता है। यह प्रत्येक पौधे को उसका VIP स्थान देने जैसा है!
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GreenSystem कल्टीवेटर मिट्टी की तैयारी के मास्टर शेफ की तरह है। यह मिट्टी को पूर्णता से मिलाता और मिश्रित करता है,
जिससे यह सुनिश्चित होता है कि आपके पौधों को स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। यह आपकी फसलों के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने जैसा है!
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पानी अनमोल है, खासकर फसलों के लिए। GreenSystem का चेक बेसिन फॉर्मर कुशल सिंचाई प्रणाली बनाकर पानी बचाने में मदद करता है,
जिससे यह सुनिश्चित होता है कि आपके पौधे अपने विकास चक्र के दौरान पानी की कमी महसूस न करें और खुशहाल रहें।
क्या आपको अपनी भूमि की तैयारी के लिए शक्ति बढ़ाने की आवश्यकता है? GreenSystem पावर हैरो आपकी मदद के लिए यहाँ है।
यह मिट्टी के ढेरों को तोड़ता है, अच्छी बीजभूमि तैयार करता है और एक भरपूर फसल वाले मौसम के लिए मंच तैयार करता है। यह आपके खेत को टर्बोचार्ज देने जैसा है!
जुताई और बुआई के अलग-अलग कार्यों को अलविदा कहें। सुपर सीडर उन्हें एक समग्र क्रियान्वयन में जोड़ता है,
जिससे इष्टतम फसल विकास के लिए सटीक रोपण सुनिश्चित करते हुए आपका समय और प्रयास बचता है।
GreenSystem के बीजारोपण उपकरण पादप पोषणविदों की तरह हैं। वे बीज और उर्वरकों का सही मिश्रण प्रदान करते हैं, जिससे आपकी फसलों को उत्तम फसल के लिए सबसे अच्छी शुरुआत मिलती है।
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GreenSystem वैक्यूम प्लांटर की विशेषता परिशुद्धता (प्रिसिजन) है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बीज समान विकास के लिए बिल्कुल सही दूरी पर हो, जिससे यह विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए आदर्श बन जाता है।
रोटो सीडर आपकी खेती का बहुउपकरण है। यह जुताई और बिजाई के कार्यों को सरल बनाता है, जिससे रोपण का मौसम आसान हो जाता है और आपके खेत की दक्षता अधिकतम हो जाती है।
किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, खेती की लागत को कम करना।
जब खेती में मेहनत, समय और धन की बचत होगी, तब ही किसान मुनाफा कमा पाएंगे।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ही किसानों को आधुनिक खेती से जोड़ा जा रहा है।
कई ऐसे आधुनिक कृषि यंत्र और तकनीकें विकसित की गई हैं, जो कम समय में ही शानदार उपज प्रदान करती हैं।
वहीं, अब खेती में कृषि उपकरणों के इस्तेमाल को भी बढ़ावा मिल रहा है। वैसे तो खेती के लगभग हर काम के लिए एक्सपर्ट्स ने कृषि यंत्र बनाए हैं।
लेकिन, आज हम आपको ट्रैक्टर चॉइस के इस लेख में पावर टिलर मशीन के बारे में जानकारी देंगे।
किसान भाई आधुनिक मशीनों की सहायता से कृषि क्षेत्र में मेहनत और समय की बचत के साथ अपने काम को कम खर्च में पूर्ण कर सकते हैं।
जहां पहले किसानों को खेत जोतने के लिए बैल या ट्रैक्टर का सहारा लेना पड़ता था, जो कि महंगा साबित होता था।
लेकिन, अब पावर टिलर मशीन एक नवीन विकल्प के रूप में उनके लिए बाजार में उपलब्ध है।
धनबाद के एक कृषि उपकरण दुकान के कर्मचारी मोहम्मद जावेद अंसारी ने मीडिया को बताया कि यह पावर टिलर मशीन किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हो रही है।
उन्होंने कहा कि इस मशीन से खेती का काम बेहद आसान और कम मेहनत में पूरा किया जा सकता है।
चाहे जमीन कितनी भी सूखी क्यों न हो, यह मशीन हर प्रकार की जमीन को सहजता से जोत सकती है।
वह भी पेट्रोल से चलने के कारण इसे चलाना बेहद सुविधाजनक है। इस मशीन की एक विशेषता यह भी है कि इसकी ऊंचाई अधिक नहीं है, जिससे इसे कहीं भी स्टोर किया जा सकता है।
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अगर हम इस पॉवर टिलर मशीन की कीमत की बात करें तो यह दो प्रकार से बाजार में उपलब्ध है।
एक 39,000 रुपए का मॉडल और एक 68,000 रुपए का मॉडल। आगे कहा कि दोनों ही मॉडल्स निरंतर 4 घंटे तक कार्य कर सकते हैं,
जिससे किसानों का समय और परिश्रम दोनों की काफी बचत होती है।
कृषि क्षेत्र में आधुनिकता और किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह पावर टिलर मशीन कृषकों के मध्य काफी तीव्रता से लोकप्रिय हो रही है।
इसके छोटे आकार तथा किफायती मूल्य की वजह से छोटे और मंझोले किसान भी इसे सहजता से खरीद सकते हैं।
आधुनिक खेती में किसानों द्वारा कृषि यंत्रों का उपयोग काफी बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
अगर हम यह कहें कि पारंपरिक बैल और हल का उपयोग लगभग बंद हो गया है, तो शायद यह कहना गलत नहीं होगा।
क्योंकि, किसानों के खेतों में आधुनिक कृषि यंत्रों का दबदवा साफ तौर पर दिखाई देता है। कृषि उपकरण खेती में सकारात्मक सुधार के लिए एक बेहद जरूरी यंत्र हैं।
यह किसानों को कम समय में और अधिक दक्षता के साथ अधिक फसल उगाने में सहायता करते हैं।
इसमें ट्रैक्टर और हार्वेस्टर से लेकर पशु चारा मिक्सर या खेत-भर में खरपतवार हटाने वाले एवं अन्य उपकरण भी शामिल हैं।
किसानों को आमतौर पर अपने उपकरणों को सर्दियों के लिए तैयार करने और ठंड के महीनों के दौरान आवश्यक दीर्घकालिक भंडारण के लिए तैयार करने के लिए निम्नलिखित कार्य करने होते हैं।
मौसम के दौरान बैटरियों को चार्ज रखना या उन्हें डिस्कनेक्ट करने के साथ साथ भारी उपकरणों की सफाई बेहद जरूरी है।
इसके अलावा कीटनाशक अनुप्रयोग उपकरण की निकासी और सफाई और आवश्यकतानुसार एंटीफ्रीज और हाइड्रोलिक तरल पदार्थों की जांच करना और उन्हें बदलना भी अहम है।
यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है, कि उपकरण में इस्तेमाल किए जाने वाले तरल पदार्थ साफ सुरक्षित हों।
इन तरल पदार्थों को कुछ अंतराल पर नए तरल पदार्थों से बदला जाना चाहिए, जैसे कि जब वे खराब हो जाते हैं या उनमें प्रदूषण जमा हो जाता है।
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लुब्रिकेशन और अन्य निवारक रखरखाव कार्यों पर दिशा-निर्देशों के लिए आमतौर पर दिए गए ऑपरेटर के मैनुअल का उपयोग करें।
सभी आवश्यक चलने वाले भागों का निरीक्षण करें और उन्हें लुब्रिकेट करें। हवा, तेल और ईंधन फिल्टर सभी को नियमित रूप से बदला जाना चाहिए।
उन्हें नियमित रूप से जाँचें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे बंद न हों और जरूरत पड़ने पर उन्हें बदल दें।
सभी घूमने वाले भागों को नियमित रखरखाव की जरूरत पड़ती है, जिसमें पहिए, पुली, शाफ्ट और बीयरिंग शामिल हैं।
यदि वे बहुत अधिक घिस गए हैं या क्षतिग्रस्त हो गए हैं तो उन्हें बदलना आवश्यक है।
सुनिश्चित करें कि आपके अंशांकन अंतराल सभी उपकरणों के लिए ऑपरेटर मैनुअल में दिए गए मार्गदर्शन का पालन करते हैं।
सभी उपकरणों का नियमित रूप से निरीक्षण करना जरूरी है, ताकि किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो जो इसके प्रदर्शन को खराब कर सकती है।
घिसाव, जंग, रिसाव, क्षरण और किसी भी अन्य क्षति के संकेतों पर ध्यान दें, जो मशीन के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है।
रबी सीजन चल रहा है किसान गेंहू की बुवाई के लिए तैयारियां कर रहे हैं। ऐसे में ट्रैक्टरचॉइस आपके लिए लेकर आया है एक ऐसी मशीन की जानकारी जो किसानों के कई फायदे एक साथ करा सकती है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, पारंपरिक ढंग से गेहूं की बुवाई में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
परंतु, हैप्पी सीडर मशीन से जीरो टिलेज विधि से गेहूं की बुवाई की आवश्यकता नहीं होती है।
क्योंकि खेतों में धान की खेती के दौरान निर्मित नमी से गेहूं की बुवाई संपन्न हो जाती है।
धान की खेती के पश्चात गेहूं की बुवाई करने की योजना तैयार की जा रही हैं।
साथ ही, फसलों की कटाई के पश्चात खेतों को तैयार करने की दिक्कत से जूझ रहे हैं, तो आज हम आपको एक ऐसे कृषि यंत्र के बारे में बताने वाले हैं,
जिसके प्रयोग से खेतों को बगैर तैयार किए और कम पानी में भी गेहूं की खेती की जा सकती है।
हैप्पी सीडर मशीन के उपयोग खेतों को बंजर होने से बचाएगा और प्रति एकड़ 12 किलो बीज की जरूरत कम पड़ेगी।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, कि इस उपकरण का नाम हैप्पी सीडर रखा गया है, जो किसानों को काफी गुना अधिक लाभ दिलाने में सक्षम है।
सोने पर सुहागा इस बात का भी है, कि गेहूं बोने के दौरान हैप्पी सीडर मशीन से धान की पराली भी नहीं निकालनी पड़ती।
इसलिए खेतों को इसका सीधा लाभ मिलता है। दरअसल, खेत में रहने से पराली सड़ जाती है और उर्वरक बन जाती है, जो गेहूं के पौधों को पोषण देता है।
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हैप्पी सीडर मशीन साधारण सीड ड्रिल की भाँति ही है, जो प्रति एकड़ 10 किलो बीज की बचत करता है।
खेत के क्षेत्रफल के अनुसार आप इसको खरीद सकते हैं। इस मशीन में आधा इंच की ब्लेड या पंजी लगी होती है। धान के शेष बचे हुए डंठलों के मध्य गेहूं की बुवाई इस ब्लेड से सहज ही हो जाती है।
हैप्पी सीडर मशीन से बिजाई करने में प्रति एकड़ केवल 40 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है।
वहीं, परंपरागत बुवाई में 50 से 52 किलो बीज की जरूरत होती है। सिर्फ इतना ही नहीं, इसके द्वारा प्रति हेक्टेयर 30 से 35 लीटर तक डीजल की खपत को कम किया जा सकता है।
कृषि कार्यों को करने के लिए किसान को विभिन्न प्रकार के कृषि यंत्रों की जरूरत होती है। समस्त कृषि उपकरण या यंत्र खेती में अपनी भिन्न भूमिका निभाते हैं।
खेती में पावर टिलर मशीन को खास स्थान दिया जाता है। पावर टिलर मशीन के साथ जुताई, पडलिंग, बुवाई, रोपाई, समतलीकरण, कीटनाशक छिड़काव, खेत में सिंचाई, फसल कटाई और फसल ढुलाई जैसे कार्य सरलता से किए जा सकते हैं।
यदि आप एक किसान हैं और अपनी खेती के लिए शक्तिशाली पावर टिलर खरीदने का विचार बना रहे हैं, तो आपके लिए वीएसटी 95 डीआई इग्निटो पावर टिलर शानदार विकल्प साबित हो सकता है।
यह पावर टिलर 9 हॉर्स पावर जनरेट करने वाले 418 सीसी इंजन के साथ आता है।
वीएसटी का यह पावर टिलर शानदार क्वालिटी वाले एयर फिल्टर के साथ आता है, जो इंजन को धूल-मृदा से बचाने के साथ-साथ इंजन की जीवनावधि बढ़ाने का भी कार्य करता है।
VST 95 DI IGNITO पावर टिलर में आपको 6 लीटर क्षमता वाला फ्यूल टैंक देखने को मिल जाता है। इस पावर टिलर का कुल वजन 340 किलोग्राम है।
इसमें आपको Recoil (Manual) और Self-Start (Battery) स्टार्ट सिस्टम देखने को मिल जाता है। इस वीएसटी पावर टिलर को 2170 एमएम लंबाई और 880 एमएम चौड़ाई के साथ 1290 एमएम ऊंचाई में तैयार किया गया है।
VST 95 DI IGNITO Power Tiller में आपको Independent Dog Clutch हैंडल दिया गया है। इससे खेतों में घंटों कार्य करने के पश्चात भी किसान को कम से कम थकान महसूस होती है।
वीएसटी कपंनी ने अपने इस पावर टिलर में 08 (06- Forward & 02- Reverse) गियर वाला गियरबॉक्स दिया है।
यह पावर टिलर 2 speeds रोटरी के साथ आता है। वीएसटी की इस पावर टिलर मशीन में Hand Operated Internal Expanding Metallic Shoe Type ब्रेक्स दिए गए है, जो कृषि कार्य के दौरान टायर पर मजबूत पकड़ बनाए रखता है।
यह पावर टिलर Dry, Multi Friction Plate क्लच और Combination Of Constant & Sliding Mesh टाइप ट्रांसमिशन के साथ आता है।
वीएसटी 95 डीआई इग्निटो पावर टिलर को 340 एमएम चौड़ाई और 150 एमएम गहराई तक कटाई की जा सकती है। वीएसटी कंपनी का यह पावर टिलर 6.00 - 12, 4 PR टायर के साथ आता है।
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वीएसटी कंपनी ने अपने इस पावर टिलर की कीमत का निर्धारण किसानों की आर्थिक स्थिति और आवश्यकता को केंद्र में रखते हुए किया है।
भारतीय बाजार में वीएसटी 95 डीआई इग्निटो पावर टिलर की कीमत 1.65 लाख रुपये तय की गई है। वीएसटी कंपनी अपने इस पावर टिलर के साथ 1 साल की वारंटी मुहैय्या कराती है।
भारत कुसुम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारतीय कृषि क्षेत्र में कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और बिहार शामिल हैं।
भारत में मुख्य रुप से कुसुम के फल के बीजों से निकले तेल का इस्तेमाल खाना तैयार करने के लिए किया जाता है।
कुसुम के फल में विभिन्न तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। कुसुम का बीज, छिलका, पत्ती, पंखुड़ियां, तेल, शरबत सभी का उपयोग औषधी के रूप में किया जा सकता है।
कुसुम के तेल का उपयोग भोजन में करने पर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहती है और तेल से सिर दर्द में भी काफी आराम मिलता है। कुसुम के फल खाने के फायदे इस प्रकार हैं।
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कुसुम की खेती करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान तथा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है।
कुसुम की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए कुसुम की फसल के लिए मध्यम काली भूमि से लेकर भारी काली भूमि उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 के बीच का होना चाहिए।
कुसुम की बुवाई का सही समय सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक का है।
अगर खरीफ सीजन की फसल में सोयाबीन बोई है तो कुसुम फसल बोने का उपयुक्त समय अक्टूबर माह के अंत तक का है।
अगर आपने खरीफ सीजन में कोई भी फसल नहीं लगाई हो तो सितंबर माह के अंत से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक कुसुम फसल की बुवाई कर सकते हैं।
कुसुम की फसल की अच्छी पैदावार में उन्नत किस्मों का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। कुसुम की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं।
के 65 - यह कुसुम की एक प्रजाति है, जो 180 से 190 दिन में पक जाती है। इसमें तेल की मात्रा 30 से 34 प्रतिशत तक होती है और इसकी औसत उपज 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की है।
मालवीय कुसुम 305 - यह कुसुम की एक उन्नत किस्म है जो 155 से 160 दिन में पकती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 37 प्रतिशत तक की होती है।
ए 300 - यह किस्म 155 से 165 दिनों में पककर तैयार होती हैं। इसकी औसत पैदावार 8 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है। इस किस्म में फूल पीले रंग के होते हैं तथा बीज मध्यम आकार एवं सफेद रंग के होते हैं। बीजों में 31.7% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।
अक्षागिरी 59-2 - इस किस्म की औसत पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टर तक की होती है। ये किस्म 155 से 160 दिनों में पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फूल पीले रंग के और बीज सफेद रंग के होते हैं। इस किस्म के दानों में 31% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।
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कुसुम की खेती में भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है, खेत को सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए,
इसके बाद दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर के माध्यम से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं।
पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती हैं।
कुसुम की खेती करते समय 8 किलोग्राम कुसुम का बीज प्रति एकड़ के हिसाब बुवाई करना पर्याप्त होता है।
बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेटीमीटर या डेढ़ फुट रखना आवश्यक होता है। पौधे से पौधे की दूरी 20 सेटीमीटर या 9 इंच अवश्य रखना चाहिये।
ऐसे खेत जहाँ पर सिंचाई के उचित साधन उपलब्ध ना हों वहां नाइट्रोजन 40 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
जिन खेतों में उपयुक्त सिंचाई के साधन हों वहां नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त खेत में 2 वर्ष के समयांतराल पर 4 से 5 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले देने से कुसुम में तेल की मात्रा में इजाफा होता है।
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कुसुम की एक फसल को 60 से 90 सेटीमीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है। कुसुम की खेती में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
फसल अवधि में एक से दो बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के 50 से 55 दिनों पर और दूसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।
कुसुम के पौधों में फूल निकलने की अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए।
कुसुम की फसल में एक बार डोरा अवश्य चलायें तथा खरपतवार होने की स्थिति में एक से दो बार आवश्यकतानुसार हाथ से निराई-गुड़ाई करें।
निराई-गुड़ाई बीज के अंकुरण होने के 15 से 20 दिनों के बाद करना चाहिये।
कुसुम के पौधे में कांटे होते हैं, इसलिए इसकी कटाई हाथों में दस्ताने पहन कर सावधानी पूर्वक करनी चाहिए।
अब बात करें इसके उत्पादन की तो इसकी एक हेक्टेयर की खेती करने से किस्मों के अनुसार 5 से 15 क्विंटल तक की पैदावार हांसिल हो सकती है।
उत्पादन आपकी किस्म के अनुसार होता है, जिससे किसान लाखों रुपये सुगमता से कमा सकते हैं।
मोटे अनाज को ‘मिलेट्स’ अथवा ‘श्रीअन्न’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कूटू इत्यादि मोटे अनाज हैं।
इनमें पोषक तत्वों की काफी भरपूर मात्रा होती है। प्राचीन काल में इन अनाजों का उपयोग दैनिक भोजन में किया जाता था।
मिलेट्स यानी श्री अन्न की स्वास्थ्य संबंधित अनेकों लाभ की वजह से भारत सरकार का विशेष ध्यान मिलेट्स की पैदावार को बढ़ाने के लिए विगत कई वर्षों से रहा है।
ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको बताऐंगे मोटे अनाज के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न लाभों के बारे में।
मोटे अनाज भारतीय पर्यावरण पारस्थितिकी के अनुरूप काफी अनुकूल हैं। ये प्रकृति के मित्र हैं, इनकी पैदावार में धान या गेंहू के मुकाबले कम पानी की आवश्यकता होती है।
एक किलो धान उत्पादन करने के लिए तकरीबन 4 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। वहीं, मोटे अनाज की कम पानी में भी उत्तम पैदावार मिलती है।
मिलेट्स की फसलों में केमिकल फर्टिलाइजर यूरिया आदि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती हैं।
ये कम उपजाऊ भूमि में भी शानदार पैदावार देते हैं। साथ ही, इन फसलों की देखरेख के लिए किसानों को कम परिश्रम करना पड़ता है।
श्रीअन्न को आकार के आधार पर दो श्रेणियों में रखा जाता है। बारीक श्रीअन्न, जिसमें कोदो, चीना, कंगनी, रागी, सांवा, कुटकी आदि शामिल हैं।
बाजरा, ज्वार मोटे दाने वाले श्रीअन्न हैं। ज्वार, बाजरा में फूड फाइबर की भरपूर मात्रा पायी जाती है।
मोटे अनाजों में उपस्थित फाइबर की मात्रा मनुष्य के पाचन तंत्र को दुरस्त रखती है। इनमें आयरन और कैल्सियम की मात्रा भी भरपूर पायी जाती है।
जिन लोगों को दूध अपच की शिकायत रहती है, उन लोगों के लिए मोटे अनाज कैल्सियम पूर्ति में सहायक हो सकते हैं। जिनको ग्लूटन एलर्जी होती है, उन्हें डॉक्टर द्वारा मोटे अनाज के सेवन की सलाह दी जाती है।
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मोटे अनाजों में विटामिन ‘बी’ भी काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। बाजरा में बी-3 यानी ‘नियासिन विटामिन’ पाया जाता है।
नियासिन शरीर से ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने का कार्य करता है। ट्राइग्लिसराइड्स हार्ट अटैक के खतरों को बढ़ाते हैं।
मोटे अनाजों के सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा काबू में रहती है। रागी और ज्वार मधुमेह के रोगियों के लिए अत्यंत ही उपयोगी हैं।
ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स के अवषोषण की गति धीमा कर देते हैं। इन अनाजों का ‘जीआई’ यानी ‘ग्लाइसेमिक इंडेक्स’ भी काफी कम होता है।
ग्लाइसेमिक इंडेक्स यह बताता है, कि खाया गया भोजन कितनी जल्दी खून में शर्करा की मात्रा को बढ़ाता है। मोटे अनाज टाइप-2 मधुमेह रोगियों के लिए काफी उपयोगी होते हैं।
मोटे अनाजों के लाभ को देखते हुए कहा जा सकता है, कि ये ‘सुपर फूड’ हैं। इनका प्रयोग मौसम के मुताबिक, दैनिक भोजन में दलिया, खिचड़ी, रोटी आदि बनाकर किया जा सकता है।
मोटे अनाजों के लाभ को देखते हुए बाजार में इनकी मांग काफी बढ़ रही है। मोटे अनाजों के विभिन्न उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं।
आलू भारत की प्रमुख नकदी फसल है। हर सीजन में आलू के उपयोग के चलते इसको सब्जी का राजा माना जाता है। भारत के लगभग हर घर में प्रतिदिन सब्जियों में अलग-अलग प्रकार से आलू का इस्तेमाल होता है।
बिहार सरकार ने राज्य में आलू के वाणिज्यिक किस्म को प्रोत्साहन देने की पहल की है। इसके अंतर्गत किसानों को आलू चिप्स बनाने वाली वेरायटी के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
किसान भाई इस योजना में 75 फीसदी अनुदान वाली बीज लेकर बंपर पैदावार कर लाखों कमा सकतें हैं।
बिहार सरकार उद्यान निदेशालय, कृषि विभाग ने आलू के प्रोसेसिंग के लिए उपयुक्त कुफरी चिप्सोना-1 किस्म के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य के 7 जिलों का चयन किया है।
पटना, नालंदा, गया, सारण, समस्तीपुर, वैशाली और औरंगाबाद जिलों के 150 हेक्टेयर में कुफरी चिप्सोना-1 के उत्पादन का लक्ष्य है।
बिहार राज्य बीज निगम किसानों को बीज की आपूर्ति करेगा। किसानों को ये बीज 75% फीसदी अनुदान पर प्रदान किए जाएंगे।
बिहार में प्रोसेसिंग यूनिट लगाने से आलू की कुफरी चिप्सोना-1 किस्म की मांग काफी बढ़ गई है। किसानों को समय पर बीज उपलब्ध कराने के साथ प्रशिक्षण भी मिल रहा है।
गया और नालंदा जनपदों में कुफरी चिप्सोना की बुवाई शुरू हो गई है। गया जिला में 30 हेक्टेयर में कुफरी चिप्सोना किस्म के आलू उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
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कुफरी चिप्सोना-1 आलू की खेती से पैदावार ज्यादा मिलती है। यह फसल 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है. पैदावार करीब 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलती है।
यह किस्म पिछेता झुलसा रोग प्रतिरोधी है. पौधों में रोग लगने की संभावना कम रहती है. इतना ही नहीं, इसकी भंडारण क्षमता भी अधिक होती है।
बाजार में इसकी कीमत अन्य आलू के मुकाबले अधिक होती है। यह आलू चिप्स बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
कुफरी चिप्सोना-1 आलू की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 1,25,150 रुपये बीज की लागत निर्धारित की गई है।
बतादें, कि इस पर 93,863 रुपये अनुदान मिलेगा, अन्य शेष धनराशि किसानों को लगानी होगी। किसानों को प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल बीज मिलेगा।