Agriculture

गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

आज के समय में कृषि संबंधी हर काम आधुनिक तकनीकों से लैश मशीनों से किया जा रहा है। 

खेती किसानी के अलग अलग कार्यों को करने के लिए अलग अलग प्रकार के कृषि उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं। ऐसे में ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में हम आपको गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे। 

स्क्वायर बेलर क्या होता है ?

स्क्वायर बेलर एक ऐसा कृषि यंत्र है, जिसकी सहायता से किसान अपने खेत में पड़े फसल अवशेष को चौकोर आकार में इकठ्ठा कर बंडल बनाते हैं। 

गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर 

गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर बेहद ही कार्यकुशल और शानदार बेलर है। गरुण कंपनी का कहना है कि "हमारा लक्ष्य ऐसे बेलर विकसित करना है जो हमारे किसानों की लाभप्रदता को बढ़ाएँ। 

गरुड़ टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर में कई अनूठी तकनीकें हैं जो क्षमता, स्थिरता और विश्वसनीयता प्रदान करती हैं।"

विशेषताएं

गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर के अंदर हेवी-ड्यूटी गियर बॉक्स, हाइड्रोलिक सिलेंडर, ऑटो-बेल काउंटर, समायोज्य गठरी लंबाई और वजन, समायोज्य परिवहन स्थिति आदि विशेषताएं होती हैं।  

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लाभ 

गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर द्वारा तैयार किए जाने वाली गठरी का कई चीजों में उपयोग किया जाता है। जैसे कि - कागज उद्योग, गन्ना उद्योग, मवेशी चारा बॉयलर, बिजली संयंत्र, जैव ईंधन इत्यादि। 

नमूना

टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर

गांठें बनाना

भूसाधानगन्नाघास आदि

बेल अनुभाग (सेमी)

36×46

गठरी प्रकार

वर्ग

गठरी का वजन (भूसे में)

20-25 किग्रा

गठरी का वजन (घास

25-35 किग्रा

गठरी की लंबाई (सेमी)

30-140

पिस्टन स्ट्रोक (सेमी)

73

स्ट्रोक गति (आरपीएम)

92-104

वजन (किलोग्राम)

2020

ट्रैक्टर (एचपी)

70


गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर की कीमत 

भारतीय वाणिज्यिक वाहन बाजार में गरुड़ टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर की कीमत 12,64,000 रुपये से प्रारंभ होती है। गरुण टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर की कीमत अलग-अलग जगहों पर वहाँ की नीतियों की वजह से अलग-अलग हो सकती है। 

 निष्कर्ष -

गरुड़ टर्मिनेटर स्क्वायर बेलर किफायती कीमत पर उपलब्ध है। किसान इसका इस्तेमाल कर काफी अच्छी आय हांसिल कर सकते हैं।

धान की बुवाई करने वाली 2 जबरदस्त मशीनों की जानकारी
धान की बुवाई करने वाली 2 जबरदस्त मशीनों की जानकारी

खेती किसानी में हर एक कार्य के लिए किसान आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। फसलों की बुवाई से लेकर कटाई तक के लिए किसान मशीनों का इस्तेमाल करते हैं। 

इसलिए आज ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में हम आपको धान की बुबाई करने वाली कुछ मशीनों के बारे में जानकारी देंगे। वर्षा आने के समय से ही किसान धान की बुवाई की तैयारी करने लगते हैं। 

किसानों को धान की बुवाई में काफी समस्या होती है। क्योंकि रोपाई के लिए पर्याप्त संख्या में मजदूर नहीं मिल पाते हैं।

इस वजह से धान की बुवाई करने के लिए किसान धान बुवाई मशीन का इस्तेमाल कर समय और लागत दोनों की बचत कर सकते हैं।  

धान बुवाई की जीरो टिलेज मशीन 

जीरो टिलेज मशीन धान की शुष्क और सीधी बुवाई करने वाला कृषि उपकरण है। जीरो टिलेज मशीन की मदद से बिना जुत खेत में धान की सीधी बुवाई की जाती है। आइए जानते हैं जीरो टिलेज मशीन से जुड़ी कुछ खास बातें। 

-जीरो टिलेज मशीन में आपको 2 कम्पार्टमेंट दिए जाते हैं, इनमें से एक में खाद और दूसरे में बीज डाला जाता है। इसके बाद जीरो टिलेज मशीन खेत में सीधी बुवाई करती है। 

-जीरो टिलेज मशीन की एक तरफ से बीज और दूसरी तरफ से खाद निकलती है। इस तरह इस मशीन की सहायता से बहुत ही कम समय में धान की बुवाई की जा सकती है। 

धान की बुवाई के लिए इसकी अपडेट मशीनें भी बाजार में उपलब्ध हैं। जैसे- जगजीत जीरो सीड ड्रिल, फील्डकिंग जीरो टिल, लैंडफोर्स जीरो टिल ड्रिल मशीन, पैग्रो जीरो टिल ड्रिल मशीन, महिंद्रा सीड कम फ़र्टिलाइज़र ड्रिल और खेदूत सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल आदि। 

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धान बुवाई की मशीनों की कीमत

अलग-अलग ब्रांड्स की अलग-अलग धान की बुवाई करने वाली मशीनों की उनकी विशेषताओं पर आधारित होती हैं।

जीरो टिलेज मशीन की कीमत सामान्यतः टाइन पर आधारित होती है। भारतीय वाणिज्यिक वाहन बाजार के अंदर 9 टाइन वाली जीरो टिलेज मशीन की अनुमानित कीमत 45 से 65 हजार रुपए के करीब हो सकती है।  

  • जीरो टिलेज मशीन के धान की बुवाई के लाभ
  • जीरो टिलेज मशीन की सहायता से उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • जीरो टिलेज मशीन के इस्तेमाल से मजदूरी, समय और लागत कम आती है।
  • जीरो टिलेज मशीन के उपयोग से रासायनिक खाद व पानी की बचत होती है।
  • जीरो टिलेज मशीन के द्वारा धान, मसूर, चना, मक्का आदि फसलों की बुवाई की जाती है।

धान की बुवाई के लिए ड्रम सीडर मशीन

धान की बुवाई करने वाली ड्रम सीडर मशीन एक मानव संचालित धान बुवाई की मशीन है। ड्रम सीडर मशीन के माध्यम से अंकुरित धान की सीधी बुवाई की जा सकती है। 

ड्रम सीडर के उपयोग से समय की बचत तो होती ही है, साथ ही किसानों का पैसा भी बचता है। इससे फसल लागत में कमी आती है। 

ड्रम सीडर मशीन से धान की बुवाई करने पर वक्त व परिश्रम की बचत होती है। ड्रम सीडर मशीन से एक बार में 6 से 12 कतार में बीजों की बुवाई की जा सकती है।

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ड्रम सीडर मशीन के क्या फायदे हैं ?

ड्रम सीडर मशीन एक मानव संचालित मशीन है, इसलिए इसे चलाने के लिए किसी भी अन्य मशीनों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है। 

ड्रम सीडर मशीन से जोते गए खेतों में सीधी बुवाई की जाती है। ड्रम सीडर मशीन से नर्सरी तैयार करने और रोपाई करने के झंझट से मुक्ति मिल जाती है। 

ड्रम सीडर मशीन से बुवाई करने पर बीज एक समान अंकुरित होते हैं, जिससे अच्छा उत्पादन मिलता है।

ड्रम सीडर मशीन की कीमत 

ड्रम सीडर मशीन पैडी ड्रम सीडर के नाम से भी जानी जाती है। ड्रम सीडर मशीन की कीमत 5000-6000 रुपए के बीच होती है। कंपनी और खूबियों के आधार पर ड्रम सीडर मशीन की कीमत अलग-अलग हो सकती है। 

निष्कर्ष -

धान की बुवाई करने वाली उपरोक्त दो मशीनों से किसान कम लागत और कम समय में ज्यादा खेत में धान की आसानी से बुवाई कर सकते हैं। 

किसान साथियों आप अपने बजट और जरूरत के हिसाब से जीरो टिलेज मशीन या फिर ड्रम सीडर मशीन का चयन कर सकते हैं।

मखाने के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य लाभ
मखाने के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य लाभ

मखाना सेहत के लिए एक लाभकारी सुपरफूड माना जाता है। मखाना बेहद ही स्वास्थ्यवर्धक है। 

मखाना वजन घटाने, हड्डियों को मजबूत करने, दिल की सेहत को सुधारने, डायबिटीज कंट्रोल करने और पाचन तंत्र को मजबूत करने में काफी मददगार साबित होता है। 

क्योंकि, यह प्रोटीन, फाइबर, एंटीऑक्सिडेंट और कैल्शियम का भंडार होता है, जो कि शरीर को विभिन्न प्रकार के पोषण लाभ देता है। 

इसलिए, सामान्यतः व्रत में खाए जाने वाले मखाने को रोजमर्रा के भोजन में भी शामिल करना चाहिए। 

सेहत के लिए क्यों फायदेमंद है मखाना 

1. वजन घटाये

यदि आप वजन घटाना चाहते हैं, तो मखाना आपके लिए शानदार नास्ता हो सकता है। 

मखाना के अंदर कैलोरी कम और फाइबर अधिक होने की वजह से ज्यादा समय तक भूख नहीं लगती। यह अनहेल्दी स्नैक्स की जगह हेल्दी ऑप्शन क्योंकि इसमें फैट कम होने के चलते मोटापा नहीं बढ़ता। 

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2. हड्डियां मजबूत 

मखाने में मौजूद कैल्शियम हड्डियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि, मखाना ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों के कमजोर होने की समस्या) से बचाने में सहयोग करता है। 

मखाना बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद होता है। नियमित तौर पर मखाने का सेवन करने से जोड़ों का दर्द भी कम हो सकता है। 

3. हृदय स्वस्थ 

मखाना ह्रदय स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छे माने जाते हैं। मखाना में सोडियम कम और पोटैशियम ज्यादा होता है, जो रक्तचाप को संतुलित रखता है। 

मखाने में मौजूद  एंटीऑक्सिडेंट्स हार्ट डिजीज के खतरे को दूर करते हैं। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करने और गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में बेहद सहयोग करता है। 

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4. डायबिटीज दूर भगाए 

डायबिटीज के मरीजों को अपनी डाइट पर खास ध्यान देना पड़ता है। मखाने उनके लिए एक हेल्दी स्नैक ऑप्शन हो सकते हैं। 

इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे ब्लड शुगर नहीं बढ़ता है। यह इंसुलिन के स्तर को संतुलित रखने में मदद करता है। यह मीठे की क्रेविंग को भी कम कर सकता है। 

5. पाचन तंत्र मजबूत करे 

मखाने का सेवन करने से आपको पाचन संबंधी समस्याओं से निजात मिलती है। क्योंकि, मखाने में फाइबर अधिक होता है, जो पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है। 

यह कब्ज की समस्या को दूर करने में मदद करता है। यह पेट को हल्का और डाइजेशन को मजबूत बनाता है। 

मखाने का सेवन कैसे करें ?

मखानों को हल्का भूनकर नमक डालकर सेवन कर सकते हैं। मखाने को दूध के साथ उबालकर भी खाया जा सकता है। मखाने के इस्तेमाल से खीर या सब्जी भी तैयार की जा सकती है। 

ज्यादातर लोग मखाने को ड्राई फ्रूट्स के साथ मिलाकर हेल्दी स्नैक के तौर पर खाना पसंद करते हैं। 

निष्कर्ष -

मखाने की खेती करना देश के स्वास्थ्य और किसानों की आय को अच्छा करना है। आज के समय में मखाना हर घर में खाया जाने वाला फास्टफूड बन चुका है। इसलिए बाजार में मखाने की मांग के साथ साथ कीमत भी काफी अच्छी है।

उड़द की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी
उड़द की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

भारत के अंदर बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली उड़द एक दलहन फसल है। 

उड़द की फसल में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और फास्फोरस भरपूर मात्रा में पाया जाता है। उड़द की दाल का सेवन करने से बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। 

भारत के अंदर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में उड़द का काफी बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। 

उड़द की खेती के लिए मिट्टी कैसी होनी चाहिए ?

उड़द की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए सबसे अनुकूल बलुई दोमट मिट्टी होती है। अधिक जल जमाव ना हो इसलिए उचित जल निकासी की व्यवस्था भी होनी चाहिए।  

उड़द की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

उड़द की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे अच्छे होते हैं। गर्म और आर्द्र जलवायु में उड़द की अच्छी उपज मिलती है। 

भारत के उत्तरी हिस्सों में जहां सर्दियों के दौरान तापमान गिरता है, वहाँ इसकी खेती बरसात व गर्मी के मौसम में की जाती है। सामान्य जलवायु वाले इलाकों में इसकी खेती सर्दी और बरसात दोनों मौसम में कर सकते हैं।

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उड़द की बुवाई

उड़द की बुवाई फरवरी से अगस्त महीने तक की जा सकती है। जायद सीजन में उड़द की बुवाई फरवरी-मार्च में और खरीफ सीजन में इसकी खेती बुवाई जून-जुलाई में करनी चाहिए।

बीज की मात्रा

  • खरीफ सीजन में प्रति एकड़ खेत के लिए 4.8 से 6 किलोग्राम बीज की मात्रा होनी जरुरी है। 
  • जायद सीजन में प्रति एकड़ खेत के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज की मात्रा होनी चाहिए।

खेत की तैयारी 

खेत में सबसे पहले 2-3 बार गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाकर पाटा लगादें। खेत में जल जमाव न होने दें, जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। अगर आप भारी मृदा में इसकी खेती कर रहे हैं तो आपको ज्यादा जुताई करनी पड़ेगी।

1. उड़द की पीडीयू 1 (बसंत बहार) किस्म

आईसीएआर-भारतीय दहलन अनुसंधान संस्थान के द्वारा उड़द की पीडीयू 1 (बसंत बहार) किस्म को विकसित किया गया है। 

यह किस्म विकसित और एनडब्ल्यूपीजेड और सीजेड क्षेत्रों के लिए अच्छी होती है। उड़द की इस किस्म से लगभग 9 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त कर सकते हैं।

2. उड़द की आईपीयू 94-1 उत्तरा किस्म

आईसीएआर- भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर द्वारा उड़द की आईपीयू 94-1 (उत्तरा) किस्म विकसित की गई है। 

यह किस्म एनईपीजेड इलाकों के लिए सबसे उपयुक्त है। इसकी खेती से 12 से 14 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार मिलती है।

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3. उड़द की टी-9 (T-9) किस्म

उड़द की टी-9 (T-9) किस्म उत्तर प्रदेश के सभी हिस्सों में उगाई जाने वाली किस्म है। इस किस्म की औसतन उपज करीब 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है। यह किस्म 70 से 75 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

4. उड़द की टीपीयू- 4 (TPU-4) किस्म

उड़द की टीपीयू- 4 (TPU-4) किस्म को पककर तैयार होने में 74 दिन का समय लगता है। यह किस्म एक हैक्टेयर में 7 से 13 क्विंटल तक उपज देती है। इस किस्म को मध्यप्रदेश व गुजरात के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है।

5. उड़द की पी.यू.-31 किस्म

उड़द की पी.यू.-31 किस्म मध्यम आकार के दानों वाली किस्म है। इस किस्म को पककर तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लगता है। 

यह किस्म राजस्थान के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। उड़द की पी.यू.-31 किस्म से करीब 10 से 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

उड़द की अन्य किस्में भी बाजार में उपलब्ध हैं। जैसे कि उड़द की पंत यू-30 किस्म, ईपीयू 94-1 (IPU-4) किस्म, उड़द की ईपीयू 94-1 (IPU-4) किस्म, एलबीजी 623 (LBG-623) किस्म, उड़द की एलबीजी 623 (LBG-623) किस्म, आजाद उड़द- 2 (Azad udad-2) किस्म, उड़द की आजाद उड़द- 2 (Azad udad-2) किस्म, उड़द की जवाहर उड़द-2 किस्म शामिल हैं। 

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उड़द की खेती में सिंचाई 

खरीफ में सिंचाई 

उड़द की फसल को खरीफ सीजन में सिंचाई की कोई खास जरूरत नहीं पड़ती है। केवल वर्षा जरूरत से कम होने पर ही फली में दाने के विकास के समय सिंचाई करनी जरूरी होती है। 

जायद में सिंचाई 

जायद सीजन में उड़द की फसल में 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। उड़द की फसल में सिंचाई 10-15 दिन के समयांतराल पर करनी चाहिए। फूल आने से लगाकर फली तैयार होने तक खेत में नमी बनी रहनी चाहिए।

उड़द में खरपतवार नियंत्रण

उड़द की बुवाई के बाद कम से कम 40 दिनों तक खेत में खरपतवार की निगरानी करनी चाहिए। खरपतवार होने की स्थिति में उड़द की फसल की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।

कीट और रोग 

कीट 

उड़द की खेती में कई तरह के कीट भी लगते हैं, जिनमें बालदार सुंडी, हरा फुदका, फली भृंग, बिहार रोमिल इल्ली, तम्बाकू इल्ली, अर्द्धगोलाकार इल्ली, सफेद मक्खी और फली छेदक आदि कीट शामिल हैं। 

रोग 

उड़द की फसल को कई सारे रोग प्रभावित करते हैं। जैसे - भभूतिया रोग, पीला मोजैक रोग, जड़ सड़न, पत्ती झुलसा, एंथ्रेकनोज़ रोग और पत्ती धब्बा रोग आदि शामिल हैं। 

इन रोगों की रोकथाम करने के लिए कृषि विशेषज्ञों द्वारा बताई गई दवाओं का उपयोग करना चाहिए। 

कटाई 

उड़द की फसल को कटाई या तुड़ाई के लिए पककर तैयार होने में करीब 80 से 100 दिन का समय लगता है। इसकी तुड़ाई 70-80% फलियाँ पक जाने और ज्यादा संख्या में फलियाँ काली हो जाने पर करनी चाहिए। 

मड़ाई 

उड़द की फसल को काटने के बाद धूप में सुखाकर इसकी मड़ाई कर सकते हैं। मड़ाई के बाद आप बीजों को 3-4 दिन तक धूप में सुखाने के बाद भंडारण कर सकते हैं।

निष्कर्ष -

उड़द की खेती बेहद ही अच्छी आय का स्त्रोत है। उड़द की हमेशा बाजार में मांग बनी रहती है। इसलिए इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। इसके परिणामस्वरुप किसान को उड़द की खेती से बेहरीन मुनाफा होता है।    

एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर की अद्भुत जानकारियां
एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर की अद्भुत जानकारियां

स्ट्रॉ रीपर क्या होता है?

खेती किसानी के क्षेत्र में आजकल कृषक आधुनिक कृषि यंत्रों की मदद से कृषि से जुड़े छोटे से बड़े कार्यों को पूरा करते हैं। 

स्ट्रॉ रीपर वास्तविकता में एक चॉपर मशीन है, जो एक ही बार में भूसे की कटाई, गहाई और सफाई का कार्य करके भूसे की तुड़ी बना देती है। 

स्ट्रॉ रीपर मशीन से गेंहू की कटाई के बाद कीमती भूसे को तुड़ी में परिवर्तित करना बेहद जरूरी होता है। 

इसलिए ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको स्ट्रॉ रीपर श्रेणी के अंतर्गत आने वाले एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे।

एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर की विशेषताएं क्या हैं ? 

Description

Unit/Size

Unit/Size

Main Drive

ASR-57

ASR-63

Working Width(mm)

2250

2351

Body Width

57

61

Tractor Horse Power

50 HP(Min.)

55 HP(Min.)

Thresher Dia

31

31

Thresher Blades

288

320

No. of Blade in Basket

36

38

Cutter Bar Size

7.5 FT

8 FT

Wheel Size

7.00X19

10PR/6.5.20 (Optional)

No. of Blowers

2

3

Weight (Kg. Approx)

1990

2040

Overall Dimension(mm) Length x Width x Height 

3570 x 2520 x 1970

3750 x 2625 x 1970

Blower Fan

1260 RPM

1260 RPM

Thresher Drum

875 RPM

875 RPM


एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर की कीमत  

भारतीय वाणिज्यिक वाहन बाजार में स्ट्रॉ रीपर की कीमत 2.95 लाख से 3.50 लाख रुपए के आसपास निर्धारित की गई है। 

एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर की कीमत का निर्धारण किसानों की क्रय शक्ति को ध्यान में रखकर किया गया है। इसलिए एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर की कीमत किसानों के लिए काफी किफायती है। 

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निष्कर्ष -

एग्रीजोन स्ट्रॉ रीपर का इस्तेमाल करके किसान की गेंहू की कंबाइन से कटाई के बाद खड़े भूसे की कटाई, गहाई और सफाई करके तूड़ी बनाने का कार्य करता है।

सीढ़ीनुमा खेती के फायदे और नुकसान
सीढ़ीनुमा खेती के फायदे और नुकसान

भारत एक कृषि प्रधान देश होने की वजह से यहाँ विभिन्न प्रकार की तकनीकों और पद्धतियों के इस्तेमाल से खेती की जाती है। 

किसानों की हमेशा यही कोशिश रहती है, कि वह कैसे ज्यादा से ज्यादा फसल उत्पादन कर सकें। फसलीय उत्पादन के लिए सबसे जरूरी चीज भूमि होती है। 

ऐसे में किसान ऐसी जगहों को भी फसल उत्पादन करने के लिए तैयार करते हैं, जो कि पहाड़ी इलाकों में ऊँचे नीचे टीलों पर जमीन होती है। 

ऐसी स्थिति में आपको सीढ़ीनुमा खेती यानी सीढ़ीदार खेत कहते हैं। सीढ़ीनुमा खेती के बहुत सारे लाभ और हानि भी देखने को मिलती है। 

सीढ़ीदार खेत, पर्वतीय या पहाड़ी राज्यों की ढलवां जमीन पर कृषि के लिए तैयार किए गए इलाकों को कहा जाता है। 

ऐसे राज्यों में मैदानी क्षेत्र ना होने पर पहाड़ों की ढलानों पर सीढ़ियों के आकार के छोटे-छोटे खेत तैयार किए जाते हैं।

भारत के अंदर अगर हम बात करें तो असम, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और मिजोरम जैसे राज्यों में प्रमुख रूप से सीढ़ीनुमा खेती की जाती है।

सीढ़ीनुमा खेती क्या है ? 

टेरेस फार्मिंग या सीढ़ीनुमा खेती फसल उत्पादन की एक ऐसी पद्धति है, जो एक पहाड़ी या पहाड़ की ढलानों को चोटीदार प्लेटफार्मों या छतों का निर्माण करके खेत में परिवर्तित किया जाता है। 

पहाड़ों की ऊपरी सतह को हटाकर मेढ़ तैयार करके एकसार किया जाता है, जिससे कि जमीन पर आसानी से खेती की जा सके। 

टैरेस फार्मिंग का मकसद पानी के बहाव को कम करके मिट्टी के कटाव को रोकना है। सामान्यतः अधिक वर्षा होने की स्थिति में पानी पोषक तत्वों से युक्त मृदा को बहा देता है। 

सीढ़ीनुमा खेती मृदा अपरदन और बारिश के पानी को बहने से रोकने में सहायक होती है। इस वजह से सीढ़ीनुमा खेती की वजह से किसानों को बेहतर उपज और मुनाफा दिलाने का कार्य करती है।  

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सीढ़ीदार खेती के प्रकार 

1. बेंच्ड टैरेस फार्मिंग 

बेंच्ड टैरेस पहाड़ों में सीढ़ीनुमा खेती का सबसे बुनियादी ढंग है। इसके अंदर बारिश के पानी को बेहतर तरीके से धारण करने की क्षमता से उत्पादन की अच्छी संभावना होती है। 

2. ग्रास बैक-स्लोप टेरेस फार्मिंग 

ग्रास बैक-स्लोप टेरेस फार्मिंग में बैक स्लोप को बारहमासी घास से ढक दिया जाता है। 

सीढ़ीनुमा खेती के फायदे

सीढ़ीनुमा खेती अधिक वर्षा होने की स्थिति में पौधों को पानी के भारी प्रवाह में बहने से रोकने में मदद करती है। 

इसलिए सीढ़ीनुमा खेती केवल पर्वतीय इलाकों में ही नहीं बल्कि अत्यधिक बारिश वाले इलाकों में भी काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। सीढ़ीनुमा खेती के निम्नलिखित फायदे हैं। 

  • खेती पानी को मिट्टी की ऊपरी परत को नष्ट करने से भी रोकती है। सीढ़ीनुमा खेती ढलानों पर एक समान पानी का विभाजन करती है। 
  • सीढ़ीनुमा फार्मिंग कृषि उपज हांसिल करने के लिए पहाड़ी इलाके का भी इस्तेमाल करने वाली कृषि पद्धति है। 
  • सीढ़ीनुमा खेती की सहायता से जमीन की उत्पादन क्षमता काफी बढ़ जाती है। 
  • यह ना सिर्फ किसान को सुरक्षित विकास प्रदान करता है, बल्कि भूमि पर अधिक नियंत्रण भी देता है, जिस पर वह खेती करते हैं। 

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सीढ़ीदार खेती में आने वाली परेशानी  

सीढ़ीनुमा खेती में बिना कृषि यंत्रों के ढलानों का निर्माण करना बेहद कठिन कार्य है। साथ ही, तीव्र ढ़लाननुमा भूमि पर आसान काम के लिए भारी मशीनरी को ले जाना बहुत कठिन होता है। 

ढ़लानों का निर्माण करते वक्त भी दुर्घटना होने की संभावना रहती है। अगर ढलान पर्याप्त तरीके से एकसमान नहीं है, तो ढलानों में पानी ठीक से नहीं रह सकता है। इसकी वजह से किसान को पानी की कमी की किल्लत से झूझना पडता है।

अखरोट की खेती
अखरोट की खेती

अखरोट पोषक तत्वों से भरपूर एक ड्राई फ्रूट है। अखरोट का सेवन करने से शरीर को भारी ऊर्जा का अनुभव होता है। भारत के अंदर अखरोट की हमेशा से काफी अच्छी मांग रही है। 

यही वजह है, कि अखरोट का बाजार में काफी अच्छा भाव मिलता है। ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको बताएंगे अखरोट की खेती से जुड़ी कुछ जरूरी बातें। 

अखरोट की खेती से जुड़ी जरूरी बातें

मिट्टी

अखरोट की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। साथ ही, मृदा में उत्तम जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी का PH मान 5 से 7 होना जरूरी है। 

जलवायु 

अखरोट के लिए 15°C से 25°C के बीच तापमान सर्वोत्तम होता है। इसके पेड़ों के लिए ठंडी हवाएं जरूरी होती हैं।       

समय 

अखरोट की रोपाई करने के लिए दिसंबर से लेकर मार्च तक का समय सबसे अच्छा होता है। 

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अखरोट कितने प्रकार का होता है ?

अखरोट प्रमुख रूप से 2 प्रकार का होता है 

1. जंगली अखरोट  

जंगली अखरोट का पेड़ की ऊँचाई 100 से 200 फीट और इसके फल का छिलका मोटा होता है। 

2. कृषिजन्य अखरोट 

कृषिजन्य अखरोट का पेड़ की ऊँचाई 40 से 90 फीट और इसके फल के छिलके पतले होते हैं। इस वजह से इनको कागजी अखरोट भी कहा जाता है।

अखरोट की किस्म

अखरोट की पूसा किस्म 

अखरोट की पूसा किस्म का पौधा 3-4 साल में उपज देना शुरू कर देता है। यह पौधे ऊंचाई में सामान्य होते है और इसमें निकलने वाला छिलका भी काफी पतला होता है। पूसा किस्म के अखरोट को खाने में उपयोग किया जाता है। 

ओमेगा 3 किस्म

ओमेगा 3 अखरोट की एक विदेशी किस्म है, जिसके पौधे काफी ज्यादा ऊँचे होते हैं। ओमेगा 3 किस्म के फलों को औषधीय ढ़ंग से ज्यादा उपयोग किया जाता है। 

हृदय संबंधी रोगों के लिए यह अधिक उपयोगी माना जाता है। अखरोट के फलों से लगभग 60% प्रतिशत तेल हांसिल किया जा सकता है।

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कोटखाई सलेक्शन 1

कोटखाई सलेक्शन 1 किस्म के पौधे कम वक्त में उपज देने के लिए तैयार किए जाते हैं। इस किस्म के अखरोट की गिरी हल्की हरी और खाने में अधिक स्वादिष्ट होती है। इसके पौधे की ऊंचाई सामान्य और फलो में निकलने वाला छिलका पतला होता है।

लेक इंग्लिश किस्म

यह अखरोट की एक विदेशी किस्म है, जिसमें पौधे अधिक लंबे होते है। इस किस्म के पौधों को जम्मू और कश्मीर जैसे प्रदेशो में अधिक उगाया जाता है। अखरोट की यह किस्म समय पर पैदावार देती है। 

इनके अलावा अखरोट की अन्य किस्में भी उपलब्ध हैं :- जैसे कि एस.आर. 11, K.N. 5, चकराता सिलेक्शन, S.H. 23, 24, K.12, प्लेसेंटिया, ड्रेनोवस्की, विल्सन फ्रैंकुयेफे, ओपक्स कॉलचरी और कश्मीर अंकुरित किस्में शामिल हैं। 

बिजाई 

अखरोट के पौधों की रोपाई से करीब एक वर्ष पूर्व नर्सरी में इनको तैयार कर लेना चाहिए। सीधी कतार में गड्ढा खोदकर पौधरोपण करना चाहिए। गड्ढों के बीच का फासला 10 से 12 मीटर होना चाहिए।

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अखरोट की खेती में खरपतवार नियंत्रण 

पौध रोपाई से एक महीने बाद इसकी पहली गुड़ाई कर देनी चाहिए। पौधों की पहली गुड़ाई के बाद खरपतवार होने पर जरूरत के अनुसार हल्की-हल्की निराई–गुड़ाई करनी चाहिए।

रोग व कीट प्रबंधन 

जड़ गलन रोग, गोंदिया रोग, तना बेधक रोग और अखरोट के फल को प्रभावित करने वाले कीटों की रोकथाम करने के लिए नजदीकी के.वी.के. के कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करके रासायनिक दवाओं का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है।  

अखरोट की कटाई 

अखरोट के पौधरोपण के 4 वर्ष की समयावधि में फल आने शुरू हो जाते हैं। अखरोट के फलों की कटाई ऊपरी छाल फटने पर करनी चाहिए। 

निष्कर्ष - 

अखरोट की खेती करना किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है। अखरोट की बाजार में 600 से 1000 रुपए के बीच कीमत होती है। अखरोट की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से किसान इससे काफी मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 थ्रेशर की अद्भुत जानकारी
दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 थ्रेशर की अद्भुत जानकारी

रबी सीजन की बहुत सारी फसलों की कटाई करने के लिए किसान थ्रेशर का इस्तेमाल करते हैं। वर्तमान में रबी सीजन की फसलों की कटाई के लिए तैयारियों में जुटे हुए हैं।

ऐसे में किफायती दाम में आने वाला दमदार दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 थ्रेशर किसानों के लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। क्योंकि,  यह किसानों के खेती से संबंधित कार्यों को बड़ी कुशलता से पूरा करने वाला कृषि यंत्र है।

दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 खेती से अधिक उपज प्रदान करता है। इस थ्रेशर की इम्प्लीमेंट पावर 35-65 HP है, जो कि कम ईंधन खपत में मदद करती है। ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में जानिए दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 थ्रेशर के बारे में। 

दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 की विशेषताएं 

Model - D.R.30.32x39

Power Required  - 35-65 H.P.

Drum(LxW)  - 812mmx990mm

Blower Speed - Variable

Gear Box - Heavy Duty(Froward High-Low & Reverse)

Crop Input Mode - Conveyor, Upper Hopper & Side Hopper

Dimensions  - 5360x1720x2095

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दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 की कीमत

दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 थ्रेशर बाजार में काफी किफायती कीमत पर मिलता है। अगर हम दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 की वास्तविक कीमत की बात करें तो अलग अलग राज्यों में कीमतें अलग अलग हो सकती हैं। 

इसलिए आपको नजदीकी किसी दशमेश डीलर से संपर्क करके इसकी वास्तविक कीमत की जानकारी लेनी चाहिए। लेकिन, कंपनी का यह थ्रेशर अपनी कीमत को अपने कार्य के बल पर 1 से 2 सीजन में आसानी से निकाल सकता है। 

निष्कर्ष -

दशमेश डी.आर. 30.32 X 39 थ्रेशर बेहद ही किफायती और शानदार कृषि यंत्र है। किसान इसकी मदद से निजी और व्यावसायिक कृषि से अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।  

गाय की 5 अनोखी और अद्भुत नस्लें
गाय की 5 अनोखी और अद्भुत नस्लें

गाय काफी पुराने समय से विश्वभर में दुग्ध उत्पादन का प्रमुख स्त्रोत रही है। भारत के अंदर बड़े पैमाने पर गाय का पालन किया जाता है। गाय की भी बहुत सारी अद्भुत और अनोखी नस्लें होती हैं। 

आज हम आपको ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में कुछ अद्भुत गाय की नस्लों के बारे में बताएंगे। गाय की यह नस्लें अपनी अद्भुत बनावट, रंग, सींगों से लेकर दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए जानी जाती है। 

गाय की 5 नस्लें

1. बेल्जियन ब्लू 

बेल्जियन ब्लू गाय को "सुपर काऊ" के नाम से भी जाना जाता है। इस गाय की मांसपेशियां इतनी बड़ी और मजबूत होती हैं, कि यह देखने में एक बॉडीबिल्डर की तरह लगती है। 

यह एक जेनेटिक म्यूटेशन (डबल मसलिंग) की वजह से होती है। यह गाय यूरोप और अमेरिका में काफी ज्यादा मशहूर है। 

2. ब्राह्मण गाय 

भारत की बड़े कूबड़ और ढीली त्वचा वाली ब्राह्मण गाय सिर्फ देश ही नहीं विदेशों तक मशहूर है। यह गाय उष्ण जलवायु के प्रति भी काफी सहनशील होती है। 

यह गर्म, आर्द्र और कठिन परिस्थितियों में भी बड़ी सहजता से जीवित रह सकती हैं। यही वजह है, कि इसका पालन अमेरिका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी किया जाता है। 

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3. हाइलैंड काउ (Highland Cow)

हाइलैंड काउ का मूल स्थान स्कॉटलैंड की खूबसूरत वादियां हैं। यह अन्य दुग्ध उत्पादक गायों की तुलना में औसतन प्रति दिन लगभग 2 गैलन तक दूध दे सकती हैं। 

इनकी सबसे बड़ी खूबी इनका मोटा और घुंघराले बालों वाला कोट है, जो इनको शर्दियों से बचाता है। हाइलैंड गायें बहुत ही ज्यादा आकर्षक और सुंदर लगती हैं। इनके कोट का रंग लाल, काला, सफेद या ग्रे रंग का हो सकता है। 

4. मिनिएचर जेबू

विश्वभर में मिनिएचर जेबू सबसे छोटी नस्ल की गायों में से एक है। यह मुख्य रूप से भारत और श्रीलंका में ज्यादा पाई जाती हैं। मिनिएचर जेबू नस्ल की ऊंचाई केवल 3 से 3.5 फीट तक होती है। 

यह गायें काफी ज्यादा आकर्षक होती हैं। मिनिएचर जेबू गाय गर्म और सूखे क्षेत्रों में भी आसानी से जीवित रह सकती हैं। विश्वभर में इसको पालतू जानवर के तौर पर जाना जाता है। 

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5. अंकोले वातूसी

अंकोले वातूसी गाय अपने लंबे और मजबूत सींगों की वजह से काफी प्रसिद्ध है। अंकोले वातूसी गाय के सींग की लंबाई 8 फीट तक हो सकती है। 

यह गाय अफ्रीका की शान मानी जाती है और इसके सींग ना केवल रक्षा के काम में आते हैं, बल्कि ये गाय के शरीर को शीतल रखने में भी सहयोग करते हैं। 

अफ्रीका के गर्म क्षेत्रों में यह खूबी बेहद फायदेमंद सिद्ध होती है। इन गायों को "कैटल ऑफ किंग्स" के नाम से भी जाना जाता है।

निष्कर्ष - 

उपरोक्त में बताई गई गाय की 5 नस्लें अपने आकार और बनावट की वजह से दिखने में बेहद आकर्षक और सुंदर हैं।

40 HP में स्वराज और आयशर के यह ट्रैक्टर माइलेज के बाप
40 HP में स्वराज और आयशर के यह ट्रैक्टर माइलेज के बाप

खेती-किसानी में प्रत्येक छोटे से बड़े कार्य को कम समय में आसानी से पूरा करने के लिए ट्रैक्टर की अहम भूमिका होती है। ट्रैक्टर को किसान का मित्र भी कहा जाता है। 

ट्रैक्टर की मदद से कृषि उत्पादन और कृषकों की आमदनी में भी काफी वृद्धि होती है। इसलिए आज हम आपको ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में 40 HP की रेंज में आने वाले प्रसिद्ध ट्रैक्टर निर्माता कंपनियों के दो शानदार माइलेज देने वाले ट्रैक्टर्स की जानकारी देने वाले हैं। 

आज हम बात करने वाले हैं, आयशर 380 और स्वराज 735 एफई ट्रैक्टर के बारे में।  

आयशर 380 ट्रैक्टर

Eicher 380 ट्रैक्टर में 2500 सीसी क्षमता वाला 3 सिलेंडर में Water Cooled इंजन दिया गया है, जो 40 HP पावर उत्पन्न करता है। 

इस बेस्ट माइलेज आयशर ट्रैक्टर की अधिकतम पीटीओ पावर 34 HP है और इसके इंजन से 2150 आरपीएम उत्पन्न होता है। 

Eicher 380 ट्रैक्टर के अंदर आपको 45 लीटर क्षमता वाला फ्यूल टैंक प्रदान किया जाता है। Eicher 380 ट्रैक्टर की भार उठाने की क्षमता 1650 किलोग्राम निर्धारित की गई है और इसको 1910 MM व्हीलबेस में तैयार किया गया है।

आयशर कंपनी का यह ट्रैक्टर Mechanical/Power (optional) स्टीयरिंग के साथ 8 Forward + 2 Reverse गियर वाले गियरबॉक्स के साथ आता है। 

आयशर ने अपने इस ट्रैक्टर में Dry Disc / Oil Immersed (optional) ब्रेक्स दिए गए हैं। आयशर का यह ट्रैक्टर टू व्हील ड्राइव में आता है, इसमें 6.00 x 16 फ्रंट टायर और 12.4 x 28 / 13.6 x 28 रियर टायर दिए गए हैं। 

भारत में आयशर 380 ट्रैक्टर की कीमत 6.10 लाख से 6.40 लाख रुपये एक्स शोरूम तय की गई है। इस आयशर ट्रैक्टर के साथ 2 वर्ष की वारंटी मिलती है।

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स्वराज 735 एफई ट्रैक्टर

SWARAJ 735 FE ट्रैक्टर में आपको 2734 सीसी क्षमता वाला 3 सिलेंडर में Water Cooled इंजन देखने को मिल जाता है, जो 40 HP पावर जनरेट करता है। 

इस बेस्ट माइलेज स्वराज ट्रैक्टर (Best Mileage Swaraj Tractor) की मैक्स पीटीओ पावर 32.6 HP है और इंजन 1800 आरपीएम जनरेट करता है। 

यह ट्रैक्टर 48 लीटर क्षमता वाले फ्यूल टैंक के साथ आता है। Swaraj 735 FE Tractor की भार उठाने की क्षमता 1000 किलोग्राम निर्धारित की गई है और इसे 1930 MM व्हीलबेस में तैयार किया गया है।

SWARAJ कंपनी का यह ट्रैक्टर Mechanical/Power (optional) स्टीयरिंग के साथ 8 Forward + 2 Reverse गियर वाले गियरबॉक्स के साथ आता है। 

इस स्वराज कंपनी के इस ट्रैक्टर में Oil immersed / Dry Disc ब्रेक्स उपलब्ध किए गए हैं। यह स्वराज ट्रैक्टर टू व्हील ड्राइव में आता है, इसमें 6.00 x 16 फ्रंट टायर और 12.4 x 28 / 13.6 x 28 रियर टायर दिए गए हैं। 

भारतीय कृषि बाजार में स्वराज 735 एफई ट्रैक्टर की कीमत (Swaraj 735 FE Tractor Price) 5.85 लाख से 6.20 लाख रुपये एक्स शोरूम निर्धारित की गई है। इस स्वराज ट्रैक्टर के साथ 2 साल तक की वारंटी की सुविधा भी प्रदान की जाती है।

मधुमक्खी पालन के लिए प्रमुख प्रजातियां
मधुमक्खी पालन के लिए प्रमुख प्रजातियां

खेती-बाड़ी के अलावा किसान आज के समय में मधुमक्खी पालन की तरफ अपना रुझान कर रहे हैं। मधुमक्खी का पालन करने से किसानों को काफी अच्छा मुनाफा भी हांसिल हो रहा है। 

मधुमक्खी का सहद बेहद शुद्ध और सेहतमंद होता है। मधुमक्खी के शहद का सेवन करने से कई सारी बिमारियों से लड़ने में मदद मिलती है। 

अनेकों खूबियों से युक्त मधुमक्खी का शहद बाजार में काफी अच्छी कीमत पर बिकता है। इसलिए शहद उत्पादन करना हमेशा से काफी प्रचलन में रहा है। 

ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको मधुमक्खी की कुछ प्रमुख प्रजातियों के बारे में जानकरी देंगे। आप इन मधुमक्खियों का पालन करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं।    

पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी 

  • पहाड़ी या सारंग प्रजाति की मधुमक्खी स्वभाव से काफी ज्यादा खतरनाक होती है। 
  • यह मधुमक्खी अपने छत्ते को पेड़ों, पहाड़ों की गुफाओं जैसे ऊँचे स्थानों पर बनाने के चलते इसको रॉक बी की संज्ञा प्रदान की गई है। 
  • पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी के छत्ता 5-7 फीट लम्बा और 2-4 फीट चौड़ा होता है। 
  • पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी छत्ते से लगभग 30-35 किग्रा शहद प्राप्त हो जाता हैै। 
  • पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी के शहद में नमी की मात्रा तुलनात्मक अधिक होती है। 
  • पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी के स्वभाव व रहन-सहन की वजह से इसका पालन नहीं कर सकते हैं।

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भारतीय मौना

  • मधुमक्खी की इस प्रजाति की भारतीय मौना के नाम से जाना जाता है। 
  • भारतीय मौना मधुमक्खी का आकार पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी से छोटा और स्वभाव काफी शान्त होता है। 
  • भारतीय मौना मधुमक्खी प्रजाति की मधुमक्खी का आसानी से मौन गृहों में पालन किया जा सकता है।
  • भारतीय मौना अपना छत्ता घरों की दीवारों, पुराने मकानों की छतों व पेड़ों की शाखाओं पर बनाती है। 
  • भारतीय मौना मधुमक्खी के एक छत्ते से करीब 3-3.5 किग्रा शहद हांसिल हो सकता है। 

छोटी मौना 

छोटी मौना प्रजाति की मधुमक्खी आकार में अन्य मधुमक्खियों की तुलना में छोटा होता है। 

  • छोटी मौना मधुमक्खी का स्वभाव काफी शान्त और छोटी मौना मधुमक्खियों में डंक भी नहीं होता है। 
  • छोटी मौना मधुमक्खी की पालन करना बहुत ही आसान होता है। 
  • छोटी मौना अपना छत्ता घरों की दीवारों और पेड़ों के तनों में खोखले स्थान पर बनाते हैं।
  • छोटी मौना के छत्ते बहुत छोटे होते हैं, जिससे लगभग 0.5 किग्रा शहद हांसिल हो जाता है। 
  • छोटी मौना का पालन कम शहद उत्पादन क्षमता की वजह से व्यापारिक तौर पर नहीं किया जाता है।  
  • छोटी मौना प्रजाति की मधुमक्खियों के लिए सूखी जलवायु सबसे अनुकूल मानी जाती है।

इटैलियन मधुमक्खी

  • इटैलियन मधुमक्खी का आकार में मध्यम और स्वभाव शांत होता है। 
  • यह भारतीय मौना से लगभग 9 से 10 गुना ज्यादा शहद उत्पन्न करती है। 
  • इटैलियन मधुमक्खी की विभिन्न खूबियों के चलते इसका बड़े पैमाने पर मौन गृहों में पालन किया जाता है। 
  • इटैलियन मधुमक्खी इसके एक छत्ते से लगभग 45-181 किग्रा तक शहद प्राप्त हो जाता है।

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निष्कर्ष -

मधुमक्खी पालन आज के समय में काफी मुनाफा देने वाला व्यवसाय बनकर उभरा है। मधुमक्खी पालन कर आप काफी अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। 

प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर – फीचर्स, इंजन, फसल कटाई और कीमत
प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर – फीचर्स, इंजन, फसल कटाई और कीमत

प्रीत 987 कंबाइन हार्वेस्टर फसल काटने का असली नायक है। यह वर्तमान में उपलब्ध सबसे बेहतरीन प्रदर्शन, उत्पादकता और सेवा दक्षता का प्रतीक है।

नई विशेषताओं और फीचर्स के साथ प्रीत 987 अब भारत का सबसे लोकप्रिय और आदर्श कंबाइन हार्वेस्टर बन चुका है। इस लेख में हम आपको इस कंबाइन हार्वेस्टर से जुड़ी पूरी जानकारी प्रदान करेंगे।

प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर में शक्तिशाली 101 एचपी का इंजन होता है, जिसमें 110 पीएस @ 2200 आरपीएम की क्षमता वाला 6-सिलेंडर डीजल इंजन होता है।

इसका डिज़ाइन सरल है, कम रखरखाव लागत है, ईंधन की खपत कम है, और यह पर्यावरण के अनुकूल है।

इसका अनाज टैंक 2.52 मीटर बड़ा है, जो बड़ी क्षमता में साफ अनाज को संग्रहित करता है, जिससे अनलोड चक्र को कम करके प्रदर्शन को बेहतर बनाया जा सकता है।

इसमें 4 फॉरवर्ड और 1 रिवर्स गियर के साथ हैवी ड्यूटी ड्राई क्लच की सुविधा मिलती है।

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प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर की विशेषताएँ

  • इसमें लचीले अवतल के साथ थ्रेशिंग सिस्टम होता है, जो फसल की कटाई में न्यूनतम नुकसान के साथ सक्रिय पृथक्करण सुनिश्चित करता है।
  • इसकी थ्रेशिंग प्रणाली निरंतर और सौम्य थ्रेशिंग करती है।
  • बड़े पृथक्करण क्षेत्र वाले स्ट्रॉ वॉकर फसल की कटाई के दौरान न्यूनतम नुकसान सुनिश्चित करते हैं।
  • यह कंबाइन हार्वेस्टर 65 से 1275 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक फसल काट सकता है, और इसका कटर 14 फीट तक चौड़ा होता है, जिससे एक बार में अधिक क्षेत्र कवर किया जा सकता है।
  • इसका फ्यूल टैंक 365 लीटर का है, जिससे लंबे समय तक काम किया जा सकता है।

प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर से कौन सी फसलें काट सकते हैं?  

प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर मल्टीक्रॉप कंबाइन हार्वेस्टर है, जो गेहूं, धान, सोयाबीन, सूरजमुखी और सरसों जैसी पारंपरिक अनाज फसलों की कटाई के लिए डिज़ाइन किया गया है।

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अगर आपके पास प्रीत 987 स्टेलर कंबाइन हार्वेस्टर से संबंधित कोई सवाल हो, तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।