पूसा के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिकों ने कृषकों के लिए सलाह जारी की है। इसमें कहा गया है, कि जिन कृषकों की गेहूं की फसल 21-25 दिन की हो गई हो, वे अगले पांच दिनों तक मौसम शुष्क रहने की संभावना को ध्यान में रखते हुए पहली सिंचाई करें।
सिंचाई के 3-4 दिन उपरांत खाद की दूसरी मात्रा डालें। तापमान को मद्देनजर रखते हुए किसानों को सलाह है, कि वे पछेती गेहूं की बुवाई जितनी शीघ्र हो सके करें। बीज दर 125 किलो प्रति हेक्टेयर रखें।
गेहूं की उन्नत किस्में- एच. डी. 3059, एच. डी. 3237, एच. डी. 3271, एच. डी. 3369, एच. डी. 3117, डब्ल्यू. आर. 544, पी.बी.डब्ल्यू. 373, बुवाई से पूर्व बीजों को बाविस्टिन @ 1.0 ग्राम या थायरम @ 2.0 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।
जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो किसान क्लोरपाईरिफास (20 ईसी) @ 5.0 लीटर/हक्टेयर की दर से पलेवा के साथ या सूखे खेत में छिड़क दें।
नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की मात्रा 150, 60 व 40 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।
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देर से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का काम करें। औसत तापमान में कमी को ध्यान में रखते हुए सरसों की फसल में सफ़ेद रतुआ रोग की नियमित रूप से निगरानी करें।
इस मौसम में तैयार खेतों में प्याज की रोपाई से पहले अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद और पोटास उर्वरक का प्रयोग जरूर करें।
हवा में अधिक नमी के कारण आलू और टमाटर में झुलसा रोग आने की संभावना है। इसलिए फसल की नियमित रूप से निगरानी करें।
लक्ष्ण दिखाई देने पर डाईथेन-एम-45 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
जिन किसानों की टमाटर, फूलगोभी, बंदगोभी और ब्रोकली की पौधशाला तैयार है, वह मौसस को ध्यान में रखते हुए पौधों की रोपाई कर सकते हैं।
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गोभीवर्गीय सब्जियों में पत्ती खाने वाले कीटों की निरंतर निगरानी करते रहें। यदि संख्या अधिक हो तो बी.टी.@ 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या स्पेनोसेड दवा @ 1.0 एम.एल./3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
इस मौसम में किसान सब्जियों की निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को नष्ट करें, सब्जियों की फसल में सिंचाई करें और उसके बाद उर्वरकों का बुरकाव करें।
इस मौसम में मिलीबग के बच्चे जमीन से निकलकर आम के तनों पर चढ़ेंगे। इसको रोकने के लिए किसान जमीन से 0.5 मीटर की ऊंचाई पर आम के तने के चारों तरफ 25 से 30 से.मी. चौड़ी अल्काथीन की पट्टी लपेटें। तने के आस-पास की मिट्टी की खुदाई करें जिससे उनके अंडे नष्ट हो जाएंगे।
सापेक्षिक आर्द्रता के ज्यादा रहने की आशंका को मद्देनजर रखते हुए किसानों को सलाह है कि वे अपनी गेंदे की फसल में पुष्प सड़न रोग के आक्रमण की निगरानी करते रहें।
किसानों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाएं, क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण अधिक होता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों की संभावना काफी बढ़ जाती है।
इससे उत्पन्न धुंध की वजह से सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुंचती हैं, जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है।
इसकी वजह से भोजन बनाने में कमी आती है। इस कारण फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता भी काफी प्रभावित होती है।
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किसानों को सलाह है, कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें। इससे मृदा की उर्वकता बढ़ती है। साथ ही, यह पलवार का भी काम करती है, जिससे मृदा से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
नमी मिट्टी में संरक्षित रहती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का इस्तेमाल @ 4 कैप्सूल/हेक्टेयर किया जा सकता है।