भारत में गेहूँ एक मुख्य फसल है। रबी की फसल के रूप में गेहूँ की खेती कि जाती है, गेहूँ का लगभग 97% क्षेत्र सिंचित है।
भारत में गेहूँ का सबसे ज्यादा उत्पादन पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से प्राप्त होता है। गेहूँ मुख्यत रोटी के रूप में प्रयोग करते हैं,
जिसमे प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा गेहूँ से ब्रेड, मैक्रोनी, पास्ता और कई अन्य खादय पदार्थ बनाये जाते है।
गेहूँ की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त माना जाता है।
इस लिए गेहूँ की खेती रबी के मौसम में की जाती है। इसकी खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है। गेहूँ की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है,
लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट,भारी दोमट, मटियार तथा मार एवं कावर भूमि में भी की जा सकती हैI साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूँ की खेती की जा सकती है।
ये भी पढ़ें: भारत में कितने प्रकार की मिट्टी पाई जाती है?
गेहूँ की बुवाई अधिकतर धान की फसल के बाद ही की जाती है, पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताईयां करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए।
डिस्क हैरो से धान के ठूंठे कट कर छोटे छोटे टुकड़ों में हो जाते हैं इन्हे शीघ्र सडाने के लिए 10-12 कि०ग्रा० यूरिया प्रति एकड़ कि दर से पहली जुताई में अवश्य दे देनी चाहिएI
इससे ठूंठे, जड़ें सड़ जाती हैं ट्रैक्टर चालित रोटावेटर से एक ही जुताई द्वारा खेत पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है। धान की कटाई के बाद गेहूँ की सीधी बुवाई भी की जा सकती है। हैप्पी सीडर या जीरो ड्रिल से गेहूँ की सीधी बुवाई की जा सकती है।
गेहूँ की किस्में का चुनाव भूमि एवं साधनों की दशा एवं स्थित के अनुसार किया जाता है, मुख्यतः तीन प्रकार की किस्में होती है सिंचित दशा वाली, असिंचित दशा वाली एवं उसरीली भूमि की, आसिंचित दशा वाली किस्में निम्न हैं-इसमे मगहर के 8027, इंद्रा के 8962, गोमती के 9465, के 9644, मन्दाकिनी के 9251, एवं एच डी आर 77 आदि हैं।
सिंचित दशा वाली किस्में- सिंचित दशा में दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती हैं, एक तो समय से बुवाई के लिए- इसमे देवा के 9107, एच पी 1731, राज्य लक्ष्मी, नरेन्द्र गेहूँ 1012, उजियार के 9006, डी एल 784-3, (वैशाली) भी कहतें हैं, एच् यू डब्लू 468, एच् यू डब्लू 510, एच् डी 2888, यू पी 2382, पी बी डब्लू 443, पी बी डब्लू 343, एच् डी 2824 आदि हैंI
देर से बुवाई के लिए त्रिवेणी के 8020, सोनाली एच् पी 1633 एच् डी 2643, गंगा, डी वी डब्लू 14, के 9162, के 9533, एच् पी 1744, नरेन्द्र गेहूँ 1014, नरेन्द्र गेहूँ 2036, नरेन्द्र गेहूँ 1076, यू पी 2425, के 9423, के 9903, एच् डब्लू 2045,पी बी डब्लू 373,पी बी डब्लू 16 आदि हैंI
उसरीली भूमि के लिए के आर एल 1-4, के आर एल 19, राज 3077, लोक 1, प्रसाद के 8434, एन डब्लू 1067, आदि हैं, उपर्युक्त का चयन अपने खेत और मिट्टी की दशा को समझकर करना चाहिएI
गेहूँ कि बीजदर लाइन से बुवाई करने पर 40 कि०ग्रा० प्रति एकड़ तथा मोटा दाना 50 कि०ग्रा० प्रति एकड़ तथा छिडकाव से बुवाई कि दशा से 60 कि०ग्रा० सामान्य तथा मोटा दाना 65 कि०ग्रा० प्रति एकड़ कि दर से प्रयोग करते हैं I
बुवाई के पहले बीजशोधन अवश्य करना चाहिए बीजशोधन के लिए बाविस्टिन, कार्बेन्डाजिम कि 2 ग्राम मात्रा प्रति कि०ग्रा० कि दर से बीज शोधित करके ही बीज की बुवाई करनी चाहिए I
ये भी पढ़ें: मल्टी फार्मिंग - खेती की इस तकनीक को अपना कर किसान बन सकते हैं मालामाल
गेहूँ की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करनी चाहिए उपजनहीं तो में कमी हो जाती है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फसल की समय पर बुवाई करना बहुत आवश्यक है देर से बुवाई की गई फसल की उपज कम हो जाती है।
गेहूँ की बुवाई सीड्रिल से करनी चाहिए तथा गेहूँ की बुवाई हमेशा लाइन में करें। गेहूँ की बुवाई का काम 15-25 नवम्बर तक कर लेना चाहिए।
किसान भाइयों उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए, गेहूँ की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 60 कि०ग्रा० नाइट्रोजन, 30 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 20 कि०ग्रा० पोटाश प्रति एकड़ तथा देर से बुवाई करने पर 80 कि०ग्रा० नाइट्रोजन, 20 -25 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 10 -15 कि०ग्रा० पोटाश प्रति एकड़, अच्छी उपज के लिए 40 कुंटल प्रति एकड़ सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिएI
गोबर की खाद एवं आधी नाइट्रोजन की मात्रा तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में या बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए, शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई पर तथा बची शेष मात्रा दूसरी सिंचाई पर प्रयोग करनी चाहिए।
गेहूँ की फसल में रबी के सभी खरपतवार जैसे बथुआ, प्याजी, खरतुआ, हिरनखुरी, चटरी, मटरी, सैंजी, अंकरा, कृष्णनील, गेहुंसा, तथा जंगली जई, आदि खरपतवार लगते हैंI
इनकी रोकथाम निराई- गुड़ाई करके की जा सकती है, लेकिन कुछ रसायनों का प्रयोग करके रोकथाम किया जा सकता है जो की निम्न है -
ये भी पढ़ें: मक्का की फसल उत्पादन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी
जैसे की पेंडामेथेलिन 30 ई सी 3.3 लीटर की मात्रा 200-250 लीटर पानी में मिलकर फ़्लैटफैन नोजिल से प्रति एकड़ की दर से छिडकाव बुवाई के बाद 1-2 दिन तक करना चाहिएI
जिससे की खेत में खरपतवारों का जमाव न हो सके, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो को नष्ट करने के लिए बुवाई के 30-35 दिन बाद एवं पहली सिंचाई के एक सप्ताह बाद 2,4,डी सोडियम साल्ट 80% डब्लू. पी. की मात्रा 200 ग्राम 200-250 लीटर पानी में मिलकर 35-40 दिन बाद बुवाई के फ़्लैटफैन नोजिल से छिडकाव करना चाहिएI
इसके बाद जहाँ पर चौड़ी एवं संकरी पत्ती दोनों ही खरपतवार हों वहां पर सल्फोसल्फ्युरान 75% 32 ऍम. एल. प्रति हैक्टर इसके साथ ही मेटासल्फ्युरान मिथाइल 5 ग्राम डब्लू. जी. 20 ग्राम प्रति एकड़ बुवाई के 30-35 दिन बाद छिडकाव करना चाहिए, इससे खरपतवार नहीं उगते है या उगते हैं तो नष्ट हो जाते हैं I
सामान्यतः गेहूँ की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 6 सिचाईयों की आवश्यकता पड़ती है ये निम्न अवस्थाओ में करनी चाहिए I
पहली क्राउन रूट या ताजमूल अवस्था में बुवाई के 20-25 दिन बाद, दूसरी टिलरिंग या कल्ले निकलते समय बुवाई के 40-45 दिन बाद, तीसरी सिंचाई दीर्घ संघ या गांठे बनते समय बुवाई के 60-65 दिन बाद, तथा चौथी सिंचाई फ्लावरिंग स्टेज या पुष्पावस्था बुवाई के 80-85 दिन बाद एवं पाचवी सिंचाई मिल्किंग स्टेज या दुग्धावस्था बुवाई के 100-105 दिन बाद, आखिरी सिंचाई यानि छठी दाना भरते समय बुवाई के 115-120 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिएI
फसल पकते ही बिना प्रतीक्षा किये हुए कटाई करके तुरंत ही मड़ाई कर दाना निकाल लेना चाहिए, और भूसा व दाना यथा स्थान पर रखना चाहिए, अत्यधिक क्षेत्रो वाली फसल कि कटाई कम्बाईन से करनी चाहिए इसमे कटाई व मड़ाई एक साथ हो जाती है जब कम्बाईन से कटाई कि जाती हैI
मौसम का बिना इंतजार किए हुए उपज को बखारी या बोरो में भर कर साफ सुथरे स्थान पर सुरक्षित कर सूखी नीम कि पत्ती का बिछावन डालकर करना चहिए या रसायन का भी प्रयोग करना चाहिए।
असिंचित दशा में 18 - 20 कुंटल प्रति एकड़ होती है, सिंचित दशा में समय से बुवाई करने पर 25 -26कुंटल प्रति एकड़ पैदावार मिलती है, तथा सिंचित देर से बुवाई करने पर 15-25 कुंटल प्रति एकड़ तथा उसरीली भूमि में 15 कुंटल प्रति एकड़ तक पैदावार प्राप्त होती है।