By: tractorchoice
Published on: 18-Aug-2023
इस आर्टिकल में हम बात करने वाले हैं मिट्टी के प्रकार के बारे में। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां पर ज्यादातर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती हैं। उस दृष्टि से भारत की मिट्टियां किसानों के लिए काफी ज्यादा महत्व रखती हैं। भारत में विभिन्न तरह की मिट्टियां पाई जाती हैं।
विभिन्न तरह की मिट्टियों में विभिन्न तरह के रासायनिक तत्व पाए जाते हैं और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। अगर आप भी भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के बारे में विस्तार से जानना चाहते है तो इसे अंत तक पढ़े।
भारत में कुल 8 प्रकार की मिट्टी पाई जाती हैं।
इसमें जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल और पीली मिट्टी,पर्वतीय मिट्टी, रेतीली मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी, लवणीय मिट्टी और पीट मिट्टी शामिल हैं। इन सभी प्रकार की मिट्टियों के बारे में विस्तार से जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़े।
जलोढ़ मिट्टी
- भारत में जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक क्षेत्रफल में पायी जाने वाली मिट्टी है। इसे दोमट मिट्टी भी कहा जाता है | जलोढ़ मिट्टियाँ भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 43 प्रतिशत भाग पर पायी जाती हैं।
- ये मिट्टी दूसरी मिट्टियों की तुलना में ज्यादा उपजाऊ होती है। लेकिन जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम पायी जाती है।
- जिस स्थान पर जलोढ़ मिट्टी अधिक पायी जाती है। वहां पर फसल के उत्पादन के लिये यूरिया खाद डालना बहुत ही आवश्यक होता है।
- गेहूं की फसल के लिये जलोढ़ मिट्टी सबसे उपयोगी मानी जाती है। इसके अलावा इस मिट्टी में धान एवं आलू की खेती भी की जाती है।
- इस मिट्टी का निर्माण बालुई मिट्टी एवं चिकनी मिट्टी के मिलने से हुआ है। जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्का मटमैला होता है।
काली मिट्टी
- भारत में जलोढ़ मिट्टी के बाद सबसे अधिक काली मिट्टी पाई जाती है। इसलिये क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाये तो भारत में काली मिट्टी का दूसरा स्थान है।
- काली मिट्टी सबसे अधिक महाराष्ट्र और दूसरे स्थान पर गुजरात राज्य में पाई जाती है। काली मिट्टी पर कपास की खेती सबसे ज्यादा की जाती है।
- इसलिए इसे काली कपास की मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। वहीं दक्षिण भारत में काली मिट्टी को ‘रेगूर’ (रेगूड़) के नाम से जाना जाता है।
- केरल में काली मिट्टी को ‘शाली’ का नाम दिया गया है और वहीँ उत्तर भारत में काली मिट्टी को ‘केवाल’ नाम से जाना जाता है।काली मिट्टी में लोहा, चूना, मैग्नीशियम एवं एलूमिना की मात्रा अधिक पायी जाती है।
लाल और पिली मिट्टी
- क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाये तो भारत में लाल मिट्टी तीसरे स्थान पर आती है। इस मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से हुआ है।
- लाल मिट्टी तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक विस्तृत है। लाल मिट्टी में आयरन ऑक्साइड (Fe2O3) पाया जाता है, जिसकी वजह से इसका रंग लाल दिखाई देता है। इस मिट्टी में अधिकतर मोटे अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा, मूँगफली, अरहर, मक्का, आदि उगाये जाते हैं।
- इसके अलावा इस मिट्टी में धान की भी खेती की जाती है । लाल मिट्टी को ही पीली मिट्टी भी कहा जाता है।
- इस मिट्टी को पीली इसलिए बोला जाता है क्योंकि जब अधिक वर्षा हो जाती है, लाल मिट्टी के रासायनिक तत्व अलग हो जाते है। जिसकी वजह से मिट्टी का रंग पीला दिखाई देने लगता है।
लैटेराइट मिट्टी
- लैटेराइट शब्द "लेटर" शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है "ईंट"। इस प्रकार की मिट्टी भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
- इस प्रकार की मिट्टी चट्टानों के भारी अवसादन द्वारा बनी है। इसमें आयरन ऑक्साइड होता है जो मिट्टी को गुलाबी रंग देता है। लैटेराइट मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है और यह अम्लीय होती है।
- यह आमतौर पर पश्चिमी और पूर्वी घाट, विंध्य, मालवा पठार और सतपुड़ा के कई हिस्सों में पायी जाती है। लैटेराइट मिट्टी रबर, नारियल, कॉफी, काजू, चीनी, रागी और चावल उगाने के लिए पर्याप्त है।
पर्वतीय मिट्टी
- इसे पहाड़ी मिट्टी भी बोला जाता है। यह मिट्टी कार्बनिक पदार्थों के संचय और अवसादन के कारण बनती है। इस प्रकार की मिट्टी ह्यूमस से भरपूर होती है।
- ये हिमालयी क्षेत्रों, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, प्रायद्वीपीय भारत, पूर्वी घाट और असम में पाई जाती है।
मरुस्थलीय मिट्टी
- जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है, ये मिट्टी कम वर्षा वाले रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टी में 90 से 95% रेत और 5 से 10% मिट्टी होती है।
- इस मिट्टी में फॉस्फेट की मात्रा अधिक होती है। मरुस्थलीय मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है। रेगिस्तानी मिट्टी केवल राजस्थान, गुजरात के कच्छ के रण, हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
- रेगिस्तानी मिट्टी में कैक्टस और झाड़ियाँ उगती है।
पीट मिट्टी
- आर्द्र जलवायु परिस्थितियों के कारण मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की अधिक संख्या के जमा होने से पीट मिट्टी का निर्माण होता है। पीट मिट्टी को दलदली मिट्टी भी कहा जाता है।
- भारत में दलदली मिट्टी का क्षेत्र केरल, उत्तराखंड एवं पश्चिम बंगाल में उपलब्ध है। दलदली मिट्टी में भी फॉस्फोरस एवं पोटाश की अधिक मात्रा नहीं पायी जाती है।
- लेकिन इसमे लवण की अधिक मात्रा पायी जाती है। दलदली मिट्टी भी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है।
लवणीय और क्षारीय मिट्टी
- इस प्रकार की मिट्टी में सोडियम पोटेशियम और मैग्नीशियम की उच्च मात्रा होती है और यह अत्यधिक उपजाऊ होती है।
- शुष्क जलवायु और खराब जल निकासी के कारण इस प्रकार की मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होती है।सिंचाई और जल निकासी में सुधार करके इस को सुधारा जा सकता है।
- इसके अलावा जिप्सम डाल कर और नमक प्रतिरोधी फसलों की खेती करके मिट्टी की उर्वरता को फिर से हासिल किया जा सकता है।
- इस प्रकार की मिट्टी मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और महाराष्ट्र में पाई जाती है। दलहनी फसल उगाने के लिए मिट्टी उपयुक्त होती है।