भारत में आज कल के किसान परंपरागत फसलों को छोड़कर नकदी और औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं। इससे उनकी आय भी बढ़ती है। आज हम आपको ऐसी ही फसल अश्वगंधा की खेती की पूरी जानकारी दे रहे हैं अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते हैं तो इस लेख को पूरा पढ़े।
सितंबर और अक्टूबर में अश्वगंधा की खेती की सबसे ज्यादा की जाती है। उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य अश्वगंधा की सबसे अधिक खेती करते हैं।अश्वगंधा के फल, बीज और छाल से कई दवाइयां बनाई जाती हैं। अश्वगंधा के बीज 7 से 8 दिन में अंकुरित हो जाते हैं। हर दिन अश्वगंधा की मांग बढ़ती जा रही है। जनवरी से मार्च तक अश्वगंधा के पौधे काटते हैं।
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अश्वगंधा एक वर्षीय फसल में उगाई जाती है। अश्वगंधा सबसे प्रसिद्ध जड़ी बूटियों में से एक है। लाइफस्टाइल रोगों में, अश्वगंधा को तनाव और चिंता को दूर करने में सबसे अच्छा माना जाता है। अश्वगंधा के कई उपयोगों के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। धान, गेहूं और मक्का की खेती से 50 प्रतिशत तक अधिक मुनाफा अश्वगंधा की खेती से मिल सकता है। यही कारण है कि बिहार और यूपी के किसान भी अश्वगंधा की बड़ी मात्रा में खेती कर रहे हैं।
बिहार के बेगूसराय और भागलपुर जिलों में पहली बार अश्वगंधा की खेती की गई, जो काफी सफल रही है। राज्य के कृषि वैज्ञानिकों ने अब किसानों को उत्तर बिहार के गोपालगंज, सिवान और सारण में इसे लगाने की सलाह दी है। केंद्र सरकार की जलवायु अनुकूल खेती के तहत बिहार में औषधीय पौधा अश्वगंधा की खेती काफी लोकप्रिय है।
अश्वगंधा की खेती के लिए बलुई, दोमट और लाल मिट्टी सबसे अच्छी मिट्टी हैं। 7 से 8 के बीच मिट्टी का पीएच मान रहता है तो अश्वगंधा की पैदावार अच्छी हो सकती है। अश्वगंधा की बुआई तुलनात्मक रूप से गर्म स्थानों पर होती है। अश्वगंधा की खेती के लिए 500–750 मिलीमीटर वर्षा और 25–30 डिग्री तापमान की जरूरत है। खेत में पौधे की वृद्धि के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिए। अश्वगंधा की जड़ों का अच्छा विकास शरद ऋतु में एक से दो बारिश में होता है।
अश्वगंधा की खेती के लिए 10 से 12 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यक होती है। बीज का अंकुरण आम तौर पर 7 से 8 दिन में होता है। अश्वगंधा की बुवाई दो प्रकार की होती है। पहला तरीका है कतार विधि। इसमें पौधों से 5 सेंटीमीटर और लाइन से 20 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है। दूसरी प्रक्रिया में छिड़काव विधि से अश्वगंधा अच्छी तरह से होती है। हल्की जुताई कर खेत में रेट डाला जाता है। 1 मीटर में चालिस पौधे लगे हैं। जनवरी से मार्च तक अश्वगंधा की कटाई होती है। जड़ को छोटे टुकड़े में काटकर सुखाकर रखा जाता है। अश्वगंधा के बीज और फूल को सुखाकर अलग कर लिया जाता है।
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जब सितंबर और अक्टूबर में बारिश की गतिविधियां कम हो जाती हैं तब किसान इसकी बुवाई करते हैं। अश्वगंधा एक कठोर और सूखा सहिष्णु पौधा है। इसको भारतीय जिनसेंग या जहर आंवला या शीतकालीन चेरी के रूप में भी जाना जाता है और यह भारत के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भागों में उगाया जाने वाला एक देशी औषधीय पौधा है। अश्वगंधा जड़ी बूटी एक महत्वपूर्ण प्राचीन पौधा है जिसकी जड़ों का उपयोग भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति जैसे आयुर्वेद और यूनानी में किया गया है।
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सूखे पत्ते और लाल-नारंगी जामुन रंग फसल की परिपक्वता का संकेत देते हैं। अश्वगंधा की फसल कटाई के लिए 160 से 180 दिन बाद तैयार हो जाती है। पूरे पौधे को सुखाकर 8 से 10 सेमी के छोटे टुकड़ों में काट दिया जाना चाहिए।