किसान भाइयों जैसा कि आजकल आप खबरों में देख रहे हैं कि किसानों को अपनी रबी सीजन के लिए उर्वरक व खाद की व्यवस्था करने में कितनी दिक्कत हो रही है।
केवल ऐसे किसान खुश हैं, जो ऑर्गेनिक तकनीक से अपनी खेती कर रहे हैं। खाद्य सुरक्षा के साथ मानव स्वास्थ को भी बेहतर रखना बेहद जरूरी है।
हालाँकि, कई मजबूरी और अन्य कारणों के चलते रासायनिक खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे में आज हम आपको उर्वरक के समुचित और सही उपयोग से संबंधित जानकारी देने वाले हैं।
गेहूं फसल को नाइट्रोजन 120 किग्रा प्रति हेक्टेयर, फास्फोरस 60 किग्रा प्रति हेक्टेयर और पोटाश 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत होती है।
किसान इसकी पूर्ति डीएपी के अतिरिक्त विभिन्न उर्वरक विकल्प के माध्यम से कर सकते हैं।
कृषि विभाग के अधिकारी ने उर्वरक उपयोग करने के लिये किसानों को सलाह दी है, कि गेहूं फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करने हेतु डीएपी के स्थान पर एनपीके उर्वरक सबसे अच्छा विकल्प है।
यूरिया 213 किलो, एनपीके 187 किलो, एमओपी 17 किलो प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसी तरह यूरिया 260 किलो, एसएसपी 375 किलो, एमओपी 66 किलो प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
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उप संचालक कृषि ने जानकारी देते हुए बताया कि बाजार में एनपीके के विभिन्न विकल्प 12ः32ः16 या 10ः26ः26 एवं 16ः16ः16 एवं 20ः20ः13 के नाम से उपलब्ध हैं।
बुवाई के समय एनपीके से फसलों में संतुलित मात्रा में पोषक तत्व आधार रूप से पौधे को उपलब्ध हो जाते हैं। इसके उपयोग से अलग से अन्य खाद की मात्रा देने की आवश्यकता नहीं होती है।
संतुलित उर्वरक के उपयोग से उत्पादन लागत में कमी होती है और साथ ही उत्पादकता में वृद्धि होती है।
इसलिये किसान डीएपी उर्वरक के स्थान पर एनपीके उर्वरक का उपयोग करें। मिट्टी परीक्षण के अनुशंसा अनुसार संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें।
भारत सरकार द्वारा मृदा का स्वास्थ्य अच्छा रहे एवं वातावरण प्रदूषित न हो इसको ध्यान में रखकर नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी के इस्तेमाल की सलाह दी जा रही है।
इसलिए किसानों को सलाह है, कि गेहूं फसल में दूसरी एवं तीसरी सिंचाई में दानेदार यूरिया के स्थान पर नैनो यूरिया का उपयोग करें, जिससे कृषि में लागत भी कम होगी और उत्पादन में भी अपेक्षाकृत बढ़ोतरी होगी।