गंगातिरी यह गाय की एक नस्ल है। आज इस आर्टिकल में हम आपको बतायेंगे गाय की इस नस्ल में होने वाली बीमारियों और उनके रोकथाम के बारे में।
पशुओं में होने वाला यह पीलिया रोग दुधारू पशु के लिए काफी नुक्सानदायक होता है। पीलिया भी कई प्रकार का होता है जैसे :
ये भी देखें: भारत की सबसे ज्यादा दूध देने वाली टॉप 4 भैसों की नस्लें
तिल्ली का रोग पशुओं में खराब पानी और खुराक के कारण होता है। इस रोग के कारण पशु के शरीर से लुक जैसे खून बहने लगता है।
यह बीमारी तेज बुखार के रूप में होती है। यह बीमारी अचानक भी हो सकती है और एकाएक भी है। इस बीमारी के कारण पशु का शरीर अकड़ जाता है और पशु को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, और पशु को दौरे पड़ने लग जाते है।
इस रोग की रोकथाम के लिए पशु को हर साल टीके लगवाने चाहिए। मृत पशु को कम से कम 1 मीटर गहरे गड्डे में दवा देना चाहिए। रोग से ग्रस्त पशु के संपर्क में आने वाली सभी वस्तुओं को जला देना चाहिए।
पशुओं में होने वाली यह एक संक्रामक बीमारी है। यह बीमारी एनाप्लाज़मा मार्जिनल के कारण होते है। इस रोग के कारण पशु में खून की कमी पड़ जाती है और पशु के नाक से तरल गहरा पदार्थ बहने लगता है।
इस रोग के कारण पशु को पीलिया जैसी बीमारियाँ हो जाती है। इस रोग में पशु के मुँह से लार टपकने लगती है।
यदि पशु इस बीमारी से ग्रस्त है तो पशु का सीरोलोजिकल टेस्ट करवाना चाहिए। यदि पशु की ये जांच सकारात्मक आती है तो इस रोग की रोकथाम के लिए पशु को अकार्डीकल दवाई दे। या फिर किसी अन्य डॉक्टर से इसका उपचार करवाए।
पशु को होने वाली ये बीमारी पशु के आहार में पोषक तत्व का न होना या फिर खराब पोषण प्रबंधन करना आदि के कारण होता है।
ये भी देखें: भारत में पाई जाने वाली देशी गायों की प्रमुख नस्लें
अनीमिया के इस रोग के कारण पशु की मासपेशियों में कमजोरी आनी लगती है, पशु को बुखार आ जाता है और पशु तनाव महसूस करने लग जाता है।
अनीमिया रोग की रोकथाम के लिए पशु को 15 मिलीग्राम आयरन डेक्सट्रिन का टीका लगवाए। इसके अलावा पशु को आहार में विटामिन ए, बी और ई जैसे पोषक तत्वों से भरपूर आहार दे।
इस रोग के कारण पशु के खुरों के बीच में घाव हो जाते है। इस रोग के कारण दुधारू पशु की दूध देने की क्षमता काफी कम हो जाती है इसके अलावा पशु को बुखार होना, मुँह में से पानी निकलना, भूख न लगना पशु का भार कम हो जाना ऐसी बीमारियां देखने को मिलती है।
यह बीमारी एक पशु से दूसरे पशु में काफी आसानी से फ़ैल जाती है। दुधारू पशु के बच्चे को यह बीमारी दूध पीते वक्त हो सकती है। इसीलिए इस बीमारी से बचाव के लिए रोगी पशु के चारा खाने के बर्तन और अन्य चीजों के संपर्क से दूसरे पशु को दूर रखे।
रोगी पशु को अन्य पशुओं से दूर रखे। इस बीमारी के रोकथाम के लिए पशु को टीके लगवाए। खुर पका रोग के नियंत्रण के लिए फिनाइल का उपयोग कर सकते है। इसके अलावा मुँह के छालों के लिए लाल दवाई वाले पानी का उपयोग कर सकते है।
मैग्नेसियम की कमी सिर्फ गाय के इस नस्ल में ही नहीं बल्कि अन्य पशु जैसे भैंस, बछड़ा और कटड़ा जैसे पशुओं में भी हो सकती है।
ये भी देखें: भैंस की प्रमुख नस्लें
इस रोग के कारण पशुओं में मिर्गी दौरे पड़ने लगते है और इसकी कमी के कारण पशु की मृत्यु भी हो सकती है। बछड़ो या कटड़ों में इस रोग की रोकथाम के लिए उन्हें तीन महीने की आयु के बाद भी दूध दिया जाना चाहिए। दूध में मैग्नेसियम पाया जाता है, जो पशुओं में इस बीमारी को रोकने के लिए काफी सहायक होता है।
इस रोग की रोकथाम के लिए पशु के आहार में 5 ग्राम मैग्नीशियम ऑक्साइड और 8 ग्राम मैगनीश्यिम कार्बोनेट डाले। इससे पशु को होने वाली मैग्नेसियम की कमी को दूर किया जा सकता है।
इस रोग का मुख्य लक्षण है पशु का चलते समय डगमगाना या लडख़ड़ाना, मुँह में से झाग निकलना और आँखे घुमाना इस रोग का मुख्य लक्षण है। इस रोग के कारण पशु सही तरीके से चलने में असमर्थ रहता है
इस रोग की रोकथाम के लिए 25 प्रतिशत कैल्शियम वरसेनेट के मात्रा पशु को दिन में दो बार देनी चाहिए। कैल्शियम वरसेनेट को पशु चारे में मिलाकर भी दिया जा सकता है।
इस रोग के कारण पशु का तापमान सामान्य तापमान से भी कम हो जाता है। यह पशु में होने वाली संक्रामक बीमारी है। इस रोग के कारण पशु को ताज बुखार हो जाता है, मुँह से पानी टपकने लगता है और पशु की दूध देने की क्षमता काफी कम हो जाता है। इस रोग के कारण पशु की भूख लगने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।
इस रोग के कारण पशु के नाक, मुँह और आँखों पर सूजन आ जाती है। पशु की जीभ , जबड़ों और मसूड़ों पर जख्म हो जाते है। यह बीमारी फैलने में लगभग 6 से 7 दिन लगाती है।।
जब तक यह बीमारी प्राथमिक अवस्था में है तब तक इस का इलाज स्ट्रेप्टोमाइसिन या पेंसीलिन से किया जा सकता है।