By: tractorchoice
Published on: 22-Jan-2025
किसान भाईयों, भारत में कृषि ही सबसे बड़ी आबादी के जीवनयापन की आधारशिला है। कृषि के माध्यम से यहां के बहुत सारे लोग अपने परिवार का पेट पोषण कर पाते हैं।
कृषि क्षेत्र में किसानों के सामने सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी फसल को कीट और बीमारियों से कैसे बचाया जाए। फसल में कीट और रोग उपज को बर्बाद करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
जब कि किसान की सारी पूँजी उसकी फसल ही है। इसलिए ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको कुछ कीट और बीमारियों के बारे में जानकारी देंगे। यह वह कीट और बीमारियां हैं जो किसान की नींबू वर्गीय खेती को प्रभावित करती हैं।
नींबू वर्गीय फसलों में कीट रोग की रोकथाम
सिल्ला कीट
सिल्ला कीट फसल की बढ़वार के दौरान किसी भी वक्त आक्रमण कर सकता है।
- सिल्ला कीट के छोटे कीट संतरी रंग के और प्रौढ़ कीट सलेटी रंग के होते हैं।
- ये कीट पत्तों और टहनियों से रस चूसकर पौधे को बर्बाद कर देते हैं। इसके परिणाम स्वरूप पत्ते सूख जाते हैं और मुड़ जाते हैं।
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रोकथाम
किसान साथियों आपको अपनी फसल के टहनियों पर इसका प्रकोप दिखे तो ट्राइज़ोफॉस + डैल्टामैथरिन 2 मि.ली. या प्रोफैनोफॉस + साइपरमैथरिन 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में मिलाकर या क्विनलफॉस 1 मि.ली. या एसीफेट 1 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना अच्छा रहेगा। इसके बाद 15 दिन के बाद फिर एक बार छिड़काव अवश्य करें।
पत्ते का सुरंगी कीट
पत्ते का सुरंगी कीट नींबू जाति के फलों का सबसे खतरनाक कीट है।
- सुरंगी कीट के संक्रमण की तेजी से 20% प्रतिशत फसल की पैदावार का नुकसान होता है।
- यह कोमल पत्तों और टहनियों पर आक्रमण करता है और छेद बना देता है।
- इस कीट के गंभीर संक्रमण की स्थिति में पत्ते पेड़ से नीचे गिरना शुरू हो जाते हैं।
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रोकथाम
- अगर सुरंगी कीट का हमला नजर आये तो रोकथाम के लिए प्रोफैनोफोस 50 ई सी 60 मि.ली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर नए फलों और पत्तों पर 8 दिनों के समयांतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
- अगर जरूरत पड़े तो 15 दिनों के उपरांत दोबारा छिड़काव करें या फैनवैलरेट 500 मि.ली. या ट्राइज़ोफॉस 250 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 200 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 800 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
चेंपा
- किसान साथियों आपने चेंपा कीट के बारे में तो सुना ही होगा यह नींबू जाति के फलों का खतरनाक कीट माना जाता है।
- यह पौधे का रस चूसकर इसकी उपज को काफी कमजोर बनाता है।
- चेंपा का आक्रमण गंभीर होने के बाद नए पत्ते मुड़ जाते हैं और आकार भी विकृत हो जाता है।
- यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे प्रभावित इलाकों पर फंगस बन जाती है।
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रोकथाम
चेंपा कीट पर काबू पाने के लिए डाइमैथोएट 10 मि.ली. या मिथाइल डेमेटन 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर अवश्य छिड़काव करें।
जूं
किसान भाई फसल में जूं का आक्रमण नजर आने पर डिकोफोल 1.75 मि.ली. या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें। कृषक आवश्यकता पड़ने पर 15 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव करें।
मिली बग
यदि मिली बग जैसे रस चूसने वाले कीट का संक्रमण नजर आए तो रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफॉस 50 ई सी 500 मि.ली. को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
पत्ता लपेट सुंडी
पत्ता लपेट सुंडी पत्तों को इकट्ठा करके इसमें से भोजन लेती है। यह पौधे के विकास को भी काफी ज्यादा प्रभावित करती है, जिससे पौधे का कद ज्यादा लंबा नहीं हो पाता है।
रोकथाम
पत्ता लपेट सुंडी का संक्रमण दिखने पर क्लोरपाइरीफॉस 1250 मि.ली. या क्विनलफॉस 800 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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बीमारियां और रोकथाम
कोहड़ रोग
- कोहड़ रोग काफी खतरनाक रोग है।
- अगर हम इस रोग के लक्षणों की बात करें तो यह पौधों के पत्तों, टहनियां और फलों पर आसानी से देखा जा सकता है।
- शुरूआती समय में पत्तों पर पीले धब्बे नजर आते हैं। इसके बाद यह बड़े और सफेद हो जाते हैं। साथ ही, यह पत्ते दोनों तरफ से खुरदरे से हो जाते हैं।
रोकथाम
- बागों में लगे हुए रोग से संक्रमित टहनियां, फलों और पत्तों को अलग कर दें।
- किसान भाई इसके बाद संक्रमित हिस्सों पर बोर्डो पेस्ट (1 किलो मोरचिउड +1 किलो चूना + 10 लीटर पानी) डालें।
- इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 18 ग्राम और स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 6 ग्राम को 10 लीटर जल में मिलाकर छिड़काव कर दें।
- अगर आपको इसके बाद भी जरूरत पड़े तो 30 दिनों के बाद दोबारा से छोडकाव कर दें।
जड़ गलन और गोंदिया रोग
- कृषकों की फसल में लगने वाले अन्य रोगों की तरह जड़ गलन और गोंदिया रोग भी काफी खतरनाक रोग है।
रोकथाम
- इस रोग का प्रकोप होने की स्थिति में प्रभावित जड़ों के साथ-साथ अन्य प्रभावित हिस्सों को हटा दें।
- फिर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर डालें और मिट्टी से ढक दें या हमले की तीव्रता के अनुसार तने के नजदीक मैटालैक्सिल+मैनकोजेब 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
- फसल को इस रोग से सुरक्षित करने के लिए फोसटाइल (एलीएट) 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के दो छिड़काव अप्रैल से सितंबर माह के दौरान करें।
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टहनियों का सूखना
टहनियों का सूखना
- पेड़ के तने, शिखर और टहनियों का सूखना और फल का गलना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है।
रोकथाम
- टहनियों के सूखने को काबू करने के लिए समय-समय पर सूखी टहनियों को हटा दें और कटे हुए हिस्सों पर बॉर्डीऑक्स पेस्ट लगा दें।
- मार्च, जुलाई और सितंबर के माह में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फ्ला दा हरा पेना
किन्नुओं का हरापन
संतरे पर सूर्य के प्रकाश की वजह से फल का वह हिस्सा संतरी रंग में तब्दील हो जाता है। परंतु, दूसरी तरफ वाला हिस्सा हल्के हरे रंग का होता है। पत्तों पर भी हरे रंग के धब्बे देखने को मिलते हैं।
रोकथाम
संक्रमित और अनुपयोगी पेड़ों को निकालकर बाहर फेंक दें। टैट्रासाइक्लिन 500 पी पी एम 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के समयांतराल पर छिड़काव करने से इस आक्रमण को कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष -
नींबू वर्गीय फसलों को खतरनाक कीट और रोगों से बचाना बेहद जरूरी है। अगर किसान कीट और रोगों का समय रहते नियंत्रण नहीं करते तो उनको काफी हानि का सामना करना पड़ सकता है।