किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बिना रसायनों के पौधे में लगने वाली बीमारियां हैं। इसके बचाव के लिए किसान विभिन्न प्रकार के उपाय अपनाते हैं। लेकिन फिर भी इन रोगों पर काबू नहीं कर पाते हैं। आज हम इन रोगों के लिए गैर पारंपरिक तरीके लेकर आए हैं, जो बेहद ही लाभकारी साबित हो सकते हैं।
गैर-पारंपरिक तरीकों के जरिए से पौधों की बीमारियों के प्रबंधन में पारंपरिक रासायनिक उपचार के वैकल्पिक दृष्टिकोण शामिल हैं। यहां गैर-पारंपरिक तरीके बीमारियों को निम्नलिखित ढ़ंग से प्रबंधित कर सकते हैं। जानते हैं क्या हैं वे तरीके जिनसे आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है।
विभिन्न लाभकारी जैव नियंत्रकों तथा ट्राईकोडरमा की विभिन्न प्रजातियां, बैसिलस की विभिन्न प्रजातियों के अतरिक्त इस समय बहुत सारे जैव नियंत्रकों की पहचान की जा चुकी है, जिनके जरिए से फसलों में काफी बीमारियों को सफलतापूर्वक प्रबंधित किया जाता है।
रोगजनकों के जीवन चक्र को बाधित करने के लिए फसलों को चक्रित करें। निरंतर मौसमों में भिन्न-भिन्न फसलें लगाने से बीमारी का दबाव बेहद कम हो जाता है।
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कुछ प्रजातियों को एक साथ रोपने से कीटों को काबू में किया जा सकता है अथवा मृदा स्वास्थ्य में सुधार होता है। उदाहरण के लिए, गेंदा नेमाटोड को रोकता है और दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करती हैं।
जैविक उर्वरकों, खाद और जैविक-अनुमोदित कीटनाशकों का इस्तेमाल करें, जिनका पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है और लाभकारी जीवों के लिए हानिकारक होते हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए उगाई गई पौधों की किस्में चुनें। इन पौधों में विशिष्ट रोगजनकों के विरुद्ध प्राकृतिक सुरक्षा होती है।
पौधों के प्राकृतिक अर्क या यौगिकों, जैसे नीम का तेल या लहसुन, का उपयोग करके भी बहुत सारी बीमारियों को प्रबंधित करते है।
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बहुत सारे कीट विषाणुजनित बीमारियों को फैलाने में सहायक होते हैं। इसलिए इन कीटों के प्रबंधन के लिए चिपचिपे जाल जैसे भौतिक जाल प्रयोग करें, या कीटों को पौधों तक पहुँचने से रोकने के लिए पंक्ति कवर जैसे अवरोधों का उपयोग करें।
बीमारियों से निपटने के लिए सूक्ष्मजीवों या प्राकृतिक यौगिकों से प्राप्त गैर-रासायनिक उत्पादों को प्रयोग करके भी बहुत सारी बीमारियों को प्रबंधित किया जा सकता है।