भारत के कृषकों को कम खर्चा और कम वक्त में धान की बेहतरीन उपज हांसिल करने के मकसद से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली ने दो नवीन धान की किस्में जारी की हैं।
बतादें, कि पूसा संस्थान ने रॉबिनोवीड बासमती चावल की किस्मों, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की किस्मों को जारी किया है। जो कि सीधे बीज वाले चावल की खेती के लिए इमेजेथापायर 10% प्रतिशत एसएल के प्रति काफी सहनशील हैं।
बतादें, कि इस संदर्भ में IARI, दिल्ली के निदेशक डॉ.अशोक कुमार सिंह ने कहा कि, उत्तर-पश्चिमी भारत में चावल की खेती में प्रमुख चिंताओं में (A) घटता जल स्तर (B) चावल की रोपाई के लिए मजदूरों की कमी और (C) रोपाई के दौरान बाढ़ की स्थिति में ग्रीनहाउस गैस, मीथेन का उत्सर्जन शामिल है।
पूसा बासमती 1979 एक MAS से विकसित हर्बिसाइड सहिष्णु निकट-समानानुवांशिक पंक्ति है, जो बासमती चावल की किस्म "PB 1121" की है।
इसमें Imazethapyr 10% एसएल सहिष्णुता प्रदान करने वाला परिवर्तित AHAS एलील होता है। इसके बीज से बीज तक परिपक्वता का समय 130 से 133 दिन का है।
राष्ट्रीय बासमती परीक्षणों में 2 वर्षों के परीक्षण के दौरान सिंचित प्रतिरोपित अवस्था में इसकी औसत उपज 45.77 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा बासमती 1985 भी एक MAS से विकसित हर्बिसाइड सहिष्णु निकट-समानानुवांशिक पंक्ति है, जो बासमती चावल की किस्म "पीबी 1509" की है.
धान की इस किस्म में Imazethapyr सहिष्णुता प्रदान करने वाला परिवर्तित AHAS एलील मौजूद है. इसके बीज से बीज तक की परिपक्वता का समय 115 से 120 दिन है।
राष्ट्रीय बासमती परीक्षणों में 2 वर्षों के परीक्षण के दौरान सिंचित प्रतिरोपित अवस्था में इसकी औसत उपज 5.2 टन प्रति हेक्टेयर है।
उन्होंने इन दो फसल की किस्मों में खरपतवारों के प्रभावी प्रबंधन के लिए अपनाई जाने वाली आवश्यक सावधानियों के साथ डीएसआर के तहत इन दो चावल किस्मों की प्रथाओं के पैकेज के बारे में विस्तार से बताया है।
ये दो किस्में व्यापक-स्पेक्ट्रम शाकनाशी के प्रति सहनशील होने के कारण, इमाजेथापायर 10% एसएल डीएसआर के अंतर्गत खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण में सहायक होंगी,
जिससे बासमती चावल की खेती की लागत काफी कम हो जाएगी। इससे चावल की खेती में परिश्रम की कमी, पानी और मीथेन उत्सर्जन की चुनौतियों से निपटने में भी सहायता मिलेगी।
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बतादें, कि इस अवसर पर भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि आयुक्त डॉ. पीके सिंह ने भी चावल की खेती को टिकाऊ बनाने में इमेजेथापायर 10% एसएल के प्रति सहनशीलता जैसी तकनीकों के साथ इन उन्नत चावल किस्मों के महत्व पर बल दिया।
आईसीएआर, नई दिल्ली के एडीजी (बीज) डॉ. डीके यादव ने भी इस बात पर प्रकाश डाला कि बासमती चावल की ये दो किस्में देश के बासमती जीआई क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित होंगी।
इस अवसर पर डॉ. सी. विश्वनाथन (संयुक्त निदेशक, अनुसंधान), डॉ. आरएन पडारिया (संयुक्त निदेशक, विस्तार), डॉ. गोपाल कृष्णन (आनुवांशिकी विभाग प्रमुख), डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह (बीज उत्पादन इकाई प्रभारी), पूसा संस्थान के विभाग प्रमुख और वैज्ञानिक, किसान, बीज कंपनियां और मीडिया उपस्थित थे।