आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे बासमती धान की बुवाई से संबंधित आवश्यक कार्यों के बारे में। एवं बासमती धान की उन्नत किस्मों के बारे में जिनका उत्पादन कर किसान बेहतर लाभ कमा सकता है।
बासमती धान की खेती पूरे देश भर में काफी प्रचलित है, उच्च और अच्छी गुणवत्ता के कारण इसे दुनिया भर में जाना जाता है।
भारत के बहुत से राज्यों में बासमती धान की उन्नत खेती की जाती है। जैसे: दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और हरियाणा।
राज्य सरकार द्वारा हरियाणा के किसानों के लिए बासमती धान की सीधी बुवाई के लिए कुछ उन्नत किस्मे अनुशंसित की गई है।
धान की सीधी बुवाई से आशय है इसमें धान की नर्सरी तैयार किये बिना ही धान की बुवाई कर दी जाती है। इस तकनीक के माध्यम से किसानों को धान की पोध की रोपाई नहीं करनी पड़ती है।
धान की सीधी बुवाई से किसानों के समय में भी बचत होती है और साथ ही लागत में भी। इसके अलावा धान की सीधी बुवाई में भी काफी कम खर्च आता है।
धान की सीधी बुवाई के लिए पहले खेत की गहरी जुताई कर ले। इसके बाद हैरो या कल्टीवेटर से खेत की 2 से 3 बार जुताई करें।
जुताई के बाद खेत में सीधा पाटा लगा कर भूमि को धान की बुवाई के लिए समतल बना ले। ऐसा करने से खेत में पानी की भी बचत होती है और खेत में मिट्टी का जमाव भी अच्छे से हो जाता है।
धान की सीधी बुवाई के लिए कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है जैसे : सी.एस.आर. 30, पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती-1885 और पूसा बासमती-1886
1. सी एस आर 30 : धान की इस किस्म को पकने में लगभग 155 दिन का समय लगता है। धान की यह किस्म सामान्य मृदा में लगभग प्रति हैक्टर 3 टन पैदावार देती है जबकि लवणग्रस्त मृदा में यह 2 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार प्रदान करती है।
जुताई के वक्त खेत में 24 किलोग्राम नाइट्रोजन और 12 किलोग्राम फॉस्फोरस का उपयोग करें। यह फसल की पैदावार में वृद्धि करता है।
बीज की बुवाई से पहले बीज का उपचार कर लेना चाहिए ,ताकि फसल में कोई रोग और कीट न लग सके। 10 किलोग्राम बीज को 10 लीटर पानी में 1 किलो ग्राम स्पट्रोटोसाइक्लीन और 10 ग्राम बाबिस्टीन के घोल में भिगोकर रखे।
10 घंटे बाद बीज को पानी से निकाल कर जूट की बोरियों में भरकर रख दे। बोरियों पर समय समय पर पानी छिड़कते रहे ताकि नमी बनी रहे।
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इसके अलावा खेत में पौधों की वृद्धि के लिए 3 से 5 सेंटीमीटर पानी भरा हुआ होना चाहिए। धान की यह किस्म केंद्रीय मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान ,कर्नल द्वारा विकसित की गई है।
2. पूसा बासमती 1847 : यह चावल की एक छोटी अवधी वाली किस्म है। पूसा बासमती की यह किस्म सिंचित क्षेत्रों वाले इलाकों में काफी उपयुक्त है।
पूसा बासमती की यह किस्म अपने लम्बे और पतले होने के लिए काफी प्रसिद्द है। साथ ही पूसा बासमती की 1847 किस्म अपनी उच्च उत्पादन क्षमता के लिए भी जानी जाती है।
धान की यह किस्म पर्यावरण परिस्थियों और सामान्य बीमारियों का विरोध करने में भी सहायक है। 1847 धान की किस्म बाहरी कारकों के लिए बहुत ही कम संवेदनशील मानी जाती है। इसके अलावा धान की यह किस्म बैक्टीरियल बीलाइट और ब्लास्ट दोनों के लिए प्रतिरोधक मानी जाती है।
3. पूसा बासमती 1885 : पूसा बासमती 1885 लगभग 1121 धान की किस्म के समान पतला और लम्बा होता है। धान की इस किस्म की परिपक्ता अवधी 135 दिन की होती है।
बासमती धान की यह किस्म पकने में 135 दिन का समय लेती है। इसकी उत्पादन क्षमता भी काफी बेहतर है। प्रति हेक्टेयर में धान की यह किस्म 4 टन पैदावार प्रदान करती है।
धान की यह किस्म पकने के बाद , फैलाव और लम्बाई में 1121 के समान दिखाई पड़ती है। पूसा बासमती 1885 को बेक्टेरियल लीफ ब्लाइट और ब्लास्ट दोनों के प्रतिरोधी माना जाता है।
4. पूसा बासमती 1886 : पूसा बासमती धान की यह किस्म 145 दिन पककर तैयार हो जाती है। पूसा बासमती 1886 किस्म की तुलना , पूसा बासमती की लोकप्रिय किस्म 6 की तरह विकसित की गई है।
धान की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। धान की यह किस्म बहुत से राज्यों में काफी लाभदायक सिद्ध हुई है।
धान की इस किस्म में सबसे ज्यादा लगने वाले रोग है झोंका और अंगमारी। यह रोग फसल को काफी प्रभावित करते है , जिससे फसल को काफी नुक्सान पहुँचता है। इस रोग के कारण धान के पत्तों पर नीले रंग के धब्बे पड़ने लगते है और बाद में वह नाव के आकार के हो जाते है।
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इसके अलावा अंगमारी रोग भी फसल को काफी प्रभावित करता है जिसकी वजह से पत्तियां सूख कर पतली हो जाती है। धान की यह किस्म 1 से 15 जून तक के बीच में बोई जाती है।