औषधीय गुणों से भरपूर कंगनी की खेती से जुड़ी जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 21-Feb-2025
Foxtail Millet Farming in India – Benefits, Varieties & Cultivation

कंगनी को फॉक्सटेल मिलेट के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मोटा अनाज की श्रेणी में आने वाली फसल है। 

कंगनी विश्व में सबसे पुराने मोटे अनाज की फसल में से एक मानी जाती है। कंगनी का उत्पादन एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के तकरीबन 23 देशों में काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। 

कंगनी एक स्व-परागण, सी 4 और कम समयावधि में पककर तैयार होने वाली फसल है। 

कंगनी का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है। कंगनी का प्रयोग पक्षियों के लिए दाने के तौर पर भी किया जाता है। 

विश्वभर में बड़े पैमाने पर फॉक्सटेल मिलेट का उत्पादन किया जाता है। इस वजह से कंगनी का विश्व कृषि को उन्नत बनाने में काफी अहम योगदान है। 

भारत के अंदर काफी बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश और भारत के पूर्वोत्तर राज्य में इसका उत्पादन किया जाता है। 

कंगनी की फसल से होने वाले स्वास्थ्य लाभ  

कंगनी में मौजूद पोषक तत्व गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बीमार लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। बूढ़े और बच्चे के लिए भी यह पोषण से भरपूर अनाज है। 

फॉक्सटेल मिलेट को मधुमेह रोग का डायबिटिक फूड भी माना जाता है। यह आहार फाइबर, खनिज, सूक्ष्म पोषक तत्व, प्रोटीन और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स का एक शानदार जरिया है।

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कंगनी की प्रमुख उन्नत किस्में 

राज्यवार कंगनी की किस्में निम्नलिखित हैं 

  • आंध्र प्रदेश में कंगनी की खेती के लिए SiA 3088, SiA 3156, SiA 3085, लेपाक्षी, SiA 326, नरसिंहराय, कृष्णदेवराय, PS 4 किस्में उपयुक्त हैं।
  • बिहार में कंगनी की RAU-1, SiA 3088, SiA 3156, SiA 3085, PS 4 किस्मों की खेती होती है।  
  • तेलंगाना की बात करें तो इसमें कंगनी की SiA 3088, SiA 3156, SiA 3085, लेपाक्षी, SiA 326 किस्मों का उत्पादन किया जाता है। 
  • उत्तराखंड की बात करें तो यहां PS 4, PRK 1, स्रिलस्मि, SiA 326, SiA 3156, SiA 3085 किस्में प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं। 
  • कंगनी की उत्तर प्रदेश में PRK 1, PS 4, SiA 3085, SiA 3156, स्रिलस्मि, नरसिंहराय, S-114 किस्में उगाई जाती हैं। 
  • कर्नाटक में कंगनी की DHFt-109-3, HMT 100-1, SiA 3088, SiA 3156, SiA 3085, PS 4, SiA 326, नरसिंहराय किस्में उगाई जाती हैं। 
  • राजस्थान में कंगनी की प्रताप कंगनी 1 (SR 51), SR 1, SR 11, SR 16, SiA 3085, SiA 3156, PS 4 आदि किस्मों का उत्पादन किया जाता है। 
  • तमिलनाडु में कंगनी की TNAU 43, TNAU-186, Co (Te) 7, Co 1, Co 2, Co 4, Co 5, K2, K3, SiA 3088, SiA 3156, SiA 3085, PS 4 किस्मों की खेती की जाती है। 

कंगनी के लिए मिट्टी और जलवायु कैसी होनी चाहिए ?

कंगनी की खेती से बेहतरीन उपज लेने के लिए उत्तम जल निकासी वाली रेतीली से भारी मिट्टी और चिकनी मिट्टी पर सबसे अच्छी मानी जाती है। 

कंगनी की फसल 500-700 मिमी वार्षिक बारिश वाले स्थान पर शानदार उपज देती है। कंगनी की फसल जल-भराव की स्थिति को भी सहन करने में सक्षम है। हालाँकि, अधिक सूखा की स्थिति में फसल को हानि हो सकती है।

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कंगनी की बुवाई 

कंगनी से जुड़ी जानकारी निम्नलिखित है 

  • कंगनी की बिजाई खरीफ सीजन में जुलाई से अगस्त माह में की जाती है। आइए जानते हैं कंगनी की बुवाई से जुड़ी खास जानकारी।  
  • कर्नाटक में कंगनी की बुवाई जून से जुलाई में की जाती है। 
  • तमिलनाडु, तेलंगाना और महाराष्ट्र में इसकी बिजाई जुलाई में की जाती है।   
  • महाराष्ट्र में जुलाई के दूसरा-तीसरा सप्ताह में की जाती है। 
  • तमिलनाडु में कंगनी की बिजाई अगस्त से सितंबर माह में की जाती है। 
  • कंगनी की फसल की कतार में बिजाई करने के लिए 4-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। 
  • कंगनी की छिड़क विधि से बुवाई करने के लिए फसल का 7-8 किलोग्राम बीज उपयुक्त होता है। 
  • कृषि वैज्ञानिकों के सलाहनुसार बीज उपचार भी अवश्य करें।  

कंगनी की फसल में खरपतवार नियंत्रण 

कंगनी की फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए खेत में हाथ से निराई-गुड़ाई करना सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध होता है। 

हाथ से छिड़क कर बुवाई की गयी फसल में पहली निराई-गुड़ाई अंकुर निकलने के 15-20 दिन बाद और दूसरी गोडाई 15-20 दिन के समयांतराल पर करनी चाहिए।     

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कंगनी की फसल की सिंचाई

खरीफ सीजन की फसल के लिए नहीं या न्यूनतम सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है। क्योंकि, कंगनी एक वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाई जाने वाली मिलेट्स फसल है। 

हालांकि, यदि ज्यादा लंबी समयावधि के लिए शुष्क दौर बना रहता है, तो फिर 1-2 सिंचाइयां जरूर देनी चाहिए।

ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 2-5 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है और ये मिट्टी के प्रकार और जलवायु परिस्थितियों पर काफी ज्यादा निर्भर करता है।

रोग व रोकथाम 

कंगनी की फसल में मुख्य रूप से लगने वाले रोगों में ब्लास्ट (पाइरिक्युलिया सेटेरिया), रस्ट (यूरोमाइसिस सेटेरिया), ब्राउन स्पॉट (कोक्लियोबोलस सेटेरिया) शामिल हैं। कंगनी की फसल के लिए हानिकारक इन रोगों से निजात पाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।  

निष्कर्ष -

कंगनी की खेती पूरे भारतभर में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। कंगनी के स्वास्थ्य लाभ, बाजार मांग और कीमत तीनों अच्छी होने की वजह से इसकी खेती करना बड़े लाभ का सौदा सिद्ध हो सकता है।  

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