कंगनी को फॉक्सटेल मिलेट के नाम से भी जाना जाता है। यह एक मोटा अनाज की श्रेणी में आने वाली फसल है।
कंगनी विश्व में सबसे पुराने मोटे अनाज की फसल में से एक मानी जाती है। कंगनी का उत्पादन एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के तकरीबन 23 देशों में काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है।
कंगनी एक स्व-परागण, सी 4 और कम समयावधि में पककर तैयार होने वाली फसल है।
कंगनी का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद माना जाता है। कंगनी का प्रयोग पक्षियों के लिए दाने के तौर पर भी किया जाता है।
विश्वभर में बड़े पैमाने पर फॉक्सटेल मिलेट का उत्पादन किया जाता है। इस वजह से कंगनी का विश्व कृषि को उन्नत बनाने में काफी अहम योगदान है।
भारत के अंदर काफी बड़े पैमाने पर उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश और भारत के पूर्वोत्तर राज्य में इसका उत्पादन किया जाता है।
कंगनी में मौजूद पोषक तत्व गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बीमार लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। बूढ़े और बच्चे के लिए भी यह पोषण से भरपूर अनाज है।
फॉक्सटेल मिलेट को मधुमेह रोग का डायबिटिक फूड भी माना जाता है। यह आहार फाइबर, खनिज, सूक्ष्म पोषक तत्व, प्रोटीन और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स का एक शानदार जरिया है।
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कंगनी की खेती से बेहतरीन उपज लेने के लिए उत्तम जल निकासी वाली रेतीली से भारी मिट्टी और चिकनी मिट्टी पर सबसे अच्छी मानी जाती है।
कंगनी की फसल 500-700 मिमी वार्षिक बारिश वाले स्थान पर शानदार उपज देती है। कंगनी की फसल जल-भराव की स्थिति को भी सहन करने में सक्षम है। हालाँकि, अधिक सूखा की स्थिति में फसल को हानि हो सकती है।
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कंगनी की फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए खेत में हाथ से निराई-गुड़ाई करना सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध होता है।
हाथ से छिड़क कर बुवाई की गयी फसल में पहली निराई-गुड़ाई अंकुर निकलने के 15-20 दिन बाद और दूसरी गोडाई 15-20 दिन के समयांतराल पर करनी चाहिए।
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खरीफ सीजन की फसल के लिए नहीं या न्यूनतम सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है। क्योंकि, कंगनी एक वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाई जाने वाली मिलेट्स फसल है।
हालांकि, यदि ज्यादा लंबी समयावधि के लिए शुष्क दौर बना रहता है, तो फिर 1-2 सिंचाइयां जरूर देनी चाहिए।
ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 2-5 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है और ये मिट्टी के प्रकार और जलवायु परिस्थितियों पर काफी ज्यादा निर्भर करता है।
कंगनी की फसल में मुख्य रूप से लगने वाले रोगों में ब्लास्ट (पाइरिक्युलिया सेटेरिया), रस्ट (यूरोमाइसिस सेटेरिया), ब्राउन स्पॉट (कोक्लियोबोलस सेटेरिया) शामिल हैं। कंगनी की फसल के लिए हानिकारक इन रोगों से निजात पाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।
कंगनी की खेती पूरे भारतभर में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। कंगनी के स्वास्थ्य लाभ, बाजार मांग और कीमत तीनों अच्छी होने की वजह से इसकी खेती करना बड़े लाभ का सौदा सिद्ध हो सकता है।