जानें बकरी की उपयोगी नस्लों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।

By: tractorchoice
Published on: 06-May-2024
जानें बकरी की उपयोगी नस्लों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।

आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे बकरियों के उपयोगी नस्लों के बारे में। भारत में बकरियों की बहुत सी नस्ल ऐसी है, जिन्हे दूध और माँस दोनों के लिए पाला जाता है। 

बकरी की उपयुक्त नस्ले है जैसे: ब्लैक बंगाल, जमुनापारी, बीटल, बारबरी, सिरोही है। इसके अलावा बकरियों की कुछ विदेशी नस्ल भी है जैसे: अल्पाइन, सानन, टोगेनवर्ग और एंग्लोनुवियन। 

1 बकरी की ब्लैक बंगाल नस्ल 

इस नस्ल की बकरी के शरीर पर काले, भूरे और सफ़ेद रंग के छोटे रुए पाए जाते है। लेकिन इसी नस्ल की 80% बकरियों में काले रुए पाए जाते है। 

यह बकरी ज्यादातर झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा, असम और पश्चिम बंगाल में पायी जाती है। इस बकरी के कान छोटे आकार के होते है, बकरी के कान आगे की और निकले हुए और खड़े रहते है। 

मादा बकरी का भार नर की तुलना में कम होता है। नर का वजन 18 से 20 किलो होता है। जबकि मादा बकरी का भार 15 से 18 किलोग्राम होता है। 

बकरी का शरीर गठीला होता है, आगे से पीछे की ओर झुका हुआ और बीच में से मोटा होता है। इस बकरी की नस्ल प्रजनन क्षमता में काफी अच्छी होती है, इसकी आबादी अन्य नस्लों की तुलना में काफी अच्छी होती है। 

ब्लैक बंगाल की नस्ल माँस उत्पादन के लिए ज्यादातर पाली जाती है। इस नस्ल की बकरियां दूध उत्पादन में काफी अल्प होती है जो उनके बच्चों के लिए पर्याप्त होता है। 

इन बकरियों के पालन से पशुपालकों को कम लाभ प्राप्त होता है क्योंकि  इस नस्ल की बकरियों का भार भी काफी कम होता और दूध देने की क्षमता भी कम होती है। 

बकरी की यह नस्ल राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में भी उपलब्ध है। इस नस्ल की बकरी की नाक छोटी लेकिन उभरी हुई होती है , पूंछ मुड़ी हुई और पूंछ के बाल लम्बे होते है। इस नस्ल की बकरियां बिना चराये भी पाली जा सकती है। 

2 बकरी की जमुनापारी नस्ल 

भारत में पायी जानी वाली नस्लों में से यह सबसे ऊंची और बकरी की लम्बी नस्ल है। बकरी की यह नस्ल उत्तर प्रदेश के इटावा, गंगा, यमुना और चम्बल से घिरे हुए क्षेत्रों में पायी जाती है। बकरी की इस जमुनापारी नस्ल का एंग्लोनुवियन बकरियों के विकास में काफी योगदान रहा है।

इस बकरी के सींघ छोटे और चौड़े होते है। बकरी की नाक काफी उभरी हुई होती है।  बकरी के कानों की लम्बाई 10 से 12 इंच होती है , बकरी के कान नीचे मुड़े हुए और लटके हुए होते है। 

इस नस्ल की बकरी के शरीर पर लाल और सफ़ेद रंग के लम्बे बाल पाए जाते है। इस बकरी का शरीर बेलनाकार का होता है। बकरी का वजन 50 से 60 किलोग्राम होता है। 

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जमुनापारी नस्ल की यह बकरियां रोजाना  1.5 से 2.0 किलोग्राम दूध देती है। लोगों द्वारा यह बकरियां दूध और माँस दोनों के उत्पादन के लिए पाली जाती है। 

जमुनापारी की यह नस्ल सभी प्रकार की जलवायु में पाली जा सकती है। यह बकरी पत्तों और झाड़ियों पर निर्भर होती है। 

3 बकरी की बीटल नस्ल 

बीटल नस्ल की यह बकरी भूरे रंग पर सफ़ेद धब्बे और काले रंग पर सफ़ेद धब्बे लिए होती है। यह बकरी दिखने में जमुनापारी नस्ल की बकरियों जैसी होती है लेकिन यह बकरी जमुनापरी बकरी से वजन की तुलना में काफी कम होती है।

इस बकरी की नाक उभरी हुए और कान लम्बे चौड़े और नीचे की ओर लटके हुए होते है। लेकिन इस नस्ल की बकरी के नाक और कान जमुनापारी बकरी की तुलना में छोटे और कम होते है। बीटल बकरी के सींघ बहार की ओर और घूमे हुए होते है। 

बीटल बकरी का वजन 40 से 45 किलो होता है। यह बकरी सालाना बच्चे पैदा करती है , बकरी का शरीर गठीला होता है। बकरी की यह बीटल किस्म प्रतिदिन 1.25-2.0 किलोग्राम दूध देती है। 

यह बकरी सभी जलवायु के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस नस्ल की बकरियां पंजाब से लगे पकिस्तान के क्षेत्र में पायी जाती है। बीटल किस्म की ये बकरियां मुख्य रूप से पंजाब प्रांत के गुरदासपुर जिला के बटाला अनुमंडल में पायी जाती है। 

4  बकरी की बारबरी नस्ल  

इस नस्ल की बकरियों को सबसे पहले भारत में पादरियों द्वारा लाया गया था। इस नस्ल की बकरियां ज्यादातर मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है। लेकिन यह आगरा और मथुरा से लगे क्षेत्रों में अधिक संख्या में उपलब्ध है। 

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इस बकरी के शरीर पर भूरे और काले रंग के धब्बे के अलावा सफ़ेद रंग के धब्बे भी पाए जाते है। इस बकरी का शरीर काफी गठीला होने के अलावा यह बकरी छोटे कद की भी होती है। मादा बकरी का वजन 25 से 30 किलोग्राम होता है। 

बकरी के कान काफी छोटे और थन अच्छी तरह विकसित होते है। बकरी की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होती है। यह बकरियां घर में गाय और भैंसो की तरह बाँध कर रखी जाती है। यह बकरियां दूध और माँस उत्पादन दोनों के लिए पाली जाती है। 

5 बकरी की सिरोही नस्ल 

इस नस्ल की बकरियां ज्यादातर राजस्थान के सिरोही जिले में पायी जाती है। इस नस्ल की बकरियां ज्यादातर दुग्ध उत्पादन के लिए पाली जाती है, लेकिन यह माँस उत्पादन के लिए भी काफी उपयुक्त मानी जाती है।

यह बकरियां सफ़ेद भूरे रंग और भूरे और सफ़ेद का  मिश्रण लिए होती है। बकरियों के कान लम्बे और नाक उभरी हुई होती है। 

यह बकरियां ज्यादातर गुजरात और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में पायी जाती है। इस नस्ल की बकरियों के शरीर पर बाल छोटे और मोटे होते है। इन बकरियों को बिना चराये भी पाला जा सकता है। 

विदेशी बकरियों की कुछ प्रमुख नस्ले इस प्रकार है :

  1. अल्पाइन : यह बकरी मुख्य रूप से दुग्ध उत्पादन के लिए पाली जाती है। बकरी की यह नस्ल स्विट्ज़रलैंड में पायी जाती है। बकरी की यह किस्म 3 से 4 किलोग्राम प्रतिदिन दूध देती है। 
  2. एंग्लोनुवियन : बकरी की यह किस्म दूध और माँस दोनों के उत्पादन के लिए पाली जाती है।  बकरी की यह किस्म ज्यादातर यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों में पायी जाती है। इस बकरी की दूध उत्पादन क्षमता 2 से 3 किलोग्राम प्रतिदिन है। 
  3. सानन : बकरी की यह किस्म स्विटज़रलेंड में पायी जाती है। बकरी की इस नस्ल की दूध देने की क्षमता अन्य बकरियों से ज्यादा है। यह बकरी प्रतिदिन 3 से 4 किलोग्राम दूध देती है। 
  4. टोगेनवर्ग : बकरी की यह किस्म स्विट्ज़रलैंड की है।  इस बकरी के नर और मादा दोनों के ही सींग नहीं होते है।  बकरी की यह किस्म प्रतिदिन 3 किलोग्राम दूध देती है। 

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