जैसा की आप सभी जानते है सोयाबीन की खेती करने का उचित समय जून -जुलाई माह के बीच में होता है। सोयाबीन की खेती ज्यादातर महाराष्ट्र , कर्नाटक, तेलंगाना और राजस्थान जैसे राज्यों में की जाती है।
ध्यान रहे सोयाबीन की खेती हल्की और रेतीली मिट्टी में नहीं की जा सकती। सोयाबीन की खेती करने के लिए चिकनी दोमट और अच्छे जल निकास वाली भूमि की आवश्यकता होती है।
सोयाबीन की बुवाई 15 जून से 5 जुलाई तक के बीच में हो जानी चाहिए। यदि बुवाई उचित समय पर न हो तो इसका काफी प्रभाव फसल की उत्पादकता पर पड़ सकता है।
बुवाई करते वक्त बीज दर का ध्यान रखे, बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर में कम से कम 65 से 75 किलोग्राम के बीच में होनी चाहिए।
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बुवाई करते वक्त बीज की जांच कर ले। बीज की जांच करने के लिए थीरम और कार्बेन्डाजिम का प्रयोग कर सकते है। इसके बाद सोयाबीन के अच्छे उत्पादन और विकास के लिए हम पोटाश, यूरिया और फॉस्फेट का भी उपयोग कर सकते है।
सोयाबीन की उन्नत किस्में एनआरसी 130, पूसा 12, एसएल-952 ,जेएस 20-34, जेएस 116, जेएस 335 और एनआरसी 128 सोयाबीन की उन्नत किस्में है। जिनका किसान उत्पादन कर मुनाफा कमा सकता है।
सोयाबीन की फसल में सिंचाई की इतनी आवश्यकता नहीं रहती है। फसल में दाना भर जानें के बाद उसमे हल्की सी सिंचाई करें। सोयाबीन की फसल में लगभग एक या दो बार सिंचाई की जाती है।
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बुवाई के 30 से 40 दिन बाद खेत में खरपतवार नियंत्रण करना आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के लिए हम क्यूजेलेफोप इथाइल या फिर इमेजेथाफायर का भी उपयोग कर सकते है। प्रत्येक एकड़ में 300 से 400 मिली लीटर का छिड़काव कर खरपतवार को नियंत्रित कर सकते है।
जब फलियां सूख कर भूरी हो जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। फसल कटाई के बाद सोयाबीन को कुछ दिन तक सूखने दे। उसके बाद जब फसल अच्छे से सूख जाये तो थ्रेसर के द्वारा फसल की गहाई करवा कर बीज को पोधो से अलग कर ले।