जाने कब और कैसे की जाती है कपास की खेती

By: tractorchoice
Published on: 14-Jan-2024
जाने कब और कैसे की जाती है कपास की खेती

कपास का उत्पादन ज्यादातर भारत के गुजरात क्षेत्र में किया जाता है। कपास को खरीफ फसलों के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। यह नकदी फसल होने के साथ साथ एक रेसेदार फसल भी है। 

कपास को मालवेसी कुल का सदस्य माना गया है। कपास के खेती मई माह में की जाती है। कपास को बहुउद्देशीय फसल माना जाता है ,क्यूंकि इसका उपयोग कपड़े बनाने ,खाद्य तेल आदि के साथ साथ भोजन और फाइबर प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। 

कैसे करें कपास की बुवाई 

कपास की बुवाई के लिए सबसे पहले खेत की जुताई अच्छे से कर ले ,उसके बाद खेत में जरुरत के हिसाब से गोबर खाद का प्रयोग करे। उसके बाद खेत की फिर से जुताई करें। 

जुताई करने के पश्चात खेत में हल्की सिंचाई करे ,उसके बाद खेत को कुछ दिन के लिए ऐसे ही खाली छोड़ दे। उसके बाद जब खेत भुरभुरा हो जाये तो उसमे एक बार फिर से जुताई करें।

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कपास की बुवाई के लिए किसानो द्वारा खेत में 45 सेमी. की दूरी पर कतार बनाई जानी चाहिए। बनाई गयी कतारों में 15 सेमी. की दूरी पर कपास के बीज को बोना चाहिए। एक हेक्टेयर खेत की बुवाई में 7-8 किलोग्राम बीज का उपयोग किया चाहिए।  

कपास के खेती के लिए सिंचाई की सुविधा 

जिन क्षेत्रो में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध रहती है , वहा पर बुवाई का काम 15-25 मई तक कर दिया जाता है। कपास की खेती में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं रहती है। 

कपास की फसल में सिर्फ 3-4 सिंचाई की जरुरत पड़ती हैं। किसानो द्वारा कपास की खेती में आखिरी सिंचाई टिण्डे खिलने से पहले की जाती है।  

किन राज्यों में कपास का उत्पादन किया जाता है 

भारत के बहुत से ऐसे राज्य है ,जो कपास का उत्पादन ज्यादा तादाद में करते है जैसे : गुजरात , महाराष्ट्र , तेलंगाना , राजस्थान और आंध्रप्रदेश। लेकिन कपास का सबसे बड़ा उत्पादक गुजरात है। 

गुजरात राज्य में भारी मात्रा में कपास का उत्पादन किया जाता है। कपास की खेती ज्यादातर काली मिट्टी में की जाती हैं , जो की गुजरात राज्य में अधिक मात्रा में पायी जाती है।

कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

कपास के खेती के लिए अच्छी जलवायु का होना आवश्यक है। फसल के उगने के लिए कम से कम 18 डिग्री तापमान का होना आवश्यक है। कपास के बीज में अंकुरण होने के लिए 32-34 डिग्री तापमान की जरुरत रहती है। 

और कपास की फसल में बढ़वार और उर्वरकता में वृद्धि करने के लिए 23-27 डिग्री तापमान की जरुरत पड़ती है। 

कपास की उन्नत किस्मे 

आरसीएच 773 , आरसीएच 776 , यूएस 51 , यूएस 71 , सरपास 7172, सरपास 7272 , मनी मेकर बीजी  , अजीत 199 बीजी .ये सब कपास की उन्नत किस्मे है। लेकिन कपास की सबसे अच्छी किस्म रासी नियो मानी जाती है। 

इस किस्म के पौधे हरे भरे रहते है। यह किस्म हलकी और मध्यम भूमि के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस प्रकार की किस्म को संचित और असंचित दोनों प्रकार में क्षेत्रो में उगाया जा सकता है। 

कपास की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग 

कपास की खेती खरीफ मौसम में की जाती है। कपास की खेती लाभदायक है ,किसानो द्वारा ज्यादातर मई माह में सरसो का उत्पादन किया जाता है। 

लेकिन कुछ रोगो की वजह से किसान को नुक्सान भी वहन करना पड़ता है। कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और कीटो का वर्णन निचे किया गया है

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सफ़ेद मक्खी: यह मक्खियां ज्यादातर पेड़ की निचली पत्तियों पर बैठती है। ये मखियाँ पौधे में से रस को चूसकर उसे कमजोर बना देती है। साथ ही पौधे में होने वाली बढ़वार को भी प्रभावित करती है। यह मखियाँ पोधे पर एक चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ती है,जिसकी वजह से पेड़ में फफूंद लगना आरम्भ हो जाता है। 

मीली बग: इस रोग की वजह से पूरा ही पेड़ प्रभावित होता है। इसमें कीटो द्वारा पेड़ के तनो और कच्ची पत्तियों पर ज्यादा प्रभाव डाला जाता है। ये पेड़ के कोमल हिस्सों से रस को चूसकर उसे मुरझाया बना देती है। इस रोग से बचने के लिए खेत में नीम के तेल का छिड़काव किया जा सकता है। 

माहो या चेंपा: यह कीट हरे और पीले रंग के होते है। ये असंख्य मात्रा में पत्तियों पर चिपके हुए रहते है।  ये पत्तियों पर एक मीठा रस पदार्थ भी छोड़ते है, जिसकी वजह से पत्तियों पर काले धब्बे पद जाते है और साथ ही फफूंद भी। इस कीट का प्रकोप ज्यादातर अगस्त माह में होता है। 

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