आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। यह आम गरीब से लेकर अमीर सब की थाली में किसी न किसी स्वरूप में मौजूद रहता है। आलू को गरीब का मित्र भी कहा जाता है, क्योंकि ये सस्ता होता है।
आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। यह आम, गरीब से लेकर अमीर सब की थाली में किसी न किसी स्वरूप में मौजूद रहता हैं। आलू को गरीब का मित्र भी कहा जाता है, क्योंकि ये सस्ता होता है और इसको बनाने एवं खाने में ज्यादा यत्न भी नहीं करने पड़ते हैं।
आलू की फसल देश के लगभग सारे राज्यों में उगाई जाती हैं और इसकी कई किस्में देश के बाहर भी उपभोग के लिए जाती है। आज हम आलू जो की देश की चौथी (चावल,गेहूँ,गन्ना के बाद) सबसे ज्यादा उगाने वाली फसल है। आलू में प्रोटीन, स्टार्च, एवं कार्बोहाइड्रेट का बेहतरीन सूत्र है।
किसी भी फसल के लिए उसके जलवायु का बहुत ज्यादा प्रभाव रहता है। अगर कोई फसल किसी भिन्न जलवायु में उगाई जाये तो बहुत ज्यादा संयोग है, कि वो आपके आकांक्षा के विपरीत हो।
आलू की खेती के लिए, अगेती बुवाई 15 से 25 सितंबर और पछेती बुवाई 15 से 25 अक्टूबर के बीच की जाती है। कई किसान 15 नवंबर से 25 दिसंबर के बीच भी आलू की पछेती बुवाई करते हैं। आलू की खेती के लिए, ज़्यादा पैदावार पाने के लिए सही समय पर बुवाई करना जरूरी है।
आलू की बुवाई के लिए, ज़्यादा से ज़्यादा तापमान 30-32 डिग्री सेल्सियस और कम से कम तापमान 18-20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
आलू की खेती के लिए, दोमट और बलुई दोमट वाली जमीन सबसे अच्छी रहती है। इस जमीन में जीवांश की मात्रा ज़्यादा होनी चाहिए।
आलू की खेती से पहले, खेत की मिट्टी को जैविक तरीके से तैयार करना चाहिए। आलू की खेती में, आलू के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर और मेड़ से मेड़ की दूरी 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। आलू की खेती में, ट्रैक्टर से चलने वाली या ऑटोमैटिक मशीन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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आलू एक रबी की फसल है। यानि ये शीतोष्ण ऋतु में बोयी एवं उगाई जाने वाली फसल है। ये ऋतु भारत में मुख्य रूप से अक्टूबर से लेकर मार्च तक रहती है। लेकिन किसी – किसी राज्य में ये अंतराल कम ज्यादा हो सकता है।
आलू की वृद्धि के लिए अनुकूल तापमान 15 से 30 डिग्री सेल्सियस अच्छा रहता है। जैसा की हम जानते हैं आलू कंद मूल है तो कंद की वृद्धि के लिए उपयुक्त तापमान 15 से 19 डिग्री सेल्सियस सही रहता है।
लंबी रातें एवं अच्छी धूप वाले छोटे दिन आलू की फसल के लिए लाभकारी रहते हैं। और उसकी बजाय अगर कम धूप, ज्यादा आर्द्रता एवं वर्षा इस फसल को नुकसान भी पहुँचाती है, साथ ही बैक्टीरिया एवं फफूंद रोगों को फैलाने में भी सहायता करती हैं।
किसी भी फसल का उत्पादन सीधे तौर पर भूमि एवं मिट्टी पर निर्धारित होता है। आज कल वैज्ञानिक कृषि का चलन है, जिसकी पूरी नींव ही मृदा एवं भूमि पर आधारित होती है।
वैसे तो आलू किसी भी मृदा (क्षारीय रेट के अलावा ) पर उग जाता है और ये ही इसकी विशेष बात है। परंतु, हम जरा सा ख्याल रख कर इसकी पैदावार को काफी सीमा तक बढ़ा सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा जीवांश युक्त रेतीली दोमट मिट्टी एवं सिल्टी मृदा इसके उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा पसंद की जाती है। यदि मृदा का पीएच 5.2 से लेकर 6.5 तक हो तो पैदावार बंपर हो सकती है।
अगर जुताई के दौरान भूमि को भुरभुरी एवं समतल बनाया जाये और साथ ही साथ इसमें पर्याप्त मात्रा में नमी हो तो ये पैदावार के लिए अत्यंत उचित माना जाता है।
किसी भी फसल की खेती में ये दो कारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहते हैं। हम इन दो कारकों को प्राथमिकता देकर अपना पूरा ध्यान इस पर लगाऐं, तो भी हम धीरे-धीरे वैज्ञानिक कृषि की तरफ बढ़ सकते हैं। साथ ही, प्रति इकाई भूमि पर अपनी पैदावार नाटकीय ढ़ंग से बढ़ा सकते हैं।