भारत के अंदर खेती किसानी के साथ साथ पशुपालन की परंपरा काफी समय पहले से चली आ रहा है। पशुपालन कृषि के अतिरिक्त पशुपालक कृषकों की आमदनी का बेहतरीन स्त्रोत है।
कृषकों को पशुपालन से काफी ज्यादा आर्थिक बल मिलता है। साथ ही, कई तरह के डेयरी उत्पाद भी पशुपालक किसानों के दुग्ध उत्पादन का ही परिणाम हैं।
ऐसे में सबसे अहम बात यह है कि पशुपालकों को उनके मवेशियों के लिए चारे की पर्याप्त मात्रा में व्यवस्था करनी होती है। ऐसे में साइलेज कृषकों के लिए काफी मददगार साबित होता है।
दरअसल, साइलेज हरा चारा संरक्षण की एक विशिष्ट विधि है। सामान्यतः जुलाई से लेकर अक्टूबर माह तक जरूरत से भी ज्यादा मात्रा में चारा रहता है।
इस तरह ही बीच दिसंबर से मार्च तक जई, बरसीम तथा रिजका इत्यादि हरे चारे की उपलब्धता रहती है।
इसके अतिरिक्त बारिश के समय मानसून के पश्चात चारागाहों में भी भरपूर मात्रा में घास उपलब्ध रहती है। बहुत बारी जरूरत से ज्यादा मात्रा में चारे का उत्पादन हो जाता है, जो की खराब हो जाता है।
अक्टूबर से मध्य दिसंबर एवं अप्रैल से जून के बीच चारे की उपलब्धता कम हो जाती है। इस समय हरे चारे की उपज काफी कम या नहीं के समान होती है।
इसलिए जरूरत से ज्यादा उपलब्ध अतिरिक्त पैदा हुए चारे को अच्छी तरह से सुरक्षित और संग्रहित कर लिया जाए तो कमी और अभाव के दिनों में पशुओं को समुचित पौष्टिक आहार प्रदान किया जा सकता है।
साइलेज बनाने के लिए चारे की फसल जैसे- ज्वार, मक्का, बाजरा, जई, नेपियर, गिनी घास इत्यादि साइलेज के लिए उपयुक्त है।
बंकर साइलो में फर्श पक्का होता है और दीवारें ईंट की बनी हुई स्थायी होती हैं। यह चौड़ाई में खुला हुआ और जमीन की सतह पर तैयार होता है।
यह उन स्थानों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है, जहाँ भूमिगत जल का स्तर बेहद ऊँचा होता है।
पिट साइलो वर्गाकार गड्ढे के आकार का निर्मित साइलो होता है। इसके लिए गड्ढे को ऐसी जगह पर खोदा जाता है, जो अपेक्षाकृत काफी ऊँचा होता हो और जहाँ वर्षा का जल भरने की आशंका नहीं होती।
पिट साइलो बहुत वर्षा वाले क्षेत्रों जहाँ भूमिगत जल स्तर अधिक ऊँचा होता है, उन स्थानों के लिए उपयुक्त नहीं होता है।
सामान्य तौर पर 1.0&1.0&1.0 मीटर के गड्ढे में तकरीबन 4-5 क्विंटल साइलेज तैयार किया जा सकता है। गड्ढे को पक्का करना ठीक रहता है।
छोटे स्तर पर साइलेज प्लास्टिक बैग के अंदर भी निर्मित किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, साइलेज बनाने के लिए हरे चारे पर 50% प्रतिशत फूल आने पर कटाई के बाद उसे 60-65% फीसद नमी तक सुखाते हैं।
अब इसके बाद चारा काटने की मशीन पर उसे 3-5 से.मी. के छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है, ताकि इसको कम जगह और वायु रहित वातावरण में एकत्रित किया जा सके।
साइलेज की महक की बात करें तो यह अम्लीय होनी चाहिए। दुर्गंध युक्त एवं तीखी गंध वाली साइलेज को विशेषज्ञ काफी अच्छी नहीं मानते हैं। साथ ही, साइलेज किसी भी हालत में चिपचिपी, गीली व फफूंद लगी नहीं होनी चाहिए।
साइलेज काफी पौष्टिक और पाचन योग्य होने की वजह से पशु इसको काफी ज्यादा स्वाद से खाते हैं।
जब चारे की अच्छी खासी मात्रा में उपलब्धता हो तो उसे सुरक्षित और संरक्षित करके चारे के अभाव के दौरान उपयोग में लाया जा सकता है।
ऐसे में पशुओं को हरे चारे की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ता। साइलेज में 80 से 90% प्रतिशत तक हरे चारे के समान ही पोषक तत्व संरक्षित रहते हैं।
हरे चारे के अभाव में साइलेज खिलाकर पशुओं का दुग्ध उत्पादन काफी आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
चारे का ज्यादा गीला या शुष्क होना साइलेज के लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक होता है।
साइलो के अंदर भरने के उपरांत इसको भली-भांति दबाना चाहिए, जिससे किसी भी कोष्ठ अथवा कोने में हवा न रह जाये। हवा एवं नमी में साइलेज खराब बनेगा साथ ही सडने की संभावना भी काफी ज्यादा होगी।
ध्यान रहे कि गलती से भी संग्रह स्थान पर बाहर से पानी इत्यादि का प्रवेश नहीं होना चाहिए। बतादें, कि डेढ़ से दो महीने के उपरांत गड्ढे को एक तरफ से खोलना चाहिए।
पशुओं को खिलाने के लिए साइलेज निकालने के बाद शीघ्रता से बंद कर दें। हरे चारे की 35% से 50% प्रतिशत मात्रा साइलेज के तौर पर खिलाई जा सकती है।