अर्जुन की खेती आयुर्वेदिक और होम्योपैथी दोनों ही नजरिए से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। अर्जुन का पेड़ खास तौर पर नदियों के किनारे ज्यादा पाया जाता है।
अर्जुन की छाल का उपयोग कई सारी स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। अर्जुन एक ओषधीय वृक्ष है।
अर्जुन को कई तरह की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। परंतु, अर्जुन की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
अगर हम मिट्टी के pH स्तर की बात करें तो वह करीब 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अर्जुन की गहरी जड़ें होती हैं, इस वजह से बेहतर जल निकासी वाली मिट्टी इसके बेहतर विकास के लिए फायदेमंद होता है।
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अर्जुन की खेती के लिए उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु अत्यधिक अनुकूल मानी जाती है। यह पेड़ 10°C से 45°C तक का तापमान सहन कर सकता है और 800-1200 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी वृद्धि करता है।
अर्जुन की खेती करने के लिए खेत की गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी करने से पौधों की जड़ों को फैलने में आसानी होगी।
खेत की अंतिम जुताई के बाद मृदा में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए। इसके बाद, खेत में पाटा लगाकर खेत को एकसार करलें।
अर्जुन के बीज से रोपाई के लिए इसके बीजों को पानी में भिगोकर नर्सरी में बोएं। पौधों को नर्सरी में तैयार होने के बाद खेत में रोपें। अर्जुन के बीज की सीधे बिजाई के लिए कलम विधि सबसे सबसे अच्छी होती है।
मानसून का मौसम अर्जुन के पौधों की रोपाई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। अर्जुन की रोपाई करते वक्त पौधों के बीच 5×5 मीटर का फासला होना चाहिए। एक हेक्टेयर खेत में करीब 400-450 पौधे लगाए जा सकते हैं।
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अर्जुन की खेती में प्रारम्भ के कुछ महीनों तक प्रतिदिन सिंचाई की जरूरत होती है। लेकिन, कुछ माह बाद अर्जुन का पेड़ सूखा भी सहन कर लेता है।
अर्जुन के पेड़ में जरूरत के हिसाब से समय-समय पर कृषि विशेषज्ञों की सलाहनुसार खाद का उपयोग करें।
अर्जुन की खेती के दौरान खरपतवारों को हटाने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें।
अर्जुन के पेड़ का बेहतर विकास करने के लिए आपको इसकी नियमित रूप से छंटाई करनी चाहिए।
अर्जुन की छाल का सेवन करने से हृदय संबंधित रोगों से लाभ मिलता है। इस बात को अगर हम वैज्ञानिक रूप से समझें तो अर्जुन की छाल में
फाइटोकेमिकल्स, खासतौर पर टैनिन होता है, जो कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव दिखाता है। यह धमनियों को चौड़ा कर रक्तचाप को कंट्रोल करता है और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहयोगी होता है। इस प्रकार से यह हृदय स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है।
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अर्जुन की छाल का इस्तेमाल आयुर्वेद में दस्त और पेचिश जैसी पाचन संबंधी दिक्कतों से निजात मिलेगी। यह पाचन तंत्र की सूजन को भी कम करने में सहयोगी है।
अर्जुन का उपयोग करने से डायबिटीज, सूजन, हृदय रोग और गठिया आदि कई बीमारियों को दूर करने में सहयोगी है। साथ ही, अर्जुन जोड़ों की समस्या को भी दूर करने में मददगार है।
अर्जुन की छाल 10-10 मिलीग्राम सुबह और शाम में आप इस्तेमाल कर सकते हैं। अर्जुन की छाल का इस्तेमाल चाय या फिर दूध के साथ कर सकते हैं। अगर आप ऐसे नहीं लेते हैं, तो आप इसका पाउडर बनाकर रखलें और फिर गर्म पानी के साथ इसको लें।
अर्जुन की छाल का सेवन करने से विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी फायदे होते हैं। अर्जुन की इन्ही खूबियों की वजह से बाजार में इसकी निरंतर मांग बढ़ रही है। इसलिए इसकी खेती करना स्वास्थ्य और आय दोनों के लिए लाभकारी है।