तिल की खेती किसानों के लिए एक नकदी फसल हैं। सर्दी हो या गर्मी तिल की माँग हमेशा बाजार में बनी रहती है। किसान साल में तीन बार तिल की फसल का उत्पादन कर सकता है। तिलहन की फसलों में तिल की अपनी एक अहम भूमिका है। यदि कुछ बातों का ध्यान रख कर किसान तिल की खेती करना शुरू करता है ,तो वो ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। खरीफ के सीजन में तिल की खेती जुलाई माह के अंत तक की जाती है।
तिल की खेती का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में किया जाता है। इसके अलावा महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल , गुजरात ,राजस्थान ,तमिल नाडू और आंध्रप्रदेश राज्यों में किया जाता है।
तिल की खेती के लिए हल्की और दोमट मिट्टी की आवश्यकता रहती है। तिल की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु की आवश्कता रहती है। ज्यादा बरसात या सूखा पड़ने पर तिल की खेती में नुक्सान भी हो सकता है। तिल की खेती बलुई और काली दोमट मिट्टी में भी की जा सकती है।
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तिल की खेती करने से पहले ध्यान रखे खेत में खरपतवार न हो। यदि खेत में खरपतवार है ,तो खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर सकते है। उसके बाद खेत में 2-3 बार कल्टीवेटर से जुताई करे , उसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना ले। खेत के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में गोबर खाद डाले उसके बाद खेत में फिर से जुताई करें ,ताकि खाद को अच्छे तरीके से खेत में मिलाया जा सके।
तिल की कुछ उन्नत किस्मे इस प्रकार है : टी.की.जी , जे.टी 11, जे.टी 12 ,जवाहर तिल 306, जे.टी.एस , टी.के आदि है। तिल की जवाहर 306 किस्म 86-90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जे.टी.एस ,तिल की ये किस्म लगभग 86 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
किसानो द्वारा तिल की बुवाई दो तरीके से की जाती है ,एक तो छिड़काव द्वारा और दुसरी कतार से कतार में तिल के बीज को सेड ड्रिल मशीन से बोया जाये। झिडकाव द्वारा की जाने वाली खेती में खरपतवार की नराई और गुड़ाई में परेशानी आती है। इसीलिए ड्रिल मशीन द्वारा तिल की बुवाई की जानी चाहिए । उससे समान दूरी पर तिल को बोया जाता है ,और खरपतवार को भी आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। तिल की बुवाई खेत में 3 सेमी की गहराई में की जाती है।
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तिल की खेती के लिए ज्यादा उर्वरक और खाद की आवश्यकता नहीं रहती है। खाद और उर्वरको की ज्यादा जरूरत तब रहती है ,जहाँ मिटटी अच्छी नहीं रहती है। तिल की अधिक उपज के लिए किसानो द्वारा फोस्फोरस और नत्रजन का उपयोग किया जाता है। इसमें आधी मात्रा को बुवाई के समय और आधी मात्रा को बुवाई के 30-35 दिन बाद डाला जाता है।
तिल की खेती में बहुत ही कम सिंचाई की जाती है। तिल की खेती में ज्यादातर सिंचाई फूल के आने और फलियों में दानो के भरते वक्त करनी चाहिए। बारिश के मौसम में खेत में जलभराव की समस्याओं से बचने के लिए जल निकासी का भी प्रबंध होना चाहिए। यदि बारिश होने पर खेत में नमी आ जाती है ,तो खेत में सिंचाई का काम न करें।
तिल की खेती का सही समय तब माना जाता है ,जब तिल के पेड़ की पत्तियां हरे रंग से पीली पड जाती है। तिल की खेती कम से कम 85-90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। समय से पहले तिल की फसल की कटाई नहीं करनी चाहिए ,क्यूंकि ऐसा करने से फसल के दाने सिकुड़ने लगते है ,और बीज भी पतला हो जाता है। जिसकी वजह से खेत की उपज भी कम रह जाती है।
तिल की खेती के लिए ज्यादा उपजाऊ मिट्टी की जरुरत नहीं रहती है ,इसका उत्पादन कम उपजाऊ मिट्टी में भी किया जा सकता है। तिल की खेती के लिए एक हेक्टेयर खेत में 5-6 किलो बीज की आवश्यकता रहती है। तिल के तेल के अंदर बहुत से पौष्टिक तत्व पाए जाते है , जिसका उपयोग खाने के साथ साथ सुन्दर्य सामग्रियों के निर्माण में भी किया जाता।