भारतीय किसान औषधीय गुणों से युक्त कुसुम की खेती कर मोटी आय कर सकते हैं

By: tractorchoice
Published on: 06-Nov-2024
भारतीय किसान औषधीय गुणों से युक्त कुसुम की खेती कर मोटी आय कर सकते हैं

भारत कुसुम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारतीय कृषि क्षेत्र में कुसुम की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और बिहार शामिल हैं। 

भारत में मुख्य रुप से कुसुम के फल के बीजों से निकले तेल का इस्तेमाल खाना तैयार करने के लिए किया जाता है।

कुसुम फल के निम्नलिखित औषधीय गुण

कुसुम के फल में विभिन्न तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। कुसुम का बीज, छिलका, पत्ती, पंखुड़ियां, तेल, शरबत सभी का उपयोग औषधी के रूप में किया जा सकता है। 

कुसुम के तेल का उपयोग भोजन में करने पर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहती है और तेल से सिर दर्द में भी काफी आराम मिलता है। कुसुम के फल खाने के फायदे इस प्रकार हैं। 

  • कुसुम का फल डायबिटिक मरीजों के लिए काफी लाभदायक होता है।
  • कुसुम का फल खाने से गंजेपन की समस्या भी दूर होती हैं।
  • कुसुम का फल खाने से कान के दर्द में काफी राहत मिलती हैं।
  • कुसुम का फल खाने से अल्सर पूरी तरह ठीक हो जाता है।
  • कुसुम का फल खाने से जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता हैं।
  • कुसुम का फल खाने से चेहरे पर निखार आता है।
  • कुसुम का फल खाने से कैंसर ठीक करने में मदद मिलती हैं।
  • कुसुम की खेती से अच्छी उपज लेने हेतु ध्यान रखने योग्य खास बातें

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कुसुम की खेती के लिए जलवायु व मिट्टी कैसी होनी चाहिए 

कुसुम की खेती करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान तथा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है। 

कुसुम की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए कुसुम की फसल के लिए मध्यम काली भूमि से लेकर भारी काली भूमि उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 के बीच का होना चाहिए।

कुसुम की बुवाई का उपयुक्त समय क्या है ?

कुसुम की बुवाई का सही समय सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक का है। 

अगर खरीफ सीजन की फसल में सोयाबीन बोई है तो कुसुम फसल बोने का उपयुक्त समय अक्टूबर माह के अंत तक का है। 

अगर आपने खरीफ सीजन में कोई भी फसल नहीं लगाई हो तो सितंबर माह के अंत से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक कुसुम फसल की बुवाई कर सकते हैं।

कुसुम की बेहतर खेती के लिए उन्नत किस्में

कुसुम की फसल की अच्छी पैदावार में उन्नत किस्मों का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। कुसुम की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं।

के 65 - यह कुसुम की एक प्रजाति है, जो 180 से 190 दिन में पक जाती है। इसमें तेल की मात्रा 30 से 34 प्रतिशत तक होती है और इसकी औसत उपज 14 से 15 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर तक की है।

मालवीय कुसुम 305 - यह कुसुम की एक उन्नत किस्म है जो 155 से 160 दिन में पकती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 37 प्रतिशत तक की होती है।

ए 300 - यह किस्म 155 से 165 दिनों में पककर तैयार होती हैं। इसकी औसत पैदावार 8 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है। इस किस्म में फूल पीले रंग के होते हैं तथा बीज मध्यम आकार एवं सफेद रंग के होते हैं। बीजों में 31.7% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।

अक्षागिरी 59-2 - इस किस्म की औसत पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टर तक की होती है। ये किस्म 155 से 160 दिनों में पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फूल पीले रंग के और बीज सफेद रंग के होते हैं। इस किस्म के दानों में 31% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।

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कुसुम की कृषि हेतु भूमि की तैयारी 

कुसुम की खेती में भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है, खेत को सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए, 

इसके बाद दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर के माध्यम से करना चाहिए, इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं। 

पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती हैं।

कुसुम की खेती के लिए बुवाई की क्या प्रक्रिया है ? 

कुसुम की खेती करते समय 8 किलोग्राम कुसुम का बीज प्रति एकड़ के हिसाब बुवाई करना पर्याप्त होता है। 

बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेटीमीटर या डेढ़ फुट रखना आवश्यक होता है। पौधे से पौधे की दूरी 20 सेटीमीटर या 9 इंच अवश्य रखना चाहिये।

कुसुम की खेती हेतु खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

ऐसे खेत जहाँ पर सिंचाई के उचित साधन उपलब्ध ना हों वहां नाइट्रोजन 40 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। 

जिन खेतों में उपयुक्त सिंचाई के साधन हों वहां नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, फॉस्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। 

इसके अतिरिक्त खेत में 2 वर्ष के समयांतराल पर 4 से 5 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले देने से कुसुम में तेल की मात्रा में इजाफा होता है। 

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कुसुम की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था क्या होनी चाहिए 

कुसुम की एक फसल को 60 से 90 सेटीमीटर पानी की ज़रूरत पड़ती है। कुसुम की खेती में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। 

फसल अवधि में एक से दो बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के 50 से 55 दिनों पर और दूसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। 

कुसुम के पौधों में फूल निकलने की अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

कुसुम की खेती के दौरान निराई-गुड़ाई का कार्य 

कुसुम की फसल में एक बार डोरा अवश्य चलायें तथा खरपतवार होने की स्थिति में एक से दो बार आवश्यकतानुसार हाथ से निराई-गुड़ाई करें। 

निराई-गुड़ाई बीज के अंकुरण होने के 15 से 20 दिनों के बाद करना चाहिये।

कुसुम की खेती हेतु फसल की कटाई और उपज

कुसुम के पौधे में कांटे होते हैं, इसलिए इसकी कटाई हाथों में दस्ताने पहन कर सावधानी पूर्वक करनी चाहिए। 

अब बात करें इसके उत्पादन की तो इसकी एक हेक्टेयर की खेती करने से किस्मों के अनुसार 5 से 15 क्विंटल तक की पैदावार हांसिल हो सकती है। 

उत्पादन आपकी किस्म के अनुसार होता है, जिससे किसान लाखों रुपये सुगमता से कमा सकते हैं।

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