किसान साथियों जैसा कि आप सब जानते हैं, कि ठंड ने दस्तक देदी है। बढ़ती ठंड के चलते कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. बी. एस. किरार, वैज्ञानिक डॉ. आर. के. प्रजापति, डॉ. एस. के. सिंह, डॉ. यू. एस. धाकड़, डॉ. एस. के, जाटव एवं डॉ. आई. डी. सिंह द्वारा किसान भाइयों को सलाह जारी की है, कि शीतलहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के हर संभव उपाय करें। रबी की फसलों को शीतलहर एवं पाले से काफी हानि होती है।
जब तापक्रम 5 डिग्री से.ग्रे. से कम होने लगता है तब पाला पड़ने की पूर्ण सभाना होती है। हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाये।
दोपहर बाद अचानक हवा चलना बन्द हो जाये तथा आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात से ही हवा रुक जाये तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे पहर में पाला पड़ने की संभावना रहती है।
साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है।
परन्तु यही इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है जो फसलों के लिए नुकसानदायक है।
जब भी पाला पड़ने की सम्भावना हो या मौसम पूर्वानुमान विभाग से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई दे दें।
जिससे तापमान ० डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है सिंचाई करने से 2 से 5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती हैं।
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पाले से सबसे अधिक नुकसान सब्जियों की नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है।
ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। जिससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता है और घौधे पाले से बच जाते हैं।
पॉलीथिन की जगह पर तिरपाल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण पूर्वी भाग खुला रहे ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे।
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अपनी फसल को पाले से बचाने के लिए आप अपने खेत में रात में 12 बजे धुंआ पैदा कर दें, जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता और पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
जिस दिन पाला पड़ने की आशंका हो तब 400 मिली गंधक के तेजाब को 400 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ क्षेत्र में स्प्रेयर पम्प से छिड़काव करें।
पाला से बचाव हेतु यूरिया की 2 ग्रा./ली. पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 कि.ग्रा./एकड़ की दर से भुरकाव करें।
ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है।
यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15-15 दिन के अंतर से दोहराते रहें।
सल्फर 90% WDG पाउडर को 3 किलोग्राम 1 एकड़ में छिड़काव करने के बाद सिंचाई करें या सल्फर 80% WDG पाउडर को 40 ग्राम प्रति पम्प (15 लीटर पानी) में मिलाकर स्प्रे करें।
फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी अरडू एवं जामुन आदि लगा दिये जाये तो पाले और ठण्डी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता हैं।
अतः जिले के समस्त किसान भाइयो को सलाह दी जाती है की उरोक्तानुसार अपनी फसलों की पाला से बचाने के उपाय करें।