अश्विनी कुमार ने पारंपरिक खेती करने के साथ-साथ स्ट्रॉबेरी की खेती प्रारंभ कर गांव में नवीन क्रांति लाई है।
अश्वनी की इस नवीन खेती के ढ़ंग से उनकी आमदनी में भी दोगुना इजाफा देखने को मिला है। जम्मू-कश्मीर के खोड़ ब्लॉक के दोवाल गांव में किसान अश्विनी कुमार ने कृषि के क्षेत्र में नवीन क्रांति ला दी है।
पारंपरिक खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती अपनाकर उन्होंने ना सिर्फ अपनी आमदनी में वृद्धि की है, बल्कि गांव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बन गए हैं।
अश्विनी ने अपने पिता प्रभात चंद की पारंपरिक खेती के तरीकों को आधुनिक तकनीक से जोड़ा और पिछले साल स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया।
इस वर्ष मार्च में उनकी फसल ने काफी शानदार मुनाफा दिया, जिससे उनकी आमदनी दोगुनी से भी अधिक हो गई। अब यह खेती उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा बन गई है।
अश्विनी का कहना है, कि आधुनिक तकनीक और नई सोच के बगैर प्रगति करना बिल्कुल संभव नहीं है।
सीमावर्ती इलाके में रहते हुए भी मैंने स्ट्रॉबेरी की खेती में नए प्रयोग किए, जो काफी हद तक सफल रहे। अब गांव की महिलाएं और किसान भी इसे अपनाने की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं।
स्ट्रॉबेरी की खेती में बागवानी विभाग का भी काफी बड़ा योगदान रहा है। विभाग के अधिकारी किसानों को वक्त-वक्त पर मार्गदर्शन और आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं।
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स्थानीय महिला किसान श्रेष्ठा कुमारी ने कहा स्ट्रॉबेरी की खेती से हमारी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार देखने को मिला है।
जब भी हमें सहायता की आवश्यकता होती है, विभाग हमारी सहायता के लिए पूर्णतय तत्पर रहता है। हम चाहते हैं, कि अन्य किसान भी इस लाभकारी खेती को अपनाएं।
बागवानी विभाग के एचडीओ अमित सराफ ने बताया, सरकार किसानों के लिए अनेकों लाभकारी योजनाएं चला रही है, जिनका लाभ उठाकर सीमावर्ती क्षेत्र के किसान भी समृद्धि की तरफ बढ़ सकते हैं।
अश्विनी कुमार की मेहनत और दूरदर्शिता ने दोवाल गांव के किसानों को नवीन दिशा दी है। उनकी यह सफलता की कहानी सीमावर्ती इलाकों में खेती के भविष्य की उम्मीद जगाती है।
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आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नवंबर-दिसंबर के दौरान स्ट्रॉबेरी तैयार हो जाती है। इसके बाद इसे तोड़कर पैकिंग की जाती है।
एक एकड़ में करीब 400 किलो स्ट्रॉबेरी तैयार होती है। बाजार में इसकी कीमत करीब 300 रुपये से लेकर 500 रुपये प्रति किलो होती है।
ऐसे में किसान प्रति एकड़ खेती से करीब 2 लाख तक का मुनाफा कमा सकते हैं। इसके अलावा सोने पर सुहागा वाली बात यह है, कि देश की कई राज्य सरकारें स्ट्रॉबेरी की खेती करने पर अनुदान की सुविधा भी प्रदान करती हैं।