भारत में अमरूद एक बहुत ही लोकप्रिय फल है। यह पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है। यह हर प्रकार की जलवायु में पैदा हो सकता है, अमरूद में बहुत कम देखभाल करने से भी अच्छी की पैदावार होती है।
इसकी उत्पादन लागत भी कम है क्योंकि उर्वरक, सिंचाई और पौध संरक्षण की आवश्यकता अधिक नहीं है। इसके अलावा यह बहुत पौष्टिक भी होता है। इसलिए, पोषण सुरक्षा के लिए यह एक आदर्श फल है।
अमरूद विटामिन का समृद्ध स्रोत है सी, विटामिन. ए, राइबोफ्लेविन और खनिज जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस,आयरन इसमें प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। अमरूद के फल में विटामिन सी की मात्रा नींबू की तुलना में 4-5 गुना अधिक होती है।
अमरूद के पके फल में 82% पानी, 2.45% अम्ल, 4.45% चीनी, 9.73% टीएसएस, 0.48% राख और 260 मिलीग्राम विटामिन सी प्रति 100 ग्राम फल में पाए जाते है।
अमरूद को उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। 1000-1500 मीटर समुद्र तल की ऊंचाई तक अमरूद की खेती की जाती है।
शुष्क मध्यम सर्दी और गर्मी के साथ-साथ 1000 मिमी की वार्षिक वर्षा इसकी वृद्धि और विकास के लिए आदर्श होती है। अमरूद एक ऐसी फसल है जो सभी प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह हो जाती है |
गहरी, भुरभुरी, हल्की बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी जिसका पीएच 6.5-8.5 हो अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
अमरूद नमक वाली मिट्टी के प्रति अपनी सहनशीलता के लिए जाना जाता है, जबकि यह जल जमाव की स्थिति के प्रति संवेदनशील होता है।
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बीज के माध्यम से बाग उगाना उचित नहीं है। इसलिए, व्यावसायिक प्रसार पैच बडिंग, एयर लेयरिंग और इनार्चिंग द्वारा किया जाता है।
एक शाखा का मिट्टी के स्तर तक झुकना और अंतिम भाग को छोड़कर मिट्टी से ढक देना लेयरिंग कहलाता है। कुछ महीनों में शाखाओं में जड़ें निकल आती हैं जिन्हें बाद में अलग कर दिया जाता है।
बरसात के मौसम में एयर लेयरिंग का उपयोग किया जाता है। जड़ संवर्धन पादप (आईबीए 3000 पीपीएम)) का उपयोग करने से 100% तक रूटिंग को बढ़ावा मिलता है।
जिस बाग़ में रोपण का कार्य करना है। सबसे पहले उस बाग़ को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए और सारे खरपतवार नष्ट कर देने चाहिए। अमरूद की रोपाई जुलाई-अगस्त में की जा सकती है।
रोपाई के लिए 45 x 45 x 45 cm आकार के गड्ढे खोदे जाते हैं और गड्ढे से गड्ढे की दुरी 6.5 x 6.5 मीटर राखी जाती है, इस प्रकार 110 पौधों को एक एकड़ में लगाया जा सकता है।
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कलमी पौधे 2-3 वर्ष की उम्र में फल देने लगते हैं। 5 वें वर्ष के पोधो से अधिक पैदावार प्राप्त होती है। परिपक्व होने पर फलों का रंग गहरे हरे से हरे पिले रंग में बदल जाता है। फूल आने से लेकर फल पकने तक 5 महीने का समय लगता है।