बढ़ते मौसम का प्रभाव न केवल इंसानो पर पड़ता है बल्कि पशुओं पर भी इसका गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। गर्मियों के मौसम में चलने वाली लू पशुओं पर काफी प्रभाव डालती है। इन लू की वजह से पशु की दूध देने की क्षमता काफी काम हो जाती है।
गर्मियों में चलने वाली लू की वजह से पशु के शरीर के अंदर गर्मी इकट्ठा हो जाती है जो किसी सामान्य तरीके के माध्यम से नहीं निकल पाती है। और इन्ही लू की वजह से पशु बुखार से पीड़ित हो जाता है, इसी को ही पशु को लू लगना कहते है।
यह बीमारी पशुओं में तब होती है जब वातावरण में नमी की कमी हो जाती है या फिर कम जगह में ज्यादा पशुओं का रखरखाव हो। इस बीमारी के कारण पशुओं में बेचैनी होने लगती है। साथ ही पशुओं को कम पानी पिलाना भी इस बीमारी का मुख्य कारण हो सकता है।
पशु को लू लगने पर दिखने वाले लक्षण कुछ इस प्रकार है 106 या 108 डिग्री फेरनहाइट से पशु को बुखार होना। सुस्त होना, खाना पीना छोड़ देना। पशु को स्वास लेने में दिक्कत होना या फिर नाक से खून बहना।
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चक्कर आकर गिर जाना या फिर बेहोशी में ही मर जाना। इसके अलावा धड़कन तेज होना, आँखों का लाल पड़ जाना, मुँह से झाग आना या फिर सांस लेते समय पशु की जीभ बहार निकल आना यही पशु को लू लगने के लक्षण है।
पशुओं को लू से बचाने के लिए पशुओं के रखरखाव में साफ़ सफाई बरतनी चाहिए, जहां पशु रहते है वहां स्वच्छ वायु रहना ज्यादा जरूरी है। गर्मियों के मौसम में पशुओं को कई बार ठंडे पानी से नहलाना चाहिए।
इसके अलावा पशुओं को लू के मौसम में कई बार पानी भी पिलाना चाहिए इससे पशुओं को लू लगने का कम ख़तरा रहता है।
इसके अलावा जिन पशुओं को गर्मी सहन नहीं होती है, उनके लिए पंखे या कूलर जैसे साधनों की भी व्यवस्था कर सकते है। अधिक गर्मी होने की वजह से पशु को ग्लूकोस ड्रिप भी लगवा सकते है। नकसीर या अधिक बुखार होने पर पशु स्वास्थ्य चिकित्सक से बात कर सकते है।
गर्मियों के मौसम में पशु के आहार का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, क्यूंकि गर्मियों में हरे चारे का अभाव रहता है। इसीलिए पशुपालक को गर्मियों के मौसम में ही हरी चारा फसलें जैसे ज्वार, मुंग और अन्य फसलों का इंतजाम करके रखना चाहिए। पशुओं को हरा चारा खिलाना चाहिए क्यूंकि यह पशुओं में 70% पानी की पूर्ती करता है।
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जिन पशुपालकों के पास सिंचित भूमि नहीं है वो घास का भी उपयोग हरे चारे के रूप में कर सकते है। क्यूंकि घास में ज्यादा मात्रा में प्रोटीन होता है और पशु के लिए पौष्टिक और हल्की भी रहती है।
गर्मियों के मौसम में पशु को प्यास के मुकाबले भूख बहुत कम लगती है इसीलिए पशु को समय समय पर पानी पिलाते रहना चाहिए। ध्यान रहे दिन में पशु को 3 से 4 बार पानी पिलाना चाहिए।
पानी शरीर की तापक्रम को नियंत्रित कर शरीर में नमी को बनाये रखता है। इसके अलावा पशु को पानी में थोड़ा नमक या आटा मिलाकर भी आप पिला सकते है।
भारत गर्म जलवायु वाला देश है। इसमें अप्रैल और मई माह में धूल भरी आँधियों और लू से सिर्फ व्यक्ति ही नहीं पशुओं के भी झुलसने का ख़तरा होता है। साथ ही पशुओं को ही इस गर्म मौसम की पीड़ा सहन करनी पड़ती है।