वर्तमान में भारत भर के किसान खरीफ फसलों की बुवाई करने में जुटे हुए हैं। मानसून की बारिश भी हो रही है। बारिश से बहुत सारी जगहों पर स्थिति खराब भी है तो कहीं सूखा पड़ने से धान की बुवाई में विलंभ भी हो रहा है। ऐसी स्थिति में धान की बुवाई करने के दौरान आपको खास सावधानी बरतने की जरूरत है।
आप कृषि विभाग की सलाह लेकर अपने इलाके में बुवाई कर सकते हैं। साथ ही फसलों की रोपाई के समय कुछ बातों का ख्याल रखकर शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं।
इस संबंध में कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से बासमती धान की रोपाई के संबंध में कुछ सुझाव साझा किए गए हैं, जो आपके लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकते हैं।
बासमती धान की खेती करने से पूर्व किसान को खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए। इसके लिए लेजर लेवलर मशीन की सहायता से खेत को एकसार करना चाहिए। दो से तीन बार खेत की सही ढ़ंग से जुताई करके खेत को एक समान कर लेना चाहिए।
खेत का आकार छोटा रखना चाहिए, जिससे पानी की बचत की जा सके। बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली चिकनी मृदा अच्छी रहती है। खेत के अंदर मजबूत मेड़ भी बनानी चाहिए।
कृषि विशेषज्ञ के मुताबिक, जिस खेत में आपको धान की रोपाई करनी हो, उस खेत में हरी खाद की बुवाई जरूर करनी चाहिए। इसके लिए ढैंचा, सनई, लोबिया या मूंग जैसी फसल की बुवाई की जा सकती है।
बासमती धान की रोपाई से पहले खेत में पानी भरकर हरी खाद को पडलिंग द्वारा खेत में पलट देना चाहिए। ऐसा करने से जुताई की लागत कम की जा सकती है।
ये भी पढ़ें: जायद सीजन में धान की खेती कर किसान कमा सकते है मुनाफा
वैसे तो बासमती धान की बहुत सारी किस्में हैं। बासमती धान की किस्म में पूसा बासमती 1509 (Pusa Basmati 1509) काफी अच्छी मानी जाती है।
हालांकि किसानों को कृषि विभाग से सलाह लेकर अपने इलाके की मृदा एवं जलवायु के अनुरूप किस्म का चुनाव करना चाहिए।
अब बात आती है, कि बासमती धान की रोपाई के लिए कैसी पौध ली जाए तो बासमती धान की रोपाई के लिए 20 से 25 दिन की पौध का उपयोग करना चाहिए।
बासमती धान की रोपाई करने से पूर्व इसकी पौध को 2 ग्राम कार्बेन्डाजियम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम प्रति लीटर पानी की दर से घोल में कम से कम एक घंटे के लिए डुबोकर रखना चाहिए।
रोपाई से पूर्व पौध का ऊपरी हिस्सा 3 से 4 सेंटीमीटर तोड़कर समाप्त कर देना चाहिए। पौध की रोपाई सदैव कतारों में करनी चाहिए।
बासमती धान की पौध की रोपाई करते समय फासले का ध्यान रखना चाहिए। इसकी 2 से 3 मीटर रोपाई के बाद 40 सेंटीमीटर का रास्ता अवश्य छोड़ना चाहिए।
इससे सूर्य का प्रकाश और हवा मिलने से कीट व बीमारियों का प्रकोप काफी कम होता है और उत्पादन में भी काफी बढ़ोतरी होती है।
किसान भाइयों को रोपाई के समय कतार से कतार की दूरी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर तक रखनी चाहिए। पौध की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई में नहीं करनी चाहिए।
बासमती धान की खेती के दौरान ऊंची बढ़ने वाली प्रजातियों के लिए प्रति हैक्टेयर 100 किलोग्राम डीएपी, 70 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट की मात्रा पूर्णतय उपयुक्त रहती है।
इसमें बौनी प्रजाति के लिए यूरिया 140 किलोग्राम उपयोग करना चाहिए। डीएपी, पोटाश और जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा अंतिम पडलिंग के समय उपयोग करनी चाहिए।
बासमती धान की रोपाई के वक्त खेत में 2-3 सेंटीमीटर जल भराव उपयुक्त होता है। खेतों में रोपाई के बाद दरार बनने से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
इसके बाद में जल स्तर को धीरे-धीरे बढ़ाकर 3 से 5 सेंटीमीटर तक कर देना चाहिए। इसे पहले 30 दिन तक बनाए रखना चाहिए। इससे खरपतवार नियंत्रण में सहयोग मिलता है।
किसान भाई ध्यान रखें कि बाली निकलने और दाने में दूध बनने के दौरान खेत में पानी भरा होना अत्यंत आवश्यक है। खेत में पाटा अवश्य चलाना चाहिए, इससे कल्ले ज्यादा निकलते हैं, उनका फुटाव भी काफी अच्छा होता है। इसके लिए किसान बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित पाटा तकनीक का उपयोग कर सकते हैं।