लहसुन की खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है I इसका प्रयोग मुखयतः मसाले के रूप में किया जाता हैI अयुर्वेदिक दवाओ में भी इसका प्रयोग किया जाता हैI एक प्रतिशत लहसुन का अर्क मच्छरो से 8 घंटे तक सुरक्षा करता हैI इसकी खेती तमिलनाडु,आंध्रा प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मैनपुरी एवं इटावा, गुजरात के जामनगर एवं मध्य प्रदेश के इंदौर एवं मंदसौर में बड़े पैमाने में की जाती है I इसमे तत्व के रूप में विटामिन सी एवं प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैI इससे एक प्रकार का तेल निकलता है जिसे डाई एलाईल डाई सल्फाइड कहते है लहसुन में जो विशिष्ट गंध होती है वह इसी के कारण पाई जाती हैI इसमे कीटनाशक गुण भी पाये जाते है।
लहसुन की खेती के लिए समशीतोषण जलवायु उत्तम होती हैI इसकी खेती रबी मौसम में की जाती हैI इसके लिए न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी की आवश्यकता होती हैI लहसुन की खेती बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6 से 7 तक में की जा सकती हैI लेकिन दोमट मिट्टी में इसकी खेती सर्वोत्तम मानी जाती है।
अधिक पैदावार पाने हेतु उन्नतशील किस्मों को उगाना चाहिए जैसे कि एग्रीफाउंड ह्वाइट जिसे जी.41, यमुना सफ़ेद या जी.1, यमुना सफ़ेद2 जी 50, यमुना सफ़ेद3 जी 282, पार्वती जी 32, जी 323, टी 56-4, गोदावरी, श्वेता, आई. सी. 49381, आई. सी.42889 एवं 42860 है।
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खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद खेत को भुरभुरा समतल बना लेना चाहिए तथा 500 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद जुताई करते समय प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
बीज की मात्रा जवा (बीज सामग्री) के आकार के अनुसार कम तथा ज्यादा पड़ती है फिर भी रोपण की दूरी 15 सेंटीमीटर लाइन से लाइन और 10 सेंटीमीटर पौधे से पौधे तथा लहसुन की आकार 8 से 10 मिलीमीटर ब्यास वाले जवो की मात्रा लगभग 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लगती हैI लहसुन की बुवाई से पहले बीज को 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन कर लेना चाहिए।
लहसुन के लिए 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक बुवाई का सर्वोत्तम समय होता है। बुवाई में लाइन से लाइन की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए |
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अच्छे कंद की फसल पैदा करने के लिए अधिक ब्यास वाले आकार के जवो (बीज सामग्री) का बुवाई में प्रयोग करना चाहिए तथा बुवाई लाइनो में करनी चाहिएI लाइन से लाइन की दूरी 15 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिएI क्यारियों की चौड़ाई ऐसी रखनी चाहिए कि मेड़ों पर बैठकर निराई गुड़ाई कर सके जिससे कि पैरो से फसल में नुकसान न हो सकेI
उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए फिर भी सामान्य दशा में 500 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद साथ ही 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिएI नाइट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के दो दिन पहले बेसल ड्रेसिंग के रूप में तथा शेष मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद टापड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए|
पहली सिंचाई 15 से 20 दिन बुवाई के बाद करनी चाहिए| वनस्पति वृद्धि के समय 7 से 8 दिन के अंतराल पर तथा जाड़ो के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिएI गाँठे बनाते समय आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए तथा फसल परिपक्वता पर पहुचे तो सिंचाई बंद कर देनी चाहिए|
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लहसुन की अच्छी उपज एवं गुणवत्तायुक्त कंद प्राप्त करने के लिए समय से तथा आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करते रहना चाहिएI जिससे खेत साफ़ रहे और खरपतवार न उग सकेI पहली निराई गुड़ाई बुवाई के 30 दिन बाद दूसरी 60 दिन बाद करनी चाहिएI खरपतवार नियंत्रण हेतु रसायन का भी प्रयोग कर सकते है जैसे पेण्डामेथालीन एवं आक्सीडेजान बुवाई के एक दिन बाद अंकुरण से पहले क्रमशः 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर तथा 0.25 किलोग्राम सक्रीय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर खेत में स्प्रे करना चाहिए |
जब लहसुन की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगे नेक फाल स्टेज इसे कहते है तो फसल परिपक्व समझना चाहिएI इसके बाद सिंचाई बंद कर देना चाहिए इसके 15 से 20 दिन बाद जब खेत सुखकर कडा हो जाये तो बाद में खुदाई करनी चाहिएI अच्छी तरह सुखाये एवं पकाये गए लहसुन के कन्द साधारण हवादार कमरो में रखे जा सकते हैI बीज वाले लहसुन के कन्दो को पत्तियो सहित बिना काटे हवादार कमरो में लटकाकर भंडारित किया जा सकता है।
लहसुन के कन्दो की उपज प्रजाति एवं क्षेत्र के अनुसार 100 से 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती हैI एग्रीफाउंड प्रजाति पर्वतीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैI यह सबसे ज्यादा 175 से 225 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।