किनोवा (चिनोपोडियम किनोवा) बथुआ प्रजाति का एक महत्वपूर्ण सदस्य है, जिसे कई ग्रामीण क्षेत्रों में किनोवा या केनवा के नाम से जाना जाता है।
यह मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी देशों में उगाया जाता है, लेकिन वर्तमान में इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, चीन, बोलिविया, पेरू, इक्वाडोर और अन्य देशों में भी इसकी खेती की जा रही है।
यह एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है, जिसे रबी मौसम में उगाया जाता है। इस लेख में हम किनोवा की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
किनोवा की बेहतर उपज के लिए खेत की उचित तैयारी आवश्यक है। खेत को भुरभुरी बनाने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए।
अंतिम जुताई से पहले प्रति हेक्टेयर 5-6 टन गोबर की खादमिलानी चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़े। साथ ही, खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि अधिक पानी से फसल प्रभावित न हो।
किनोवा की बुआई विभिन्न समयों पर की जा सकती है। इसे अक्टूबर, फरवरी, मार्च तथा कुछ क्षेत्रों में जून-जुलाई में भी बोया जा सकता है।
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किनोवा के पौधे स्वाभाविक रूप से कीट एवं रोगों के प्रति अधिक सहनशील होते हैं।
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किनोवा को सुपरफूड माना जाता है क्योंकि यह प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है। यह ग्लूटेन-फ्री होता है, जिससे यह स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनता है। इसका उपयोग सलाद, सूप, दलिया और विभिन्न स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
किनोवा का अंतरराष्ट्रीय बाजार में बड़ा महत्व है, और इसकी कीमत 500-1000 रुपये प्रति किलो तक होती है। इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान इसे एक लाभदायक फसल के रूप में अपना सकते हैं। इसके अलावा, जैविक किनोवा की खेती करने पर इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक कीमत मिल सकती है।
किनोवा की खेती किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि यह कम जल खपत वाली फसल है और इसे अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं होती।
इसकी बढ़ती मांग और उच्च बाजार मूल्य इसे आर्थिक रूप से लाभदायक बनाते हैं। यदि किसान आधुनिक तकनीकों और जैविक खेती के तरीकों को अपनाते हैं, तो वे किनोवा की खेती से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।