इमली की खेती करके कृषक काफी शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। किसान साथियों इमली एक फलदार पेड़ होता है, जोकि भारत के अंदर पाए जाने वाले विशेष फलों के पेड़ों में से एक पेड़ है।
महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय भोजनों में एक स्वादिष्ट मसाले के तौर पर इमली का इस्तेमाल होता है।
भारत की कोई भी चाट इमली की चटनी के वगैर अधूरी मानी जाती है। यहां तक कि इमली के फूलों को भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है, कि इमली की खेती भी काफी मुनाफे का सौदा है।
इमली की खेती के लिए एक खास जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है। परंतु, नमी युक्त गहरी जलोढ़ और दोमट मृदा में इमली की शानदार उपज होती है।
इसके अतिरिक्त बलुई, दोमट और लवण युक्त मृदा में भी इसका पौधा काफी विकास कर लेता है। इमली का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का होता है।
यह गर्मियों में गर्म हवाओं और लू को भी बड़ी सहजता से सहन कर लेता है। परंतु, शर्दियों में पाला पौधों की बढ़वार को काफी ज्यादा प्रभावित करता है।
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किसान भाई सर्वप्रथम खेत की मृदा को भुरभुरा कर लें। इसके पश्चात पौधों को लगाने के लिए मेंड़ तैयार करनी चाहिए। इन मेंड़ पर ही पौधों को रोपा जाता है, जिससे कि इमली के पौधे सही तरीके से बढ़ सकें।
इसके लिए भूमि तैयारी के दौरान उसमें गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट की मात्रा को पौध रोपण के दौरान मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भरना पड़ेगा।
इसके अतिरिक्त रासायनिक उवर्रक की मात्रा मृदा की जांच के आधार पर खेत में ड़ाली जाती है।
पौधों को तैयार करने के लिए सर्वप्रथम सिंचित जमीन का चुनाव किया जाता है। मार्च माह में खेत की जुताई करके पौध रोपाई के लिए क्यारियां तैयार करें।
क्यारियों की सिंचाई करने के लिए नालियां भी तैयार करनी पड़ती हैं। क्यारियों को 1X5 मीटर लंबा और चौड़ा बनाते हैं। इसके पश्चात बीजों को मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक लगाना होता है।
इमली के बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए, उनको 24 घंटो तक पानी में भिगोने के लिए रख देना चाहिए।
इसके पश्चात खेत में तैयार की गई क्यारियों में इमली के बीजों को 6 से 7 सेमी की गहराई और 15 से 20 सेमी के फासले पर कतारबद्ध तरीके से लगाते हैं।
इसके एक सप्ताह बाद बीजों का अंकुरण होना शुरू हो जाता है। इमली का बीज एक महीने के पश्चात अंकुरित हो जाता है।
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नर्सरी में तैयार किए गए पौधों को रोपने के लिए एक घन फीट आकार वाले खेत में गड्डे तैयार कर लें। इन गड्डों को 4X4 मीटर या 5X5 मीटर के फासले पर तैयार करना पड़ेगा।
अगर पौधों को बाग के रूप में लगाना चाहते हैं, तो आधा घन मीटर वाले गड्डों को 10 से 12 मीटर के फासले पर रख कर तैयार करलें।
नर्सरी में तैयार पौधों को जमीन से पिंडी समेत निकालें और खेत में लगाने के बाद एक निर्धारित मात्रा में सिंचाई करदें।
पौधों की सामान्य सिंचाई करनी चाहिए। गर्मियों के मौसम में पौधों को खेत में नमी को ध्यान में रखते हुए सिंचाई करनी चाहिए।
इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि खेत में जलभराव न हो, सर्दियों के मौसम में पौधों की 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करें।