तोरिया (ब्रैसिका रैपा सी.वी. तोरिया) एक रबी मौसम की प्रमुख तिलहनी फसल है। आमतौर पर इसे सरसों या लाही के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव उपभोग के लिए उद्देश्य और अपने कई विभिन्न उपयोगों के लिए जाना जाता है। तोरिया ‘कैच क्राप’ के रूप में खरीफ एवं रबी के मध्य में बोयी जाती है। इसकी खेती करके अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है। इसकी खेती सीमित सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक होती हैI उन्नत विधिया अपनाने पर उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती हैI
तोरिया की फसल के लिए 25 डिग्री सेंटीग्रेट से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती हैI तोरिया की फसल के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है जिसमे जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिएI
तोरिया की फसल की बुवाई से पहले खेत की तैयारी में सबसे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो-तीन जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिएI
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तोरिया की फसल के लिए उन्नतशील प्रजातियों का चयन करना चाहिए जैसे की टाइप 9, भवानी, पी.टी.303 तथा पी.टी.30 की बुवाई समय पर करनी चाहिएI
बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा०0बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें। यदि थीरम उपलब्ध न हो तो मैंकोजेब 3 ग्राम प्रति किग्रा०0बीज की दर से उपचारित किया जा सकता है। मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किग्रा०0बीज की दर से शोधन करने पर प्रारम्भिक अवस्था में सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है।
किसान भाइयो तोरिया की बुवाई सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह से सितम्बर माह के चौथे सप्ताह तक कर देना चाहिए फसल की बुवाई देशी हल से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर कतारों में करने के पश्चात पाटा लगाकर बीज को ढक देना चाहिएI
तोरिया फसल की असिंचित दशा में बुवाई करने पर नाइट्रोजन 50 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम तथा पोटाश 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए एवं सिंचित दशा में नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम तथा पोटाश 50 किलोग्राम तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिएI फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय बीज से 2 - 3 सेंटीमीटर नीचे प्रयोग करे तथा शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा को बुवाई के 20 से 25 दिन बाद टापड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए I
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तोरिया की फसल में फूल निकलने से पूर्व की अवस्था जल की कमी के प्रति विशेष संवेदनशील फसल है अतः फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फूल निकलने से पूर्व एक सिंचाई करना अति आवश्यक हैI
किसान भाइयो तोरिया की बुवाई के 15 दिन बाद घने पौधों को निकालकर पौधों की आपस की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर कर देना चाहिए तथा खरपतवार नष्ट करने के लिए निराई गुड़ाई कर देना चाहिएI यदि खरपतवार अधिक है तो पेंडामेथलीन 30 ई.सी. नामक रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 12 से 36 घंटे के अंदर जमाव के पहले छिड़काव करना चाहिएI
तोरिया की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप होने पर पत्तियो तथा फलियों पर कत्थई रंग के धब्बे बनाते है इनके उपचार के लिए मेन्कोजेब 75 % की 2 किलोग्राम मात्रा अथवा कापर आक्सीक्लोराइड 80% की 3 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए तथा फसल में सफ़ेद गेरुई रोग एवं तुलसिता रोग के नियंत्रण के लिए रोडोमिल एम्.जेड. 72 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए
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किसान भाइयो तोरिया की फसल के प्रमुख कीट जैसे सरसों की आरा मक्खी, चित्रिल कीट तथा बालदार सूंडी प्रमुख कीट है जो तोरिया की फसल को हानि पहुचते है फसल को इन कीटो से बचाव के लिए मैलाथियान 50 ई.सी. रसायन की 1.5 लीटर मात्रा या फैंटोथियान 50 ई.सी. रसायन की 1 लीटर मात्रा या डायमिथोयेट 30 ई.सी.की 1 लीटर मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिएI
तोरिया की फसल में जब 75 % फलियां सुनहरे रंग की हो जाये तो फसल की कटाई करके सुखाने के पश्चात मड़ाई करके बीज को अलग कर लेना चाहिए तथा बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिएI तकनीकी तरीके से उगाई गयी तोरिया की फसल से उपज 10 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती हैI