नाशपाती एक फल है ,यह सेब से जुड़ा एक उपअम्लीय फल है। नाशपाती में सेब के मुकाबले शर्करा अधिक और अम्ल बहुत कम पाया जाता है। भारत में नाशपाती की खेती मुख्यतः जम्मू कश्मीर ,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है।
नाशपाती के पौधे का आकर मध्यम प्रकार का होता है। नाशपाती के पौधे और पेड़ का आकर पेड़ की जड़ो के विकास पर निर्भर करता है। नाशपाती के पेड़ की ऊंचाई 30 फ़ीट तक पहुंच जाती है।
नाशपाती की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। साथ ही इसकी अच्छी उपज के लिए अच्छी जल निकास वाली और उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता रहती है।
नाशपाती की ज्यादा उत्पादकता के लिए शुष्क शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता रहती है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त तापमान 20-25 डिग्री को अनुकूल माना जाता है।
ये भी पढ़ें: भारत में कितने प्रकार की मिट्टी पाई जाती है?
नाशपाती की बुवाई के लिए जनवरी माह को बेहतर माना जाता है। पौधो की बुवाई के लिए 6-7 मीटर की दूरी बनाये रखे। नाशपाती की बुवाई के लिए अधिक पैदावार वाले पेड़ के पके हुए फल को ले।
फल के बीजों को लकड़ी से बने बॉक्स में रेत डालकर रख दे और समय समय पर उन बीजों को सिंचित करते रहे। जनवरी माह में बीजों को निकाल कर नर्सरी में बो दे।
उसके बाद बीजों में अंकुरण होने लगता है ,नर्सरी द्वारा इन पौधो को तैयार करके कलम विधि से पौधे तैयार किये जाते है।
पौधा लगाने से पहले किसान को खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ,ताकि भूमि को समतल और भुरभुरा बनाया जा सके।
जुताई करते वक्त किसानों द्वारा खेत में गोबर खाद का भी प्रयोग किया जाता है ,इससे खेत की उत्पादकता भी बनी रहती है।
किसानों द्वारा खेत में 6-7 मीटर की दूरी पर गढ्डे बनाये जाते है और उन गड्डो में गोबर की 500 ग्राम खाद भरकर छोड़ दिया जाता है। पौधे लगाने के बाद किसानों द्वारा इसकी हल्की हल्की सिंचाई भी की जाती है।
ये भी पढ़ें: खजूर की खेती कैसे की जाती है, जानिए सम्पूर्ण जानकारी बारे में
नाशपाती की खेती में एक सिंचाई पौध रोपण के तुरंत बाद की जाती है। इसके बाद नाशपाती की खेती में सिंचाई 15 दिन के अंतराल पर की जाती है। खेत में सिंचाई भूमि की नमी और मौसम को देख कर की जानी चाहिए। खेत में ज्यादा सिंचाई होने से फसल में रोग लगने की भी ज्यादा सम्भावनाये होती है। ज्यादा सिंचाई से फल के रंग और गुणवत्ता पर भी काफी असर पड़ता है।
किसानों द्वारा खरपतवार के नियंत्रण के लिए समय समय पर नराई और गुड़ाई करती रहनी चाहिए। जब तक पेड़ फल नहीं देने लग जाते है ,तो किसानों द्वारा नाशपाती के खेत में मुंग ,मटर ,चने और तुरई की खेती की जा सकती है। किसानों द्वारा अंतर फसलों का उत्पादन करने से खेत में खरपतवार जैसी समस्याएं कम हो जाती है।
नाशपाती की फसल को पकने के लिए 145 दिन का समय लगता है। नाशपाती के फलो की तुड़ाई का काम जून से सितम्बर माह के बीच में किया जाता है।
मंडियों में फलो को ले जाने के लिए ,फल के अच्छे तरीके से पकने के बाद ही तोडा जाता है। यदि फल की तुड़ाई देरी से की गयी है तो फल को ज्यादा दिनों के लिए स्टोर करके नहीं रखा जा सकता है। इससे फल का रंग और स्वाद दोनों ही ख़राब हो सकते है।
ये भी पढ़ें: जाने संतरे की उन्नत किस्में और खेती करने का तरीका यहां
फसल की कटाई के बाद फलो की अच्छे तरीके से छटाई कर लेनी चाहिए। फलो को स्टोर करने के लिए फाइबर बॉक्स का उपयोग किया जाना चाहिए।
फलो को 24 घंटो के लिए 100 पी पी एम इथाइलीन गैस में रखे उसके बाद फलो को 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर स्टोर करके रख दे।
नाशपाती की बहुत सी अगेती किस्में ऐसी है जिनके बुवाई का काम थोड़ी जल्दी किया जाता है जैसे : लेकटसन सुपर्ब , थम्ब पियर ,सीनसेकि,अर्ली चीन ,शिनसुई आदि ये सब किस्में शामिल है।
नाशपाती का सेवन सुबह और देर रात को कभी नहीं करना चाहिए ,इससे पेट फूलने ,गैस बनने और ऐठन जैसी समस्याएं भी हो सकती है।
नाशपाती के खाने के बहुत से फायदे हैं लेकिन कुछ नुक्सान भी है। नाशपाती का तासीर ठंडा रहता है ,इसलिए इसका उपयोग सर्दियों में भी नहीं करना चाहिए।