फ्रेंचबीन की हरी पौध सब्जी के तौर पर खायी जाती है। फ्रेंचबीन को आप सुखा कर इसको राजमा और लोबिया इत्यादि के रूप में खा सकते हैं।
फ्रेंचबीन विटामिन बी2 और सोल्युबल फाईबर का प्रमुख स्रोत होता है। जिसकी वजह से यह ह्रदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होता है।
ऐसा माना जाता है, कि एक कप पके हुए बीन्स का प्रतिदिन सेवन करने से खून में कोलेस्टेरोल की मात्रा 6 हफ्ते में 10% प्रतिशत तक कम हो सकती है। फ्रेंचबीन से ह्रदयाघात का संकट भी 40% प्रतिशत तक कम हो सकता है।
हरी बीन्स या सामान्य भाषा में फ्रेंचबीन में प्रमुख रूप से पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा और कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि प्रकार के मिनरल और विटामिन विघमान रहते हैं।
फ्रेंचबीन में सोडियम की मात्रा कम और पोटेशियम, कैल्सियम व मेग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होती है। लवणों का इस प्रकार का समन्वय स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। इससे रक्तचाप नहीं बढ़ता और ह्रदयघात का संकट भी टल सकता है।
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फ्रेंचबीन की झाड़ीदार किस्मों में जाइंट स्ट्रींगलेस, कंटेंडर, पेसा पार्वती, अका्र कोमल, पंत अनुपमा तथा प्रीमियर, वी.एल. बोनाी-1 आदि किस्म शामिल हैं।
फ्रेंचबीन की बेलदार किस्मों में केंटुकी वंडर, पूसा हिमलता व एक.वी0एन.-1 आदि किस्में शामिल हैं।
फ्रेंचबीन के लिए हल्की गर्म जलवायु की जरूरत पड़ती है। फ्रेंचबीन की अच्छी ग्रोथ के लिए 18-24 डिग्री से. तापमान सबसे अनुकूल रहता है।
फ्रेंचबीन ज्यादा ठंड अथवा ज्यादा गर्मी दोनों ही स्थिति में हानिकारक होता है। फ्रेंचबीन की सफल खेती के लिए निरंतर 3 माह अनुकूल मौसम चाहिए।
फ्रेंचबीन की खेती के लिए बलुई दोमट व दोमट मिट॒टी सबसे अच्छी होती है। फ्रेंचबीन की खेती के लिए भारी व अम्लीय मृदा उपयुक्त नहीं होती है।
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फ्रेंचबीन की झाड़ीदार किस्मों के लिए बीजदर 80-90 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर और बेलदार किस्मों के लिए 35-30 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर होना जरूरी है।
उत्तर भारत में जहाँ पर ज्यादा ठंड होती है। फ्रेंचबीन की बुवाई अक्टूबर व फरवरी माह में की जा सकती है। हल्की ठंड वाले स्थानों पर नवंबर के पहले सप्ताह में बुवाई उपयुक्त है। पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी, मार्च व जून माह में बुवाई की जा सकती है।
फ्रेंचबीन के बीज की बुवाई पंक्ति से पंक्ति 45-60 सें.मी. तथा बीज से बीज की दूरी 10 सें.मी. होती है। परंतु, बेलदार किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति में 100 से.मी. की दूरी रखनी चाहिए। साथ ही, पौधों को सहारा देने का प्रबंध भी जरूरी है। पर्याप्त नमी होना बीज अंकुरण के लिए भी बेहद जरूरी है।
फ्रेंचबीन की बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी की जरूरत पड़ती है। इसके बाद 1 सप्ताह से 10 दिन के समयांतराल पर फसल की जरूरत के अनुरूप सिंचाई करनी चाहिए।
फ्रेंचबीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो से तीन बार निराई व गुड़ाई करनी जरूरी होती है। एक बार पौधों का सहयोग करने के लिए मिट॒टी चढ़ाना जरूरी है।
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए 3 लीटर स्टाम्प का प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अंदर घोलकर छिड़काव करें।
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फ्रेंचबीन की खेती के लिए तुड़ाई फूल आने के 2-3 सप्ताह के बाद शुरू हो जाती है। तुड़ाई नियमित रुप से जब फलियाँ नर्म व कच्ची अवस्था में हो, तभी करें।
फ्रेंचबीन की खेती के लिए हरी फली उपज 75-100 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से हांसिल होती है। फ्रेंचबीन की उपज किस्म के ऊपर निर्भर रहती है।
फ्रेंचबीन की खेती से औसत उपज 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और यह सबसे ज्यादा किस्म पर आधारित होती है।
फ्रेंचबीन की खेती से किसान काफी अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। फ्रेंचबीन की बाजार में बहुत ही शानदार मांग और कीमत दोनों होने की वजह से यह बेहतरीन उपज देने वाली फसल है। फ्रेंचबीन की सहायता से किसान काफी अच्छा-खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।