भारतीय कृषि में पशु पालन के अंतर्गत बकरी पालन और भेड़ पालन की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में वर्तमान समय में 34 प्रकार की बकरियों की नस्लें और 44 भेड़ की नस्लें पायी जाती है। सीमान्त और लघु किसानों के लिए आजीविका का यह मुख्य श्रोत है।
भारत में भेड़ और बकरियों का वर्गीकरण क्षेत्र की जलवायु और नस्ल की उपयोगिता के आधार पर किया गया है। भारत में पायी जाने वाली भेड़ और बकरियों की किस्में निम्न है :
जमुनापारी व्यक्ति को "रोमन रोज" के नाम से भी जाना जाता है। इस बकरी का रंग सफ़ेद होता है, और इसकी नाक उभरी हुई होती है।
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इस बकरी का आकार काफी बड़ा होता है। इस बकरी की दूध देने की क्षमता अन्य बकरियों के मुकाबले में अधिक होती है।
इस बकरी के पिछले वाले पैरों पर बालों के गुच्छे होते है। मादा बकरी का वजन 35 -38 किलोग्राम के बीच में होता है। जबकि व्यस्क नर का भार 45 - 46 किलोग्राम के बीच में होता है।
यह बकरी सफ़ेद रंग की होती है इसके शरीर पर भूरे रंग के छोटे और बड़े धब्बे होते है। यह मध्यम आकार की बकरी होती है। इस बकरी के सींग काफी छोटे और आगे से नुकीले होते है।
बकरी के सींग आगे या पीछे की ओर हल्के से मुड़े हुए होते है। यह बकरी एक ब्यात में कम से कम 2 से 3 तीन बच्चे देती है।
बकरी की यह किस्म लगभग जमुनापारी बकरी की किस्म से मिलती है। बीटल बकरी का आकर भी बड़ा होता है, इसके दूध देने की क्षमता भी अधिक रहती है।
बकरी की यह नस्ल काले भूरे रंग की होती है। इस बकरी के कान नीचे की ओर लटके हुए होते है, इसके कानों का आकार भी बड़ा होता है।
यह बकरी काले रंग की होती है और इसका अन्य बकरियों के मुकाबले में आकर काफी छोटा होता है। यह बकरी प्रत्येक ब्यात में 3 - 4 बच्चे देती है। जो की इसकी नस्ल को तेजी से बढ़ाती है।
भेड़ की इस किस्म को " भारत की मेरिनो" के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान जैसे राज्य में, भेड़ की इस किस्म से बनी ऊन को अच्छी गुणवत्ता वाली ऊन के रूप में माना जाता है।
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इस ऊन का उपयोग कालीन और चटाई बनाने के लिए किया जाता है। यह भेड़ हल्के भूरे रंग की होती है, लेकिन इसका मुँह गहरे भूरे रंग का होता है। नर और मादा भेड़ दोनों ही सींग रहित होती है।
भेड़ की यह नस्ल अत्यधिक रोग प्रतिरोधक वाली होती है। भेड़ की इस नस्ल से प्राप्त ऊन का रंग सफ़ेद होता है। भेड़ का मुँह वाला भाग काले रंग का होता है और कान छोटे होते है। यह भेड़ मध्यम आकार की होती है।
भेड़ की यह नस्ल सींग रहित होती है। भेड़ की इस नस्ल की पहचान इसके मुँह वाले भाग से की जाती है। भेड़ का रंग सफ़ेद होता है और इसके आँखों के चारो तरफ हल्के भूरे रंग के धब्बे होते है।
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इस भेड़ की ऊन का उपयोग कालीन और चटाई बनाने के लिए किया जाता है।
भेड़ की यह नस्ल मध्यम आकर की होती है। इसकी ऊन का उपयोग कपड़ों की बुवाई के लिए किया जाता है। भेड़ का मुँह वाला भाग सफ़ेद होता है और नाक उभरी हुई होती है।