कलौंजी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 15-Apr-2025
Nigella sativa blue flowers with inset showing black cumin seeds

कलौंजी एक प्रसिद्ध औषधीय फसल है, इसका विभिन्न प्रकार की परंपरागत दवाईयां बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह डायरिया, अपच और पेट दर्द में काफी लाभदायक होती है। 

कलौंजी का उपयोग यकृत के लिए काफी लाभकारी है। इसका इस्तेमाल सिर दर्द और माइग्रेन में भी किया जाता है। कलौंजी के बीज में 0.5 से 1.6 प्रतिशत तक आवश्यक तेल पाया जाता है। कलौंजी के तेल का इस्तेमाल अमृतधारा इत्यादि औषधियों को तैयार करने में किया जाता है। 

मिट्टी 

कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ वाली बलुई दोमट मृदा सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है। पुष्पण और बीज के विकास के समय मृदा में उचित नमी का होना बेहद आवश्यक है। 

इसकी खेती के लिए कम से कम 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। यह फसल किसानों के लिए काफी लाभदायक होती है।

जलवायु

उत्तर भारत में इसकी बुवाई रबी की फसल के रूप में की जाती है। शुरुआत में वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडा मौसम अनुकूल होता है। बीज के परिपक्व होने के दौरान शुष्क एवं अपेक्षाकृत गर्म मौसम उपयुक्त होता है।

भूमि की तैयारी

कलौंजी की खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी एवं उचित जल निकास वाली होनी चाहिए। खेत की तैयारी के लिए एक गहरी जुताई और दो-तीन उथली जुताइयों के बाद पाटा लगाना अच्छा होता है। 

कलौंजी की बुवाई से पहले खेत को सुविधानुसार छोटी-छोटी क्यारियों में विभाजित कर लेना चाहिए, जिससे कि सिंचाई के जल का फैलाव समान रूप पर हो सके इससे बीज का जमाव एक समान होता है।

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कलौंजी की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ?

एन.आर.सी.एस.एस.एन.-1

यह प्रजाति 135 दिनों में तैयार हो जाती है। यह जड़गलन रोग के प्रति सहनशील है। इसकी उत्पादन क्षमता 12 क्विंटल/हैक्टेयर है।

आजाद कलौंजी 

  • आजाद कलौंजी किस्म 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 8-10 क्विंटल/ हैक्टेयर है।

एन.एस.-44 

  • एन.एस.-44 किस्म 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 4.5-6.5 क्विंटल/हैक्टेयर है।

एन.एस.-32 

  • एन.एस.-32 किस्म 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 4.5-5.5 क्विंटल/हैक्टेयर है।

अजमेर कलौंजी 

  • अजमेर कलौंजी 135 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 8 क्विंटल/हैक्टेयर है।

कालाजीरा 

  • कालाजीरा किस्म की फसल 135 से 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 4-5 क्विंटल/ हैक्टेयर है।

अन्य किस्में 

  • राजेन्द्र श्याम एवं पंत कृष्णा आदि।

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खरपतवार नियंत्रण

फसल के 30-35 दिन के हो जाने पर उसी समय कतारों से अतिरिक्त पौधों को भी निकाल देना चाहिए, जिससे फसल वृद्धि एवं विकास बेहतर तरीके से हो सके। 

फसल की दूसरी निराई-गुड़ाई 60-70 दिनों के समयांतराल पर करनी चाहिए। इसके बाद यदि आवश्यक हो तो एक निराई और कर देनी चाहिए। 

रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पेन्डिमेथलिन दवा 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व को जमाव पूर्व 500-600 लीटर पानी में घोलकर मृदा पर छिड़काव करना चाहिए। इस विधि से अच्छे परिणाम हांसिल करने के लिए यह आवश्यक है, कि भूमि में पर्याप्त नमी हो।

बुवाई का समय

उत्तर भारत में बुवाई के लिए मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर का महीना सबसे अच्छा होता है।

बीजदर

सीधी बुवाई के लिए 7 कि.ग्रा. बीज एक हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है।

बीजोपचार

बीज की बिजाई से पूर्व कैप्टॉन, थीरम व बाविस्टीन से 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचारित करना चाहिए।

बुवाई की विधि

कतार विधि 

कतार विधि में बीज की बुवाई 30 सें.मी. की दूरी पर बनी कतारों में करनी चाहिए। बीज बुवाई के समय यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए, कि गहराई 2 सें.मी. से अधिक ना हो अन्यथा बीज जमाव पर इसका काफी ज्यादा प्रभाव पड़ता है।

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सिंचाई

पुष्पण एवं बीज विकास के समय मृदा में उचित नमी का होना आवश्यक है। अच्छी पैदावार के लिए तकरीबन 5-6 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है।

खरपतवार नियंत्रण

कलौंजी की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण करने के लिए निराई-गुड़ाई का कार्य करें।  

निष्कर्ष - 

कलौंजी की खेती करना किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। कलौंजी का बड़े पैमाने पर कई तरह की दवा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वजह से कलौंजी की बाजार में मांग और कीमत दोनों ही काफी अच्छी होती हैं।

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