किसान साथियों, आज हम आपको अजमोद यानी सैलेरी की खेती के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देंगे। सबसे पहले आपको बतादें कि सैलेरी का प्रयोग करने से कई सारे रोग दूर होते हैं।
जैसे कि - जोड़ों का दर्द, सिर दर्द, घबराहट, गठिया और खून साफ करने आदि के लिए किया जाता है। सैलेरी के अंदर विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी 6, फोलेट और पोटाशियम काफी ज्यादा मात्रा में पाया जाता है।
सैलेरी का वानस्पतिक नाम एपिऐसी ग्रेविओलेन्स है और इसको कार्नोलीके नाम से भी जाना जाता है। सैलेरी के द्वारा तैयार की जाने वाली दवाइयों के कारण यह काफी लोकप्रिय जड़ी बूटी है।
सैलेरी के आकार से संबंधित बात करें तो इसकी औसतन ऊंचाई 10-14 इंच और फूलों का रंग सफेद होता है। इसके तने हल्के हरे रंग के होते है और इसके साथ 7-18 सै.मी लंबे पत्ते होते हैं।
पत्तों से हरे सफेद रंग के फूल पैदा होते हैं, जो फल पैदा करते है और बाद में यही फल बीज में बदल जाते हैं, जिनकी लंबाई 1-2 मि.मी होती है और रंग हरा-भूरा होता है।
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सैलेरी अधिकतर मेडिटेरेनियन क्षेत्रों में, दक्षिण एशिया इलाकों में यूरोप और उत्तरी अमेरिका के दलदली क्षेत्रों में और भारत के कुछ इलाकों में पाया जाता है।
पश्चमी उत्तर प्रदेश में लाडवा और सहारनपुर जिलें, हरियाणा और पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर और जालंधर जिले मुख्य सैलेरी उगाने वाले क्षेत्र हैं।
यह काफी किस्म की बढ़िया निकास वाली मिट्टी जैसे कि रेतीली दोमट से चिकनी, काली मिट्टी और लाल मिट्टी में उगाई जा सकती है। यह जैविक तत्वों वाली दोमट मृदा में अच्छी उपज देती है।
सैलेरी की बुवाई पानी सोखने वाली, खारी और नमकीन मिट्टी में नहीं करनी चाहिए। इसकी खेती के लिए मिट्टी को 5.6 से भी ज्यादा पी,एच मान की जरूरत होती है।
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यह पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के द्वारा तैयार की गयी पहली किस्म है। इसके बीज भूरे रंग के होते है। फूलों वाली किस्म पनीरी लगाने से 140-150 दिनों बाद तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार बीजों के रूप में 4.46 कुइंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें कुल तेल की मात्रा 20.1% होती है।
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सैलेरी की खेती के लिए भुरभुरी और एकसार मृदा की आवश्यकता होती है। मिट्टी को सही स्तर पर पहुँचाने के लिए 4-5 बार हल के साथ जोताई करें और जोताई के बाद सुहागा फेर दें। सैलेरी की पनीरी तैयार किए बिना नर्सरी बैडों पर लगाई जाती है।
बिजाई का समय जैसे कि यह हाड़ी की फसल है, तो आधे-सितंबर से आधे-अक्टूबर तक तैयार कर देनी चाहिऐ। पनीरी को 45x25 सै.मी. के फासले पर लगाएं।
बीज की गहराई की बात करें तो इसके बीज को 2-4 सै.मी. की गहराई पर बोना चाहिए। बीज की मात्रा खुले परागन वाली किस्मों के लिए 400 ग्राम प्रति एकड़ में इस्तेमाल करें।
पनीरी की बिजाई से पूर्व कैल्शियम अमोनिया और सिंगल सुपर-फास्फेट के 150 ग्राम मिश्रण को बैडों पर लगा दें। 8x1.25 मीटर लंबे और आवश्यकतानुसार चौड़े बैडों पर बीजों की बुवाई करें।
बिजाई के पश्चात बैडों को रूडी की खाद के साथ ढक दें और मृदा में अच्छी तरह से मिश्रित कर दें। बिजाई से तुरंत बाद फुवारे (स्प्रिंकलर) के साथ सिंचाई करनी आवश्यक है।
बिजाई से 12-15 दिन के पश्चात बीज अंकुरण होना प्रारंभ हो जाता है। अंकुरण शुरू होने के वक्त, अंकुरण से पहले पखवाड़े कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट हर एक बैड पर डालें।
पौधे के अच्छे आकार के लिए एक माह के फासले पर हर एक बैड पर कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट 100 ग्राम हर एक बैड पर डालें।
बिजाई वाले पौधे रोपाई के लिए 60-70 दिनों के समयांतराल में तैयार हो जाते हैं। पनीरी निकलने से पहले बैडों को हल्का पानी लगा दें, ताकि पौधों को आसानी से निकाला जा सके। आम तौर पर रोपाई आधे-नवम्बर से आधे-दिसंबर तक की जाती है।
खेत को नदीन रहत करने के लिए हाथों और कही से हल्की गोड़ाई करें। अगर नदीनों पर काबू नहीं किया जाएँ तो यह पैदावार को कम कर देते हैं। खरपतवारों की प्रभावशाली रोकथाम के लिए कृषि विशेषज्ञों के सलाहनुसार रासायनिक दवाओं का छिड़काव करें।
खरपतवारों की रोकथाम करने के लिए मल्चिंग भी एक शानदार तरीका है। इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए और संवेनदशीलता को बरकरार रखने के लिए इसमें पीलापन होना अति आवश्यक है।
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सैलेरी को बढ़ी विकास के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में पानी की जरूरत होती है। थोड़े-थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई करते रहें। नाइट्रोजन डालने से पहले थोड़े-थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
कटाई सामान्य तौर पर बिजाई से 4-5 माह के पश्चात की जाती है। फसल की कटाई पौधे और बीज के लिए की जाती है। पौधे जमीन से थोड़ा ऊपर तेज छुरी की सहायता के साथ काटे जाते हैं।
बीजों की प्राप्ति आमतौर पर बीजों का रंग हल्के भूरे से सुनहरा होने तक की जाती है। फसल तैयार होते ही कटाई कर लेनी चाहिए। सैलेरी की देरी से कटाई करने पर बीज की उपज में गिरावट आती है।
सैलेरी का बड़े पैमाने पर उपयोग दवाइयां तैयार करने में होने की वजह से बाजार में इसकी कीमत और मांग दोनों किसानों के लिए फायदेमंद हैं। अतः किसान साथी सैलेरी का उत्पादन कर एक अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।