किसान भाइयों रबी का सीजन शुरू हो गया है। अब ऐसे में किसान एक अच्छा मुनाफा देने वाली फसल का चयन करने लगे हुए हैं।
इसी कड़ी में आज हम चर्चा करेंगे एक अच्छी उपज देने वाली महत्वपूर्ण और प्रोटीन से भरपूर दालों वाली फसल के बारे में। बतादें, कि इसका सेवन ज्यादातर मुख्य दाल के तौर पर किया जाता है।
यह दाल गहरी संतरी और संतरी पीले रंग की होती है। इसको विभिन्न प्रकार के पकवानों में इस्तेमाल किया जाता है। यह कपड़ों और छपाई के लिए स्टार्च का स्त्रोत भी उपलब्ध करता है।
इसको गेहूं के आटे में मिश्रण कर ब्रैड और केक भी निर्मित किए जाते हैं। भारत संपूर्ण विश्व के अंदर सर्वाधिक मसूर उत्पादन करने वाला देश है।
मसूर को मिट्टी की सभी किस्मों में उगाया जा सकता है। नमक वाली, क्षारीय और जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। मिट्टी भुरभुरी और खरपतवार रहित होनी चाहिए, जिससे कि बीज एक समान गहराई में बोये जा सकें।
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मसूर की इस LL 699 (2001) किस्म के पौधे छोटे, सीधे और अधिक शाखाओं वाले होते हैं। इसके पौधे काफी गहरे हरे रंग के होते हैं।
इसमें अधिक मात्रा में फलियाँ लगती हैं और यह काफी शीघ्रता से खिलते हैं। यह किस्म 145 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है।
यह फली छेदक रोग को उच्च स्तर पर सहने के काबिल है। मसूर की इस किस्म में पकने के बेहद शानदार गुण विघमान होते हैं। बतादें, कि इसकी औसतन उपज करीब 5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
मसूर की इस LL 931 (2009) किस्म के पौधे छोटे, सीधे और काफी शाखाओं वाले होते हैं, इसलिए इस पर बहुत सारी फलियाँ भी लगती हैं।
इसके पत्ते गहरे हरे, गुलाबी फूल, बिना रंजित हरी फली और अल्पविकसित प्रतान यह सब इस फसल की विशेषताएं हैं। मसूर की इस किस्म को पककर तैयार होने में करीब 146 दिन का समय लग जाता है।
यह जंग रोग के लिए उच्च स्तर पर प्रतिरोधक है और फली छेदक रोग के लिए उच्च सहनशीलता है। इसमें मध्यम आकार के बीज हैं, जो कि हल्के धब्बे के साथ भूरे रंग के होते हैं।
बतादें, कि इसमें पकने के काफी अच्छे गुण विघमान होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 4.8 क्विंटल प्रति एकड़ के करीब है।
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मसूर की इस LL 1373 (2020) किस्म के पौधे आकर में सीधे, छोटे और अधिक शाखाओं वाले होते हैं, इसलिए इसमें काफी फलियाँ लगती हैं।
हल्के हरे पत्ते, गुलाबी फूल, गैर-रंजित हल्के हरे रंग की फली और अल्पविकसित प्रतान यह सब इस फसल की खूबियां हैं।
अगर हम बात करें इस किस्म के पकने की समयावधि के विषय में तो इसको पकने में लगभग 140 दिनों का समय लग जाता है।
यह जंग रोग के प्रतिरोधी हैं और फली छेदक रोग के लिए काफी ज्यादा सहनशील हैं। इसके बीज बड़े होते हैं, जिनका वजन 3.5 ग्राम प्रति 100 बीज होता है।
इसमें पकने के काफी शानदार गुण विघमान होते हैं। इसकी औसतन उपज 5.1 क्विंटल प्रति एकड़ है।
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मसूर की फसल को सबसे ज्यादा बाथू, अणकारी और चटरी-मटरी प्रमुख रूप से हानि पहुँचाते हैं। किसान भाई इनपर नियंत्रण करने के लिए दो गोडाई पहली 30 दिन और दूसरी 60 दिनों के पश्चात करें।
लगभग 45-60 दिनों तक खेत को खरपतवार मुक्त रखें, जिससे फसल काफी अच्छा विकास करे और अधिक उत्पादन प्रदान करे।
इसके अतिरिक्त स्टंप 30 ई सी 550 मि.ली. बिजाई के दो से तीन दिनों के समयांतराल पर छिड़काव करें। वहीं, इसके साथ एक गोडाई 50 दिनों के बाद करें, जो कि खरपतवार की रोकथाम के लिए बेहद अनुकूल है।
मसूर की दाल को बारानी फसल के रूप में उगाया जाता है। जलवायु परिस्थितियों के आधार पर सिंचित क्षेत्रों में इसे 2-3 सिंचाइयों की जरूरत होती है।
बिजाई के 4 सप्ताह उपरांत एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए और दूसरी फूल निकलने की अवस्था में करनी चाहिए। फलियां भरने और फूल निकलने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं।