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इसलिए ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको जानकारी देंगे रबी सीजन की सब्जी फसल के बारे में। यह फसल कोई और नहीं सब्जियों का राजा कहे जाने वाले आलू की फसल है।
आलू विश्व की एक महत्तवपूर्ण सब्जियों वाली फसल है। यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है, जिसकी वजह से इसको गरीब आदमी का दोस्त भी कहा जाता है।
यह फसल दक्षिणी अमरीका की है और इस में कार्बोहाइड्रेट और विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आलू लगभग सभी राज्यों में उगाए जाते हैं।
यह फसल सब्जी के लिए और चिपस बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। यह फसल स्टार्च और शराब बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।
भारत में ज्यादातर उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटका, आसाम और मध्य प्रदेश में आलू उगाए जाते हैं। पंजाब में जालंधर, होशियारपुर, लुधियाणा और पटियाला मुख्य आलू पैदा करने वाले क्षेत्र हैं।
यह फसल बहुत तरह की मिट्टी जैसे कि रेतली, नमक वाली, दोमट और चिकनी मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे जल निकास वाली, जैविक तत्व भरपूर, रेतली से दरमियानी ज़मीन में फसल अच्छी पैदावार देती है।
यह फसल नमक वाली तेजाबी जमीनों में भी उगाई जा सकती है पर बहुत ज्यादा पानी खड़ने वाली और खारी या नमक वाली जमीन इस फसल की खेती के लिए उचित नहीं होती।
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कुफरी सूर्या
यह किस्म गर्मियों के मौसम के प्रतिरोधक है और यह सूखे की बीमारी के प्रतिरोधक है। यह किस्म 90—100 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 100—125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
यह मध्यम पकने वाली किस्म है जो कि 90—100 दिनों में पकती है। देरी से होने वाली सूखा इस किस्म को प्रभावित नहीं करता और इस किस्म के आलू सामान्य स्थितियों में भंडारण किए जा सकते हैं। इसकी औसतन उपज 160—170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
यह किस्म पिछेती अवस्था में लगने वाले सूखे के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन उपज 80—120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पिछेती अवस्था में लगने वाली सूखे की बीमारी इस किस्म को प्रभावित नहीं करती। इसकी औसतन उपज 170—180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त है।
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कुफरी चिपसोना 3
पिछेती अवस्था में लगने वाली सूखे की बीमारी इस किस्म को प्रभावित नहीं करती। इस किस्म में सुक्रॉस की मात्रा कम होती है। यह किस्म चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन उपज 165—175 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
इस किस्म के आलू 75 मि.मी. आकार के होते हैं जो कि फ्रैंच फ्राइज़ बनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन उपज 160—170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
इस फसल को पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में उगाने के लिए सिफारिश की जाती है। यह लंबे कद की और मोटे तने वाली किस्म है।
यह फसल मैदानी इलाकों में 75 दिनों में और पहाड़ी इलाकों में 140 दिनों में पकती है। इसके आलू गोलाकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
यह लंबे कद की और मोटे तने वाली किस्म है। यह किस्म 70-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके आलू बड़े, गोलाकार, सफेद और नर्म छिल्के वाले होते हैं। यह पिछेती झुलस रोग को सहने योग्य किस्म है।
इसके पौधे लंबे और 4-5 तने प्रति पौधा होते हैं। इसके आलू गोल, बड़े से दरमियाने, गोलाकार और हल्के सफेद रंग के होते हैं।
इसके आलू स्वाद होते हैं। यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है। यह किस्म कोहरे को सहनेयोग्य है और पिछेती, अगेती झुलस रोग की प्रतिरोधक है।
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इस किस्म के पौधे लंबे और तने मोटे होते हैं। तनों की संख्या 4-5 प्रति पौधा होती है। इसके आलू बड़े, सफेद रंग के, गोलाकार से अंडाकार होते हैं।
यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसे ज्यादा देर तक स्टोर करके रखा जा सकता है। यह पिछेती और अगेती झुलस रोग और पत्ता मरोड़ रोग की रोधक है।
कुफरी चमत्कार
इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के, फैलने वाले और ज्यादा तनों वाले होते हैं। यह किस्म मैदानी इलाकों में 110-120 दिनों में और पहाड़ी इलाकों में 150 दिनों में पकती है।
इस किस्म के आलू गोलाकार और हल्के पीले रंग के होते हैं। मैदानी इलाकों में इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल और पहाड़ी इलाकों में 30 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पिछेती झुलस रोग, गलन रोग और सूखे की रोधक किस्म है।
इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के और कम तनों वाले होते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं। आलू सफेद, दरमियाने आकार के, गोलाकार, अंडाकार और नर्म होते हैं।
इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पिछेती झुलस रोग की रोधक किस्म है। यह किस्म चिपस और फरैंच फ्राइज़ बनाने के लिए उचित है।
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पौधे दरमियाने कद के होते हैं आलू अंडाकार, सफेद और हल्के सफेद रंग के गुद्दे वाले होते हैं। यह किस्म अधिक समय के लिए स्टोर करके रखी जा सकती है।
यह किस्म मैदानी इलाकों में 80-90 दिनों और पहाड़ी इलाकों में 120 दिनों में पकती है।
मैदानी इलाकों में इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल और पहाड़ी इलाकों में 30 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह पिछेती झुलस रोग, गलन रोग और सूखे की रोधक किस्म है।
इसके बूटे छोटे, सीधे, मोटे और कम तनों वाले होते हैं। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं।
आलू दरमियाने आकार के, गोलाकार से अंडाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं यह जल्दी पकने वाली किस्म है और पकने के लिए 80-90 दिनों का समय लेती है।
इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह नए उत्पाद बनाने के लिए उचित किस्म नहीं है। यह पिछेती झुलस रोग की रोधक किस्म है।
इसके बूटे लंबे और तने संख्या में कम और दरमियाने मोटे होते हैं। आलू सफेद, बड़े, गोलाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं यह किस्म 70-80 दिनों में पकती है।
इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह अगेती झुलस रोग की रोधक किस्म है और नए उत्पाद बनाने के लिए उचित नहीं है।
इस किस्म के पौधे घने और मोटे तने वाले होते हैं। पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं। आलू बड़े आकार के, गोलाकार और नर्म छिल्के वाले होते हैं। यह किस्म 90-100 दिनों में पकती है।
इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म खाने के लिए अच्छी और स्वादिष्ट होती है। इन आलुओं को पकाना आसान होता है। यह नए उत्पाद बनाने के लिए उचित किस्म नहीं है।
इस किस्म के पौधे लंबे और मोटे तने वाले होते हैं। आलू गोल और हल्के लाल रंग के दिखाई देते हैं। इसका गुद्दा हल्के सफेद रंग का होता हैं इसे ज्यादा देर तक स्टोर नहीं किया जा सकता।
मैदानी इलाकों में यह 120 दिनों में और पहाड़ी इलाकों में 145 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म कोहरे, पिछेती झुलस रोग, गलन रोग और सूखे की रोधक है।