जैसा की आप सभी को पता है गन्ने की फसल को नगदी फसल के रूप में माना गया है। यही नहीं गन्ना उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है।
लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादन में आज भी हमारा देश पीछे है इसकी मुख्य वजह है गन्ने की फसल में लगने वाले रोग। इन्ही रोगों की वजह से गन्ने की कुल उपज में गिरावट हो जाती है।
गन्ने की फसल में लगने वाले लगभग 120 रोग है जिनमें किसान रोगों की पहचान करने में असफल हो जाता है। जिससे आधी से ज्यादा गन्ने की फसल ऐसे ही नष्ट हो जाती है। इसके अलावा गन्ने उत्पादन के साथ गुड़ और शक़्कर उत्पादन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
गन्ने की फसल में यह रोग मुख्यत जुलाई, अगस्त और सितम्बर माह में देखने को ज्यादा मिलता है। कभी कभी इस रोग का प्रकोप बारिश के मौसम में भी काफी देखने को मिलता है।
इस रोग के कारण गन्ने की फसल की ऊपरी पत्तियां आपस में उलझने लग जाती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां किनारे से कटने लग जाती है।
इस रोग के कारण गन्ने की बढ़वार रुक जाती हैं। इसके अलावा गन्ने का पौधा सूखने लग जाता है। माना जाता है यह रोग वायुजनित फफूंद फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम से प्रसारित होता है।
इस रोग का प्रभाव ज्यादातर जुलाई और अगस्त माह में देखने को मिलता है। इस रोग के कारण गन्ने की पत्तियां किनारों से सूखने लग जाती है। इसके आलावा जब निचे की पत्तियों को हटाया जाये तो ऊपर की सभी गाठों से जड़ निकलती हुई दिखाई देती हैं।
इस रोग के कारण पत्तियों के दोनों तरफ लाल और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह रोग गन्ने के अंदर अंदर ही फैलता रहता है इसका बाहरी संक्रमण 15 - 20 दी बाद देखने को मिलता है। यह रोग 10 दिन के अंदर पूरी गन्ने की फसल को सुखा देता है। गन्ने की फसल में लगने वाला यह रोग कोलेटोट्राइकम फेलकेटम नामक फफूँद द्वारा होता है।
इस रोग के कारण गन्ने के पौधे में बौनापन देखने को मिलता है। इस रोग की वजह से पत्तियां पीली पड़ जाती है। इसके अलावा यदि गन्ने को काटककर देखा जाये तो गाठों के नीचे गहरा लाल और गुलाबी रंग देखने को मिलता है।
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इस रोग के कारण पौधे की जड़े कम विकसित होती है। इसके अलावा गन्ने की पोरी भी छोटी रह जाती है। गन्ने की फसल में यह रोग मुख्यत सूक्ष्म जीवाणु कलेबी वेक्टर जायली द्वारा होता है।
गन्ने की फसल में लगने वाला यह रोग लगभग 3 -4 महीने के अंदर देखने को मिल जाता है। यह रोग अलग अलग गुच्छों में देखने को मिलता है। इस रोग के कारण गन्ने की पोरियाँ छोटी रह जाती है।
इस रोग में गन्ने के शीर्ष पर निकलने कागज जैसी हरी पत्तियों के नीचे सफ़ेद और पीले रंग के किल्ले बड़ी मात्रा में दिखाई पड़ेगे। यह रोग फायटोप्लाजमा जनित संक्रमित बीज से फैलता है।
इस रोग के त्यधिक प्रकोप के कारण गन्ने की पत्तियां कुछ समय बाद लाल दिखाई देने लग जाती है। साथ ही इस रोग के कारण पौधे में उपस्थित किलोरोफिल नष्ट हो जाता है जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार रुक जाती है। कुछ ही दिनों में हरी दिखने वाली पत्तियां लाल भूरे रंग की दिखाई देखने लग जाती है।