गन्ना को नकदी फसल के रूप में भी जाना जाता है। गन्ने की खेती ज्यादातर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है।
गन्ने की इस किस्म को उच्च उपज और उच्च चीनी देने वाली किस्म माना जाता है। गन्ने के यह किस्म क्रॉस Co LK 8102 x Co 775 से प्राप्त हुई है। गन्ने की इस किस्म में रस की बेहतर गुणवत्ता पायी जाती है। इसीलिए गन्ने की Co 0238 किस्म को किसानों और चीनी उद्योग दोनों द्वारा पसंद किया जाता है।
गन्ने की यह किस्म बहुत तेजी से खेत में फैलती है। रस की उच्च गुणवत्ता होने की वजह से फसल में बहुत से रोग भी देखने को मिलते है। गन्ने की इस किस्म का उत्पादन ज्यादातर उत्तर प्रदेश राज्य में किया जाता है। गन्ने की इस किस्म की खेती ज्यादातर मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड में व्यावसायिक तौर पर की जाती है।
गन्ने की Co 0238 किस्म की परिपक्वता अवधी 12 - 14 महीने रहती है। प्रति हेक्टेयर में फसल का उत्पादन 81 टन के लगभग होता है। गन्ने की इस किस्म में रोग और कीट लगने की ज्यादा संभावनाएं होती है।
गन्ने की इस किस्म में ज्यादातर लाल सड़न रोग होता है, जिसे "गन्ने का कैंसर" के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य में इस फसल की ज्यादातर पैदावर की जाती है। इस रोग के प्रभाव से फसल ज्यादा प्रभावित होती है।
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गन्ने की फसल में यह रोग कोलेटोट्राइकम फलकेटम नामक फफूंद के द्वारा होता है। फसल में इस रोग के लक्षण जुलाई और अगस्त माह में ही दिखने शुरू हो जाते है, और अंत तक दिखाई देते है। लाल सड़न रोग गन्ने की पत्तियां और डंठल को ज्यादा मात्रा में प्रभावित करता है।
गन्ने की फसल में लगने वाले रोग मुख्यत: कण्डुआ (स्मट), ग्रासीसूट : एल्बिनो, लाल सड़न रोग और बिज्ट है। लेकिन गन्ने की इस किस्म को ज्यादातर प्रभावित लाल सड़न रोग के द्वारा ही किया जाता है।
गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग दिखने के लक्षण पत्तियों का सूखना या सूखी हुई पत्तियों पर सफ़ेद धब्बे बन जान। या फिर इंटरनोड्स का लाल होना यह सब लाल सड़न रोग के लक्षण है।
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गन्ने की इस किस्म में लाल सड़न रोग की रोकथाम करने के लिए बुवाई से पहले बीज का उपचार कर ले। प्रतिरोधी किस्मों का चयन और जैविक नियंत्रण। या फिर अन्य कीटनाशक जैसे : मोनोक्रोटोफॉस, फेन्थियान और डायमेथोएट का भी उपयोग किया जा सकता है।