जानें मूंग की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

By: tractorchoice
Published on: 19-Apr-2024
जानें मूंग की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

मूंग की खेती वैसे तो जायद, खरीफ और रबी तीनों मौसमों में की जा सकती है। लेकिन मूंग की सही बुवाई का समय मार्च और अप्रैल के माह को माना जाता है। 

मूंग का ज्यादातर उत्पादन कर्नाटका, बिहार, केरल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है। मूंग में बहुत से पोषक तत्व भी पाए जाते है जो स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होते है। 

मूंग की खेती हालांकि किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन ज्यादा उपयुक्त दोमट मिट्टी को माना जाता है। मूंग की अच्छी खेती के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता रहती है। 

मूंग के अच्छे पकाव के लिए 20 से 40 डिग्री का तापमान उपयुक्त रहता है। मूंग की बुवाई करने से पहले याद रखे  बीज का उपचार कर ले।  

खेत की जुताई करते वक्त क्लोरोपायरीफॉस चूर्ण 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में मिला लेना चाहिए ताकि दीमक जैसे रोगों से फसल को बचाया जा सके। 

मूंग की उन्नत किस्में 

मूंग की उन्नत किस्में एम एच 421, पूसा विशाल, पूसा 9531, पूसा रतना, सम्राट, मेहा, पूसा 0672, आर एम जी 268, पंत मूंग 4, पंत मूंग 5, पंत मूंग 6, एस एम एल 668, एस एम एल 832, एच यू एम 2, एच यू एम 1, एच यू एम 6, एच यू एम 12, गंगा 8, आर एम जी 492, एम एल 818, टी एम बी 37, एच यू एम 16, एम एच 125 और आई पी एम 02 - 14 मूंग की उन्नत किस्में है। इन किस्मों का उत्पादन कर किसन ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। 

बीज की मात्रा 

मूंग की बुवाई करते वक्त खेत में पड़ने वाले बीज का विशेष कर ध्यान रखे। प्रति हेक्टेयर में बीज की मात्रा 25 -30 किलो पड़ती है। इसके अलावा बीज की बुवाई करने से पहले बीज का उपचार कर लेना चाहिए। 

प्रति किलोग्राम बीज को फफूँद नाशक दवा से उपचारित करने के लिए  2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम की मात्रा पर्याप्त है।  इसके बाद बीज को 10 ग्राम राइजोबियम तथा पी.एस.बी. कल्चर से उपचारित करके फसल की बुवाई कर सकते है। 

मूंग की बुवाई का काम सीड ड्रिल मशीन की सहायता से कर सकते है। सीड ड्रिल मशीन की सहायता से मूंग की बुवाई कतारों में की जाते है।  कतारों के बीच की दूरी लगभग 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 

खाद एवं उर्वरक 

बुवाई करते वक्त  याद रखे बीज के साथ 20 किलोग्राम नत्रजन और 50 किलोग्राम स्फुर को बीज में मिलाकर बुवाई करें। इसके बाद डायअमोनियम फास्फेट डी.ए.पी. खाद, पोटाश एवं गंधक का भी उपयोग कर सकते है।  

या फिर जुताई करते वक्त खाद के रूप में हम गोबर खाद का भी उपयोग कर सकते है। इससे फल में बढ़वार देखने को मिलती है और फसल में कीट और रोग लगने की सम्भावनाये भी कम रहती है। 

कब करें मूंग की फसल में सिंचाई 

मूंग की खेती में कम से कम 4 -5 बार सिंचाई करनी चाहिए। मूंग की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद करें। इसके बाद दूसरी सिंचाई 15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। 

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खेत में सिंचाई बारिश और नमी के हिसाब से करनी चाहिए। इसके बाद मूंग की फसल में दाने पड़ जानें के बाद एक सिंचाई जरूर करें। 

मूंग की खेती में खरपतवार नियंत्रण 

मूंग की खेती में लगभग एक महीने के बाद खरपतवार जैसी समस्याएं देखने को मिलती है। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के बाद खेत में 2 किलो ग्राम लासो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है। या फिर समय समय  पर खुद नराई गुड़ाई जैसे कार्यों से भी खरपतवार को नियंत्रित कर सकते है। 

या फिर 3 ग्राम  पेन्डीमेथलिन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है।  छिड़काव के 20 से 25 दिन बाद 750 मिली इमेंजीथाइपर को पानी में मिलाकर छिकाव करने से भी खरपतवार जैसी समस्याएं भी कम हो सकती है। 

मूंग की फसल में लगने वाले कीट 

1 सफ़ेद मक्खी और माहु 

यह कीट पत्तियों और फूलों से रस को चूसते है। यह कीट पत्तियों पर हनीड्यू उत्सर्जित करते है जिसकी वजह से पत्तियों पर काली परत बन जाती है। 

इसका प्रकोप इतना ज्यादा रहता है अगले हमले में यह पूरे पेड़ को सूखा देता है। सफ़ेद मक्खी द्वारा पीले मोजेक वायरस को फैलाया जाता है जिसकी वजह से पूरी फसल खराब हो जाती है। 

2 जैसिड या हरा फुदका 

इस कीट का ज्यादातर प्रकोप पत्तियों पर रहता है। यह कीट पौधे से रस को चूसता है जिसकी वजह से पौधा पीला पड़ने लग जाता है और सूख  जाता है। 

3 थ्रिप्स 

थ्रिप्स कीट के प्रकोप से पत्तियां नीचे की और मुड़ने लग जाती है। और कुछ समय बाद पत्तियां अपने आप टूटकर गिरने लग जाते है। यह कीट पौधे से रस को चूसता है जिसकी वजह से पौधा कमजोर होकर झुलसा जाता है।  

यह कीट मूँग की उत्पादन क्षमता पर काफी प्रभाव डालता है। इससे उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। 

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 4 ब्लिस्टर बीटल

यह कीट लगभग हर जगह मिल जाता है यह बहुभक्षी कीट है जो सम्पूर्ण फसल को काफी नुक्सान पहुंचाता है। यह कीट पौधों में आने वाले फल को खाकर उसकी उत्पादन क्षमता को कम कर देता है। 

5 फली छेदक

इस कीट का ज्यादातर प्रकोप पौधे में फल आने पर देखने को मिलता है।  यह कीट फल के अंदर के गूदे को खाकर उसे खोखला बना देता है। यह कीट फली के अंदर छेड़ कर देता है और उसमे मौजूद फल को खाकर नष्ट कर देता है। 

मूंग की फसल की कटायी 

मूंग की फसल लगभग 90 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। जब आधे से ज्यादा फलियां काली पड़ने लग जाये तो मूंग को हाथो से तुड़वा  लिया जाता है। 

या फिर जब पूरी फसल पककर तैयार हो जाये तो कंबाइन से भी उसकी कटाई की जा सकती है। फलियों जब पक जाए तो उन्हें लम्बे समय तक खेत में न छोड़े क्यूंकि फलियां अपने आप चटकने लग जाती है और बीज नीचे मिट्टी में बिखर जाते है। 

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