ज्यादा ठण्ड और कोहरे की वजह से सरसों की फसल खराब हो सकती है। कोहरे के प्रकोप से सरसों की फसल पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है। सरसों की फसल में आने वाली फलियों का रंग हरे से हल्का गुलाबी होने लगता है।
यही नहीं इसका प्रकोप सरसों की फलियों में आने वाले बीजों पर भी पड़ता है ,इसके चलते बीजो का भी अच्छे विकास नहीं हो पाता है।
पाला पड़ने की सम्भावनाये उस समय ज्यादा बढ़ जाती है जब सर्दियों में तेज चले वाली ठंडी हवाएं रुक जाती है और मौसम एकदम साफ़ रहता है।
पाला पौधे को कई तरीके से क्षति पहुँचाता है , सर्दियों में पड़ने वाले पाले की वजह से सरसों के पेड़ की कोमल टहनियाँ भी नष्ट होने लगती है।
पाले का ज्यादातर प्रभाव सरसों के फूल ,फलियों और कोमल टहनियों पर पड़ता है ,ये पानी इनके अंदर जाकर एक ठोस पदार्थ के रूप में जमा हो जाता है, और सरसों के पेड़ की टहनियों में वजन का काम करता है। इसके चलते सरसों के पेड़ की कोमल टहनियाँ टूटकर नष्ट हो जाती है।
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पाला पड़ने की ज्यादा संभावनाएं 1 जनवरी से 10 जनवरी तक ज्यादा बताई जाती है। क्योंकि यह एक समय ऐसा रहता है जिसमे आसमान तो साफ़ रहता है और ठंडी हवाएं भी चलना बंद हो जाती है।
लेकिन यह मौसम पाला पड़ने की आशंकाओं को बड़ा देता है। अभी लगभग पुरे उत्तर भारत में इस कोहरे और ठंड का प्रकोप देखा जा रहा है।
सरसों की फसल की बुवाई करते वक्त किसानों को खेत में जिप्सम खाद का प्रयोग करना चाहिए। इससे आगे चलकर फसल के खराब होने की बहुत ही कम संभावनाएं रहती है। किसानों द्वारा समय समय सरसों की फसल में सिंचाई करते रहना चाहिए ,इससे फसल को पाले से बचाया जा सकता है।
या किसानों द्वारा सरसों की फसल को पाले से बचाने के लिए धुएँ का भी उपयोग किया जा सकता है। किसानों द्वारा रात के 12 से 1 के बीच में खेत के आस -पास थोड़ी दूरी पर पेड़ पत्तों और टहनियों से धुआँ करदे। ऐसा करने से धुँआ पाले को फसल पर ज्यादा नहीं पड़ने देगा और फसल को भी सुरक्षित रखेगा।
किसानों द्वारा समय समय पर सरसों की फसल में सिंचाई करते रहना चाहिए ,इससे फसल को पाले से बचाया जा सकता है। जब यह लगे की आज पाले की पड़ने की संभावनाएं है ,तो किसानों द्वारा खेत की सिंचाई करनी चाहिए।
यदि खेत में नमी रहेगी तो फसल में पाले लगने की बहुत ही कम संभावनाए रहती है। सिंचाई से खेत में प्रचुर नमी बनी रहती है ,जो सरसों की फसल के लिए सर्दियों के मौसम बेहद लाभकारी रहती है।
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किसानों द्वारा सरसों की फसल को पाले से बचाने के लिए रासायनिक दवाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है। किसानों द्वारा डाईमेथाइल सल्फोऑक्साइड या फिर थायोयूरिया का खेत में छिड़काव करके फसल को पाले से बचाया जा सकता है।
जनवरी माह में कोहरा और पाला पड़ने की ज्यादा संभावनाए रहती है। इस माह में तापमान तेजी से गिरता है, जिसकी वजह से सरसो की फसल को काफी नुक्सान हो सकता है।
फसल को पाले से बचाने के लिए किसानो द्वारा खेत में गंधक का भी छिड़काव किया जा सकता है। खेत में छिड़काव करते वक्त ध्यान रखे गंधक की 1 लीटर मात्रा में पानी की 1000 लीटर मात्रा होनी चाहिए।
इसके छिड़काव का असर खेत में 10 -15 दिन तक होता है। यदि छिड़काव करने के बाद भी खेत में पाले से सम्बंधित कोई समस्या दिखती है तो किसानों द्वारा गंधक का छिड़काव फिर से किया जा सकता है। लेकिन छिड़काव का समय अंतराल 10 -15 का होना चाहिए।
खेतो के चारो तरफ बननी हुई नालियों को पानी से भरकर रखे ताकि खेत में पर्याप्त नमी बनी। फसल में होने वाले नुक्सान को इस तरीके से भी कम किया जा सकता है। खेत में प्रचुर मात्रा में नमी होने की वजह से फसल को रोगों से लड़ने में भी सहायता मिलती है ,और फसल का पकाव भी अच्छा होता है।
किसानों द्वारा फसलों के दीर्घकालीन उपाय के लिए खेतो की मेड़ों पर वायुरोधक पेड़ लगाए जा सकते है। यह सर्दियों में चलने वाली तेज हवाओं ,झोंको और पाले से फसल का बचाव करता है। किसानों द्वारा उत्तर पश्चिमी दिशाओ में वायुरोधक पेड़ लगाने चाहिए।
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सरसों की फसल के साथ साथ और भी ऐसी फसलें है जिनको पाले की वजह से काफी नुक्सान होता है। रबी सीजन में होने वाली सभी फसलों के लिए पाला नुकसानदायक है।
पाले के प्रभाव से फूल ,पत्तियां और फल सभी झुलसाए से हो जाते है। ज्यादा प्रभाव की वजह से पत्ते झड़ने आरम्भ हो जाते है। ज्यादा पाले की वजह से फलियों में पड़ने वाले दाने सिकुड़ने लगते है।
साथ ही फसल की उत्पादकता भी कम हो जाती है। पाले के ज्यादा प्रभाव सरसों की फलियों में आने वाले दानो का भार कम हो जाता है और दाना पहले के मुकाबले इतना मोटा नहीं रह पाता है