जीरे की फसल में लग सकते है ये कीट और रोग , किसान कैसे करें बचाव

By: tractorchoice
Published on: 06-Feb-2024
जीरे की फसल में लग सकते है ये कीट और रोग , किसान कैसे करें बचाव

जीरा एक प्रमुख फसल है इसका इस्तेमाल रसोई घर के बहुत से कामों में किया जाता है। इसकी खेती जालौर जिले में मुख्य रूप से की जाती है। जीरे की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है ,लेकिन कीट और रोगों के प्रकोप से जीरे की फसल खराब हो जाती है। जीरे की फसल में कीट और रोगों का लगना किसानों के लिए चिंता का विषय है। 

जीरे की फसल में लगने वाला छाछया रोग 

इस रोग की प्राथमिक अवस्था में पौधे की पत्तियों और टहनियों पर सफ़ेद रंग का चूर्ण देखने को मिलता है। यह रोग धीरे धीरे पूरे पेड़ पर फैलने लगता है, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इस रोग की वजह से पौधे का अच्छे से विकास नहीं हो पाता है। यह रोग एरिसीफी पोलीगोनी नामक कवक के कारण होता है। इस रोग की वजह से पौधे में बीज नहीं बन पाते है और अगर बनते है तो बीज हल्का रहता है। इस रोग की वजह से फसल की गुणवत्ता ख़त्म हो जाती है। 

ये भी पढ़ें: इन राज्यों में बढ़ा जीरे का उत्पादन क्या जीरे की कीमत को प्रभावित करेगा?

रोकथाम कैसे करें : 

रोग के लक्षण दिखने पर फसल में 15 -20 किलोग्राम गंधक का छिड़काव कर सकते है। साथ ही एक 1% डायनोकेप का छिड़काव रोग दिखने पर कर सकते है। 10 -15 दिन के अंतराल पर ये छिड़काव दोहराया जा सकता है। 

जीरे की खेती में लगने वाला उकठा रोग (विल्ट )

यह रोग जीरे की खेती में किसी भी अवस्था में लग सकता है , लेकिन इसका ज्यादा प्रकोप जीरे की प्रारंभिक अवस्था में रहता है। इस रोग की वजह से पौधा सूख जाता है। यह रोग मुख्यत: जड़ो में लगता है जो, हरे पौधे को भी इस रोग से झुलसा देता है। इस रोग पर पूर्ण तरीके से नियंत्रण पाना कठिन है। यह रोग ओक्सीस्पोरम स्पीं. क्यूमिनी नामक कवक के कारण होता है।  

कैसे करें रोकथाम 

इस रोग के संक्रमण से बचने के लिए किसानों को फसल चक्र अपनाना चाहिए। इसके साथ मई जून के महीनो में खेत की गहरी जुताई कर भूमि को खाली छोड़ देना चाहिए। किसानों द्वारा बुवाई के लिए उन बीजो का उपयोग करना चाहिए जिनमे रोग लगने की कम संभावनाएं हो। बुवाई करने से पहले बीज का उपचार कर लेना चाहिए। बीज उपचार के लिए किसान बॉविस्टीन या एग्रोसेन जी एन दवा का उपयोग करें। इसके साथ मृदा में भी जैव नियंत्रण के लिए ट्राईकोर्डमा हरजीनियम का भी उपयोग किया जा सकता है। 

ये भी पढ़ें: जनवरी माह में इन फसलों को उगाकर किसान काफी शानदार मुनाफा कमा सकते हैं

अल्टेरनेरिया ब्लाइट या झुलसा रोग 

झुलसा रोग ज्यादातर बारिश या नम मौसम के कारण होता है। यह रोग ज्यादातर फसल में फूल आने पर लगता है। यह रोग अल्टरनेरिया बोन्रिसी नामक कवक के कारण होता है। इसमें पौधे पर भूरे और काले रंग के धब्बे पड़ने लगते है , इसके बाद यह धब्बे रोग के ज्यादा प्रकोप की वजह से बिल्कुल काले पड जाते है। 

रोकथाम कैसे करें 

इस रोग का प्रकोप दिखने पर खेत में 2% मेंकोजेब का छिड़काव करें आवश्यकता पड़ने पर इस छिड़काव को दुबारा दोहराया जा सकता है। जीरे की बुवाई के 40 -45 दिन बाद में 2% मेंकोजेब और 0.3 प्रतिशत अजाडिरेक्टीन का छिड़काव करने से इस रोग से फसल को बचाया जा सकता है। 

जीरे की फसल में लगने वाले मोयला ( माहु ) कीट 

यह जीरे की फसल में लगने वाला मुख्य कीट है , जो फसल के कोमल हिस्सों से रस को चूस लेता है।  इस कीट की वजह से फसल मुरझा जाती है। इस कीट की वजह से जीरे की फसल को काफी क्षति पहुँचती है। इस कीट के नियंत्रण के लिए किसान खेतो में 0.5 प्रतिशत डाइमिथिएट का प्रति हेक्टेयर में छिड़काव कर सकते है। 

ये भी पढ़ें: जानिए फार्मिंग कितने प्रकार की होती है

पत्तियां खाने वाली सूंडी

यह कीट फसल की प्रारंभिक अवस्था में लगती है , यह कीट फसल की पत्तियों को खा कर काफी नुक्सान पहुंचाता है। इस कीट की रोकथाम के लिए 0.02 प्रतिशत फास्फोमिडान का छिड़काव किया जा सकता है। 

Similar Posts
Ad