भारत के अंदर बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली उड़द एक दलहन फसल है।
उड़द की फसल में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम और फास्फोरस भरपूर मात्रा में पाया जाता है। उड़द की दाल का सेवन करने से बहुत सारे स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं।
भारत के अंदर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में उड़द का काफी बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।
उड़द की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए सबसे अनुकूल बलुई दोमट मिट्टी होती है। अधिक जल जमाव ना हो इसलिए उचित जल निकासी की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
उड़द की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे अच्छे होते हैं। गर्म और आर्द्र जलवायु में उड़द की अच्छी उपज मिलती है।
भारत के उत्तरी हिस्सों में जहां सर्दियों के दौरान तापमान गिरता है, वहाँ इसकी खेती बरसात व गर्मी के मौसम में की जाती है। सामान्य जलवायु वाले इलाकों में इसकी खेती सर्दी और बरसात दोनों मौसम में कर सकते हैं।
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उड़द की बुवाई फरवरी से अगस्त महीने तक की जा सकती है। जायद सीजन में उड़द की बुवाई फरवरी-मार्च में और खरीफ सीजन में इसकी खेती बुवाई जून-जुलाई में करनी चाहिए।
खेत में सबसे पहले 2-3 बार गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बनाकर पाटा लगादें। खेत में जल जमाव न होने दें, जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। अगर आप भारी मृदा में इसकी खेती कर रहे हैं तो आपको ज्यादा जुताई करनी पड़ेगी।
आईसीएआर-भारतीय दहलन अनुसंधान संस्थान के द्वारा उड़द की पीडीयू 1 (बसंत बहार) किस्म को विकसित किया गया है।
यह किस्म विकसित और एनडब्ल्यूपीजेड और सीजेड क्षेत्रों के लिए अच्छी होती है। उड़द की इस किस्म से लगभग 9 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
आईसीएआर- भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर द्वारा उड़द की आईपीयू 94-1 (उत्तरा) किस्म विकसित की गई है।
यह किस्म एनईपीजेड इलाकों के लिए सबसे उपयुक्त है। इसकी खेती से 12 से 14 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार मिलती है।
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उड़द की टी-9 (T-9) किस्म उत्तर प्रदेश के सभी हिस्सों में उगाई जाने वाली किस्म है। इस किस्म की औसतन उपज करीब 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है। यह किस्म 70 से 75 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।
उड़द की टीपीयू- 4 (TPU-4) किस्म को पककर तैयार होने में 74 दिन का समय लगता है। यह किस्म एक हैक्टेयर में 7 से 13 क्विंटल तक उपज देती है। इस किस्म को मध्यप्रदेश व गुजरात के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है।
उड़द की पी.यू.-31 किस्म मध्यम आकार के दानों वाली किस्म है। इस किस्म को पककर तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लगता है।
यह किस्म राजस्थान के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। उड़द की पी.यू.-31 किस्म से करीब 10 से 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
उड़द की अन्य किस्में भी बाजार में उपलब्ध हैं। जैसे कि उड़द की पंत यू-30 किस्म, ईपीयू 94-1 (IPU-4) किस्म, उड़द की ईपीयू 94-1 (IPU-4) किस्म, एलबीजी 623 (LBG-623) किस्म, उड़द की एलबीजी 623 (LBG-623) किस्म, आजाद उड़द- 2 (Azad udad-2) किस्म, उड़द की आजाद उड़द- 2 (Azad udad-2) किस्म, उड़द की जवाहर उड़द-2 किस्म शामिल हैं।
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उड़द की फसल को खरीफ सीजन में सिंचाई की कोई खास जरूरत नहीं पड़ती है। केवल वर्षा जरूरत से कम होने पर ही फली में दाने के विकास के समय सिंचाई करनी जरूरी होती है।
जायद सीजन में उड़द की फसल में 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। उड़द की फसल में सिंचाई 10-15 दिन के समयांतराल पर करनी चाहिए। फूल आने से लगाकर फली तैयार होने तक खेत में नमी बनी रहनी चाहिए।
उड़द की बुवाई के बाद कम से कम 40 दिनों तक खेत में खरपतवार की निगरानी करनी चाहिए। खरपतवार होने की स्थिति में उड़द की फसल की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
उड़द की खेती में कई तरह के कीट भी लगते हैं, जिनमें बालदार सुंडी, हरा फुदका, फली भृंग, बिहार रोमिल इल्ली, तम्बाकू इल्ली, अर्द्धगोलाकार इल्ली, सफेद मक्खी और फली छेदक आदि कीट शामिल हैं।
उड़द की फसल को कई सारे रोग प्रभावित करते हैं। जैसे - भभूतिया रोग, पीला मोजैक रोग, जड़ सड़न, पत्ती झुलसा, एंथ्रेकनोज़ रोग और पत्ती धब्बा रोग आदि शामिल हैं।
इन रोगों की रोकथाम करने के लिए कृषि विशेषज्ञों द्वारा बताई गई दवाओं का उपयोग करना चाहिए।
उड़द की फसल को कटाई या तुड़ाई के लिए पककर तैयार होने में करीब 80 से 100 दिन का समय लगता है। इसकी तुड़ाई 70-80% फलियाँ पक जाने और ज्यादा संख्या में फलियाँ काली हो जाने पर करनी चाहिए।
उड़द की फसल को काटने के बाद धूप में सुखाकर इसकी मड़ाई कर सकते हैं। मड़ाई के बाद आप बीजों को 3-4 दिन तक धूप में सुखाने के बाद भंडारण कर सकते हैं।
उड़द की खेती बेहद ही अच्छी आय का स्त्रोत है। उड़द की हमेशा बाजार में मांग बनी रहती है। इसलिए इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। इसके परिणामस्वरुप किसान को उड़द की खेती से बेहरीन मुनाफा होता है।