अखरोट की खेती

By: tractorchoice
Published on: 12-Feb-2025
Walnut farming guide covering soil, climate, varieties, planting, disease management, and harvesting for profitable cultivation.

अखरोट पोषक तत्वों से भरपूर एक ड्राई फ्रूट है। अखरोट का सेवन करने से शरीर को भारी ऊर्जा का अनुभव होता है। भारत के अंदर अखरोट की हमेशा से काफी अच्छी मांग रही है। 

यही वजह है, कि अखरोट का बाजार में काफी अच्छा भाव मिलता है। ट्रैक्टरचॉइस के इस लेख में आज हम आपको बताएंगे अखरोट की खेती से जुड़ी कुछ जरूरी बातें। 

अखरोट की खेती से जुड़ी जरूरी बातें

मिट्टी

अखरोट की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। साथ ही, मृदा में उत्तम जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी का PH मान 5 से 7 होना जरूरी है। 

जलवायु 

अखरोट के लिए 15°C से 25°C के बीच तापमान सर्वोत्तम होता है। इसके पेड़ों के लिए ठंडी हवाएं जरूरी होती हैं।       

समय 

अखरोट की रोपाई करने के लिए दिसंबर से लेकर मार्च तक का समय सबसे अच्छा होता है। 

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अखरोट कितने प्रकार का होता है ?

अखरोट प्रमुख रूप से 2 प्रकार का होता है 

1. जंगली अखरोट  

जंगली अखरोट का पेड़ की ऊँचाई 100 से 200 फीट और इसके फल का छिलका मोटा होता है। 

2. कृषिजन्य अखरोट 

कृषिजन्य अखरोट का पेड़ की ऊँचाई 40 से 90 फीट और इसके फल के छिलके पतले होते हैं। इस वजह से इनको कागजी अखरोट भी कहा जाता है।

अखरोट की किस्म

अखरोट की पूसा किस्म 

अखरोट की पूसा किस्म का पौधा 3-4 साल में उपज देना शुरू कर देता है। यह पौधे ऊंचाई में सामान्य होते है और इसमें निकलने वाला छिलका भी काफी पतला होता है। पूसा किस्म के अखरोट को खाने में उपयोग किया जाता है। 

ओमेगा 3 किस्म

ओमेगा 3 अखरोट की एक विदेशी किस्म है, जिसके पौधे काफी ज्यादा ऊँचे होते हैं। ओमेगा 3 किस्म के फलों को औषधीय ढ़ंग से ज्यादा उपयोग किया जाता है। 

हृदय संबंधी रोगों के लिए यह अधिक उपयोगी माना जाता है। अखरोट के फलों से लगभग 60% प्रतिशत तेल हांसिल किया जा सकता है।

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कोटखाई सलेक्शन 1

कोटखाई सलेक्शन 1 किस्म के पौधे कम वक्त में उपज देने के लिए तैयार किए जाते हैं। इस किस्म के अखरोट की गिरी हल्की हरी और खाने में अधिक स्वादिष्ट होती है। इसके पौधे की ऊंचाई सामान्य और फलो में निकलने वाला छिलका पतला होता है।

लेक इंग्लिश किस्म

यह अखरोट की एक विदेशी किस्म है, जिसमें पौधे अधिक लंबे होते है। इस किस्म के पौधों को जम्मू और कश्मीर जैसे प्रदेशो में अधिक उगाया जाता है। अखरोट की यह किस्म समय पर पैदावार देती है। 

इनके अलावा अखरोट की अन्य किस्में भी उपलब्ध हैं :- जैसे कि एस.आर. 11, K.N. 5, चकराता सिलेक्शन, S.H. 23, 24, K.12, प्लेसेंटिया, ड्रेनोवस्की, विल्सन फ्रैंकुयेफे, ओपक्स कॉलचरी और कश्मीर अंकुरित किस्में शामिल हैं। 

बिजाई 

अखरोट के पौधों की रोपाई से करीब एक वर्ष पूर्व नर्सरी में इनको तैयार कर लेना चाहिए। सीधी कतार में गड्ढा खोदकर पौधरोपण करना चाहिए। गड्ढों के बीच का फासला 10 से 12 मीटर होना चाहिए।

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अखरोट की खेती में खरपतवार नियंत्रण 

पौध रोपाई से एक महीने बाद इसकी पहली गुड़ाई कर देनी चाहिए। पौधों की पहली गुड़ाई के बाद खरपतवार होने पर जरूरत के अनुसार हल्की-हल्की निराई–गुड़ाई करनी चाहिए।

रोग व कीट प्रबंधन 

जड़ गलन रोग, गोंदिया रोग, तना बेधक रोग और अखरोट के फल को प्रभावित करने वाले कीटों की रोकथाम करने के लिए नजदीकी के.वी.के. के कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क करके रासायनिक दवाओं का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है।  

अखरोट की कटाई 

अखरोट के पौधरोपण के 4 वर्ष की समयावधि में फल आने शुरू हो जाते हैं। अखरोट के फलों की कटाई ऊपरी छाल फटने पर करनी चाहिए। 

निष्कर्ष - 

अखरोट की खेती करना किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है। अखरोट की बाजार में 600 से 1000 रुपए के बीच कीमत होती है। अखरोट की बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से किसान इससे काफी मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

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