भारत एक कृषि प्रधान देश होने की वजह से यहाँ की आधी से ज्यादा आबादी खेती किसानी पर ही निर्भर रहती है। इसलिए किसान देश की रीढ़ की हड्डी है।
किसानों के देश के प्रति समर्पण और योगदान को सम्मानित करने के लिए राष्ट्रीय किसान दिवस का उत्सव सारे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
किसान मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह जी के जन्म दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय किसान दिवस का आयोजन किया जाता है।
आज हम किसान दिवस के उपलक्ष्य पर किसानों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए अहम कदम और किसानों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों की चर्चा करेंगे।
किसान और कृषि क्षेत्र के विकास तथा उन्नति के लिए भारत सरकार की तरफ से कई सारी कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। जैसे कि पीएम-किसान, पीएमएफबीवाई और डिजिटल कृषि मिशन आदि संचालित की जाती हैं।
ये विभिन्न योजनाएं यह सुनिश्चित करती हैं, कि देश के मेहनतकश कृषकों को आर्थिक सुरक्षा और आधुनिक तकनीकों का लाभ और आर्थिक मदद मिल सके।
देश की आर्थिक और शारीरिक शक्ति के लिए ‘अन्नदाता’ का अहम योगदान है। इसलिए किसान का मजबूत होना देश के लिए बेहद जरूरी है।
अगर किसान की उन्नति होगी तो देश का मजबूत होना भी निश्चित है। जब किसान सशक्त होंगे, तभी एक समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सकेगा।
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भारत की कृषि, मृदा स्वास्थ्य पर निर्भर है और मृदा की उर्वरता में गिरावट इस क्षेत्र के सम्मुख एक बड़ी चुनौती है।
रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और शाकनाशियों/तृणमारकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया है, जिससे इसकी उर्वरता तथा उत्पादकता दोनों कम हो गई हैं।
इसके परिणामस्वरूप फसल की न्यूनतम पैदावार और मृदा स्वास्थ्य का खराब होना है, जो कृषि के सतत् विकास के लिये एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभरा है।
भारत एक जल-तनावग्रस्त(वाटर स्ट्रेस) देश है, जहाँ विश्व के मीठे जल के स्रोतों का केवल 4% एवं विश्व की समस्त आबादी का 16% भाग है।
यहाँ का कृषि क्षेत्र सबसे बड़ा जलीय उपभोक्ता है, जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण जल के खपत का लगभग 80% भाग आता है।
हालाँकि, अत्यधिक दोहन, खराब प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के कारण जल की उपलब्धता घट रही है, जिससे कई क्षेत्रों में जल की कमी और सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है।
भारत में अधिकांश किसानों के पास भूमि के छोटे, सीमांत भूखंड विखंडित भूमि के साथ उपलब्ध हैं।
जिसके परिणामस्वरूप कृषि गतिविधियाँ अक्षम हो जाती हैं, जो बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और उनके द्वारा मिलने वाले ऋण तक पहुँच को भी प्रतिबंधित करता है।
इसके अतिरिक्त, यह सिंचाई प्रणाली और समकालीन प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रतिबंधित करता है, जिसके परिणामस्वरूप खराब उत्पादकता और न्यूनतम पैदावार देखने को मिलती है।
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भारत के कृषि क्षेत्र में न्यून उत्पादकता देखने को मिलती है, जिसकी पैदावार वैश्विक औसत की तुलना में बेहद कम है। जिसका मुख्य कारण खराब कृषि पद्धतियाँ, प्रौद्योगिकी और सूचना तक अपर्याप्त पहुँच और बुनियादी ढाँचा है।
कृषि क्षेत्र में उत्पादकता का घटता स्तर, न्यून लाभप्रदता, किसानों की अपर्याप्त आय सीमित निवेश की ओर ले जाते हैं।
कृषि क्षेत्र की वृद्धि और विकास के लिये प्रौद्योगिकी और बाज़ारों तक किसानों की पहुँच होना बेहद महत्वपूर्ण है।
हालाँकि, भारतीय किसानों की आधुनिक तकनीक और बाज़ारों तक सीमित पहुँच है, जो उत्पादकता में सुधार,न्यूनतम लागत और मुनाफा बढ़ाने की क्षमता को सीमित करता है।
इसके अलावा बुनियादी ढाँचे और बाज़ार से जुड़ाव में कमी के कारण किसानों की उच्च कीमतों को नियंत्रित करने में असमर्थता एक सम्मानजनक जीवन जीने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करती है।