किसान वर्तमान में बागवानी फसलों का उत्पादन कर कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। तोरई एक ऐसी सब्जी है, जिसकी बाजार में हमेशा काफी मांग रहती है।
अब इसी कड़ी में रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र के एक्सपर्ट दिलीप कुमार सोनी का कहना है, कि तोरई की शानदार किस्मों के बीजों से खेती करने पर काफी अच्छी पैदावार हांसिल होती है।
पूसा संस्थान ने तोरई की उन्नत और ज्यादा उपज देने वाली बहुत सारी किस्में विकसित की हैं, जिनमें पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका, घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बू- 2 को काफी लोकप्रिय किस्में हैं।
तोरई की बेहतरीन किस्में जैसे कि T- 9 (काली) तोरई बीज, T- 36 (पीली) तोरई बीज, PT30 (काली) तोरई बीज PT 303 (काली) तोरई बीज शामिल है। तोरिया की इन किस्मों की पैदावार काफी अच्छी होती है। साथ ही, किसानों को बाजार में काफी अच्छा भाव मिलता है।
बेहतरीन किस्म के बीजों का चुनाव करके किसान कम समय में मोटा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। सितंबर के प्रथम सप्ताह से 50 दिनों तक बुवाई के लिए अच्छा समय होता है। तोरई की देरी से बुवाई करने पर गेहूं की बुवाई में भी देरी का सामना करना पड़ सकता है।
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अगर आप तोरई की खेती करना चाहते हैं, तो बीज की रोपाई से पहले बीजों का उपचार करना आवश्यक है। बीजोपचार के लिए 2 ग्राम काबेंडेजिम के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार किया जा सकता है। इसके साथ ही बीजों को एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद टीके से उपचारित करना भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
तोरई की खेती के लिए एक एकड़ खेत में 1.50 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता हो सकती है। तोरई की बुवाई कतार बनाकर की जानी चाहिए।
कतारों के बीच एक दूसरे से फासला करीब 30 सेमी. होना चाहिए। इसके अतिरिक्त बुवाई करने के लिए 4 से 5 सेमी गहराई आवश्यक है। पौधे से पौधे के बीच का फासला 10 से 15 सेमी रहना चाहिए।
तोरई की बुवाई के बाद फसल की बेहतर ढ़ंग से सिंचाई करनी चाहिए। साथ ही, मिट्टी की देखभाल करना भी बेहद आवश्यक है। खेतों में उचित जलनिकास की व्यवस्था रहनी चाहिए।
तोरई की कटाई 70-80 दिनों की समयावधि में की जा सकती है। फल पकने की स्थिति में सब्जी बनाने के लिए या बीज के लिए उपयोग किए जा सकते हैं।
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तोरई की खेती से किसान काफी कम समय और लागत में अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। तोरई का उत्पादन करना एक अच्छी आय का विकल्प है।